मंगलवार, 21 मार्च 2017

करनी का फल

करनी का फल

करनी का फल पाएँगे, यह ईश्वर का न्याय.
बोया बीज बबूल का, आम कहां ते खाय..
उदहारण : १. अमेरिका के निर्माता मानवीय सोच के थे. उन्होंने लोकतान्त्रिक व्यवस्थाएं स्थापित कीं. इसलिए वहां लोकतंत्र है. २. नव भारत का जन्म गांधीजी के आन्दोलन से हुआ. इसलिए भारत आंदोलनों से चल रहा है. सेना, प्रधान मंत्री, राष्ट्रपति, राज्यपाल तथा जजों को छोड़ दें जो गाँधीवादी नहीं हैं तो शेष सारे लोग आन्दोलन करते मिलेंगे. इससे देश में अराजकता की स्थिति निर्मित हुई है. ३. पाकिस्तान का निर्माण आतंकवादी जिन्ना ने किया था, वहां निरंतर आतंकवाद का विकास हो रहा है.४. नेपाल के हिन्दू लोग भाग्यवादी रहे. शुद्ध भाग्यवादी पशु तुल्य बेचारा होता है. वह स्वयं कुछ नहीं कर पाता. जितना ईश्वर ने दे दिया, उसी में जीवन व्यतीत करना पड़ता है. इसलिए नेपाल आज भी गरीब है.५. भारत में ब्राह्मणों-क्षत्रियों ने जातिवाद के बीज बोए, आज उनकी संतानें उसी का फल भोग रही हैं.
यदि देश में स्थाई शांति और सुख चाहिए तो सबको परस्पर प्रेम से रहना होगा, परस्पर सहयोग और विकास की भावना विकसित करनी होगी, सुरक्षा, शिक्षा और न्याय व्यवस्था सुदृढ़ और सक्रिय करनी होगी तथा अपने देश को अपना देश कहने में गौरव का अनुभव करना होगा. 

सोमवार, 13 मार्च 2017

होली की शुभकामनाएँ
होली है रंगों का पर्व, खुशियों का त्यौहार.
सबके रंग में जो रंग जाए, खुशियाँ अपरम्पार..
रंगे होते हैं सबके चेहरे, पीले-लाल-गुलाबी,
भंग की मस्ती तन में डोले, मन हो जैसे शराबी.   
होली के रंगों में रंग कर, मन में भाव जो आते,  
मन के मैल हैं धुल जाते, जब प्यार से गले लगाते.
मीठे-नमकीन का स्वाद मधुर, होली में लगता न्यारा,
तन-कपड़ों का रंग जटिल, दे मस्ती ज्यों हुरियारा.
रंग पुतें जब अहं पे अपने, दिल विस्तार है पाता,

दिल से दिल का मेल है होता, आनंद रंग बिखराता.

गुरुवार, 9 मार्च 2017

चुनाव २०१७ 

चुनाव २०१७ के परिणाम मैंने चुनाव प्राम्भ होने के साथ ही लिख दिए थे. मैंने चुनाव को प्रभावित करने वाले सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक कारकों का विस्तृत विश्लेषण  करने के बाद अपने अनुमान लिखे हैं. यदि इनमें अधिक विचलन होता है तो उसका कारण नोटा होगा. ये परिणाम मेरी फेसबुक पर दिनांक १० फरवरी२०१७ को पोस्ट किए गए थे तथा मेरी पत्रिका 'रजतपथ' के वर्ष ८ अंक १-२ (अगस्त-नवम्बर २०१६ संयुक्तांक )में फरवरी में प्रकाशित हुए हैं. 


उ.प्र.(४०३)     (एनडीए)१८०-१९०,    (कांग्रेस)३५-५०,      (सपा) १२०-१३०,      (बसपा) ४०-५०,     (अन्य ) ५-१०, 

पंजाब(११७)        (एनडीए)५०-५५ ,     (कांग्रेस)४०-४५ ,    (आप) २५-३०,                                (अन्य) २-३ 

उत्तराखंड(७०)    (एनडीए)३५-४०,      (कांग्रेस)२५-३०,                                                        (अन्य) ३-५ .

मैं कभी गोवा और मणिपुर नहीं गया. अतः वहां का अनुमान नहीं लगा सकता. 


मेरी उक्त पत्रिका भी यहाँ पर उपलब्ध है . उसमें कम्पोजिंग की त्रुटि  के कारण टेबल बाईं ओर खिसक गई है जिससे परिणाम समझने में भ्रम उत्पन्न हो रहा है. उसे उक्तानुसार पढ़ा जावे.  

सोमवार, 30 जनवरी 2017

ढोल, गंवार शूद्र, पशु, नारी. सकल ताड़ना के अधिकारी..

ढोल, गंवार शूद्र, पशु, नारी. सकल ताड़ना के अधिकारी..
   यह चौपाई गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरितमानस के सुंदर कांड में ५८ वें दोहे की छठी चौपाई है. अनेक लोगों ने, जो साहित्य की भाषा नहीं समझते, हिन्दू संस्कृति और धर्म से घृणा करते हैं, पूर्वाग्रह से ग्रस्त हैं, घोर आत्मनिष्ठ हैं, अपनी बात के आगे किसी की बात सुनना नहीं चाहते, इस चौपाई का मनमाना अर्थ निकाल कर तुलसीदास जी की कटु निंदा की, उनके लिए अपशब्दों का प्रयोग किया, समाज में भ्रम फ़ैलाने का प्रयास किया और करते आ रहे हैं कि उन्होंने शूद्रों और स्त्रियों को मारने-पीटने की बात की है. जबकि ऐसी कोई बात नहीं है.
    सामान्य जन भी चौपाई का यही अर्थ निकालते हैं कि इसमें वर्णित लोगों को दण्डित करते रहना चाहिए जबकि इसका यह अर्थ नहीं है. और तो और गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित रामचरित मानस में इस चौपाई का अर्थ लिखा है,
      ढोल, गंवार शूद्र, पशु और नारी, ये सभी दंड के अधिकारी हैं.’
    हम वस्तुनिष्ठ रूप से विभिन्न दृष्टिकोणों से तर्क, साक्ष्य और इसके व्यवहारिक स्वरूप के आधार पर इसकी विवेचना करेंगे ताकि इसका अर्थ किसी भी संदेह से परे और सही ढंग से समझा जा सके.
प्रथम दृष्टिकोण : शब्दकोश के आधार पर : इस चौपाई के सही अर्थ को समझने के लिए मैंने हिंदी एवं अंग्रेजी शब्दकोश के आधार पर पहले चौपाई के हिंदी शब्दों के तुल्य अंग्रेजी शब्द और पुनः उनके लिए हिंदी शब्द लिखे हैं जो प्रारम्भ में ही दिए गए हैं. वहां भी सभी शब्दों का अर्थ वही लिखा है जो सामान्य रूप से प्रचलित है और जैसा कि अधिकांश लोग समझते आ रहे हैं.
  हिंदी-अंग्रेजी ऑक्सफ़ोर्ड शब्दकोश में चौपाई में आए शब्दों के अर्थ इस प्रकार हैं,   
ढोल : drum, गंवार  : vulgar,   ill  bred,  primitive,  snobbish,   barbarian, fatous,  uncivilised, stupid, foolish,  A hodge,  a villager,  a boor, a snob, a clown, a bumpkin,
शूद्र : fourth caste of Hindus,  पशु  :  cattle, beast, नारी : woman,  a female, pipe (नली)
ताड़न : Whipping      (कोड़े या बेंत की मार), Chastisement  (दंड, सुधार), Hit (मारना, पीटना), Reproof  (निंदा, भर्त्सना), Admonition  (उपदेश, चेतावनी, निर्देश), Whack(जोर से पीटना), Vapulation (कोड़े की मार), Penalty (दंड, जुर्माना), Rebuke (डांटना), Censure(निंदा).
‘ताड़ना’ ताड़न संज्ञा का क्रिया रूप है.
अधिकारी : Proprietor (स्वामी), Rular (शासक), Heir (उत्तराधिकारी), An officer (एक अधिकारी), Master  (स्वामी), An athaurity (पदाधिकारी), Occupier(आधिपत्य कर्ता),
One who is possessed of a right or title or privilege जिसके पास कोई विशेषाधिकार हो.
शूद्र : किसी के लिए शूद्र शब्द प्रयोग करने को अब तो प्रतिबंधित कर दिया गया है. जैसा कि शब्दकोश (गूगल पर)  में लिखा है इसका अर्थ हिन्दू सामाजिक व्यवस्था का चौथा वर्ण ही है. कार्य के अनुसार हिन्दु समाज चार वर्णों में विभाजित था. प्रथम ब्राह्मण (धर्म-कर्म और शिक्षा देने का काम), दूसरा क्षत्रिय( सेना, सुरक्षा एवं राज्य-व्यवस्था संचालन का काम), तीसरा वैश्य (उद्योग, व्यवसाय का काम) और चौथा शूद्र, जिसके अंतर्गत सभी प्रकार की सेवाएं आती थीं. कालान्तर में ये वर्ण कर्म के स्थान पर जन्म-परिवार आधारित हो गए तथा अनेक जातियों का निर्माण होता चला गया. शूद्र वर्ण से भी अनेक जातियां बाहर निकल गईं, मुक्त हो गईं जो वर्तमान में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) कहलाते हैं. इस प्रकार वर्ण के स्थान पर जातियां प्रमुख हो गईं. शूद्र के अंतर्गत आने वाली जातियों में सफाई कामगार, चर्मकार जैसे काम करने वाले लोग ही समझे जाने लगे. श्मशान घाट पर मुर्दों की व्यवस्था में लगे लोगों को तो उससे भी नीचे ‘चांडाल’ नाम दिया गया. ये सब लोग समय के साथ-साथ अछूत माने जाने लगे अर्थात शूद्र और अछूत समानार्थी शब्द हो गए. शूद्रों को समाज से अलग-थलग कर दिया गया. उनकी पीढ़ियाँ सामान्य मानवीय अधिकारों से वंचित होती गईं. वे शिक्षा रहित हो गए और पिछड़ते चले गए, गरीब होते गए.   
  वर्तमान अर्थतांत्रिक युग में समाज का विभाजन मुख्यतः शासक-प्रशासक वर्ग, उद्यमी-व्यवसायी वर्ग और सेवा वर्ग में किया जाता है. आज सेवक या सेवा-वर्ग में वकील, डाक्टर, प्रबन्धक, सलाहकार, शिक्षक आदि से लेकर श्रमिक, सफाई कामगार आदि तक सभी लोग आ जाते हैं जो वेतन लेकर कार्य करते है अथवा अनुबंध पर कोई कार्य करते हैं. उदहारण स्वरूप अमेरिका में ड्राइवर का अर्थ मात्र ड्राइवर की नौकरी करने वाला ही नहीं है, उसके अंतर्गत वे सभी लोग आ जाते हैं जो अपना या किसी का वाहन, कार आदि चला रहे हैं वे भले ही कितने बड़े अधिकारी या प्रबन्धक क्यों न हों.             
     यदि हम इनका अक्षरशः अर्थ लेते हैं, तो यह अनर्थ हो जाता है. ऑक्सफ़ोर्ड शब्दकोश के अनुसार अधिकारी शब्द का सीधा अर्थ है, वह व्यक्ति जिसके पास कोई विशेष अधिकार है, किसी उच्च पद पार नियुक्त हो. उसके अनुसार ‘दंड के अधिकारी’ का क्या अभिप्राय होगा ? यदि हम कहते हैं आयकर के अधिकारी तो उसका स्पष्ट अर्थ होता है वह अधिकारी जो आयकर वसूलने का अधिकार रखता है. वित्त का अधिकारी, शिक्षा का अधिकारी, स्वास्थ्य का अधिकारी आदि. क्या इनसे यह परिलक्षित नहीं होता कि ये पदाधिकारी उन-उन विभागों के विशिष्ट अधिकार रखते हैं ? क्या इससे विपरीत अर्थ निकाल कर आयकर के अधिकारी से कोई अन्य व्यक्ति आयकर वसूल सकता है? क्या शिक्षा के अधिकारी को ही कक्षा में बैठाकर पढ़ाने लगेंगे अथवा स्वास्थ्य के अधिकारी को स्वस्थ रखने के लिए दूसरे लोग उसे दवाएं खिलाएंगे, सुइयां लगाएंगे ?
   इस परिप्रेक्ष्य में यदि शब्दकोश में दिए गए अर्थ के आधार पर उक्त चौपाई का अर्थ किया जाय तो वह निकलेगा ‘ढोल, गंवार, शूद्र, पशु और नारी ये सब (दूसरों को ) दंड (देने) के अधिकारी हैं. यदि कोई व्यक्ति एक ओर किसी को अपराधी की भांति दंडित किए जाने वाला कहता है और उसके साथ ही उसे ‘अधिकारी’ भी कहता है अर्थात अधिकारी को ही दंडित करने की बात करता है तो यह कैसे सुसंगत होगा ? क्या ऐसा व्यवहार में सम्भव है ? दंड देने के अधिकारी तो होते हैं परन्तु दंड पाने या पिटने के ‘अधिकारी’ नहीं, वे तो अपराधी कहलाते हैं, जबकि चौपाई में उन्हें अधिकारी कहा गया है.
द्वितीय दृष्टिकोण : ताड़ना का प्रचलित अर्थ :अब विवादास्पद शब्द ‘ताड़ना’ का व्यावहारिक अर्थ देखें. एक व्यक्ति किसी पर आक्षेप करता है, ‘वह मुझे ताड़ रहा था’. वह ‘बहुत दिनों से हमारे घर को ताड़ रहा था’, ‘बातचीत के समय ही मैंने ताड़ लिया था कि वह क्या चाहता है’. इनके अनुसार ‘ताड़ना’ का अर्थ ध्यान से देखना है, किसी गूढ़ रहस्य के हेतु देखना है, किसी व्यक्ति की गतिविधयों को परखना है. इन वाक्यों के आधार पर ताड़ना का व्यवहारिक अर्थ तो दंड देना कहीं से भी सिद्ध नहीं होता है. शब्दकोशों में और स्वयं चौपाई में उसका अर्थ दंड कैसे निकाल लिया, किन वाक्यों के आधार पर निकाल लिया गया, यह समझ से परे है. इस चौपाई का विपरीत अर्थ निकालने वालों को कुछ वाक्यों के उदाहरण देने चाहिए जिनके आधार पर ‘ताड़ना’ का अर्थ ‘दंड देना’ या ‘मारना’,सिद्ध होता हो. ताड़ना और प्रताड़ना में अंतर ध्यान में रखना चाहिए. ताड़ना का नहीं, प्रताड़ना का अर्थ होता है दंडित करना.
तृतीय दृष्टिकोण : अर्थ की व्यवहारिकता  यदि हम मान लें कि इस चौपाई में ताड़ना का अर्थ इन सब को दंड देना ही सही है तो उसका व्यावहारिक रूप भी देख लीजिए. ढोल को जोर-जोर से पीटते जाइए. उससे कर्कश ध्वनि निकलेगी जो उसे पीटने वाले को ही कष्ट देगी और बेरहमी से पीटने पर ढोलक फट जाएगी और टूट भी जायगी. उसे पीटकर किसी को हानि के अतिरिक्त और क्या मिलेगा?
    गंवार किसे कहेंगे ? ग्रामीण को, अपढ़ को, अज्ञानी को या असभ्य व्यक्ति को ? कितने लोग कितने लोगों को गंवार कहकर पीटते रह सकते हैं. और यदि तथा कथित गंवार-ग्रामीण व्यक्ति आपसे पहलवान निकला तो क्या होगा ? यदि पीट-पीट कर उसे घायल भी कर दिया या मार भी डाला तो पीटने वाले को क्या मिला ? कोई व्यक्ति कितने गंवारों को रोज मारता फिरेगा ? वह अपना काम कब करेगा ? वह कमाएगा क्या ? खायेगा क्या ? हां, उसकी अनेक लोगों से शत्रुता अवश्य हो जायगी जिससे उसकी जान को ही खतरा उत्पन्न हो जायगा. वर्तमान युग में तो वह जेल में ही पड़ा रह जाएगा.
    शूद्र अर्थात सेवक को कोई रोज मारेगा तो वह उससे क्या काम ले पायेगा ? रोज-रोज पिटने वाला भी काम छोड़ कर भाग जायगा या क्रांति कर बैठेगा, मालिक को ही मार देगा. वर्तमान परिस्थितियों में ऐसे मालिक को कठोर कारावास निश्चित मिलेगा. भला कोई क्यों ऐसा काम करेगा जिससे शुद्ध हानि मिलती हो ?
   पशु को पाल कर रोज मारेंगे तो वह आपके किस काम आएगा ? किसी दिन मरा पड़ा होगा. दूसरे पशुओं को भी कितना और कब तक मार सकते हैं ?
     नारी को मारेंगे तो क्या होगा ? यदि पत्नी को मारेंगे तो आपका पारिवारिक जीवन नर्क हो जायगा. दूसरे की नारी को मारेंगे तो वह आपकी जान ले लेगा. अतः ताड़ना का अर्थ उनको पीटना, मारना तो कहीं से भी सही नहीं लगता है.
चतुर्थ दृष्टिकोण : अधिकारी : अब शब्दकोश से परे हटकर ‘अधिकारी’ शब्द की विवेचना करते हैं. प्रजातांत्रिक एवं लोकतान्त्रिक व्यवस्थाओं में सामान्य नागरिकों को भी अनेक अधिकार प्राप्त हैं. दूसरे शब्दों में हम कहते हैं कि सभी नागरिक शिक्षा, न्याय, व्यवसाय, अभिव्यक्ति, आवागमन आदि की  स्वतन्त्रता और समानता के अधिकारी हैं. यहाँ भी अधिकारी का अभिप्राय उसमें निहित उन अधिकारों से है जो व्यक्ति के व्यक्तित्व और विकास के लिए आवश्यक हैं, उसके हित में हैं, उसके लिए लाभकारी हैं. वर्तमान में लोग इन अधिकारों का पूरा सदुपयोग कर रहे हैं, जिन देशों में या जिन लोगों को ये अधिकार प्राप्त नहीं हैं, वे इन्हें प्राप्त करने के लिए संघर्ष रत हैं. क्या कुटने-पिटने का अधिकार भी इसी प्रकार का कोई अधिकार हो सकता है ? यदि हम इसका यही अर्थ निकालें तो इसका अभिप्राय हुआ कि ढोल. गंवार, शूद्र, पशु और नारी स्वयं ही कह रहे हैं कि हम पिटने के अधिकारी हैं, हमें मारो-कूटो ताकि हम अपने कुटने-पिटने के अधिकार का सदुपयोग कर सकें. क्या कोई ऐसे अधिकार रखने की इच्छा की कल्पना भी कर सकता है ?       
पांचवां दृष्टिकोण : ताड़ना का सामान्य अर्थ है समझना और गहराई से समझना, मनोवैज्ञानिक ढंग से समझना.
    ढोलक को समझने वाला ही उसे अच्छी प्रकार बजा सकता है, उसके साथ भजन-गीत गा सकता है जो कर्णप्रिय हों, आनंद देने वाले हों. गंवार अर्थात असभ्य या अज्ञानी व्यक्ति की अज्ञानता को समझकर, उसके ज्ञान के स्तर को समझ कर, उससे बात और व्यवहार करना चाहिए. यदि व्यवहार में उसमें कोई कमी दिखती है तो उसे ज्ञान देना चाहिए, समझाना चाहिए. शूद्र अर्थात सेवा प्रदाता या सेवक के स्तर को समझ कर उसी के अनुरूप उसे काम सौंपना चाहिए. आवश्यकता होने पर उसे अच्छा शिक्षण–प्रशिक्षण भी देना चाहिए ताकि वह स्वामी की आवश्यकतानुसार काम कर सके. वकील को सेवा में रख कर उससे कोई फैक्ट्री में उत्पादन करवाना चाहेगा तो कैसे करवा पायेगा ? इसलिए पहले सेवा देने वाले सेवक के गुण को समझो(ताड़ो), उसकी क्षमता को समझो और उसी के अनुसार उनसे व्यवहार करो, उनकी सेवाओं का लाभ उठाओ.
छठा दृष्टिकोण : चौपाई का सन्दर्भ : रामचरित मानस के सुंदरकांड के ५८ वें दोहे के बाद यह छठी चौपाई समुद्र द्वारा श्री राम से कही गई है. जब लंका पर चढ़ाई करने के लिए श्री राम समुद्र तट पर पहुंचे तो उन्होंने समुद्र से उस पार जाने के लिए मार्ग माँगा. तीन दिन तक उससे अनुनय-विनय करते रहे कि वह जाने के लिए मार्ग दे दे. परन्तु उन्हें मार्ग नहीं मिला. तब क्रोधित होकर उन्होंने धनुष पर बाण चढ़ाकर कहा कि वे समुद्र को तीर से सुखा देंगे ताकि उनकी सेना समुद्र के उस पार, लंका तट पर उतर जाय. उनके क्रोध से भयभीत हुआ समुद्र ब्राह्मण रूप धरकर उनके सम्मुख उपस्थित हुआ और हाथ जोड़ कर विनम्रता पूर्वक कहने लगा,
 दोहा (५८) :(काकभुशुण्ड जी कहते हैं – हे गरुड़ जी सुनिए ), चाहे कोई करोड़ों उपाय करके सींचे, पर केला तो काटने पर ही फलता है. नीच विनय से नहीं मानता, वह डांटने पर ही झुकता है (अर्थात सही रास्ते पर आता है).   
 चौपाइयां : हे नाथ ! मेरे सब अवगुण (दोष) क्षमा कीजिए. हे नाथ ! आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी – स्वभाव से ही इनके कार्य जड़(निर्जीव) प्रकृति के हैं.१-२.
  आपकी प्रेरणा से माया ने इन्हें सृष्टि(चर-अचर जगत) के लिए उत्पन्न किया है, सब ग्रन्थों में यही कहा गया है. जिसके लिए स्वामी की जैसी आज्ञा (निर्धारित कार्य) है, वह उसी प्रकार के कार्य में सुख का अनुभव करता है अर्थात वैसा ही कार्य करता रहता है.३-४.
  प्रभु ने अच्छा किया जो मुझे सीख दी है. परन्तु यह (हमारे काम की) मर्यादा भी तो आपकी ही दी हुई है. ढोल, गंवार, शूद्र, पशु और नारी – ये सब ताड़ना ( समझने-समझाने-ज्ञान प्राप्त करने) के अधिकारी हैं.५-६.
(यदि आप मेरे ऊपर बाण चलाते हैं तो) प्रभु के प्रताप से मैं सूख जाऊंगा. सेना उस पार उतर जायेगी, इसमें मेरी बड़ाई नहीं है ( परन्तु इससे अनेक जीवों को संरक्षण देने की मेरी मर्यादा जो आपके द्वारा निर्धारित की गई है, टूट जायेगी). प्रभु की आज्ञा का उल्लंघन नहीं हो सकता, ऐसा वेद गाते हैं. अब आपको जो अच्छा लगे मैं तुरंत उसे करूं.७-८.
दोहा (५९) : समुद्र के अति विनीत वचन सुनकर कृपालु श्री राम ने मुस्काते हुए उससे कहा, हे तात ! जिस प्रकार वानरों की सेना उस पार उतर जाए, वह उपाय बताओ ( मुझे तो मात्र इतना ही चाहिए).   
   इस वार्तालाप से स्पष्ट है कि,
१.     कथा सुनाने वाले कागभुशुंड जी भी नीच के विनय न मानने पर डांटने के लिए कहते हैं, मारने-कूटने के लिए नहीं, दंडित करने के लिए नहीं. आज अपराधियों की सजा के सन्दर्भ में जिन मानवाधिकारों और सभ्य सुधारों की बात की जाती है, वह इस दोहे में निहित है. यह भारतीय संस्कृति का आदिकाल से अंग रही है क्योंकि तुलसीदास ने भी प्रचलित नीतिशास्त्र के अनुसार ही यह कहा है. 
२.     उक्त चर्चित पंक्तियाँ राम या तुलसीदास नहीं कह रहे हैं, स्वयं समुद्र राम से कह रहा है. क्या वह स्वयं राम से कहेगा कि मुझे दंडित करो, मुझे मारो ?
३.     चौपाई (७-८) में वह राम से कहता है कि आपकी आज्ञा का उल्लंघन नहीं हो सकता. यदि आप तीर चलाकर मुझे सुखाएंगे तो मैं सूख जाऊंगा.( आप चाहें तो ऐसा कर सकते हैं परन्तु मर्यादा टूटने से सृष्टिक्रम बाधित होगा). आप तो यह बतलाइए कि आप क्या चाहते हैं.
४.     उसकी बात पर राम क्रोधित न होकर मुस्कुराते हैं और अपनी समस्या बताते हैं, उस पार जाने का उपाय पूछते हैं.
   आगे की कथा में समुद्र राम को उस पार जाने का उपाय बताता है जिसके आधार पर वे सेना सहित लंका तट पर पहुँच जाते हैं. राम कथा के इस प्रसंग से यह स्पष्ट हो जाता है कि व्यक्ति को जिससे सेवाएं लेनी हैं, वह पहले उसे अच्छी प्रकार समझे(ताड़े), तभी वह उसकी सेवाओं का लाभ उठा सकता है.
  अतः ताड़ना का अर्थ दंडित करना, सज़ा देना कहीं से भी सिद्ध नहीं होता, न ही उस अर्थ से व्यवहारों की संगतता प्रगट होती है. इसका अर्थ है उन्हें समझना और वे इसके अधिकारी हैं कि उन्हें उचित ढंग से समझाया जाय.
सप्तम दृष्टिकोण : साहित्य में अर्थ और व्याख्या : साहित्य में अनेक उपमाओं और अलंकारों का प्रयोग होता है. उनके सन्दर्भ और कथा या विचारों के परिप्रेक्ष्य में ही उनके अर्थ किए जाते हैं, अक्षरशः नहीं किए जाते क्योंकि उनसे अनर्थ भी निकल सकता है. उदाहरण देखिए,
 स्त्रियों की सुन्दरता के लिए अनेक प्रकार की उपमाओं का प्रयोग होता है. कभी कहा जाता है कि ‘ वह तो नाजुक कली है’. क्या इसका अर्थ यह निकाला जाय कि वह एक वनस्पति है, आज कली है, कल फूल बनेगी और परसों उसका जीवन समाप्त हो जायगा ? कहीं कहा जाता है कि वह चन्द्रमुखी है. क्या इसका अर्थ यह लेंगे कि उसका चेहरा चाँद से लाई गई मिट्टी या पत्थरों से बनाया गया है ?
   किसी शूरवीर के लिए कहा जाता है कि वह तो शेर है. क्या इसका रथ हुआ कि वह वास्तव में शेर है और दूसरों को मारकर खा जाता है, उससे बच कर रहो ? सुर सम्राज्ञी लता मंगेश्कर के लिए कहा जाता है कि उनके गले में सरस्वती का वास है. क्या इसका अर्थ हुआ कि उनके गले में सरस्वती जी कमल बिछाकर उस पर वीणा लेकर गा रही हैं जैसा कि चित्रों में दिखाया जाता है ?
साहित्यिक दृष्टिकोण : यह सही है कि किसी पुस्तक में आया वाक्य उसके लेखक के नाम ही होता है. परन्तु जब किसी कथा या कथानक को कहानी, उपन्यास अथवा काव्य का रूप दिया जाता है तो उसमें एक या अनेक पात्रों के सृजन के साथ उनकी  परिस्थितियों एवं प्रकृति आदि का चित्रण भी किया जाता है. पात्र अच्छे और महान भी हो सकते हैं और चोर-डाकू, विदेशी शत्रु आदि भी हो सकते हैं. रचनाकार की सफलता इस बात पार निर्भर करती है कि वह पात्रों एवं परिस्थितयों का कितना भेदन कर पाता है, उनके मनोभावों और कार्यों को कितना जीवंत कर पाता है. फिल्म शोले में गब्बर को अत्यंत क्रूर दिखाया गया है. क्या इसके लिए उससे उसके कहानीकार, संवाद लेखक अथवा निर्माता-निर्देशक की आलोचना की गई ?, क्रूरता पूर्ण संवादों और दृश्यों के लिए उनकी निंदा की गई ? उन संवादों और दृश्यों से तो फिल्म अत्यंत लोकप्रिय एवं विशिष्ट हो गई और फिल्म के पात्रों समेत उनके रचनाकारों, फिल्मकारों की भी भूरि-भूरि प्रशंसा की गई. इसलिए रामचरित मानस के संभाषणों के लिए तुलसीदास जी की भी आलोचना कैसे की जाती है. रचनाकार की समीक्षा तो रचना के विभिन्न पक्षों के सन्दर्भ में होती है कि उसने पात्रों और परिस्थितियों को कितना प्रभावशाली बनाया है. अतः इस सन्दर्भ में जो लोग तुलसीदास जी की निंदा करते हैं, वे पूर्वाग्रह से ग्रस्त होते हैं अथवा अज्ञान के कारण साहित्य के मर्म को नहीं समझते.  

    जितनी बड़ी साहित्यिक कृति होती है, उसे समझने के लिए भी उतना अधिक ज्ञान एवं लगन आवश्यक होती है. उसे शब्दों के नहीं, भाव के द्वारा, कहानी और विचारों की तारतम्यता के आधार पर समझना होता है. रामचरितमानस तो उत्कृष्ट स्तर की मात्र एक साहित्यिक कृति ही नहीं है, वह तो दर्शन, धर्म, संस्कृति, नीति, समाज, मनोविज्ञान, व्यवहारिकता, ज्योतिष आदि अनेक विषयों के ज्ञान का अगाध महासागर है. उसका आनन्द लेना है तो साहित्यिक भाषा को समझने का ज्ञान प्राप्त कीजिए, उसमें शुद्ध हृदय से डुबकी लगाइए और फिर मनोविकारों को दूर करने वाले प्रत्येक दोहे और चौपाई के अलौकिक आनंद का रसास्वादन कीजिए.