बुधवार, 18 सितंबर 2013

फ़ासीवाद


                      फ़ासीवाद
  राजनीति में फ़ासीवादी  शब्द  का प्रयोग ‘ ख़तरनाक तानाशाह '  के सन्दर्भ में किया जाता है . जब भी किसी राजनीतिक व्यक्ति या संस्था को बहुत बदनाम करना होता है तो उसे फ़ासीवादी कह दिया जाता है . मुसोलीनी ने १९१९ में राष्ट्रीय फ़ासिस्ट दल बनाया था . द्वितीय विश्वयुद्ध में जब तक वह अंग्रेजों के विरुद्ध और रूस के पक्ष में रहा, वह बहुत अच्छा था परन्तु जब जर्मनी के तानाशाह हिटलर ने रूस पर आक्रमण कर दिया, रूस और दुनिया भर के कम्युनिस्टों के लिए बहुत अच्छे रहे  हिटलर और मुसोलिनी  बहुत बुरे  हो गए . अतः जब भी कम्युनिस्टों और उनके अनुयायियों को  किसी को बहुत बुरा साबित करना होता है वे उसे फ़ासीवादी कहने लगते हैं जिसका अभिप्राय ऐसे तत्व से होता है जिसे यथा शीघ्र समाप्त कर दिया जाना  चाहिए .  
   लैटिन भाषा में फ़ासीज़ शब्द का अर्थ होता है लाठियों का एक गट्ठर जिसके मध्य में एक फरसा रखा हो . प्राचीन रोम साम्राज्य में जब बड़े सामंत चलते थे तो उनकी शक्ति के प्रतीक के रूप में फ़ासीज़ उनके आगे-आगे ले जाया जाता था . रोम की प्राचीन शक्ति  और गौरव को  पुनरुज्जीवित करने के लिए मुसोलीनी ने अपने राजनीतिक दल का नाम रखा राष्ट्रीय फ़ासिस्ट दल . उसने इटली को विपन्नावस्था से बड़ी तीव्रता से बाहर निकाला परन्तु उसका वेग रुक नहीं सका और ऐसे गड्ढे में जा गिरा जहां मुसोलिनी  स्वयं तो मरा ही, इटली भी  पुनः अनेक समस्याओं से घिर गया . फासीवाद अच्छा है या बुरा, इसे समझने के लिए फ़ासीवाद की उत्पत्ति, उसके मूलाधार, सिद्धांत  और उसके कार्यों को जानना उचित होगा .
इस विचारधारा के प्रमुख स्रोत हैं :
१.      डार्विन वाद : प्रकृति में शक्तिशाली का ही अस्तित्व रहता है . मानव समाज की उन्नति और प्रगति का मूल कारण है विकास के लिए उसका सतत संघर्ष रहा है .मुसोलिनी के अनुसार  मानव इतिहास युद्ध में एक राष्ट्र की दूसरे राष्ट्र पर विजय तथा आधिपत्य स्थापित करने का इतिहास है . युद्धों द्वारा ही साम्राज्यवाद स्थापित किया जाता है . अतः वह कहता था कि महिलाओं के लिए जो महत्व प्रसव का है , पुरुषों के लिए युद्ध का है .
२.      अबुद्धिवाद :  मनुष्य बुद्धि से नहीं ,अन्तः प्रेरणा, अंध श्रद्धा और विश्वास से प्रेरित होकर कार्य करता है . मुसोलिनी कहता था, “हमने अपनी अंध श्रद्धा उत्पन्न की है . यह अंध श्रद्धा राष्ट्र है , राष्ट्र की महत्ता में विशवास है . श्रद्धा पर्वतों को प्रकाशित कर सकती है , बुद्धि इन्हें नहीं हिला सकती . बुद्धि तो एक उपकरण मात्र है यह जनसमुदाय या भीड़ को प्रेरणा नहीं दे सकती है जबकि एक आधुनिक व्यक्ति  में श्रद्धा असीम मात्रा में भरी जा सकती है और उस श्रद्धा तथा विशवास के लिए काम करवाया जा सकता है . वह स्पष्ट शब्दों में कहता था , “मेरे लिए जनता भेड़ों का रेवड़ मात्र है . यदि आप उनका नेतृत्व  करना चाहते हैं तो आपको उत्साह और रूचि की दोहरी लगाम से पथ प्रदर्शन करना होगा .“मुसोलिनी को वीर दल का नेता होने से ‘ दूचे ‘ कहा जाता था . उस के अनुयायियों का  यह नारा था कि मुसोलिनी ठीक सोचता है और ठीक कार्य करता है .
३.      परम्परावाद : किसी राष्ट्र की विशेषता उसके अतीत की गौरवपूर्ण ऐतिहासिक परम्पराएं होती हैं . मुसोलिनी का उद्देश्य था इटली को विश्व में पुनः प्राचीन रोमन  साम्राज्य जैसा गौरव दिलवाना .
४.      आदर्शवाद : फ़ासीवाद  आदर्शवाद में विशवास रखता है . इसके अनुसार भौतिक सुख ही मनुष्य के लिए सब कुछ नहीं हैं . उसके कुछ आदर्श भी होते हैं जिन्हें वह अधिक ऊंचा समझता है .जब  वह समझता  है कि देश एवं जाति के हित उसके हितों से अधिक महत्वपूर्ण हैं तो वह उसके लिए  स्वयं को समर्पित कर देता है . व्यक्ति की नैतिक समृद्धि तभी संभव है जब वह निजी स्वार्थ को गौण माने और राज्य के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करने पर अधिक बल दे . जब व्यक्ति भविष्य की चिंता किये बिना तात्कालिक सुख और कल्याण को एक ही समझने लगता है तो वह पशुवत हो जाता है . अतः व्यक्ति को सदैव उच्च आदर्शों के भावों से भरपूर रखना चाहिए .
५.      व्यवहारवाद : सत्य वही है जो  हितकर है , जो अहितकर है, वह असत्य है . सत्य की कोई शाश्वत सत्ता नहीं है .परिस्थितियों और परिणाम के आधार पर यह बदलती रहती है . जन कल्याण के लिए जो भी किया जाय , वह सही है .
                              फ़ासीवाद के मुख्य सिद्धांत
१.       राज्य सर्वोच्च, सर्वाधिकारी तथा सम्पूर्ण सत्तावादी संस्था है :  राज्य को सब व्यक्तियों पर निरंकुश सत्ता प्राप्त है . प्रत्येक व्यक्ति राज्य के आधीन और उसी के लिए है . वह  तभी तक स्वीकार्य है जब तक उसके हित राज्य के हितों के अनुकूल हैं . इसलिए फ़ासीवाद ने साहित्य, कला, संगीत, सिनेमा, रंगमंच, शिक्षा, विज्ञान, मीडिया आदि सब पर राज्य का पूर्ण नियंत्रण माना है .
       मुसोलिनी  राज्य को रात के समय सुरक्षा गार्ड कि भांति चक्कर लगाकर लोगों की जान-माल की रक्षा करने वाला या मनुष्यों के भौतिक सुखों कि वृद्धि करने वाला नहीं मानता था . उसके अनुसार राज्य राष्ट्र के राजनीतिक, आर्थिक और न्यायायिक संगठन के लिए बनाई गई एक आध्यात्मिक सत्ता है जिसके आधीन रहकर ही व्यक्ति अपना समग्र विकास कर सकता है .
२.      उग्र राष्ट्रीयता : इसलिए फ़ासीवाद राष्ट्रीयता को बहुत महत्त्व देता था . आदर्श व्यक्ति का कार्य है राष्ट्र की महिमा के गीत गए, राष्ट्र को भगवान् समझे और पूर्ण समर्पण भाव के साथ उसके आदेशों का पालन करे .
३.      लोकतंत्र का विरोध : फ़ासीवादी लोकतंत्र को मूर्खतापूर्ण, भ्रष्टाचारी, मंदगामी, काल्पनिक, अव्यवहारिक, अदक्षतापूर्ण और अस्वाभाविक संस्था मानते थे . उनके अनुसार  जनतंत्र सड़ने वाली लाश के समान है . तथा  संसद बातूनी लोगों की ऐसी दुकान है जो कभी ठोस कार्य नहीं करती है . लोकतंत्र के भौतिक सिद्धांतों – व्यक्ति की समानता, स्वतंत्रता, सहिष्णुता, उसकी महत्ता तथा गरिमा में उनका कोई विशवास नहीं था .            
४.      अधिनायकवाद  : फ़ासीवाद अपने नेता के अधिनायक वाद और शासन में विशवास रखता है जिसका अर्थ है कि नेता का आदेश ही सर्वोच्च है . उस पर प्रश्न नहीं किया जा सकता . उसको स्वीकार करो और उसके अनुसार ही कार्य करो .
५.      पूँजीवाद का समर्थन : प्रथम विश्वयुद्ध के बाद कम्युनिस्टों का प्रभाव बढ़ने लगा था . उससे भयभीत होकर पूंजीपतियों, ज़मीदारों, उद्योगपतियों, व्यापारियों और महाजनों ने मुसोलिनी की बहुत सहायता की थी . फ़ासीवाद साम्यवाद का प्रबल विरोधी तो था परन्तु पूँजीवाद का अंध भक्त नहीं था . वह पूँजी पर व्यक्ति का मौलिक अधिकार नहीं मानता था . उसके अनुसार राष्ट्रहित सर्वोपरि हैं और आवश्यकता पड़ने पर राज्य व्यक्ति की पूँजी अपने अधीन कर सकता है .
६.      निगमात्मक राज्य ( कार्पोरेट स्टेट ) : राज्य सर्वोच्च है, उसके नेता का आदेश सर्वोच्च है परन्तु यह तो संभव नहीं है कि देश का एक नेता सबको आदेश दे, तभी वे काम करें . अतः सबकी सुविधा के लिए मुसोलिनी ने देश में अनेक निगम बनाए जो व्यवसाय एवं कार्य की प्रकृति पर आधारित थे . उसने उद्योगों तथा कार्यालयों में स्वामी,  कर्मचारियों तथा श्रमिकों के संघ बनाए . उसका ध्येय था कि सब अपनी पूरी क्षमता से देश हित में कार्य करें और जहां कहीं परस्पर  हितों का टकराव हो, निगमों द्वारा, संघों द्वारा  देश तथा सभी पक्षों के हितो का ध्यान रखते हुए सर्व सम्मत  हल निकाले जांय . यदि वे विवाद नहीं सुलझा पाते थे तो न्यायालयों को उनका त्वरित निर्णय करना होता था . उसने देश में हड़तालों तथा बंधों पर पूरी  रोक लगा दी थी जिससे लोगों की अधिकताम ऊर्जा इटली के विकास एवं उत्पादन की वृद्धि में लगी तथा लोगों में सहयोग भाव तथा भ्रातृत्व भाव  का विकास हुआ .
       प्रथम विश्वयुद्ध में इटली यद्यपि मित्र देशों की ओर से युद्ध लड़ा था जिनकी विजय हुई थी परन्तु उसे युद्ध से कोई आर्थिक लाभ नहीं हुआ . युद्ध में उसके हजारों लोग मारे गए थे और घायल हो गए थे तथा कोष खली हो गया था . जनतांत्रिक सरकार के नेता अक्षम थे . देश में बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, असुरक्षा  तथा प्रत्येक क्षेत्र में अव्यवस्थाएं बढ़ती जा रही थीं . नेताओं के ठाट-बात पूर्ववत थे जिससे जनता उनके विरुद्ध हो गई थी . मुसोलिनी के  फ़ासीवादी दल  के कमांडो अपने नेताओं की सभाओं को अच्छी प्रकार चलने के लिए पूरी सुरक्षा देते थे तथा दूसरे दल की सभाओं को हिंसा द्वारा अस्त-व्यस्त कर देते थे . जो उनका साथ नहीं देता था वे उससे सख्ती से निपटते थे . अपने समाचार पात्र द्वारा मुसोलिनी ने लोगों को अपने पक्ष में कर ही लिया था . इसलिए राष्ट्रीय फ़ासीवादी दल की स्थापना के मात्र तीन वर्ष बाद १९२२ में जब उसने सरकार को चेतावनी दी कि उसके दल के लोगों को मंत्रिमंडल में सम्मिलित करें अन्यथा वे सरकार पर हमले करेंगे तो भय के कारण मंत्रिमंडल ने स्वयं त्यागपत्र दे दिया और मुसोलिनी के फ़ासीवादी दल ने इटली की सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया . मुसोलिनी कहता था कि महान रोमन राज्य के वंशज  होने के कारण मूल इटलीवासी विश्व में सर्वश्रेष्ठ हैं . मुसोलिनी ने अल्प काल में ही देश का चतुर्मुखी विकास किया , बेरोजगारी बहुत कम हो गई, भ्रष्टाचार समाप्त हो गया, सभी क्षेत्रों में उत्पादन बढ़ता गया . उसके हिंसा - प्रेम, युद्धप्रियता और साम्राज्यवाद ने इटली साम्राज्य का बहुत विस्तार कर दिया परन्तु द्वितीय विश्वयुद्ध में हिटलर का साथ  देने पर उसकी करारी हार हुई, मुसोलिनी मारा गया , फ़ासीवादी दल समाप्त हो गया  और इटली की भारी क्षति हुई . हारा हुआ व्यक्ति सदैव गलत कहा जाता है. मरने के बाद उसे, उसकी प्रेमिका और उसके साथियों को एक कतार में एक प्रमुख चौक पर मीट हुक से उल्टा टांग दिया गया था . अब वही इटली के लोग उन्हें  पत्थर मार रहे थे . परन्तु  फ़ासीवाद का भूत जिन्दा है और जब भी किसी को खूंख्वार कहना होता है उसे फ़ासीवादी कह दिया जाता है .
  कमुनिस्ट, कांग्रेसी और उन्हीं के जैसे अन्य सेकुलर दल और लोग संघ और भाजपा को इसलिए फ़ासीवादी कहते हैं कि वे अपनी प्राचीन भारतीय संस्कृति और गौरव का गुणगान करते है और राष्ट्रवाद की बात करते हैं.
ये सेकुलरवादी पार्टियाँ स्वयं को फ़ासीवाद के विरुद्ध इसलिए अच्छा मानती हैं क्योंकि ये भारत के प्राचीन गौरव और संस्कृति तथा राष्ट्रवाद के नाम  से ही चिढ़ते हैं और उसके विरुद्ध कार्य करते हैं . कांग्रेस और उसकी समर्थक पार्टियाँ राष्ट्रवाद के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीयता को अधिक महत्त्व देते हैं ,ये  स्वदेशी उद्योगों को इसलिए नष्ट करते आ रहे हैं कि विदेशी उत्पाद और पूंजीपति भारत में अपना वर्चस्व स्थापित कर सकें , भारत की भूमि पर जब चाहे कब्ज़ा कर लें , जहां इच्छा हो आतंक फैलाएं . इसीलिए ये भ्रष्टाचार, बेरोजगारी  और मंहगाई बढ़ाने में भी  अत्यंत गौरव का अनुभव कर रहे हैं और चीन द्वारा भारत भूमि पर कब्ज़ा किये जाने के बावजूद भारत में उसके व्यापार को बढ़वाने में लगे हैं .     
          




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