गुरुवार, 23 जून 2011

डायन

डायन

मैं एक झील के किनारे सैर कर रहा था . पानी के खूब सूरत किनारे पर खड़ा होकर मैं दृश्य देख रहा था .अमीर लोग यहाँ घूमने आते थे .अचानक मुझे एक भयानक स्त्री और उसकी डरावनी कहानी याद आ गयी . एक महिला , सुन्दर ,सुघड़, संभ्रांत ,जिसे पेरिस में सभी जानते और चाहते थे . याद आ रही कहानी वर्षों पुरानी है , परन्तु अनेक ऐसी घटनाएं होती हैं जो भुलाए नहीं भूलती .
अपने एक मित्र के आमंत्रण पर मै उसके गाँव गया . अत्यंत प्रेम और सम्मान के साथ उसने मुझे पूरा गाँव घुमाया . हमने गाँव के अनेक सुन्दर दृश्य देखे . हमने बड़े-बड़े भव्य भवन , सुन्दर नक्काशी के दरवाजों युक्त चर्च , असामान्य रूप से विशाल वृक्ष , सेंट एंड्रीयुस का ओक और राक वाइड्स , यू आदि . मैंने पूरे उत्साह और उमंग के साथ वहां के सभी आकर्षणों को देखा . मेरे मित्र ने भी इसे अनुभव किया . उसके बाद अचानक उसने उच्च स्वर में कहा , '' इसके बाद यहाँ देखने योग्य एक और विचित्र वस्तु रह गई है . यहाँ एक राक्षसों कि मां , डायन रहती है . '' मैंने आश्चर्य और अविश्वास के साथ पूछा , ''डायन? '' उसने उत्तर दिया , हाँ , डायन !एक भयानक औरत ! एक पूर्ण शैतान ! एक ऐसा जीव जो जानबूझ कर ह़र साल विकलांग , कुरूप , भयानक शक्ल वाले , जिन्हें एक शब्द में राक्षस कह सकते हैं , पैदा करती है . वह इन बच्चों को सर्कस , नुमाइश वालों को बेच देती है . जिससे वह बहुत अमीर हो गई है . इस घृणित काम में लगे लोग समय - समय पर उसके पास आते हैं और पूछते हैं कि क्या उसके पास कोई नया अपंग बच्चा है ? यदि उन्हें वह माल अच्छा लगता है तो वे उसे खरीद लेते हैं .अब तक वह ऐसे ११ बच्चे पैदा कर चुकी है . वह बहुत अमीर है . तुम इसे मजाक समझ सकते हो परन्तु मेरे दोस्त न तो इसमें कोई अतिश्योक्ति है न तुम्हें बुद्धू बना रहा हूँ . यह सचमुच कड़वा , शुद्ध सत्य है . आओ ,पहले उस महिला को देखो . बाद में मैं तुम्हें बताऊंगा कि वह ऐसे विकलांग , अपूर्ण , डरावने बच्चों को पैदा करने वाली मशीन कैसे बन गई .
वह मुझे गाँव से बाहर ले गया . वहां सड़क के किनारे एक अच्छा सा बहुत सुन्दर मकान था . उसे अच्छे ढंग से सजाया गया था . उसका बगीचा ताजे फूलों से महक रहा था. ऐसा लगता था जैसे वह किसी बड़े वकील का घर हो . जैसे ही हम वहां पहुंचे,एक नौकर ने हमें एक छोटे से ड्राइंग रूम में बैठा दिया . थोड़ी देर में वह डरावनी औरत सामने आई . वह चालीस वर्ष की होगी . लम्बी ,तेज नाक -नक्श और सुघड़ शरीर ,गाँव की अन्य महिलाओं कि तरह .वह धूर्त और अमीर थी .नारी और पशु का मिला - जुला सम्मिश्रण . वह गाँव के लोगों में अपने प्रति उपजे तिरस्कार से परिचित थी , शायद इसलिए हम लोगों से बड़े बेमन और उपेक्षा के भाव से मिली .
उसने पूछा ," इन महाशय को क्या चाहिए ? " मेरे मित्र ने कहा कि ,"हम लोगों को बताया गया है कि आपकी आखिरी संतान अन्य बच्चों कि तरह स्वाभाविक रूप से पूर्ण है और वह अपने अन्य भाइयों कि तरह नहीं है . क्या यह सच है ? हम इसकी पुष्टि करना चाहते हैं .
उसने गुस्से से हम लोगों को देखा और कहने लगी , ओह , नहीं ! वह औरों की अपेक्षा अधिक कुरूप और बेढंगा है . मेरे करम फूट गए हैं , मैं अभागिन हूँ . वह सब एक जैसे हैं . यह वास्तव में क्रूरता है . कैसे वह सर्वशक्तिमान , सारी दुनिया में अकेली पड़ गई एक गरीब महिला के प्रति इतना निर्दई हो सकता है !"अपनी निगाहें नीची किये वह एक डरे हुए पशु के समान बोल रही थी , वह अपनी तीखी आवाज में कुछ नरमी लाई .वह एक मजबूत हड्डी कि लम्बी महिला थी , जिसमें काम करने और भेड़ियों की तरह गुर्राने कि पूरी ताकत थी . उसके मुहं से आंसुओं से भीगी तेज आवाज सुनने में एक अनोखा मजा आ रहा था .
"हम आपके बच्चे को देखना चाहेंगे ." मेरे मित्र ने अनुरोध किया . लगा कि वह अचानक शर्मा गई , संभवतः मुझे कुछ धोखा हो गया था . थोड़ी चुप्पी के बाद उसने तेज स्वर में कहा ," आपको इससे क्या लाभ होगा ? उसने अपना सर ऊपर उठाया और एक तेज रोषपूर्ण दृष्टि हम लोगों पर डाली .
'' आप अपने बच्चे को हमें क्यों नहीं दिखाना चाहती हैं ?" यहाँ और भी बहुत लोग आते हैं जिनको आप अपना बच्चा दिखलाती हैं । आप जानती हैं कि मेरा अभिप्राय किन लोगों से है ?"
अचानक तेजी से खड़े होते हुए पूरे गुस्से के साथ वह चीख कर बोली ," तो इसलिए आप लोग यहाँ आये हैं मेरा मजाक उड़ाने के लिए ?क्योंकि मेरे बच्चे जानवरों कि तरह हैं .नहीं, आप लोग उसे नहीं देख सकते . आप लोगों को उसे देखना भी नहीं चाहिए . निकल जाओ यहाँ से . मैं आप लोगों को अच्छी प्रकार जानती हूँ , सबको खूब पहचानती हूँ , जो मुझे सिर्फ मूर्ख समझते हैं ". अपने भारी कूल्हों पर हाथ रख कर वह हमारी ओर बढ़ी . उसकी क्रूर वाणी के आदेश पर एक पागल सा दिखने वाला आदमी गुर्राता हुआ बगल के कमरे से निकला . मैं बुरी तरह डर गया .हम पीछे हट गए . मेरे मित्र ने तेज आवाज से उस चेतावनी दी--"डायन, राक्षसी !'' जैसा कि लोग उसे इसी नाम से पुकारते थे --,''ध्यान रखना . एक दिन यही तुम्हारा सत्य नाश कर देगा . तुम्हारे लिए दुर्भाग्य लायेगा .'' वह प्रतिशोध में गुस्से से खौल उठी.अपने हाथ पटकते हुए गुस्से से चीखी ,''तुम जंगली लोग!यहाँ से निकल जाओ . ऐसा लगा कि वह हम पर झपट पड़ी है .हम भागे. हमारा दिल भय से धक् - धक् करने लगा .
जब हम घर से बाहर आ गए तो मेरे मित्र ने पूछा ,''खैर, तुमने उसे देख लिया है उसके बारे में तुम्हारी क्या राय है ?''मैंने कहा,'' मुझे उस क्रूर औरत का इतिहास बताओ . '' और जब हम सफ़ेद ऊंची सड़क पर जिसके दोनों ओर पके अनाज के पौधे , ठंडी मधुर हवाओं के झोंकों से , आह्लादित सागर कि भांति लहलहा रहे थे ,चलते हुए मेरे मित्र ने उसके बारे में कुछ इस प्रकार बताया ,
''यह लड़की पहले एक खेत पर काम करती थी .एक अच्छी मजदूरिन ,बहुत परिश्रमी,सार्थक, व्यवहारकुशल,और सावधान थी . किसी को मालूम नहीं था कि उसका कोई प्रेमी भी है , न ही उसके चरित्र पर किसी को शक था . कटाई के समय जैसे सब पड़ जाते हैं , वह भी एक रात तूफ़ान में आकाश के नीचे धान के ढेर पर गिर पड़ी ---जब भारी हवाएं भट्टी की आग के जैसे तप रही थीं और लड़के -लड़कियों के यौवन से भरे शरीर पसीने से तर - बतर हो रहे थे .
कुछ समय बाद उसे लगा की वह माँ बनने वाली है .लोकलाज और बदनामी के भय से वह काँप उठी . वह ह़र कीमत पर अपना यह गुनाह छिपाना चाहती थी . उसने बांस की खपच्चियों और रस्सियों से से एक भोथरा सा औजार बनाया और उससे अपने पेट पर जोर डालने लगी. जैसे-जैसे बच्चा बढ़ता गया , वह पेट पर और दबाव बढ़ाती गयी . अपने इस असहनीय दर्द और मानसिक संताप को सहते भी वह हंसती रहती . प्रसन्न चित्त दिखती और काम करती रहती. ताकि कोई उसे देखे नहीं और कोई शक भी न करे . उसने अपने बच्चे के भ्रूण को तोड़ दिया था , वह विकृत हो गया था और राक्षस जैसा बन गया था . एक दिन बसंत ऋतु में ,एक खुले खेत में उसने एक विकृत बच्चे को जन्म दिया . खेत पर काम करने वाली महिलाएं दौड़ कर उस की सहायता करने आईं.बच्चे का सर चपटा था और लम्बा हो गया था उसकी दोनों आँखें बाहर निकल आई थीं, हाथ अनुपातहीन लम्बे हो गए थे हाथ- पैर की उँगलियाँ मकड़ी के पैरों जैसे पतली और मुड़ी हुई थीं .फिर भी वह सुपारी की तरह गोल व् छोटा रहा . उस भयानक बच्चे को देखकर वे महिलाएं डरकर राक्षस- राक्षस चिल्लाती हुई भाग गयीं . पूरे गाँव में यह कहानी फ़ैल गई की उसने एक दानव बचे को जन्म दिया है . उसी समय से उसका नाम पड़ गया --डायन , दैत्यों की माँ. उसकी नौकरी चली गयी . वह दूसरों की दया या शायद गुप्त प्रेम के सहारे जीवित रही क्योंकि वह देखने में खूबसुन्दर थी , दिलकश और जवान थी और सभी आदमी नरक से नहीं डरते हैं .''
''वह अपने बच्चे से पूरी तरह घृणा करती थी परन्तु बच्चा तो पालना ही पड़ा . वह शायद उस बच्चे का गला घोंट देती लेकिन वह क़ानून और सजा से डर कर रह गयी.एक दिन वहां से कार्निवाल कंपनी के लोग गुजर रहे थे . उन्होंने उस अद्भुत बच्चे के बारे में सुना और उस बच्चे को देखना चाह कि यदि पसंद आ गया तो साथ ले जांयगे . उन्होंने बच्चे को देखा ,पसंद किया और तुरंत उसके मूल्य के रूप में उसकी माँ को पांच सौ फ्रैंक दिए . शुरू में तो ग्लानि से भारी होने के कारण वह नहीं चाहती थी की कोई बच्चे को देखे परन्तु जब उसे ज्ञात हो गया की सौदा आय का जरिया है और ये लोग उस बच्चे को चाहते हैं तो तो उसने बच्चे का मोल भाव करना शुरू कर दिया . अपने बच्चे की विकृतियों वाले किससे वह चटखारे ले-ले कर सुनाने लगी और उनको उकसाकर ग्रामीण प्रवृत्ति के अनुसार भाव बढ़ाने लगी . इस व्यवसाय में उसे कोई घाटा या धोखा न हो , इसके लिए उसने उन लोगों से एक लिखित अनुबंध भी कर लिया जिसके अनुसार वे उसे प्रतिवर्ष चार सौ फ्रैंक नियमित रूप से देते रहने के लिए भी तैयार हो गए तथा उन्होंने बच्चे को अपनी नियमित सेवा में भी रख लिया .''
धन,वैभव, सौभाग्य की आशा से पूरी तरह टूटी हुई , सब कुछ पाने की आशा से उस महिला को पागल सा कर दिया . उसके बाद उसने विचित्र , विकृत , रौद्र , वीभत्स बच्चों को जन्म देने की लालसा को मरने नहीं दिया ताकि उसे भी और रईसों के समान निश्चित आय मिलती रहे . वह काफी उर्वरक थी . वह अपनी महत्वाकान्क्षाओं में विजयी रही . वह अपनी गर्भावस्था में विभिन्न प्रकार के दबावों से कुरूप आकर वाले बच्चे पैदा करने में माहिर हो गयी . उसने लम्बे बड़े , छोटे छिपकली के आकर के बच्चे पैदा किये . बहुत से मर भी गए जिसका उसे बहुत दुःख हुआ.
कानून ने उसे घेरने के प्रयास तो किये परन्तु कुछ सिद्ध नहीं कर पाए . अब वह शांति से इस घिनौने काम को करने के लिए स्वतन्त्र थी .अब तक उसके ग्यारह बच्चे जिन्दा हैं जिनसे उसे पाँच- छः हजार फ्रैंक की वार्षिक आय होती है . वह आखिरी बच्चा अभी तक बिका नहीं था , जिसे हम देखने गए और उसने दिखने से स्पष्ट मना कर दिया था .परन्तु अब वह ऐसा अधिक समय तक जारी नहीं रख सकेगी क्योंकि अब सभी सर्कस के मालिक उसे जानने लगे थे . वे सब समय - समय पर उसके पास यह जानने के लिए आते हैं कि उसके पास बेचने के लिए नया कुछ तो नहीं है. यदि उसका बच्चा बिकने लायक होता तो बहुत से खरीदारों के बीच उसे नीलम भी करवाती थी. मेरा दोस्त चुप था . मेरे ह्रदय में एक अजीब वितृष्णा पैदा हुई . एक भयानक आक्रोश , एक लाचारी . मुझे दुःख हुआ कि जब वह मेरे पास आई थी तो मैंने उसका गला क्यों नहीं घोट दिया.
" पर इन बच्चों का बाप कौन है ?'' , मैंने पूछा.
'कोई नहीं जानता .'' उसने उत्तर दिया . " वे सब या तो अपने आप में एक शालीनता लिए हुए हैं या वे सब अनाम -बेनाम हैं . शायद वे सब भी इस पाप के भागीदार हैं .
मैंने कल तक इस अजीब रोमांच के बारे में नहीं सोचा था . जब मैंने उस झील के किनारे एक सुन्दर , आकर्षक महिला को देखा जिसमें त्रिया चरित्र के सभी गुण कूट-कूट कर भरे हुए थे . वह काफी लोगों से घिरी हुई थी और सबकी नजरों में उसके लिए बहुत सम्मान था .
मैं अपने डाक्टर मित्र कि बाहों में बाहें डाल कर उसके सामने आकर खड़ा हो गया . दस मिनट बाद मैंने ध्यान दिया कि उसकी आया तीन बच्चों का विशेष ध्यान दे रही है जो पास ही पड़ी बालू पर उछल- कूद रहे थे .दुखदायी बैसाखियों का जोड़ा धरती पर पड़ा हुआ था . फिर मैंने देखा कि तीनों बच्चे कुरूप, बेढंगे, लंगड़े ,कुबड़े और घृणा के पात्र थे . डाक्टर मित्र ने बताया कि तीनों बच्चे उस बला कि सुन्दर आकर्षक महिला के हैं जिससे तुम अभी मिले हो . मुझे उस महिला और उसके तीनों बच्चों कि अपंगता पर बहुत दया आई . बेचारी अभागिन माँ , इतने पर भी वह कैसे हंस सकती है ! मेरे दोस्त ने कहा,'' इस औरत पर तरस मत खाओ .ये बच्चे जिन पर तुम्हें सचमुच दया आनी चाहिए , यह आखिर तक अपने शरीर को लावण्य-
मय बनाए रखने का दुष्परिणाम है. वे विकलांग कुरूप बच्चे इसी सुन्दर सी बला ने बनाए हैं , पैदा किये हैं .
'' वह अच्छी प्रकार जानती है कि वह इस खतरनाक खेल में अपना जीवन दांव पर लगा चुकी है . जब तक वह जवान ,आकर्षक और लुभावनी है , तबतक वह किसी कि परवाह नहीं करती .''
मुझे वह डायन याद आ गयी जो ऐसे बच्चों को बेचा करती थी .


शुक्रवार, 17 जून 2011

रिजर्व बैंक ब्याज दर बढ़ाना बंद करे

रिजर्व बैंक ब्याज दर बढ़ाना बंद करे

रिजर्व बैंक ने १५ महीने में दसवीं बार रेपो रेट बढ़ाकर ईमानदारी से गृह,कार अथवा अन्य लोन चुकाने वालों को लूटने का जो रास्ता अपनाया है ,वह शर्मनाक है .ब्याज दर बढ़ने पर बैंक ग्राहक को कोई सूचना नहीं देते हैं ,वे तदनुरूप किश्त कि राशि भी नहीं बढ़ाते हैं जिससे किश्त का अधिकांश भाग ब्याज के रूप में बैंकों कि आय बढ़ाता जाता है .यदि कोई राशि १०% ब्याज दर पर १५ वर्षों कि किश्तों पर ली गई हो और ब्याज दर बढ़ती जाये आऔर किश्तें पूर्ववत ही चलती रहें तो उसे उतनी ही किश्ते अधिक समय तक देनी होंगी । उसका प्रभाव इस प्रकार पड़ेगा : (१०% पर १८०माह ),(१०.५ पर १९३माह),(११% पर २१०माह ),(११.५%पर २३३माह),(१२%पर २६८माह) , (१२.५% पर ३३८ माह),( १३%पर ४६८ माह ),( १३.५%पर ६५४माह अर्थात ५४ वर्ष ६ माह) अर्थात व्यक्ति और उसके बच्चे जिंदगी भर कर्जे ही चुकाते रहेंगे और बैंकों का पेट भरते रहेंगे जिसे नेता अपने वोट बैंक के लिए लूटते और लुटाते रहते हैं । गवर्नर साहब ईमानदार लोगों पर इतना जुल्म क्यों और किसके कहने पर ढहाना चाहते हैं ? युवा वर्ग इसकी चपेट में आ गया है क्योंकि उनके पास कोई अन्ना हजारे या बाबा रामदेव नहीं हैं जो उनकी आवाज उठा सकें . ब्याज दर बढ़ाने से उद्योगों को जो भारी क्षति हो रही है , रिजर्व बैंक के गवर्नर को उनसे भी कोई सहानुभूति नहीं है .ऐसा प्रतीत होता है की रिजर्व बैंक के गवर्नर उन विदेशी ताकतों के हाथ का खिलौना बन गए हैं जो देश से लूट कर अपना पैसा विदेशी बैंकों में जमा कर रहे हैं . देश की अर्थ व्यवस्था को बर्बाद करने के लिए यदि इन पापी भ्रष्ट नेताओं ,अफसरों और उद्योग पतियों ने विदेशियों से घूंस खाई हो तो कोई बड़ी बात नहीं होगी . हाई स्कूल में अर्थशास्त्र में यह पढ़ाया जाता है कि मांग अधिक होने से वस्तुओं के दाम बढ़ते हैं .लोगों के पास रुपये अधिक होंगे तो मांग बढ़ेगी अर्थात महंगाई बढ़ेगी . ब्याज दर बढ़ा दो तो लोग बैंक से कम धन उधार लेंगे , मांग कम हो जाएगी और मंहगाई भी कम हो जायगी . रिजर्व बैंक के गवर्नर को यह बताना होगा कि अनेक बार ब्याज दर बढ़ाने के बाद भी मंहगाई क्यों नहीं कम हो रही है और वे कहाँ तक ब्याज दरे बढ़ाते जांयगे ?. अर्थशास्त्र के अनेक सिद्धांत किताबों के बाहर भी बिखरे पड़े हैं . उन्हें भी समझने की कोशिश की जानी चाहिए .यह आश्चर्य की बात है कि रिजर्व बैंक के गवर्नर ने न तो कभी काले धन के विरुद्ध मुहिम चलाई , न भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाई । वायदा बाजार से भी खूब मंहगाई बढ़ी है , उसे बंद करने की बात कोई इसलिए नहीं सोचता है कि यह अमीर लोगों का वैधानिक सट्टा है और पूंजीवादी सरकार ने उन्हें इसका हक़ दिया है . यह मंहगाई नेता बढ़वा रहे हैं , गवर्नर साहब को उनके विरुद्ध कुछ भी कहने का साहस क्यों नहीं होता , यह भी एक रहस्य है .
हर दूसरे -तीसरे महीने में पेट्रोल के दाम बढ़ेंगे ही . तेल कम्पनियाँ अपने व्यय कम नहीं करतीं , कर्मचारियों की सुविधाएं बढ़ाती जाती हैं .केंद्र और राज्य सरकारें पेट्रोल ,डीजल पर टैक्स भी बढाती जाती हैं . उससे मंहगाई तो बढ़ेगी ही , गवर्नर साहब ब्याज दर बढ़ाते जांयगे , उन्हें कुछ नहीं कहेंगे . प्रत्येक वर्ष किसानों के नाम पर हजारों करोड़ रूपये बाँट दिए जाते हैं , यह बिना जाँच किये कि उसे आवश्यकता भी है या नहीं . दिल्ली के पास के एक शहर में कालोनी के बाहर ठेले पर सब्जी बेचने वाले एक व्यक्ति से उसकी आय के बारे में हमने पूंछा ,"तुम्हें कितनी आय हो जाती है ? जो सब्जी बचती है उसका क्या करते हो ? " उसने बताया की प्रातः सब्जी का ठेला एक कालोनी में घुमाता हूँ , अधिकांश राशि उससे निकल आती है , फिर इस कालोनी में बेच लेता हूँ , शेष बची सब्जी एक होटल वाला ले जाता है ." उसने बताया, " वे चार भाई हैं ,तीन यहीं पर सब्जी बेचते हैं , एक गाँव में खेती देखता है . पहले गाँव में २५ एकड़ जमीन थी ,अब ७५ एकड़ हो गई है .ऋण लेकर एक ट्रैक्टर ख़रीदा था , उसका बहुत सा बकाया किसानों की ऋण माफ़ी में माफ़ हो गया . " ये सारे बेचारे लोग गरीबी रेखा से नीचे वाले हैं .सरकार बाजार से बारह- तेरह रुपये किलो गेहूं खरीद कर इन्हें दो- तीन रुपये किलो में बाँटती है .मनरेगा के नाम पर लाखों करोड़ रुपये व्यव किये जा रहे हैं . एक इंजीनियर को मनरेगा के अंतर्गत गाँव में काम कराना था .सात - आठ मजदूरों से पूछा , कोई भी काम करने को तैयार नहीं हुआ .उन्होंने कहा ," हमें १०५ रुपये का ३५ किलो राशन मिल जाता है . सस्ता तेल मिल जाता है ,मकान - बिजली मुफ्त है . कुछ ऊपर का खर्च करके पांच - छः सौ में महीने भर काम चल जाता है पांच दिन मजदूरी करके सात-आठ सौ रूपये मिल जाते हैं . मैं मनरेगा में क्यों जाऊं ? " सरपंच ने उन्हें सलाह दी कि उसे ठेका दे दिया जाय . वह मशीन से काम करवा देगा और मजदूरों के रिकार्ड बनवा देगा .मनरेगा में मजदूर और सरपंच से लेकर ऊपर तक खिलाना पड़ता है , बीच में एक भी असंतुष्ट हुआ तो सब तरफ भ्रष्टाचार का हंगामा हो जाता है .इंजीनियर साहब ने तय किया कि इस तरह से काम नहीं करवाना है, काम हो चाहे न हो . तमिलनाडु में तो चुनाव के बाद हजारों करोड़ रुपये का सामन मुफ्त में बांटा जाता है .सरकार देश-विदेश से कर्ज लेकर तथा अपनी कम्पनियाँ बेच कर हजारों करोड़ रुपये प्राप्त कर रही है जिसका अधिकांश हिस्सा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाएगा . गवर्नर साहब रुपयों के इस प्रवाह को रोकने के लिए आप क्या कर रहे हैं ?आप देश में तो क्या सरकारी बैंकों में भी जाली नोटों के प्रचालन को नहीं रोक पा रहे हैं . यदि रिजर्व बैंक ब्याज दरें कम कर दे तो मंहगाई का दबाव सरकार पर पड़ेगा और वह रुपयों की बन्दर बाँट कम करके मंहगाई रोकने के लिए मजबूर होगी .
प्रो. ए. डी. खत्री

बुधवार, 15 जून 2011

लोकतान्त्रिक राज्य के तत्व

राज्य के मुख्य एवं आवश्यक तत्व


श्री अटल बिहारी बाजपेई के कार्य काल में भारत - पाक सीमा पर दस माह तक दोनों देशों की फौजें आमने -सामने डटी रहीं . मीडिया ऐसे समाचार देता था की बस युद्ध होने ही वाला है . बिलासपुर ,छत्तीसगढ़ से मेरे मित्र प्रो खान ने एक दिन फ़ोन पर मुझसे पूछा कि युद्ध की क्या सम्भावना है .उसका भतीजा वायु सेना में अधिकारी है और उस समय उसकी पोस्टिंग सीमा पर ही थी . मैंने तत्काल उत्तर दिया ,''शून्य''. उसने आश्चर्य से पूछा ,''कैसे ?'' मैंने उसे समझाया,'' पाकिस्तान के महान मित्र अमेरिका के वायु यान पाकिस्तान के हवाई अड्डों पर खड़े हैं जो अफगानिस्तान के युद्ध के समय आये थे . भारत अमेरिका के हवाई जहाजों पर हमले करने का जोखिम नहीं उठा सकता है .१९७१ के युद्ध में भारत ने रूस के साथ युद्ध संधि कर ली थी की यदि हमारा किसी देश से युद्ध हुआ और शत्रु की ओर से कोई देश युद्ध में कूदेगा तो रूस उस पर आक्रमण कर देगा . उस समय अमेरिका ने बहुत हाथ -पैर मारे ,हिंद महासागर में अपना परमाणु -पोत भी ले आया था , परन्तु कुछ नहीं कर पाया . संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत के विरुद्ध उनके प्रस्तावों को रूस ने वीटो से ख़ारिज कर दिया था. " उसे मेरी बात से संतोष हुआ और कुछ समय बाद दोनों देशों कि सेनाएं शांति पूर्वक वापस लौट गईं. आज की सारी समस्याएं राजनीतिशास्त्र के प्रारम्भिक सिद्धांतों को न समझने के कारण ही उत्पन्न हो रही हैं. राजनीति के भारतीय सिद्धांत के अनुसार राज्य का एक तत्व 'मित्र ' भी है . पाकिस्तान इसे समझता है ,इसलिए उसने अमेरिका और चीन जैसे दो शक्तिशाली मित्र बना रखे हैं , जबकि दुनिया में भारत का कोई भी पक्का मित्र नहीं है . हमें उस कमजोरी का खामिआजा आए दिन उठाना पड़ रहा है . मुझे उन लोगों की बुद्धिहीनता पर तरस आता है जो अमेरिका के भारत और पाकिस्तान के प्रति किये गए गए व्यवहारों की तुलना करते हैं तथा आलोचना भी करते हैं और ऊपर से कहते हैं कि अमेरिका गलत कर रहा है ! आप जैसा व्यवहार अपने प्रिय मित्र के साथ करते हैं क्या वैसा ही अन्य सब लोगों के साथ भी करते हैं ?
पाश्चात्य राजनीतिशास्त्री गार्नर एवं गैटल ने राज्य के चार तत्व निरूपित किये हैं : १. मनुष्यों का समुदाय (जनता ) , २. एक प्रदेश ,जिसमें वे स्थाई रूप से रहते हों ( भूभाग ) , ३ .एक राजनीतिक संगठन (अर्थात सरकार ) ,जिसके द्वारा लोगों की इच्छा अभिव्यक्त हो सके तथा उसे कार्य रूप में परिणित भी किया जा सके तथा ४. आंतरिक संप्रभुता और बाहरी नियंत्रण से स्वतंत्रता .राजनीतिशास्त्र में देश को ही राज्य कहा जाता है . अतः राज्य के ४ अंग हुए :जनता , भूभाग या प्रदेश , सरकार और संप्रभुता .स्वतंत्रता के पूर्व भारत संप्रभु नहीं था , यहाँ के सारे निर्णय इंग्लैंड में लिए जाते थे अतः भारत एक राज्य नहीं था . स्वतंत्रता के बाद भारत और पाकिस्तान दो राज्य हो गए . जब बंगलादेश बना तो वह तीसरा राज्य हो गया . राज्य की इस अवधारणा के अनुसार राजनीतिशास्त्री को राज्य की स्थिरता या विस्तार से कोई लेना-देना नहीं है , उसका काम केवल उक्त चार तत्व गिनना है . उनके पूरे होते ही नया राज्य बन जाता है और वे उसका पृथक अध्ययन करने लगते हैं .रूस के २४ टुकड़े हो गए तो वे २४ राज्यों का अध्ययन करने लगेंगे . देश क्यों टूटा , ये चार मुख्य तत्व इसकी व्याख्या नहीं कर सकते हैं .
प्राचीन भारतीय राजनीतिशास्त्र के सिद्धांत के अनुसार देश या राज्य को मनुष्य के शरीर के तुल्य मानते हुए उसके सात तत्व कहे गए हैं :१ राजा (मस्तिष्क) ,२. अमात्य अर्थात मंत्रिपरिषद् (आँखे) , ३.जनपद (भूभाग या प्रदेश तथा लोग ) (पैर) ,४.दुर्ग (हाथ) ,५.कोष (मुंह) ,६. बल या सेना (मन) ,तथा ७. मित्र (कान). देश के अंग भी शरीर के अंगों की भांति जीवंत माने गए है . ये कोई निर्जीव तत्व नहीं हैं . इसलिए एक भी अंग शिथिल होने पर देश भी शरीर की भांति रोगी होने लगता है .यदि आप इन अंगों को भली भांति समझ लेते हैं तो आपको वर्तमान अनेक समस्याओं के कारण और उनके निवारण के मार्ग स्वतः मिल जायेंगे .पाश्चात्य सिद्धांत से तुलना करने पर जनपद दो तत्वों -- भूभाग तथा जनता को निरूपित करता है , राजा एवं अमात्य सरकार के तुल्य हैं और किसी को राजा तभी माना जाता था जब वह स्वतन्त्र होता था अर्थात राजा संप्रभु होता था . उसमें बाद के चार तत्वों के तुल्य कोई विचार नहीं रखा गया है .परन्तु ये सभी आवश्यक तत्व हैं जैसा आपने भारत - पाक के संबंधों के बारे में प्रारम्भ में ही देख लिया . कुवैत का उदाहरण भी इन तत्वों के महत्त्व की पुष्टि करता है. कुवैत के पास बहुत धन (कोष) है , साथ ही उसने अमेरिका को अपना अच्छा मित्र भी बना रखा है . इराक ने कुवैत पर कब्ज़ा कर लिया था परन्तु अमेरिका से मित्रता तथा अच्छा कोष होने के कारण ही वह आज स्वतन्त्र देश है अन्यथा उसका अस्तित्व ही समाप्त हो जाता और इनके अभाव के कारण इराक स्वयं गर्त में चला गया .
भारतीय राजनीतिक चिंतन का विषद वर्णन शुक्र नीतिसार , महाभारत , कौटिल्य के अर्थशास्त्र आदि ग्रंथों में किया गया है . उन्होंने उक्त प्रत्येक अंग की विशेषताओं की भी व्याख्या की है . राज्य का प्रथा अंग राजा है . राजा राज्य का स्वामी तथा दण्ड का धरनकर्ता होता था. राजा नीतिशास्त्र के अनुसार कार्य करने वाला , सत्यप्रिय, बुद्धिमान ,पवित्र तथा लोगों की भलाई करने वाला होना चाहिए . राजा राज्य के तुल्य या उससे बड़ा नहीं हो सकता . जैसे फ़्रांस का राज लुई xiv कहता था ,''मैं ही राज्य हूँ ''. भारत में आपातकाल के समय कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष देवकांत बरुआ ने प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की स्तुति करते हुए कहा था ,''indira is india & india is indira '' अर्थात '' इंदिरा ही भारत है और भारत ही इंदिरा है ''
जिसका अर्थ था कि यदि इंदिरा नहीं तो भारत भी नहीं . इस प्रकार के चापलूस जनता के बारे में सपने में भी नहीं सोच सकते . राजा को निश्चित मर्यादाओं तथा नियंत्रण में रहकर ही शासन करना होता था. वह भी दण्ड के नियंत्रण रहता था . दण्ड से अभिप्राय उस मर्यादा से है जो मनुष्य में अव्यवस्था के निवारण और अर्थ के सरक्षण के लिए स्थापित कि गई है .समाज में कर्तव्य- अकर्तव्य , गम्य-अगम्य ,धर्म -अधर्म कि जो मर्यादा है , जिसके द्वारा मनुष्यों कि स्वेच्छाचारिता नियंत्रित होती है , उसी को दण्ड कहते हैं. जनसाधारण कि तरह राजा, उसके मंत्री एवं समस्त अधिकारी भी उसी दण्ड के अधीन होते थे .दण्ड को राज्य कि रीढ़ मन जाता था .चाणक्य ने कहा है ,''यथा राजा तथा प्रजा '' अतः सबसे पहले राजा एवं मंत्रियों को मर्यादा का पालन करना होगा तभी लोग उसका अनुसरण करेंगे . जो राजा दण्ड कि मर्यादा का पालन न करे , उसे पदच्युत कर देना चाहिए . गार्नर ने भी कहा है कि सरकार को सीमाओं में रहकर लोगों कि इच्छाओं के अनुरूप कार्य करने चाहिए .पश्चिम एशिया के मुस्लिम तानाशाहों ने इस्लाम धर्म के अनुसार लोगो कि इच्छानुसार शासन तो किया परन्तु लोकहितों की उपेक्षा की , धर्म के अलावा भी उनकी कुछ इच्छाएँ और आवश्यकताएं हैं , उनपर कोई ध्यान नहीं दिया , परिणाम स्वरूप लोग संघर्ष के लिए बाध्य हो गए . उन देशों में अराजकता फ़ैल गई है .जो लोग चुपचाप अपना कम करने में व्यस्त थे , वे भी जिंदगी - मौत के बीच में फंस गए है और ये तानाशाह लोगों के गुस्से की कब बलि चढ़ जायेंगे , अभी कुछ नहीं कहा जा सकता . यदि ये शासक मर्यादाओं में रहकर कार्य कर रहे होते तो ऐसी स्थिति ही न उत्पन्न होती .
कौटिल्य अर्थशास्त्र में अमात्यों का वर्णन विस्तार से किया गया है . जिन्हें मंत्री नियुक्त किया जाना है उनमे उत्कृष्ट प्रज्ञा ,बुद्धि , स्मृति एवं बल होना चाहिए .वे अपने क्षेत्रों में निपुण , दूरदर्शी ,देश ,काल और अवसरों का अच्छी प्रकार प्रयोग करने में समर्थ,सम्मान और रहस्य को कायम रखते हुए परिहास करने की योग्यता से परिपूर्ण, आवश्यकतानुसार मधुर तथा कठोर संभाषण में सक्षम, लज्जायुक्त, व्यसनमुक्त, काम,क्रोध ,लोभ, जिद्द, चपलता तथा जल्द बाजी से रहित ,आत्मसंयमी तथा नीतिशास्त्र का पालन करने वाले हों . राजा उन्ही से पूछ कर कार्य करता है ,अतः राज्य की सम्पूर्ण व्यवस्था तथा विकास मंत्रियों पर ही निर्भर करता है . उनके गुणों को अच्छी प्रकार परख कर ही उनकी नियुक्ति की जानी चाहिए. जहाँ पर मंत्री उक्त गुणों से रहित मिलेंगे देश अराजकता की ओर बढ़ता जायगा .
राज्य के तीसरे तत्व जनपद के अंतर्गत राज्य के लोग तथा उसकी भौगोलिक सीमाओं से से घिरा भू भाग आते हैं .राज्य के भू भाग का विस्तार इतना होनाचाहिए की वह जनता का पालन करने में समर्थ हो . विपत्ति के समय विदेशी भी उसका आश्रय ले सकें . उसमें शत्रुओं से रक्षा करने के सब साधन हों ,उसकी जलवायु उत्तम तथा प्रदूषण रहित हो .उसमें खेत, चराहगाह ,जंगल, सिंचाई के लिए नहरें , कुँए आदि हों , खदानें हों थल तथा जल मार्ग हों ( उस समय वायु मार्ग नहीं थे ).जनता के नाम पर लोगों की भीड़ या संख्या ही पर्याप्त नहीं है .किसानों तथा कारीगरों में क्रियाशीलता ,लोगों में बुद्धि का होना (शिक्षित होना ), राज्य के प्रति प्रेम एवं भक्ति , और उनके आचरण में पवित्रता होनी चाहिए .
दुर्ग के नाम पर यद्यपि आज प्राचीन काल जैसे किले नहीं होते हैं , परन्तु सीमा पर बंकर एवं चौकियां बनाकर शत्रु की सतत रूप से निगरानी की जानी चाहिए छठे तत्व सेना से तात्पर्य सैनिकों की शारीरिक, मानसिक क्षमताओं के साथ-साथ आधुनिक युद्ध तकनीकों से भी है .शक्ति शाली सेना एवं चुस्त पुलिस से ही बाह्य एवं आंतरिक शांति स्थापित तथा स्थिर रह सकती है .
राज्य का पांचवां तत्व 'कोष' है . धन से ही सब कार्य होते हैं .अतः कोष का संवर्धन यत्न पूर्वक करना चाहिए .राज्य के कोष को इतना अधिक होना चाहिए की विदेशी आक्रमण , दुर्भिक्ष, भूकंप , बाढ़ , तूफ़ान ,महामारियों आदि के समय भी काम न पड़े . प्रशासन द्वारा विधि सम्मत ढंग से अर्थात जैसे भोंरा बिना क्षति पहुंचाए फूलों से रस गृहण करता है , उसी प्रकार लोगों से कर गृहण करे . लोगों द्वारा कर स्वेच्छा से दिया जाना चाहिए . राज्य का सातवाँ तत्व 'मित्र ' भी बहुत महत्त्व पूर्ण है जैसा पूर्व में कहा जा चुका है .
राज्य के तत्वों के सम्बन्ध में पाश्चात्य सिद्धांत के आधार पर निर्जीव राज्य का अध्ययन कर सकते हैं परन्तु भारतीय सप्तांग सिद्धांत के आधार पर उनकी व्यवस्था एवं स्थिरता की व्याख्या भी की जा सकती है . जैसे जनपद के अंतर्गत भूभाग तत्व का एक गुण 'उत्तम जलवायु 'कहा गया है . आज प्रदूषण तथा पर्यावरण का महत्त्व समझ में आ रहा है .प्रदूषण के कारण लोगों , जानवरों , वनस्पतियों का स्वास्थ्य कैसे अच्छा रह सकता है ? उत्तम जलवायु का विचार न करने के कारण दिल्ली में पहले अनेक उद्योगों को लगने दिया गया , बाद में उन्हें तत्काल बंद करने के आदेश दिए गए . वह मंदी का समय था ,उन्हें धन की कमी , विद्युत् संकट ,विदेशी सस्ते माल की चुनौती के कारण दूर स्थानों में पुनः लगाना आसान नहीं था .परिणाम स्वरूप हजारों लोग बेरोजगार हो गए या अर्थ संकट में फंस गए . जनपद के दूसरे अंग जनता का मुख्य गुण राज्य प्रेम एवं पवित्रता कहा गया है . जिनके घर उजाड़ गए हों उनसे किस देश प्रेम की आशा करेंगे ? पहले अधिकारी घूंस खाकर मकान बनवाते हैं , फिर अवैध करार दिए जाते है , उनके मकान तोड़े जाते हैं , लोगों को बेदखल किया जाता है . ये किससे प्रेम रखेंगे ? गंगा नदी में प्रदूषण होने दिया गया . अब सात हजार करोड़ रुपये लगाकर उसकी सफाई करने की योजना बनाई गई है जबकि पूर्व में भी अरबों रूपये व्यय किये जा चुके हैं . क्या देश ने पूर्व में इससे इतनी अधिक कमाई कर ली है किसात हजार करोड़ रूपये कि उधारी और उस पर ब्याज का भुगतान किया जा सके ? यदि प्रारंभ से ही उत्तम जलवायु और लोगों में राष्ट्र प्रेम का ध्यान रखा गया होता तो ये हालात पैदा न होते . मंत्रियों के नीति विरुद्ध आचरण एवं योग्यता के कारण देश में ऐसे हालात पैदा हो गए हैं जनता शासन को शत्रुवत मान ने लगी है और स्वेच्छा से कोई कर देने के लिए तैयार नहीं है . जनता में इस प्रकार धीरे- धीरे शासन के प्रति रोष बढ़ते जाने से बड़े प्रदेशों का विघटन होने लगता है , लोग बागी होने लगते हैं जिससे आने वाले समय में देश के विघटन कि स्थित भी उत्पन्न हो जाती है अथवा लोग विदेशी शत्रुओं से मिलकर भी राष्ट्र संकट उत्पन्न कर सकते हैं .
राज्य की भारतीय अवधारणा में दुर्ग एवं सेना दो पृथक तत्व रखे गए हैं . इसका अभिप्राय है कि देश कि रक्षा के लिए शक्तिशाली सेना के साथ दुर्ग या व्यूह रचना भी अच्छी होनी चाहिए .भारत के पास भारी-भरकम सैन्य शक्ति होने के बावजूद पाकिस्तानी सैनिकों ने कारगिल पर कब्ज़ा करलिया और इन्हें पता ही नहीं चला . बाद में घुस पैठिओं को निकलने के लिए भारत के सैकड़ों सैनिक शहीद हुए तथा अरबों रूपये युद्ध में व्यय हो गए , तनाव अलग से बना रहा . अतः सीमा पर मजबूत चौकसी होनी चाहिए .आज विश्व के देशों में जो भ्रष्टाचार , आतंकवाद जैसी समस्याएँ बढती जा रही हैं . सप्तांग राज्य के प्रथम दो तत्वों , राजा और मंत्रियों के वांछित गुणों कि तुलना वर्तमान सरकारों के मंत्रियों से करके देखे ,उनके कारण स्वतः स्पष्ट होने लगेंगे .
डा.ए. डी. खत्री
लोकतांत्रिक राज्य के अंग

राज्य के पाश्चात्य सिद्धांत के अनुसार राज्य के चार तत्वों से कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है जबकि भारतीय सप्तांग राष्ट्र के सिद्धांत से अनेक घटनाओं की व्याख्या की जा सकती है .परन्तु वर्तमान में विश्व के अनेक देशों में लोकतान्त्रिक व्यवस्था है जिसमें भ्रष्टाचार के साथ-साथ अनेक अराजकताओं को वहां के शासक स्वयं फैला रहे हैं . इन समस्याओं का मुख्य कारण राज्य के सिद्धांतों का स्पष्ट न होना है . चुनाव के बाद बनने वाली मंत्री परिषद् स्वयं को सरकार कहने और मानने लगती है , लोग भी वैसा ही समझने लगते हैं और गड़बड़ियाँ शुरू हो जाती हैं .लोकतान्त्रिक राज्य के बारह अंग होते हैं जो राज्य को मानव शरीर के तुल्य मानने पर इस प्रकार व्यक्त किये जा सकते हैं :
१. राजा (संप्रभु) (सम्पूर्ण शारीर ) : लोकतान्त्रिक राज्य में जनता सामूहिक रूप से राज्य की स्वामी होती है . देश की संप्रभुता सामूहिक रूप से जनता में निहित होती है . बिना राजा के कोई राज्य नहीं हो सकता . राजा न होने पर चारों ओर अराजकता फैलने लगती है जैसा आज भारत जैसे देश में हो रहा है . क्योंकि यहाँ पर जनता को मालूम ही नहीं कि सरकार में घुसे लोग उसका धन तो लूट ही रहे हैं , आने वाली पीढ़ियों पर भारी ऋण भी चढाते जा रहें .
२. संविधान (नाड़ी-तंत्र) : राज्य का एक निश्चित संविधान होना चाहिए जिसके आधार पर शासन कार्य करेगा .
३.व्यवस्थापिका या विधायिका (आँखें) : जनता के चुने हुए प्रतिनिधि जो क़ानून बनाते हैं तथा दिशा निर्धारित करते हैं कि किस दिशा में चलना है . इसमें उन सभाओं के अध्यक्ष भी आयेंगे .
४. कार्यकारिणी (चेहरा) : राज्य के छोटे से बड़े ,सभी कार्य कार्यकारिणी द्वारा संपन्न होते हैं . इसमें सम्मिलत हैं ---(अ) . राज्याध्यक्ष एवं मंत्री परिषद्
,(ब) . प्रशासक ( सचिव ,आयुक्त , कलेक्टर या समकक्ष अधिकारी ) , स . नियंत्रक ( चुनाव आयोग , लोक सेवा आयोग , रिजर्व बैंक का गवर्नर , महानियंत्रक आडिट , सांख्यिकी आदि एवं तुल्य पदाधिकारी ) तथा (द) राज्य के समस्त अधिकारी एवं कर्मचारी
५.न्यायपालिका (मस्तिष्क) : इसमें सम्पूर्ण न्याय व्यवस्था सम्मिलित है . लोकपाल एवं सभी जाँच एजेंसियां जैसे अन्वेषण ब्यूरो , सतर्कता आयुक्त आदि भी इसी के अंतर्गत होने चाहिए ताकि वे राजनीतिक दबाव से मुक्त रहकर कार्य कर सकें .
६.जनता (आत्मा) :व्यक्तिगत रूप से लोग इसके अंतर्गत आते हैं . राज्य रुपी शरीर की जान देश के लोगों में ही निहित होती है .
७. भू-भाग (पैर) : क्योंकि इसी पर शरीर खड़ा रहता है .
८. कोष (उदर) : जिस प्रकार उदर में भोजन जाने पर शरीर को कार्य करने की शक्ति मिलती है ,उसी प्रकार कोष में धन होने पर राज्य को गति प्राप्त होती है .एक बार भोजन करने के कुछ समय बाद जिस प्रकार उदर को पुनः भोजन की आवश्यकता होती है उसी प्रकार कोष में भी सतत रूप से धन प्रवाह होते रहना चाहिए .
९ . बल (छाती एवं हाथ ) : सेना , पुलिस आदि .
10. दुर्ग (त्वचा) : प्राचीन कल में दुर्ग राज्य के रक्षा कवच होते थे .अतः यह शरीर की त्वचा को प्रगट करता है . जिस प्रकार त्वचा के संपर्क में आने पर व्यक्ति उसके मृदु, कठोर , ठन्डे, गर्म आदि प्रभावों को समझ लेता है , उसी प्रकार दुर्ग से भी ज्ञात होना चाहिए . इसके अंतर्गत सीमा पर बंकर तथा चौकिय होंगी तथा राज्य के अंतर्गत आर्थिक नियंत्रक , राजनीतिक नियंत्रक तथा सामाजिक नियंत्रक नियुक्त होंगे . सामाजिक नियंत्रक समाज . शिक्षा , स्वास्थ्य ,मनोविज्ञान आदि विभिन्न क्षेत्रों में सतत निगरानी रखेंगे . इसी प्रकार आर्थिक एवं राजनीतिक क्षेत्र में भी निगरानी राखी जायगी ताकि नैतिक मूल्यों एवं व्यवस्थाओं में थोड़ी सी भी विकृति आने पर उसे समझा एवं सुधारा जा सके .
11. मित्र (कान ) : इसका महत्त्व पूर्व में दिया जा चुका है .
१२. गुप्तचर (मन) : राज्य की गुप्तचर व्यवस्था अत्यंत सुदृढ़ होनी चाहिए . समस्त लोगों को यह भय होना चाहिए कि उनके कार्य कि सतत रूप से निगरानी हो रही है तो कोई भी गलत कार्य करने का साहस नहीं करेगा .भारत में गुप्तचर व्यवस्था नगण्य होने के कारण संसद पर विदेशी हमला हुआ , मुंबई में लम्बे समय तक तैयारी करके दुश्मन ने मार-कट मचाई , कारगिल पर कब्ज़ा किया . गुप्तचरों की सूचनाओं का समन्वय मन की तीव्र गति से होना चाहिए .

मंगलवार, 14 जून 2011

राज्यों के आवश्यक तत्व

राज्य के मुख्य एवं आवश्यक तत्व


श्री अटल बिहारी बाजपेई के कार्य काल में भारत - पाक सीमा पर दस माह तक दोनों देशों की फौजें आमने -सामने डटी रहीं . मीडिया ऐसे समाचार देता था की बस युद्ध होने ही वाला है . बिलासपुर ,छत्तीसगढ़ से मेरे मित्र प्रो खान ने एक दिन फ़ोन पर मुझसे पूछा कि युद्ध की क्या सम्भावना है .उसका भतीजा वायु सेना में अधिकारी है और उस समय उसकी पोस्टिंग सीमा पर ही थी . मैंने तत्काल उत्तर दिया ,''शून्य''. उसने आश्चर्य से पूछा ,''कैसे ?'' मैंने उसे समझाया,'' पाकिस्तान के महान मित्र अमेरिका के वायु यान पाकिस्तान के हवाई अड्डों पर खड़े हैं जो अफगानिस्तान के युद्ध के समय आये थे . भारत अमेरिका के हवाई जहाजों पर हमले करने का जोखिम नहीं उठा सकता है .१९७१ के युद्ध में भारत ने रूस के साथ युद्ध संधि कर ली थी की यदि हमारा किसी देश से युद्ध हुआ और शत्रु की ओर से कोई देश युद्ध में कूदेगा तो रूस उस पर आक्रमण कर देगा . उस समय अमेरिका ने बहुत हाथ -पैर मारे ,हिंद महासागर में अपना परमाणु -पोत भी ले आया था , परन्तु कुछ नहीं कर पाया . संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत के विरुद्ध उनके प्रस्तावों को रूस ने वीटो से ख़ारिज कर दिया था. " उसे मेरी बात से संतोष हुआ और कुछ समय बाद दोनों देशों कि सेनाएं शांति पूर्वक वापस लौट गईं. आज की सारी समस्याएं राजनीतिशास्त्र के प्रारम्भिक सिद्धांतों को न समझने के कारण ही उत्पन्न हो रही हैं. राजनीति के भारतीय सिद्धांत के अनुसार राज्य का एक तत्व 'मित्र ' भी है . पाकिस्तान इसे समझता है ,इसलिए उसने अमेरिका और चीन जैसे दो शक्तिशाली मित्र बना रखे हैं , जबकि दुनिया में भारत का कोई भी पक्का मित्र नहीं है . हमें उस कमजोरी का खामिआजा आए दिन उठाना पड़ रहा है . मुझे उन लोगों की बुद्धिहीनता पर तरस आता है जो अमेरिका के भारत और पाकिस्तान के प्रति किये गए गए व्यवहारों की तुलना करते हैं तथा आलोचना भी करते हैं और ऊपर से कहते हैं कि अमेरिका गलत कर रहा है ! आप जैसा व्यवहार अपने प्रिय मित्र के साथ करते हैं क्या वैसा ही अन्य सब लोगों के साथ भी करते हैं ?
पाश्चात्य राजनीतिशास्त्री गार्नर एवं गैटल ने राज्य के चार तत्व निरूपित किये हैं : १. मनुष्यों का समुदाय (जनता ) , २. एक प्रदेश ,जिसमें वे स्थाई रूप से रहते हों ( भूभाग ) , ३ .एक राजनीतिक संगठन (अर्थात सरकार ) ,जिसके द्वारा लोगों की इच्छा अभिव्यक्त हो सके तथा उसे कार्य रूप में परिणित भी किया जा सके तथा ४. आंतरिक संप्रभुता और बाहरी नियंत्रण से स्वतंत्रता .राजनीतिशास्त्र में देश को ही राज्य कहा जाता है . अतः राज्य के ४ अंग हुए :जनता , भूभाग या प्रदेश , सरकार और संप्रभुता .स्वतंत्रता के पूर्व भारत संप्रभु नहीं था , यहाँ के सारे निर्णय इंग्लैंड में लिए जाते थे अतः भारत एक राज्य नहीं था . स्वतंत्रता के बाद भारत और पाकिस्तान दो राज्य हो गए . जब बंगलादेश बना तो वह तीसरा राज्य हो गया . राज्य की इस अवधारणा के अनुसार राजनीतिशास्त्री को राज्य की स्थिरता या विस्तार से कोई लेना-देना नहीं है , उसका काम केवल उक्त चार तत्व गिनना है . उनके पूरे होते ही नया राज्य बन जाता है और वे उसका पृथक अध्ययन करने लगते हैं .रूस के २४ टुकड़े हो गए तो वे २४ राज्यों का अध्ययन करने लगेंगे . देश क्यों टूटा , ये चार मुख्य तत्व इसकी व्याख्या नहीं कर सकते हैं .
प्राचीन भारतीय राजनीतिशास्त्र के सिद्धांत के अनुसार देश या राज्य को मनुष्य के शरीर के तुल्य मानते हुए उसके सात तत्व कहे गए हैं :१ राजा (मस्तिष्क) ,२. अमात्य अर्थात मंत्रिपरिषद् (आँखे) , ३.जनपद (भूभाग या प्रदेश तथा लोग ) (पैर) ,४.दुर्ग (हाथ) ,५.कोष (मुंह) ,६. बल या सेना (मन) ,तथा ७. मित्र (कान). देश के अंग भी शरीर के अंगों की भांति जीवंत माने गए है . ये कोई निर्जीव तत्व नहीं हैं . इसलिए एक भी अंग शिथिल होने पर देश भी शरीर की भांति रोगी होने लगता है .यदि आप इन अंगों को भली भांति समझ लेते हैं तो आपको वर्तमान अनेक समस्याओं के कारण और उनके निवारण के मार्ग स्वतः मिल जायेंगे .पाश्चात्य सिद्धांत से तुलना करने पर जनपद दो तत्वों -- भूभाग तथा जनता को निरूपित करता है , राजा एवं अमात्य सरकार के तुल्य हैं और किसी को राजा तभी माना जाता था जब वह स्वतन्त्र होता था अर्थात राजा संप्रभु होता था . उसमें बाद के चार तत्वों के तुल्य कोई विचार नहीं रखा गया है .परन्तु ये सभी आवश्यक तत्व हैं जैसा आपने भारत - पाक के संबंधों के बारे में प्रारम्भ में ही देख लिया . कुवैत का उदाहरण भी इन तत्वों के महत्त्व की पुष्टि करता है. कुवैत के पास बहुत धन (कोष) है , साथ ही उसने अमेरिका को अपना अच्छा मित्र भी बना रखा है . इराक ने कुवैत पर कब्ज़ा कर लिया था परन्तु अमेरिका से मित्रता तथा अच्छा कोष होने के कारण ही वह आज स्वतन्त्र देश है अन्यथा उसका अस्तित्व ही समाप्त हो जाता और इनके अभाव के कारण इराक स्वयं गर्त में चला गया .
भारतीय राजनीतिक चिंतन का विषद वर्णन शुक्र नीतिसार , महाभारत , कौटिल्य के अर्थशास्त्र आदि ग्रंथों में किया गया है . उन्होंने उक्त प्रत्येक अंग की विशेषताओं की भी व्याख्या की है . राज्य का प्रथा अंग राजा है . राजा राज्य का स्वामी तथा दण्ड का धरनकर्ता होता था. राजा नीतिशास्त्र के अनुसार कार्य करने वाला , सत्यप्रिय, बुद्धिमान ,पवित्र तथा लोगों की भलाई करने वाला होना चाहिए . राजा राज्य के तुल्य या उससे बड़ा नहीं हो सकता . जैसे फ़्रांस का राज लुई xiv कहता था ,''मैं ही राज्य हूँ ''. भारत में आपातकाल के समय कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष देवकांत बरुआ ने प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की स्तुति करते हुए कहा था ,''indira is india & india is indira '' अर्थात '' इंदिरा ही भारत है और भारत ही इंदिरा है ''
जिसका अर्थ था कि यदि इंदिरा नहीं तो भारत भी नहीं . इस प्रकार के चापलूस जनता के बारे में सपने में भी नहीं सोच सकते . राजा को निश्चित मर्यादाओं तथा नियंत्रण में रहकर ही शासन करना होता था. वह भी दण्ड के नियंत्रण रहता था . दण्ड से अभिप्राय उस मर्यादा से है जो मनुष्य में अव्यवस्था के निवारण और अर्थ के सरक्षण के लिए स्थापित कि गई है .समाज में कर्तव्य- अकर्तव्य , गम्य-अगम्य ,धर्म -अधर्म कि जो मर्यादा है , जिसके द्वारा मनुष्यों कि स्वेच्छाचारिता नियंत्रित होती है , उसी को दण्ड कहते हैं. जनसाधारण कि तरह राजा, उसके मंत्री एवं समस्त अधिकारी भी उसी दण्ड के अधीन होते थे .दण्ड को राज्य कि रीढ़ मन जाता था .चाणक्य ने कहा है ,''यथा राजा तथा प्रजा '' अतः सबसे पहले राजा एवं मंत्रियों को मर्यादा का पालन करना होगा तभी लोग उसका अनुसरण करेंगे . जो राजा दण्ड कि मर्यादा का पालन न करे , उसे पदच्युत कर देना चाहिए . गार्नर ने भी कहा है कि सरकार को सीमाओं में रहकर लोगों कि इच्छाओं के अनुरूप कार्य करने चाहिए .पश्चिम एशिया के मुस्लिम तानाशाहों ने इस्लाम धर्म के अनुसार लोगो कि इच्छानुसार शासन तो किया परन्तु लोकहितों की उपेक्षा की , धर्म के अलावा भी उनकी कुछ इच्छाएँ और आवश्यकताएं हैं , उनपर कोई ध्यान नहीं दिया , परिणाम स्वरूप लोग संघर्ष के लिए बाध्य हो गए . उन देशों में अराजकता फ़ैल गई है .जो लोग चुपचाप अपना कम करने में व्यस्त थे , वे भी जिंदगी - मौत के बीच में फंस गए है और ये तानाशाह लोगों के गुस्से की कब बलि चढ़ जायेंगे , अभी कुछ नहीं कहा जा सकता . यदि ये शासक मर्यादाओं में रहकर कार्य कर रहे होते तो ऐसी स्थिति ही न उत्पन्न होती .
कौटिल्य अर्थशास्त्र में अमात्यों का वर्णन विस्तार से किया गया है . जिन्हें मंत्री नियुक्त किया जाना है उनमे उत्कृष्ट प्रज्ञा ,बुद्धि , स्मृति एवं बल होना चाहिए .वे अपने क्षेत्रों में निपुण , दूरदर्शी ,देश ,काल और अवसरों का अच्छी प्रकार प्रयोग करने में समर्थ,सम्मान और रहस्य को कायम रखते हुए परिहास करने की योग्यता से परिपूर्ण, आवश्यकतानुसार मधुर तथा कठोर संभाषण में सक्षम, लज्जायुक्त, व्यसनमुक्त, काम,क्रोध ,लोभ, जिद्द, चपलता तथा जल्द बाजी से रहित ,आत्मसंयमी तथा नीतिशास्त्र का पालन करने वाले हों . राजा उन्ही से पूछ कर कार्य करता है ,अतः राज्य की सम्पूर्ण व्यवस्था तथा विकास मंत्रियों पर ही निर्भर करता है . उनके गुणों को अच्छी प्रकार परख कर ही उनकी नियुक्ति की जानी चाहिए. जहाँ पर मंत्री उक्त गुणों से रहित मिलेंगे देश अराजकता की ओर बढ़ता जायगा .
राज्य के तीसरे तत्व जनपद के अंतर्गत राज्य के लोग तथा उसकी भौगोलिक सीमाओं से से घिरा भू भाग आते हैं .राज्य के भू भाग का विस्तार इतना होनाचाहिए की वह जनता का पालन करने में समर्थ हो . विपत्ति के समय विदेशी भी उसका आश्रय ले सकें . उसमें शत्रुओं से रक्षा करने के सब साधन हों ,उसकी जलवायु उत्तम तथा प्रदूषण रहित हो .उसमें खेत, चराहगाह ,जंगल, सिंचाई के लिए नहरें , कुँए आदि हों , खदानें हों थल तथा जल मार्ग हों ( उस समय वायु मार्ग नहीं थे ).जनता के नाम पर लोगों की भीड़ या संख्या ही पर्याप्त नहीं है .किसानों तथा कारीगरों में क्रियाशीलता ,लोगों में बुद्धि का होना (शिक्षित होना ), राज्य के प्रति प्रेम एवं भक्ति , और उनके आचरण में पवित्रता होनी चाहिए .
दुर्ग के नाम पर यद्यपि आज प्राचीन काल जैसे किले नहीं होते हैं , परन्तु सीमा पर बंकर एवं चौकियां बनाकर शत्रु की सतत रूप से निगरानी की जानी चाहिए छठे तत्व सेना से तात्पर्य सैनिकों की शारीरिक, मानसिक क्षमताओं के साथ-साथ आधुनिक युद्ध तकनीकों से भी है .शक्ति शाली सेना एवं चुस्त पुलिस से ही बाह्य एवं आंतरिक शांति स्थापित तथा स्थिर रह सकती है .
राज्य का पांचवां तत्व 'कोष' है . धन से ही सब कार्य होते हैं .अतः कोष का संवर्धन यत्न पूर्वक करना चाहिए .राज्य के कोष को इतना अधिक होना चाहिए की विदेशी आक्रमण , दुर्भिक्ष, भूकंप , बाढ़ , तूफ़ान ,महामारियों आदि के समय भी काम न पड़े . प्रशासन द्वारा विधि सम्मत ढंग से अर्थात जैसे भोंरा बिना क्षति पहुंचाए फूलों से रस गृहण करता है , उसी प्रकार लोगों से कर गृहण करे . लोगों द्वारा कर स्वेच्छा से दिया जाना चाहिए . राज्य का सातवाँ तत्व 'मित्र ' भी बहुत महत्त्व पूर्ण है जैसा पूर्व में कहा जा चुका है .
राज्य के तत्वों के सम्बन्ध में पाश्चात्य सिद्धांत के आधार पर निर्जीव राज्य का अध्ययन कर सकते हैं परन्तु भारतीय सप्तांग सिद्धांत के आधार पर उनकी व्यवस्था एवं स्थिरता की व्याख्या भी की जा सकती है . जैसे जनपद के अंतर्गत भूभाग तत्व का एक गुण 'उत्तम जलवायु 'कहा गया है . आज प्रदूषण तथा पर्यावरण का महत्त्व समझ में आ रहा है .प्रदूषण के कारण लोगों , जानवरों , वनस्पतियों का स्वास्थ्य कैसे अच्छा रह सकता है ? उत्तम जलवायु का विचार न करने के कारण दिल्ली में पहले अनेक उद्योगों को लगने दिया गया , बाद में उन्हें तत्काल बंद करने के आदेश दिए गए . वह मंदी का समय था ,उन्हें धन की कमी , विद्युत् संकट ,विदेशी सस्ते माल की चुनौती के कारण दूर स्थानों में पुनः लगाना आसान नहीं था .परिणाम स्वरूप हजारों लोग बेरोजगार हो गए या अर्थ संकट में फंस गए . जनपद के दूसरे अंग जनता का मुख्य गुण राज्य प्रेम एवं पवित्रता कहा गया है . जिनके घर उजाड़ गए हों उनसे किस देश प्रेम की आशा करेंगे ? पहले अधिकारी घूंस खाकर मकान बनवाते हैं , फिर अवैध करार दिए जाते है , उनके मकान तोड़े जाते हैं , लोगों को बेदखल किया जाता है . ये किससे प्रेम रखेंगे ? गंगा नदी में प्रदूषण होने दिया गया . अब सात हजार करोड़ रुपये लगाकर उसकी सफाई करने की योजना बनाई गई है जबकि पूर्व में भी अरबों रूपये व्यय किये जा चुके हैं . क्या देश ने पूर्व में इससे इतनी अधिक कमाई कर ली है किसात हजार करोड़ रूपये कि उधारी और उस पर ब्याज का भुगतान किया जा सके ? यदि प्रारंभ से ही उत्तम जलवायु और लोगों में राष्ट्र प्रेम का ध्यान रखा गया होता तो ये हालात पैदा न होते . मंत्रियों के नीति विरुद्ध आचरण एवं योग्यता के कारण देश में ऐसे हालात पैदा हो गए हैं जनता शासन को शत्रुवत मान ने लगी है और स्वेच्छा से कोई कर देने के लिए तैयार नहीं है . जनता में इस प्रकार धीरे- धीरे शासन के प्रति रोष बढ़ते जाने से बड़े प्रदेशों का विघटन होने लगता है , लोग बागी होने लगते हैं जिससे आने वाले समय में देश के विघटन कि स्थित भी उत्पन्न हो जाती है अथवा लोग विदेशी शत्रुओं से मिलकर भी राष्ट्र संकट उत्पन्न कर सकते हैं .
राज्य की भारतीय अवधारणा में दुर्ग एवं सेना दो पृथक तत्व रखे गए हैं . इसका अभिप्राय है कि देश कि रक्षा के लिए शक्तिशाली सेना के साथ दुर्ग या व्यूह रचना भी अच्छी होनी चाहिए .भारत के पास भारी-भरकम सैन्य शक्ति होने के बावजूद पाकिस्तानी सैनिकों ने कारगिल पर कब्ज़ा करलिया और इन्हें पता ही नहीं चला . बाद में घुस पैठिओं को निकलने के लिए भारत के सैकड़ों सैनिक शहीद हुए तथा अरबों रूपये युद्ध में व्यय हो गए , तनाव अलग से बना रहा . अतः सीमा पर मजबूत चौकसी होनी चाहिए .आज विश्व के देशों में जो भ्रष्टाचार , आतंकवाद जैसी समस्याएँ बढती जा रही हैं . सप्तांग राज्य के प्रथम दो तत्वों , राजा और मंत्रियों के वांछित गुणों कि तुलना वर्तमान सरकारों के मंत्रियों से करके देखे ,उनके कारण स्वतः स्पष्ट होने लगेंगे .


शनिवार, 11 जून 2011

कानूनों के दूरगामी प्रभाव

शत्रुता भुनाने के लिए क़ानून बनाना अनुचित

भारत में क़ानून बनाने वालों कि स्थिति दयनीय है . कानून सरकार बनाए या न्यायालयों के निर्णय हों , उनका उद्देश्य एक वर्ग को लाभ पहुँचाने के लिए दूसरे पक्ष को दण्डित करना होता है . अभी एटा ,उ.प्र. की एक अदालत ने आनर किलिंग में तीन लोगों को मारने के लिए १० लोगों को फांसी कि सजा सुनाई गई है . बड़े- बड़े दंगों और आतंकी हत्याओं के प्रकरण में भी इतने लोगों को फांसी कि सजा नहीं हो पाती है . लड़की को किसी प्रकार पटा लो और शादी कर लो , अब उनके माँ - बाप , रिश्तेदार क्या कर लेंगे ? यदि लड़की न माने तो उसको तेजाब से जलाने से लेकर हत्या के प्रयास करो या उनका एस एम् एस बनाकर प्रसारित कर दो . यदि युवकों को पता हो कि घरवालों कि सहमति के बिना विवाह नहीं होगा तो वे इतना आगे बढ़ेंगे ही नहीं . एक आशिक छात्र द्वारा भोपाल में लड़की से बदला लेने के लिए जिस प्रकार उसे और उसकी दो सहेलियों को सरे आम फ़िल्मी ढंग से कार से कुचला गया , न कुचला जाता. असामाजिक लोगों की मांग कि आनर किलिंग के लिए फांसी दो और अदालत का निर्णय ,युवकों को लाभ पहुँचाने के लिए तथा उनके माता- पिता तथा रिश्तेदारों को दण्डित करने का एक उदाहरण मात्र है . यह एक सामाजिक समस्या है .क़ानून के साथ ही ऐसी सामाजिक चेतना भी उत्पन्न की जानी चाहिए कि युवकों को ध्यान रहे कि उनके घरवालों कि सहमति के बिना विवाह मान्य नहीं होगा और अभिभावकों को समझ में आ जाए कि बच्चों की जायज मांग का आदर करना चाहिए तो समाज में वीभत्स घटनाएं रुक सकती हैं .
अनिवार्य एवं निःशुल्क बाल शिक्षा के लिए क़ानून बनाया गया है . उसकी कंडिकाओं का मुख्य उद्देश्य बाल शिक्षा न होकर प्रतिष्ठित निजी विद्यालयों की व्यवस्था को चौपट करना प्रतीत होता है . कुछ निजी स्कूलों में पढ़ाई अच्छी होती है , उनका नाम है, प्रतिष्ठा है . उन्हें दंड देना इसलिए जरूरी हो गया है उनके नाम के सामने सरकारी स्कूलों को कोई पूछ नहीं रहा है .
नव वधूओं को दहेज़ के लोभी परेशान न करें ,इसके लिए जो क़ानून बनाया गया है उसका दुरूपयोग आधुनिक लड़कियां पति,सास,ससुर ,नन्द , जेठ ,देवर जैसे सम्बंधियो को जेल भिजवाने या ब्लैकमेल करने में धड़ल्ले से कर रही हैं . कोर्ट समझ भी जाते हैं परन्तु क़ानून किसी को बुद्धि का प्रयोग करने की अनुमति नहीं देता है.
अनुसूचित जातियों को उच्च वर्ण की यातनाओं से बचाने के लिए जो क़ानून बना है उसका भी भरपूर दुरूपयोग किया जाता है . किसी सेवा में यदि उनका उच्चाधिकारी उनके विरुद्ध कोई अनुशासन हीनता के कारण कार्यवाही करना चाहता है तो वे इस नियम का आश्रय लेकर उस अधिकारी को धमकाने या फंसाने में भी नहीं चूकते हैं . इस क़ानून के विरुद्ध उस अधिकारी को कोई सहायता नहीं कर सकता है वह अधिकारी भले ही कितना अच्छा हो .महिलाओं के विरुद्ध पुरुष अधिकारिओं द्वारा कार्यवाही करने पर भी ऐसे हालात उत्पन्न होने की सम्भावना बनी रहती है . इससे शासकीय विभागों की हालत खस्ता होती जा रही है .अनुशासन के अभाव में कामचोरी और भ्रष्टाचार सर्वत्र फैलता जा रहा है .परिणाम स्वरूप सरकार अपने विभागों को सुधारने के कठिन कार्य के स्थान पर उनका निजीकरण करती जा रही है . आने वाले समय में कलेक्टर ,कमिश्नर ,सचिव , मंत्री, मुख्य मंत्री , यहाँ तक कि प्रधानमंत्री और न्यायाधीश भी ठेके पर दिए जाने लगें तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए . हमें भूलना नहीं चाहिए कि ईस्ट इंडिया कंपनी ऐसे ही ठेकों पर देशी रियासतों के राजा-नवाबों को नियुक्त करती थी और जब उनसे मन भर जाता था तो उसे बेदखल करके उनकी रियासत को कंपनी की संपत्ति बना लेते थे .१८५७ का संघर्ष उसी का परिणाम था . आज पुनः देश छोटा होता जा रहा है और लोग बड़े होते जा रहे हैं .इसलिए वे मनमाने ढंग से कार्य कर रहे हैं , उसे कोई भ्रष्टाचार कहे , नाकारा कहे , भूख हड़ताल करे या अपना सिर धुने ,बड़े आदमी को कोई फर्क नहीं पड़ता है .
आज कुछ लोग कालाधन रखने वालों तथा भ्रष्टाचारिओं को फांसी देने या आजीवन कारावास देने एवं उनकी सारी संपत्ति जब्त करने की बात कर रहे हैं . आज जब यह सिद्ध हो रहा है कि जज भी भ्रष्ट हैं , पुलिस पर तो पहले से ही किसी को विश्वास नहीं है , तो पकड़े या पकडवाए गए लोगों को सजा कौन और कितने दिनों में दिलवा पायेगा जबकि आज देश कि अदालतों में ढाई करोड़ से अधिक प्रकरण लंबित हैं . इसलिए किसी भी क़ानून को बनवाने या बनाने में यह विचार सर्वोपरि रहनी चाहिए कि उससे न्याय एवं व्यवस्था स्थापित हो , उसका दुरूपयोग करने कि सम्भावना न हों तथा लोगों में परस्पर भ्रातृत्व भाव एवं एकता बनी रहे .

बुधवार, 8 जून 2011

अपने डेथ- वारंट पर हस्ताक्षर कौन करेगा !

अपने डेथ- वारंट पर हस्ताक्षर कौन करेगा !
मेरा प्रश्न अजीब लग सकता है परन्तु इसका उत्तर ढूंढना ही होगा . आजकल आन्दोलनों का बाजार गर्म है . बाबा रामदेव और अन्ना हजारे के आंदोलनों से देश आंदोलित हो रहा है . अन्ना जी चाहते हैं ऐसा लोकपाल बिल जो भ्रष्टाचार करने पर पटवारी से लेकर कैबिनेट सचिव तक और पंच से लेकर प्रधानमंत्री तथा उच्चतम न्यायालयों के जजों को फांसी पर लटका सके अथवा आजीवन कारावास की सजा दे सके . यदि गणितीय प्रमेय के आधार पर व्याख्या करें , तो यह मांग इसलिए उठाई गई है कि नीचे से ऊपर तक सब भ्रष्टाचार में लिप्त हैं .सारे सांसद भी लिप्त हैं , मंत्री भी लिप्त हैं . मान लिया सचमुच में सारे मंत्री लिप्त हैं . यदि ये बिल पास करवाएंगे तो सबसे पहले फंदे में लटकने का सौभाग्य भी इन्हीं को मिल सकता है . यदि ये अपना प्रायश्चित करने के लिए लटकने को तैयार भी हो जाएँ तो क्या बाकी मंत्री भी तैयार हो जायेंगे ? और अनेक भ्रष्टाचारी सांसद जिन्हें इस बिल को पास करना है, भी अपने डेथ -वारंट को स्वीकार कर लेंगे ? सभी कहेंगे कि यह शत प्रतिशत असंभव है . तो फिर अन्ना हजारे के लोकपाल बिल का क्या होगा ! यदि वे समझते हैं कि वे पटाकर , बहलाकर , फुसलाकर , धमकाकर मंत्रियों से अपनी बात मनवा लेंगे और वे इसमें सफल भी हो गए तो
क्या लोकपाल का जन्म हो जायगा !उसको जन्म देने वाले सांसद पहले ही भ्रूण हत्या कर देंगे और अभी जो कूद- कूद कर उनका समर्थन कर रहें हैं सबसे पहले इसके विरोध में खड़े हो जायेंगे .
बाबा रामदेव काले धन , विदेशों में जमा अवैध धन और भ्रष्टाचार के लिए आमरण अनशन पर हैं . जो कानून बनाने वाले हैं और जो बनवाने वाले हैं , उन्ही का पैसा विदेशों में जमा है . वे उसे राष्ट्रीय संपत्ति मानते , तो धन विदेशों में ही क्यों ले जाते ? पता नहीं किस -किस के हिस्से का धन बड़ी मेहनत से लूट कर उन्होंने अकूत संपत्ति बनाई होगी . वे कानून बना कर या बनने दे कर कंगाल होना चाहेंगे या फांसी पर लटकना चाहेंगे ? समाज में खोमचे वालों तथा परचून वालों से लेकर महान व्यवसायी, उद्योगपति तक नंबर दो का पैसा कमाने और उसे सहेज कर रखने में व्यस्त हैं . इसलिए ऐसी मांग रखना जो कभी पूरी ही न हो सके और उसके लिए आमरण अनशन करना सर्वथा आधारहीन एवं अनुचित है . जैसे किसी डाकू से सामना हो जाये , वह हमला कर देता है, किसी चोर को भागने का मौका न दें तो वह हमला कर देता है , किसी गुंडे- लुटेरे को लूटने से मना करें तो वह हमला कर देता है , किसी डान के क्षेत्र में कोई दूसरा वसूली करने लगे तो वह जान लेवा हो जाता है , वैसे ही बाबा के तम्बू में आधी रात में सोते हुए लोगों पर पुलिसिया लूट संपन्न हुई . बाबा को इसे भली भांति समझना चाहिए और ऐसी मांग नहीं करनी चाहिए जो संभव न हो या उन लोगों से नहीं करनी चाहिए जो इसके लिए सक्षम न हों . बाबा जी के विचार उत्तम हैं , राष्ट्र हित के प्रयास भी प्रशंसनीय हैं , परन्तु उनके क्रियान्वयन का ढंग सही नहीं है . मेरी बात समक्ष रख कर बाबा जी और अन्ना हजारे लोगों से पूँछें कि उसमें कितने प्रतिशत गलत है . यदि सभी लोग इसे सत्य माने तो वे उतना ही दबाव बनाएं जितना सामने वाला सह सके तथा व्यावहारिक रूप से कोई क़ानून बन सके . गांधीजी ने भी आन्दोलन किये परन्तु कभी ऐसी जिद नहीं की . वे अंग्रेजों को थोड़ा - थोड़ा कर के मनाते गए .गाँधी जी क्रमिक परिवर्तन की दिशा में बढ़ते गए . सन १९४२ के 'भारत छोड़ो ' आन्दोलन में भी उन्होंने सहजता का परिचय दिया . उसके ५ वर्ष बाद देश आजाद हुआ . राष्ट्रीय आंदोलनों में उन्होंने कभी अहम् को नहीं आने दिया . असफलता के पश्चात वे पुनः चिंतन करते और नवीन पथ खोजकर आगे बढ़ते गए . क्या बाबा रामदेव और अन्ना हजारे ऐसा नहीं कर सकते ? यदि उनके ये आन्दोलन उनकी जिद्द के कारण बिना किसी परिणाम के समाप्त हो गए तो इससे समाज की अपूरणीय क्षति होगी और आर्थिक अपराध सीना तान कर होने लगेंगे .
प्रो ए. डी. खत्री , चिन्तक, पत्रकार ,भोपाल