मोदी का संसार
मोदी के संसार के दो भाग हैं – बाहरी संसार और आतंरिक संसार . पहले बात बाहरी संसार की करते हैं . मोदी के बाहरी संसार में तीन प्रकार के लोग हैं – पहले ठग ,दूसरे वे लोग जिन्हें कुछ कहना है , उसकी सार्थकता हो या न हो और तीसरे दर्शक जिनके मन में कोई नहीं जानता कि क्या है . ठगों की बात समझने के लिए एक लोक कथा कहता हूँ . एक सीधा-सादा ब्राह्मण एक दिन बड़े उत्साह से एक बकरी खरीद कर ले जा रहा था . उसे रास्ते में चार ठग मिले . उन्होंने उसकी बकरी ठगने की योजना बनाई . चारों ठग रास्ते में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर अलग -अलग स्थानों पर खड़े हो गए . जब ब्राह्मण उनके पास आता तो वे उससे ऐसे घुलमिल जाते जैसे वे उसके बहुत हितैषी हों . फिर बातों में उलझाकर उसे समझाते कि यह कुत्ता किसके लिए ले जा रहे हो . एक के बाद एक उन चारों ठगों ने बार- बार एक ही बात कही वह कुत्ता कहाँ ले जा रहे हो . उन्होंने ब्राह्मण को पूरा विश्वास दिला दिया कि वह बकरी नहीं है, कुत्ता है और चौथे ठग के बाद तो वह इतना क्षुब्ध हो गया कि उसने कुत्ता समझ कर बकरी रास्ते में ही छोड़ दी जिसे लेकर ठग भाग गए . विभिन्न चैनेलों पर बैठे खूबसूरत एंकर जिस प्रकार मोदी के विरुद्ध माहौल बना रहे हैं , जिस प्रकार उनकी सही बातों को भी मीडिया घुमा-फिराकर कह रहा है , वे उन ठगों की ही भांति मोदी को घेरने में लगे हैं . देखें मोदी उनसे कब तक बच पाते हैं .
दूसरी लोक कथा में एक पिता एवं उसका पुत्र एक गधे के साथ यात्रा पर जा रहे थे . वे गधे के साथ पैदल चल रहे थे . उन्हें देखकर लोग कहने लगे कि ये कैसे मूर्ख हैं ! साथ में गधा है फिर भी पैदल चले जा रहे हैं . पिता ने पुत्र को गधे पर बैठा दिया और स्वयं पैदल चलने लगा तो लोग कहने लगे कि लड़के को देखो, वृद्ध पिता तो पैदल चल रहा है और स्वयं गधे पर बैठ कर जा रहा है . बेटे को बहुत बुरा लगता है . वह स्वयं गधे से उतर जाता है और पिता को बैठा देता है . फिर लोग कहते हैं कि देखो, पिता खुद तो आराम से गधे की सवारी कर रहा है और लड़के को पैदल चला रहा है . लोगों के तानों से बचने के लिए पिता-पुत्र दोनों गधे पर बैठ गए . तब देखने वालों ने कहा कि देखो, ये कितने निर्दयी हैं, दोनों एक साथ गधे पर बैठ गए हैं, उस बेचारे को कितना कष्ट हो रहा होगा ! लोगों को संतुष्ट करने के लिए अंत में उन्होंने गधे के पैर बांधे और उसमें एक मजबूत डंडा लगाकर उसे उठा कर चलने लगे तो लोग उनकी खिल्ली उड़ाने लगे कि देखो ,ये कितने मूर्ख हैं, गधे पर बैठने के बदले उसे लाद कर ले जा रहे हैं . अर्थात दुनिया वाले अकारण ही दूसरों की आलोचना करते हैं जिनसे उनका कोई वास्ता तक नहीं होता है . अतः अनेक लोग मोदी के प्रत्येक काम की आलोचना करेंगे , वह काम भले ही कितना भी अच्छा हो . जैसे ‘पिल्ला काण्ड’ हो गया . मोदी ने इतना कह दिया था कि यदि गाड़ी के नीच पिल्ला आकर दब जाए तो उसका भी बहुत दुःख होता है , बस विरोधी नेता और मिडिया पिल्ला मय हो गए .
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की भूमिका
जहां तक मोदी के आतंरिक संसार का प्रश्न है तो उसका प्रथम आधार संघ अर्थात राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ है . संघ एक हिन्दू संघठन है और भारत का इतिहास बताता है कि हिन्दू राजनीति में फिस्सडी रहे हैं . अतः संघ भी उनसे भिन्न नहीं है . इतिहास में यदि हिन्दू राजनीतिज्ञों के नाम लें तो मुख्य रूप से चाणक्य, शिवाजी, छत्रसाल और सरदार वल्लभ भाई पटेल के नाम सामने आते हैं . १९७७ में आपातकाल के बाद जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हो गया . जनता पार्टी के शासन काल में संघ समर्थकों ने चौधरी चरण सिंह और बाबू जगजीवन राम का भरपूर समर्थन किया . जब चरण सिंह प्रधान मंत्री देसाई के विरुद्ध षड्यंत्र करने लगे तो देसाई ने उन्हें मंत्री मंडल से बाहर निकाल दिया . तब अटल बिहारी बाजपेई और आडवाणी ने देसाई पर दबाव बनाकर उनको पुनः मंत्रिमंडल में स्थान दिलवाया . वे सोचते थे कि इससे उनकी किसानों के मध्य प्रतिष्ठा और प्रभाव बढ़ जायगा . परन्तु चरण सिंह ने शीघ्र ही इंदिरा गाँधी के साथ मिल कर देसाई सरकार को गिरा दिया .. जनता पार्टी में जगजीवन राम का समर्थन करके संघ समझता था कि दलितों में उसका प्रभाव बढ़ जाएगा .परन्तु उन्होंने भी संघियों को साम्प्रदायिक कह कर जनता में अपने सम्मान की रक्षा की . और तो और १९७७ में जनता पार्टी में संघ के जो लोग जीत कर सांसद या विधायक बने थे , जनता पार्टी के शासन काल में वे भी संघ के लोगों को दूर रहने के लिए कहते थे ताकि उन्हें समाजवादी और अन्य लोग सांप्रदायिक न कहें . जनता पार्टी के विघटन के बाद सबने संघियों को साम्प्रदायिक कहकर पृथक कर दिया तो उन्होंने भारतीय जनता पार्टी बनाई . उस समय मीडिया में साम्यवादी हावी थे . उन पर सांप्रदायिक होने का ऐसा माहौल बनाया गया कि १९८० के चुनावों में भाजपा पूरी तरह साफ़ हो गई . १९८९ में इन्होंने वी पी सिंह , विद्याचरण शुक्ल का साथ दिया . भाजपा के सहयोग से वी पी सिंह प्रधान मंत्री बन गए और भाजपा सांप्रदायिक पार्टी घोषित की गई . भाजपा ने दो बार मायावती को मुख्य मंत्री बनवाया, उसने भी भाजपा को सांप्रदायिक करार दिया . और बसपा ने अभी – अभी अपने एक सांसद को इसलिए पार्टी से निकाल दिया कि उसने मोदी की उस बात का समर्थन कर दिया था जिसमें उन्होंने स्वयं को राष्ट्रवादी हिन्दू कहा था . ब्राह्मणों का पूरा समर्थन प्राप्त करने की आकांक्षा रखने वाली सेकुलर मायावती जानती हैं कि स्वयं को ‘हिन्दू’ कहना ही साम्प्रदायिक होने का स्पष्ट प्रमाण है . २००४ में बाजपेई सरकार में सम्मिलित एन डी ए के अनेक घटक सदस्य भाजपा पर प्रत्यक्ष – अप्रत्यक्ष रूप से साम्प्रदायिकता का आरोप लगाते हुए उससे अलग हो गए और अब मोदी के नाम पर उसका प्रमुख सहयोगी जनता दल (यू ) भी उससे साम्प्रदायिकता के नाम पर ही अलग हो गया . अतः संघ की सक्रियता मोदी को प्रधान मंत्री बना पाएगी , पूर्णतयः संदिग्ध है .
जहां तक मोदी के भाजपा सहयोगियों की बात है तो अधिकाँश भाजपा नेता उनके अक्खड़ स्वभाव से सशंकित हैं कि वे कब , किसे दूर कर दें, पता नहीं . मोदी प्रधान मंत्री तभी बन पायेंगे जब एनडीए का संसद में बहुमत हो और एनडीए के सभी सदस्य उन्हें समर्थन दें . भाजपा के हाथ से हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, झारखंड और कर्नाटक की सत्ता खिसक चुकी है अर्थात उन प्रदेशों में भाजपा की पूर्ववर्ती सरकारें लोकप्रिय नहीं थीं . मध्य प्रदेश में २००३ में भाजपा इसलिए नहीं जीती कि उसे लोकप्रियता प्राप्त थी अपितु इसलिए जीती कि लोग कांग्रेस के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से त्रस्त थे . एक तो वे ऐसे राजा थे जो आदिवासियों से बेहद प्यार करते थे . उन्होंने अपने अधिकाँश अधिकारी प्रदेश भर में सड़कें खोदने और बिजली के तार नोचने में लगा दिए थे ताकि सारे प्रदेश को आदिवासी प्रदेश बनाया जा सके . लोग इससे नाराज हो गए . दूसरी समस्या यह थी कि कर्मचारियों को उनके फंड से भी समय पर पैसा नहीं दिया जाता था कि सरकार के पास पैसा नहीं है . कर्मचारी संघ जब भी उनके पास कोई मांग लेकर जाते थे, उनका व्यवहार अहंकार युक्त तथा उपेक्षा पूर्ण रहता था . जिससे कर्मचारी वर्ग चिढ़ गया और २००३ में कांग्रेस को हरवा दिया . कांग्रेस के नेता भी उनसे खुश नहीं थे क्योंकि उनका सभी मंत्रियों के कार्यों में अनावश्यक हस्तक्षेप था और विधायकों की चलती नहीं थी . कमजोर दिग्गी राजा उमा भाभरती के प्रबल हमलों को नहीं सह सके और भाजपा जीत गई थी . २००८ में भी दिग्गी राजा सामने थे . अतः लोग पुनः सतर्क हो गए . इसलिए महामंत्री के रूप में वे देश में जहां – जहां गए कांग्रेस हार गई . वर्तमान में कांग्रेस की अंदरूनी गुटबाजी का प्रभाव मध्य प्रदेश में रहेगा और सफलता की सम्भावना कम है .
छत्तीस गढ़ में मुख्यमंत्री अजीत जोगी के भ्रष्टाचार के अनेक किस्से लोगों की जुबान पर थे . श्यामा चरण शुक्ल ने मध्य प्रदेश का मुख्य मंत्री रहते और विद्याचरण शुक्ल ने केन्द्रीय मंत्री रहते छत्तीस गढ़ के लिए कुछ नहीं किया था . अतः वहां कांग्रेस की हार निश्चित थी . वर्तमान परिस्थितियों में इन दोनों राज्यों में भाजपा आगे रहेगी , उत्तराखंड में सरकार के निकम्मेपन का आक्रोश भी कांग्रेस को भुगतना होगा . गुजरात – गोवा भी भाजपा के पास हैं . परन्तु भाजपा अपने बलबूते पर केंद्र में सरकार बना पायेगा , वर्तमान में ऐसी कोई सम्भावना नहीं दिखती है .
भारत में भाजपा और कांग्रेस केवल दो ही दल नहीं हैं . तमिलनाडु, बंगाल ,आन्ध्र प्रदेश , उड़ीसा , केरल जैसे अनेक राज्यों में भाजपा हाशिये पर है . वहां किसी चमत्कार की सम्भावना भी नहीं है . बाजपेई जी भी प्रधान मंत्री तभी बन पाए थे जब एन डी ए के संयोजक जार्ज फर्नान्डीज़ सभी घटकों को साथ मिलाए रखते थे . अभी यह कार्य शरद यादव कर सकते थे परन्तु मोदी के नाम पर वे स्वयं ही अलग हो गए . भाजपा में अन्य दल के लोगों को एक साथ लाने की कला केवल शिवराज सिंह चौहान में ही है . अभी तो वे अपने प्रदेश को बचाने में लगे हैं कि हार किसी भी कारण से हो गई तो वे बहुत पीछे हो जायेंगे . वे तभी यह प्रयास करेंगे और प्रयास सफल भी हो सकते हैं जब वे स्वयं या राजनाथ प्रधान मंत्री पद के दावेदार हों . वर्तमान में भारत में जनतंत्र नहीं सामंत वाद हावी है जिसमें वही प्रधान मंत्री बन पायेगा जो अधिकाँश सामंतों को अपने पक्ष में कर लेगा और सामंत उसके पक्ष में तभी होंगे जब वे आश्वस्त हो जायेंगे कि सरकार में उन्हें अधिकतम हिस्सा मिल रहा है और वे अपने विभाग स्वेच्छा से चला पायेंगे . नमो से ऐसी आशा कोई सामंत रख पायेगा , अभी तो इसकी संभावना नहीं है . राजनाथ को शिवराज की अपेक्षा भाजपा के वरिष्ठ नेताओं का समर्थन जल्दी मिल जायेगा . अतः पहले यदि उन्हें आगे करके शिवराज सिंह चौहान प्रयास करेंगे तो भाजपा और एन डी ए को अधिक लाभ होगा . अभी तो एन डी ए में कोई सक्षम संयोजक भी नहीं है .
रजत पथ में यह पूर्व में लिखा जा चुका है कि मीडिया पूरा प्रयास करेगा कि भावी प्रधान मंत्री के लिए भाजपा नरेंद्र मोदी का नाम घोषित कर दे जिससे जनता दल (यू) उससे अलग हो जाय . इसके बाद सेकुलर और साम्प्रदायिकता का ताना-बाना बुनकर कांग्रेस के नेततृत्व में पुनः ऐसी सरकार बना दी जाए जो भारत में विदेशियों को सर्वाधिकार प्रदान कर दे . लेख में यह भी लिखा था कि पार्टी एवं जन हित में मोदी स्वयं प्रधानमन्त्री पद की दावेदारी छोड़कर सहयोग देंगे परन्तु वर्तमान में ऐसा नहीं लगता है . मोदी स्वयं को अघोषित प्रधान मंत्री पद का उम्मीदवार ही नहीं, प्रधान मंत्री ही मान कर चल रहे हैं . आत्म विशवास अच्छा होता है परन्तु यह वास्तविकता के धरातल पर होना चाहिए . यदि यह क्लाइव और सिराजुद्दौला जैसी आमने – सामने कि सैनिक लड़ाई होती तो एक बार माना जा सकता था कि मोदी बड़े योद्धा हैं और युद्ध जीतकर सिंहासन पर बैठ जाएंगे परन्तु यहाँ तो करोड़ों मतदाताओं के मत का सवाल है जो देश में दूर- दूर तक फैले हुए हैं , जहां स्थानीय नेताओं का प्रभाव है . ऐसी स्थिति में मोदी अपने नाम से ढेर सारे वोट प्राप्त करने का अहम् पाले हुए हैं यह आश्चर्य जनक है और उससे आश्चर्य जनक है संघ की वही परम्परागत हिन्दू राजनीति जो इतिहास में असफल सिद्ध हुई है . केवल शिवाजी का उत्सव मनाने से कोई लाभ मिलने वाला नहीं है . कल्पना लोक से बाहर निकल कर राणा प्रताप की नहीं, शिवाजी और छत्रसाल की रणनीति और राजनीति दोनों को समझना होगा .
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