भारत के महान क्रन्तिकारी
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कितने लोगो ने अपने प्राणों की आहुति दी है , इसका लेखा- जोखा करना संभव नहीं है . अनेकों शहीदों के नाम तो ऐसे हैं जैसे किसी भवन में छुपे हुए बालू के कण हों , जिनके बिना भवन निर्माण संभव ही नहीं होता है परन्तु वे किसी को दिखाई नहीं देते हैं . क्रांतिकारियों ने अलग-अलग प्रकार से अपना जीवन न्योछावर किया . प्रस्तुत लेख में उनमें से कुछ चर्चित लोगों के जीवन का अति संक्षिप्त विवरण दिया जा रहा है जिन्हें फांसी पर लटका दिया गया था . ये सभी युवा क्रन्तिकारी थे .
खुदीराम बोस :बोस का जन्म ३ दिसंबर १८८९ को बंगाल प्रान्त के मिदनापुर जिले में हबीबपुर में हुआ था . १९०२-०३ में अरविन्द घोष और सिस्टर निवेदिता के क्रन्तिकारी विचारों को सुनकर बालक बोस का मन राष्ट्र सेवा के लिए उद्वेलित हो उठा . उस समय अंग्रेज अधिकारी भारतीय क्रांतिकारियों को बहुत कठोर सजाएं देते थे . बोस ने उन्हें सबक सिखाने का निश्चय किया. १६ वर्ष की आयु में उन्होंने पुलिस स्टेशन के निकट बम रखकर पुलिस अधिकारीयों को निशाना बनाया . एक जज किंगफोर्ड ने कुछ क्रांतिकारियों को फंसी की सजा दी थी . खुदीराम बोस ने उसे बम से उड़ाने की योजना बनाई.
३० अप्रेल १९०८ को जज किंगफोर्ड बग्गी में बैठकर वहां यूरोपियन क्लब में गए थे . क्लब के बाहर बोस उनकी प्रतीक्षा करने लगा . उसके एक हाथ में बम था दूसरे में भरा हुआ पिस्टल कि यदि बम का निशाना चूक गया तो गोली मार देंगे . रात्री ८.३० बजे सामने से बग्गी आती दिखी . बोस ने पोजीशन ले ली . बग्गी जैसे ही निकट आई उसने बम फेंक दिया जो निशाने पर लगा . उस बग्गी में जज के मित्र की पत्नी तथा पुत्री थीं जो बम का शिकार हो गईं . उनकी चीख निकली . बोस को गलती का अहसास हुआ . शीघ्र ही पुलिस ने स्टेशन एवं बस स्टैंड पर अपना जाल बिछा दिया . बोस को पकड़ने के लिए रूपये १००० के पुरस्कार की घोषणा की गई .वह रात भर पैदल चलता रहा . ४० किमी चलने के बाद वह एक स्टेशन के बाहर एक टी स्टाल पर रुका और उससे पानी का गिलास माँगा . वहां पर दो सशस्त्र सिपाही भी खड़े थे . थका हुआ मलिन चेहरा एवं नंगे पैर देखकर संदेह के आधार पर उसे पकड़ लिया . उसी समय उसका एक पिस्टल भी गिर पड़ा . बोस ने उनसे छूटने का प्रयास तो किया परन्तु एक दुबला-पतला थका हुआ लड़का दो सिपाहियों से नहीं छूट पाया . पूर्व में भी उस पर हत्या के केस दर्ज़ थे . मुकदमा चला और दंड स्वरूप उसे ११ अगस्त १९०८ को फांसी दे दी गई .
बोस के बलिदान का बंगाल ही नहीं सरे देश पर व्यापक असर पड़ा . बंगाल में तो लोग उसके नाम के दीवाने हो गए . उसके फोटो लगे वस्त्र पहने जाने लगे . महिलाओं ने उसके नाम साडी के बार्डर पर लिखवा लिए . १९ वर्षीय खुदीराम बोस के साहस और बलिदान के लिए उसे महान क्रांतिकारी देश भक्त का सम्मान प्राप्त हुआ. स्वतंत्रता का अंकुर फूट कर कोपलें झाँकने लगीं .
मदन लाल धींगरा : मदनलाल ढींगरा का जन्म अमृतसर , पंजाब में १८ फरवरी १८८३ को हुआ था .उसके पिता प्रतिष्ठित डाक्टर थे . जून १९०६ में उन्हें इंजिनीयरिंग पद्धने के लिए लन्दन भेजा गया . संपन्न परिवार का होने के कारण उन्हें किसी प्रकार की कोई कमी न थी . पढ़ाई के साथ वे अपने धर्म एवं मातृभूमि के लिए भी बहुत श्रद्धा रखते थे .वहां पर प्रसिद्ध क्रन्तिकारी श्यामजी कृष्ण वर्मा ने ‘ इण्डिया हाउस ‘ की स्थापना की थी .उन दिनों वीर सावरकर भी उनके साथ क्रांतिकारियों को बम बनाने से लेकर विभिन्न योजनाएं बनाने तक सभी तरह के प्रशिक्षण देते थे . मदन लाल भी उनसे जुड़ गए . एक बार वहाँ विस्फोट हो गया परन्तु मदन लाल की सूझ बूझ से सब ठीक हो गया .
सावरकर जी ने १८५७ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की ५०वीं वर्षगांठ पर सभा की तथा सभी भारतीयों से कहा कि वे अपनी बांह पर ‘1857-commemoration’(१८५७-स् मरणोत्सव )की पट्टी लगाकर काम पर जाएँ.मदनलाल भी पट्टी लगाकर गए . एक अंग्रेज विद्यार्थी ने उस पट्टी को खींचना चाहा . ढींगरा को इतना गुस्सा आया कि उसने उसे एक जोरदार झापड़ मारा और पटक दिया तथा उसके ऊपर चाकू तानकर कहा कि हमारे देश की प्रतिष्ठा के प्रतीक को छोने का प्रयास किया तो मार डालूँगा .उस छात्र ने माफ़ी मांगी और भाग गया . एक दिन इंडिया हॉउस में युवक एकत्र थे . वे जापान –रूस युद्ध में जापान की जीत पर खुशिया मना रहे थे .वे जापान के तारीफ़ कर रहे थे और एशिया श्रेष्ठ है (क्योंकि किसी एशियाई देश ने युद्ध में यूरोपीय देश को पहली बार हराया था ) कह रहे थे . मदन लाल को इस पर गुस्सा आ गया . उसने कहा ,’तुम लोग भारतीयों को क्या समझते हो ?’ उस समय तक लोग मदन लाल को एक खूबसूरत और शांत स्वभाव के लड़के के रूप में देखते आ रहे थे जो उससे किये गए मजाक का जवाब भी नहीं दे पाता था . उसकी उत्तेजना देख कर वे उसका उपहास करने लगे .ढींगरा क्रोधित हो गया और उसने कैसी भी परीक्षा लेने की उन्हें चुनौती दी. उसकी बहादुरी देखने के लिए एक सुई उसकी हथेली में चुभाई गई . उसके हाथ से खून निकलता रहा परन्तु वह मुस्कुराता रहा .
धीरे- धीरे मदन लाल ब्रिटेन के विरुद्ध होते गए . वहां एक संगठन और भी था – ‘नेशनल इंडियन असोसिएशन ‘. उसका उद्देश्य था ब्रिटेन में रहने वाले भारतीयों को ब्रिटेन का भक्त बनाना . ढींगरा उससे भी जुड़ गए . एक दिन वहाँ पर वहां संगीत कार्यक्रम था . उसमें असोसिएशन का सदस्य लार्ड कर्जन विली भी आया जो भारत में एस्टेट सेक्रेटरी रहा था और भारतीयों पर अत्याचार करने के लिए कुख्यात था . ढींगरा ने उसके निकट जाकर ५ गोलिया चलाईं . एक पारसी कोवासी लालकामा उसे पकड़ने के लिए लपका . ढींगरा ने छठी गोली उसे मार दी . वह भी मर गया .
परिणाम तो निश्चित था .१९०९ में उन्हें वहीँ जेल में फांसी दे दी गई . उनके बलिदान से पंजाब में भगत सिंह एवं ऊधम सिंह जैसे क्रांतिकारियों को बहुत प्रेरणा मिली .
ऊधम सिंह : उनका जन्म २६ दिसंबर १८९९ को सुनाम पंजाब में हुआ था .बचपन का नाम शेर सिंह था . १९०१ में माता तह १९०७ में पिता के देहांत के बाद उन्हें और उनके भाई मुक्ता सिंह को केन्द्रीय खालसा अनाथालय पुतलीघर, अमृतसर में लाया गया . वहां उनका नाम रखा गया ऊधम सिंह .१९१७ में भाई का भी निधन हो गया .उन्होंने १९१८ में हाई स्कूल पास किया और १९१९ में अनाथालय छोड़ दिया .
१९१९ में अमृतसर में जलियांवाला बाग़ में सभा करती हुए जन समूह पर डायर ने
अंधाधुंध गोलियां चलाकर नृशंस जन संहार किया था . उसके विरुद्ध सारे भारत में तीव्र आक्रोश था . ऊधम सिंह तो अमृतसर का ही रहने वाला था जहां यह घटित हुआ . उसने प्राण किया कि वह इसका बदला लेकर रहेगा . दिल में इसी आग को लेकर वह क्रन्तिकारी बन गया .
वह १९२० में अफ्रीका गया ,१९२१ में नैरोबी में रहा . उसने अमेरिका जाने का प्रयास किया परन्तु सफल नहीं हुआ और १९२४ में भारत लौट आया. उसी वर्ष वह अमेरिका चला गया. वहां वह ग़दर पार्टी का सदस्य बन गया जो अमेरिका में क्रांतिकारियों को संगठित कर रही थी . वहां तीन वर्ष कार्य किया . १९२७ में वापस लौटे तो उनके साथ २५ साथी भी थे . वे अपने साथ पिस्तौलें और कारतूस भी लेकर आये . इस समय तक उनका संपर्क भगत सिंह से हो चुका था .
वे ३० अगस्त १९२७ को अमृतसर में पकडे गए . उनके पास बिना लाइसेंस के पिस्तोलें और कारतूस के साथ ही ग़दर पार्टी का साहित्य भी मिला जिसके लिए उन्हें ५ वर्ष के कठोर कारावास की सज़ा हुई . ४ वर्ष बाद छोटे तो गृह नगर सुनाम आये . वहां पुलिस का अधिक दबाव था .अतः पुनः अमृतसर लौट आये तथा मोहम्मद सिंह आजाद के नाम से पेंटर की दूकान खोल ली. क्रांतिकारी होने के कारण पुलिस पीछे लगी ही रहती थी और वे क्रन्तिकारी कम छोड़ नहीं सकते थे , अतः उन्होंने अपने कई नाम बदले –शेर सिंह , ऊधम सिंह, उदे सिंह, उदय सिंह ,फ्रैंक ब्राजील और अंतिम सर्वधर्म नाम राम मोहम्मद सिंह आजाद रखा .
तीन वर्ष बाद पुनः यात्राएं प्रारंभ कीं .१९३४ में पहले कश्मीर गए , वहां से जर्मनी और वहां से इंग्लैण्ड पहुंचे और वहीँ रहने लगे .परन्तु पुलिस के दबाव के कारन पुनः भारत आ गए. कुछ समय बाद वे इटली गए , वहां से फ़्रांस , स्विटज़रलैंड ,आस्ट्रिया होते हुए १९३४ में ही इंग्लॅण्ड पहुँच गए . वहां कर ले ली ताकि स्वतन्त्र रूप से आ-जा सकें और इन्डियन वर्कर्स असोसिएशन के सदस्य बन गए . वहां वे चुपचाप कम करने लगे .
१३ मार्च १९४० को लन्दन के कैक्सटन हाल में एक सभा थी जिसमें जलियांवाला के हत्यारे माइकेल ओ’ डायर को भाषण देने आना था . उन्होंने एक आधुनिक पिस्तौल ली तथा उसे एक मोटी किताब के अन्दर के पन्ने काट कर रख लिया . वे २१ वर्षों से डायर की तलाश कर रहे थे . सभा के अंत में जैसे उन्हें अवसर मिला डायर को शूट कर दिया . उन्हें पकड़ने के लिए भारत के लिए सचिव जेटलैंड दौड़े , उन्हें भी गोली मार दी , लुईस डेन और लार्ड लेमिंगटन भी उन्हें पकड़ने के लिय आगे बढ़े ,उन्हें भी गोली मर दी . शेष तीनों लोक बुरी तरह घायल होकर गिर पड़े . वे गिरफ्तार हुए . ३१ जुलाई १९४० को उन्हें पेंटन विले जेल में फंसी दे दी गई . जलियाँ वाला कांड आज तक नहीं भूलता , तब कैसे भूलता ! उनके साहस पूर्ण कार्य से समस्त भारत में उनकी प्रशंसा हुई . जुलाई १९७४ में उनके अस्थि अवशेष इंग्लैण्ड से भारत लाये गए और शहीद का सम्मान दिया गया .
चंद्रशेखर आजाद –बिस्मिल- भगत सिंह समूह
आज़ाद ,बिस्मिल ने पहले हिंदुस्तान रिपब्लिक असोसिएशन एच आर ए) नामक संघठन बनाया था . बाद में भगत सिंह के कहने पर उसका नाम हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक असोसिएशन ( एच .एस.आर.ए.) कर दिया गया .उन दिनों कानपुर, बनारस ,अमृतसर, लाहौर जैसे शहर क्रांतिकारियों के गढ़ बने हुए थे . देश के विभिन्न भागों से यहाँ पढ़ने के लिए आने वाले युवा इस संघसे जुड़ते जा रहे थे और देश की स्वतंत्रता के लिए क्रन्तिकारी कार्यों में सहयोग कर रहे थे . इनमें से अधिकांश क्रांतिकारियों पर आर्य समाज का बहुत प्रभाव था . क्योंकि तिलक से बहुत पहले सर्वप्रथम स्वामी दयानंद सरस्वाती ने आर्य धर्म की पुनरस्थापना करते हुए कहा था कि स्वतंत्रता मनुष्य का मौलिक अधिकार है . अमृतसर में १३ अप्रेल १९१९ को हुए जलियांवाला बाग़ के नर संहार से सभी क्रन्तिकारी बहुत उत्तेजित थे और अंग्रेजों के विरुद्ध प्रबल संघर्ष के पक्ष में थे . इनमें से अधिकांश युवक प्रारंभ में गाँधी जी के असहयोग आन्दोलन में सक्रिय रहे परन्तु उनके द्वारा आन्दोलन बीच में ही स्थगित करने से इन्हें बड़ी निराशा हुई और वे क्रन्तिकारी हो गए , उन्होंने अपना पृथक संघठन बना लिया . क्रांतिकारियों को कोई आर्थिक सहयोग नहीं देता था . अंग्रेजी सरकार के डर से लोग उनसे मिलने में भी डरते थे . क्रांतिकारियों के मुखबिर भी बहुत होते थे . अतः वे सार्वजानिक रूप से तो काम कर नहीं सकते थे तथा बिना धन के जीवन यापन करना और क्रांति के लिए संसाधन जुटाना संभव नहीं था . अतः धन के लिए चन्द्र शेखर आज़ाद, बिस्मिल , रौशन सिंह आदि ने २५ दिसंबर १९२४ को साहूकार और शुगर किंग के नाम से मशहूर बलदेव प्रसाद के घर ४००० रुपये की लूट की . उन्हें मारने के लिए आगे आये उसके गन मैन को रौशन ने मार डाला तथा उसकी बन्दूक छीन ले गए . इसके पश्चात उन्होंने उत्तर प्रदेश में काकोरी स्टेशन के पास ९ अगस्त १९२५ को ट्रेन से सरकारी खजाना लूट लिया .आज़ाद को छोड़कर इसके सभी आरोपी राम प्रसाद ‘बिस्मिल‘ ,अशफाकुल्लाह खान,ठाकुर रौशन सिंह और राजेंद्र लाहिड़ी,बनवारी लाल आदि पकडे गए . बनवारी लाल सरकारी गवाह बन गया , उसे ५ वर्ष की कैद हुई . उन पर मुकदमें चले और अलग – अलग जेलों में फांसी दी गई . उत्तर प्रदेश में दिसंबर १९२७ की तारीख १७ को राजेंद्र लाहिड़ी को गोंडा में ,तथा १९ को ही तींनों क्रन्तिकारियों, राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ को गोरखपुर में, अशफाकुल्लाह खान को फैजाबाद में तथा ठाकुर रौशन सिंह को गोंडा जेल में फांसी दी गई . भारत में जब साइमन कमीशन आया तो लोगों ने देश भर में उसका विरोध किया . अमृतसर में प्रदर्शन कारियों पर २० अक्टूबर १९२८ को डिप्टी एस पी सांडर्स के नेतृत्व में पुलिस ने बहुत लाठियां बरसाईं जिसमें अत्यंत प्रतिष्ठित नेता लाला लाजपत राय गंभीर रूप से घायल हो गए और दिनांक १७ नवम्बर १९२८ को उनका देहांत हो गया . इससे क्रांतिकारियों का खून खुल उठा और उन्होंने सांडर्स से बदला लेने का प्राण किया . आजाद्द, भगत सिंह . राजगुरु आदि ने अवसर पाकर १७ दिसंबर १९२८ को सांडर्स पर हमला कर दिया . उसे राजगुरु ने शूट कर दिया .अंग्रेजों द्वारा किये जा रहे जुल्मों के विरुद्ध जन जागृति उत्पन्न करने के लिए ८ अप्रेल १९२९ को भगत सिंह तथा बटुकेश्वर दत्त ने सेट्रल लेगिस्लेटिव असेम्बली दिल्ली में दो बम तथा इन्कलाब ज़िन्दाबाद के नारे लगाते हुए क्रन्तिकारी पर्चे भी फेंके . इससे वहाँ अफरा-तफरी मच गई . बम किसी को मरने के लिए नहीं फेंके गए थे , न ही उनसे कोई घायल हुआ . दोनों क्रांतिकार पकड़ लिए गए . बाद में सुखदेव तथा राजगुरु भी पकड़ लिए गए . जेल में भारतीय राजनीतिक बंदियों से भेदभाव पूर्ण व्यव्हार करने के कारण भगत सिंह एवं सुखदेव ने ११६ दिनतक भूख हड़ताल की . लाहौर की जेल में २३ मार्च १९३१ को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दे दी गई . बटुकेश्वर दत्त को काले पानी की सजा हुई .
सरदार भगत सिंह : उनका जन्म पंजाब के लायलपुर जिले के जरांवाला ( वर्तमान पाक )में २८ सितम्बर १९०७ को हुआ था . उनके दादा दयानंद के अनुयायी थे तथा पिता एवं चाचा ग़दर पार्टी के सदस्य थे . उन्होंने डी ए वी स्कूल में शिक्षा प्राप्त की . १९२० में महात्मा गाँधी के आन्दोलन में सक्रिय रहे , १९२३ में लाहोर में कालेज में सक्रिय रहे . उन्होंने नौजवान भारत सभा की स्थापना १९२६ में की .वे कीर्ति किसान पार्टी के नेता बने तथा बाद में आज़ाद के संघठन हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन असोसिएशन के सदस्य बने . शादी से बचने के लिए १९२७ में कानपुर चले गए . उन्होंने पजाब में उर्दू एवं पंजाबी समाचार पत्रों का सम्पादन तथा दिल्ली में वीर अर्जुन समाचार पत्र में भी काम किया . उन्हें २३ जुलाई १९३१ को लाहोर जेल में शहीद किया गया .
सुखदेव थापर :लुधियाना में १५ मई १९०७ को जन्म हुआ . १८ अक्टूबर १९२८ को लाहोर षड्यंत्र केस में उनका नाम चर्चित हुआ २३ मार्च १९३१ को लाहोर में फंसी दी गई .
शिवराम हरि राजगुरु : पूना जिले में खेड़ में १९०६ में ब्राह्मण परिवार में जन्म हुआ . परिवार के साथ बचपन में ही बनारस आ गए थे . वहीं पर शिक्षा प्राप्त की . देश की स्वतंत्रता उनका एक मात्र ध्येय था .वहीँ पर आज़ाद, भगत सिंह जतिन दस के संपर्क में आकर क्रन्तिकारी हो गए .वे पार्टी के शूटर कहे जाते थे . सांडर्स की हत्या के आरोप में ३० सितम्बर १९२९ को पकडे गए . भगत सिंह के साथ २३ मार्च १९३१ को लाहोर में फांसी दी गई .
बटुकेश्वर दत्त : बंगाल के बर्दवान जिले में १८ नवम्बर १९१० को ब्राह्मण परिवार में जन्म हुआ . उनकी प्रारम्भिक शिक्षा कानपपुर में हुई .१९२४ में आज़ाद , भगत सिंह के संपर्क में आए . भगत सिंह के साथ लाहोर जेल में मुकदमा चला . उन्हें आजीवन काले पानी कि सजा हुई . वे कुख्यात अंडमान जेल में बंद रहे . उन्हें टी बी हो गई थी .१९३७ में उन्हें भारत लाया गया . वे १९३८ में जेल से छूटे . १९४२ में भारत छोड़ो आन्दोलन में उन्होंने सक्रिय भाग लिया जिसके लिए पुनः ४ वर्ष की जेल हुई .१९४७ में अंजलि से विवाह किया . स्वतंत्रता के बाद उन्हें किसी ने नहीं पूछा . १९६५ में उनका लम्बी बीमारी के बाद देहांत हो गया . उनका संस्कार हुसैन्वाला में किया गया जहां वर्षों पूर्व भगत सिंह , राजगुरु और सुखदेव का संस्कार किया गया था .
पंडित राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ : उत्तर प्रदेश में शाहजहाँपुर में जन्म हुआ .बचपन में आर्य समाज का प्रभाव पड़ा . वे हिंदी,संस्कृत, उर्दू, बंगाली और अंग्रेजी के ज्ञाता थे काकोरी केस में जेल हुई .जेल में उन्होंने लम्बी जेल डायरी लिखी जो बाद में प्रकाशित हुई . वे प्रसिद्ध शायर एवं कवि
थे .उनकी इस शायरी ने जवानों को आज़ादी के लिए मर-मिटने की प्रेरणा दी :
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है जोश कितना बाजुए कातिल में है .
वक्त आने दे तुझे बता देंगे ऐ आसमां
हम अभी से क्या बताएं क्या हमारे दिल में है .
१९ दिसंबर १९२७ को गोरखपुर जेल में फांसी हुई .
अश्फाकुल्लाह खान :शाहजहांपुर में २२ अक्टूबर १९०० को जन्म हुआ . अशफाकुल्लाह का बड़ा भाई बिस्मिल का सहपाठी था जो उसे बिस्मिल के विचारों और शायरी के बारे में बताता रहता था . अशफाकुल्लाह की बिस्मिल में रूचि बढती गई . वे बिस्मिल से शायरी प्रेम के कारण मिले और आजादी के दीवाने हो गए . काकोरी केस के बाद वे बचकर दिल्ली चले गए और कोई काम करने लगे . वे ग़दर पार्टी से जुड़ने के लिए अमेरिका जाने का प्रयास कर रहे थे कि एक गद्दार ने मुखबरी करके उन्हें पकड़वा दिया .उन्हें फ़ैजाबाद में १९ दिसंबर १९२७ को फांसी दी गई . वे कहते थे कि उनके जाने के बाद उनके मित्र और बंधु रोएंगे पर वे उनके ठन्डे खून और राष्ट्र के प्रति उदासीन भाव के कारण रोते थे . वे बच्चों और बुजुर्गो को न रोने के लिए भी कहते कि वे अमर हैं , अमर हैं . वे हसरत एवं नाम से शायरी करते थे :
किए थे काम हमने भी जो कुछ हमसे बन पाए
ये बातें तब की हैं , आज़ाद थे और था शबाब अपना
मगर अब जो भी उम्मीदें हैं , बस वो तुमसे हैं ,
जवान तुम हो लबे-बाम , आ चुका है आफ़ताब अपना .
* * * * * * *
जाऊंगा खाली हाथ मगर ये दर्द भी साथ जायेगा
जाने किस दिन हिंदुस्तान , आज़ाद वतन कहलायेगा ?
बिस्मिल हिन्दू हैं , कहते हैं , “फिर आऊँगा, फिर आऊँगा
फिर आ के ऐ भारत माँ , तुझको आज़ाद कराऊंगा
जी करता है, मैं भी कह दूं, पर मजहब से बंध जाता हूँ
मैं मुसलमान हूँ,पुनर्जन्म की बात नहींकर पता हूँ .
हाँ, खुदा अगर मिल गया कहीं, अपनी झोली फैला दूंगा,
और जन्नत के बदले , उससे याक पुनर्जन्म ही मांगूंगा .
राजेंद्र लाहिड़ी : बंगाल के पबना जिले में लाहिड़ी मोहनपुर (वर्तमान बंगला देश )में ब्राह्मण परिवार में उनका जन्म २३ जून १९०१ को हुआ था . उनके पिता क्षितिज मोहन की बंगाल एवं बनारस में काफी भूमि एवं संपत्ति थी . वे बनारस में पढ़े तथा एम ए के विद्यार्थी थे जब क्रन्तिकारी कार्यों से आज़ाद – भगत सिंह के साथ जुड़ गए . दक्षिणेश्वर बम केस में शामिल थे .काकोरी केस के बाद पकडे गए . उन्हें दो दिन पूर्व १७ दिसंबर को गोंडा (उ प्र) में फांसी दी गई .
ठाकुर रौशन सिंह : शाहजहांपुर के नवादा में २२ जनवरी १८९२ को उनका जन्म हुआ . वे पहलवान तथा अच्छे निशाने बाज थे . आर्य समाज में उनकी आज़ाद से भेंट हुई . वे उनके साथ जुड़ गए . वे क्रांतिकारियों को शूटिंग सिखाते थे . १९२१-२२ में बरेली शूटिंग केस में उनका नाम था . वे काकोरी केस में सम्मिलित नहीं थे . बिस्मिल के साथ उन्हें भी फांसी हुई . वे विवाहित थे . उनके शहीद होने के बाद उनके परिवार को बहुत कष्ट उठाने पड़े . आर्थिक संकट तो था ही , जब उनकी लड़की का कहीं रिश्ता तय होने लगता पुलिस वाले लड़के वालों को धमका देते थे . आज़ादी के पहले क्या आज़ादी के बाद भी उनके परिवार को किसी ने नहीं पूछा . उनका क़स्बा आज भी उतना ही पिछड़ा है जितना उस समय था .
चन्द्र शेखर आज़ाद : पिता पंडित सीता राम तिवारी तथा माता जगरानी देवी के पुत्र चन्द्र शेखर आज़ाद का जन्म उ.प्र. के उन्नाव जिले बदरका गाँव में २३ जुलाई १९०६ को हुआ था . उनके पिता मध्य प्रान्त में अलीराजपुर एस्टेट की सेवा में थे . अतः उनका बचपन अलीराजपुर में बीता . माँ ने संस्कृत पढने के लिए बनारस भेजा जहां वे क्रन्तिकारी बन गए . उन्हें जब पहली बार जेल हुई और मुकदमा चलाया गया तो उन्होंने जज के प्रत्येक प्रश्न जैसे नाम क्या है ,पिता का नाम क्या है , आवास कहाँ है आदि का एक ही उत्तर दिया –‘आज़ाद ‘. उन्होंने १९२६ में वायसराय की ट्रेन को उड़ाने का प्रयास किया , वे काकोरी कांड के मुखिया थे ही , १९२८ में सांडर्स की शूटिंग में भी शामिल थे . शूटिंग के बाद पीछा करने वाले चानन सिंह को उन्होंने गोली मार दी थी . पुलिस उन्हें कभी नहीं पकड़ सकी . वे अपना पैसा इलाहबाद में जिस मित्र के पास सुरक्षित रखते थे , उससे धन प्राप्त करने के लिए वे अल्फ्रेड पार्क में प्रतीक्षा कर रहे थे . उसने गद्दारी करते हुए पुलिस को सूचना दे दी . पुलिस की फ़ौज ने उन्हें घेर लिया . वे बरगद के वृक्ष की आड़ में छुप कर उनका सामना करने लगे . उन्होंने तीन पुलिस वाले मार गिराए . जब अंतिम गोली बची तो स्वयं अपनी कनपटी पर मार कर आत्मोत्सर्ग कर दिया और अंत तक अपने आज़द नाम को सार्थक किया (२७ फरवरी १९३१).
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