बुधवार, 25 सितंबर 2013

महाभारत


                             महाभारत 
एक कहानी तुम्हें सुनाएं हम ऐसे इन्सान की,
ईर्ष्या भाव से कुंठित होकर सुनी नहीं भगवन की। 
हस्तिनापुर का राज्य  प्रमुख था सारे हिंदुस्तान में। 
 भीष्म पितामह सजग खड़े थे , कमी न हो कोई शान में। 
धृतराष्ट्र पांडु से ज्येष्ठ पुत्र था , लेकिन आँखों से था लाचार। 
हीन भावना उसमें बैठी , था ईर्ष्या युक्त उसका व्यव्हार। 
नेत्र हीन होने के कारण उसके भाग्य न जग पाए। 
कनिष्ठ पांडु  जो होनहार थे , राजा की पदवी पाए।  
बचपन से आँखें नहीं हैं मेरी , इसमें क्या है मेरा दोष ?
भाग्य ने क्यों खिलवाड़ किया ,था रोम-रोम में उसके रोष। 
दिन बीते और रातें बीतीं , बढ़ता गया हीनता भाव। 
राजा की पदवी ही न थी, सबसे बड़ा था यही अभाव। 
फिर होनी ने ऐसा खेला उनके भाग्य संग खेल। 
दुर्योधन से ज्येष्ठ हो गए , युधिष्ठिर का था न कोई मेल। 
इससे हुआ सुनिश्चित, कल का राज्य युधिष्ठिर पाएगा। 
दुर्योधन भी दूर रहेगा , राज्य नहीं कर पाएगा। 
पर अनहोनी कोई न जाने , राजा पांडु का निधन हुआ।   
धृत राष्ट्र राजगद्दी पर बैठे , मोह भाव का सृजन हुआ।  
मेरे बाद इस राज्य का स्वामी प्रिय दुर्योधन कैसे हो ? 
दिन-रात लगी थी एक ही चिंता ,यह संकट हल कैसे हो ?
ईर्ष्या भाव बढ़ा  पुत्रों में , पिता से   कुसंस्कार मिला  .
 पांडु पुत्रों से श्रेष्ठ रहें हम , उनके अंदर यह विकार पला। 
हत्या के षड्यंत्र रचे और निश्चिन्त होने के किये प्रयास। 
पांडु पुत्रों के कृष्ण थे रक्षक , कौरवों की पूरी हुई न आस। 
पांडव हुए युवा और काबिल, उन्हें मिला पृथक एक राज्य। 
उनका वैभव और देख प्रतिष्ठा , ईर्ष्या से जल उठा कुराज। 
फिर जुए का पासा फेंका , पांडवों से छीना सम्मान। 
तेरह  वर्ष जंगल में भटके , माँगा वापस आ  अपना मान।   
दुर्योधन ने जिद्द थी ठानी , राज्य था अब उसके आधीन। 
ईर्ष्या द्वेष बढ़े  थे ऐसे , बैर था उनका रूप नवीन। 
पांडवों ने मांगे पांच गाँव , दुर्योधन न पर अड़ा  रहा। 
कृष्ण ने उसे बहुत समझाया , फिर भी वह ऐंठा  खड़ा रहा। 
भगवान् कृष्ण की बात न मानी ,गर्व में डूबा , युद्ध की ठानी। 
राज्य के मंत्री विदुर थे ज्ञानी , धृतराष्ट्र थे नेत्र हीन अज्ञानी। 
ईर्ष्या , बैर , घमंड था छाया , महाभारत का युद्ध कराया। 
कौरवों की नष्ट हुई सब माया ,सम्पूर्ण राष्ट्र का नाश कराया। 
वे आपस में विद्वेष  न करते , भाई  परस्पर बैर  न करते। 
प्रेम का मिलकर दीप जलाते , सारे सुख समृद्धि को पाते। 



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