शनिवार, 19 मार्च 2011

भारत में नव सामंतवाद

                                         भारत में नव सामंतवाद
प्राम्भ से ढाई- तीन सौ वर्ष पूर्व तक राजतन्त्र से ही अधिकांश शासन व्यवस्थाएं चलती थीं . राजतन्त्र में राजा के प्रमुख विश्वासपात्र सलाहकार सामंत कहलाते थे. ये सामंत अपने राजा के प्रति ही उत्तरदाई होते थे . जनता के हितों से इन्हें कोई लेना-देना नहीं होता था .जनता के कर को अपनी संपत्ति समझना तथा उसे अपने एशो- आराम पर व्यय करना उनकी प्रकृति का अहम् पक्ष होता था .जब राजा कमजोर होने लगता था तो ये सामंत अवसर मिलते ही लगान एवं करों से प्राप्त तथा हमलों में लूट खसोट से प्राप्त धन का अधिकांश भाग राजा को देने के बदले अपने पास रख लेते थे . धन बांटकर वे सरदारों को अपनी ओर मिला लेते थे तथा अपनी सेनाएं भी बनालेते थे और अवसर मिलते ही स्वयं को स्वतंत्र शासक घोषित कर देते थे. आज ये कार्य मंत्री -अफसर कर रहे हैं . अतः आज भ्रष्टाचार के नाम से जो हो हल्ला हो रहा है ,वह सदियों से चली आ रही सामाजिक - राजनीतिक प्रक्रिया है और उस पर नियंत्रण का एक ही उपाय रहा है कि केन्द्रीय शासक कितने शक्तिशाली और ईमानदार हैं. राजीव गाँधी कि अपरिपक्व बुद्धि के कारण , उसके समय में कांग्रेस को मिला दो तिहाई से अधिक बहुमत तो समाप्त हुआ ही , आज तक एक पार्टी की सरकार नहीं बन पाई है .नरसिम्हा राव के समय (१९९१ - १९९६ ) कांग्रेस की अल्पमत सरकार ने ५ वर्ष पूरे किये . इसके लिए उनकी बहुत प्रशंसा भी की गई थी . परन्तु सरकार चलाने के लिए उन्होंने कितनी कीमत अदा की ? बाहर से समर्थन दे रहे बंगाल के कम्युनिष्टों , बिहार के लालू प्रसाद , तमिलनाडु की जय ललिता , उ. प्र. के मुलायम सिंह , तथा विपक्ष की भारतीय जनता पार्टी को उन्होंने मनमानी की छूट दे दी तथा उनका विरोध करने वाले कांग्रेसियों को दबा दिया . परिणाम स्वरूप उन राज्यों में कांग्रेस खड़े होने की स्थिति में आज तक नहीं आ पाई है . सरकार बचाने के लिए उन्होंने घूंस देकर संसद भी ख़रीदे जैसा पुराने सामंत करते थे. उनके बादके चुनावों से ये स्थानीय छत्रप या सामंत केन्द्रीय सरकार बनाने-बिगाड़ने वाले बन गए . अब प्रधान मंत्री सरकार नहीं बना सकता है . चुनाव के बाद विजयी सामंत मिलकर अपने अधिकतम लाभ के लिए देश को बाँट लेते हैं अर्थात अपनी- अपनी ताकत के अनुसार सरकार के विभागों का बंटवारा कर लेते हैं और ऐसा प्रधान मंत्री बनाने की सहमति देते हैं जो एक सूत्रधार का काम करे , उनके काम में टांग न अड़ाए. ये सामंत अपने खासमखास सांसदों को अपने हिस्से के विभागों का मंत्री बनाते हैं . जिस प्रकार सब लोग अपने को बनाने वाले भगवन की पूजा करते हैं ,ये मंत्री भी अपने सामंत के आदेश का पालन करते हैं , जनता क्या , प्रधान मंत्री के प्रति भी वे उत्तर दाई नहीं होते हैं . इसलिए न राजा ने डा. मनमोहन सिंह की कोई बात सुनी और न मनमोहन सिंह उसे कुछ कहने का साहस रखते हैं . खाद्य मंत्री या वित्तमंत्री मंहगाई बढ्वाएं ,उन्हें कोई कुछ नहीं कह सकता . डा. सिंह स्वयं देश की सबसे बड़ी सामंत सोनिया गाँधी के इच्छा के विरुद्ध कुछ सोचने का विचार भी नहीं कर सकते हैं . यही उनकी मजबूरी है . आज सामंत शाही इतनी हावी हो गई है कि नगरपालिका के चुनावों से लेकर अपने अधिकार की छोटी- बड़ी सभी टिकटों का बंटवारा तथा संवैधानिक , सरकारी एवं राजनीतिक पदों पर (जैसे कलमाड़ी ,थामस ) नियुक्ति तथा उद्योगों को लाइसेंस आदि काम भी इसी हाई कमांड अर्थात सत्ता पर हावी सामंत के द्वारा किये जाते हैं और उसकी पहले से बाद तक कीमत भी वसूली जाती है . आगामी चुनावों में प्रमुख सामंत अपनी-अपनी ताकत बढ़ाने के प्रयास करेंगे .कांग्रेस - ममता बनर्जी , कांग्रेस -करूणानिधि , कम्युनिस्ट आदि स्वयं को बड़ा सामंत सिद्ध करने के लिए जोर लगा रहे हैं . अभी तक उन्होंने जो कमाया है वह चुनाव में खर्च करेंगे और जीतने के बाद जो खर्च किया है , उससे अधिक कमाएंगे .
सामंत वे व्यक्ति हैं ,जिनके अधिकार असीमित हों , कर्तव्य शून्य हों , जनता के पैसों को अपना समझते हों , जिन्हें कानून की कोई परवाह न हो तथा मनमाने ढंग से कार्य करने के लिए स्वछंद हों . नौकर शाह (शाही ठाट-बाट से रहने वाले नौकर ) , दबंग व्यवसायी तथा उद्योगपति , डान ,छद्म सामाजिक कार्य कर्ता , सट्टेबाज आदि सभी लोग ,जो सरकार बनाने , बिगाड़ने तथा चलाने की ताकत रखते हैं , अप्रत्यक्ष सामंत होते हैं . ये सामंत बड़ी बेशर्मी से जनतासे लूटे गए धन को देश तथा विदेशों में जमा करते जाते हैं क्योंकि ये सरकारों से बड़े हैं , ये कुछ भी कर सकते हैं . भ्रष्टाचार की कुल इतनी ही थ्योरी है .
डा.ए. डी.खत्री ,भोपाल