शुक्रवार, 22 नवंबर 2013

चार वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम ( दिल्ली विश्वविद्यालय )


     चार वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम ( दिल्ली विश्वविद्यालय )
  दिल्ली विश्वविद्यालय  में अभी तक तीन वर्षीय स्नातक और स्नातक आनर्स पाठ्यक्रम चलते आ रहे थे परन्तु  सत्र २०१२ से दोनों के स्थान पर चार वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम प्रारंभ किये गए हैं .अब वहाँ पर तीन वर्ष में पूर्ण होने वाले स्नातक कोर्स चार वर्ष में पूर्ण होंगे . इसमें विद्यार्थी अपना अध्ययन मध्य में भी छोड़ सकते हैं . दो वर्ष पूर्ण करने के बाद पढ़ाई छोड़ने पर छात्र को स्नातक डिप्लोमा, तीन वर्ष बाद स्नातक डिग्री और चार वर्ष पूर्ण करने पर स्नातक आनर्स की डिग्री मिलेगी . उसके पश्चात् स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम एक वर्ष का करने पर भी विचार किया जा रहा है . तीनों के लिए आधार पाठ्यक्रम के ११ पेपर अनिवार्य हैं . इसके अतिरिक्त उनके क्रमशः दो, तीन एवं चार वर्ष में अन्य विषयों के पेपर होंगे -एक मुख्य ( मेजर ) विषय के (८,१४,२० ) ,  दूसरे माइनर विषय के ( २,४,६ ), साथ में एप्लाइड कोर्स के (३,५,५ ) और एक विशेष विषय जो समन्वित आत्मा, मन और शरीर के विकास के लिए तथा सांस्कृतिक गतिविधियों से सम्बंधित होगा, के ( ४,६,८ )। इस प्रकार नए स्नातक पाठ्यक्रम में छात्र को दो वर्षीय डिप्लोमा के लिए विभिन्न विषयों के कुल (११+८+२+३+४=) २८, तीन वर्षीय डिग्री के लिए(११+१४+४+५+६=) ४० और चार वर्षीय आनर्स के लिए  (११+२०+६+५+८=) ५० पेपर उत्तीर्ण करने होंगे .      विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि इससे स्नातक पढ़ाई को मध्य में छोड़ने वालों के लिए भी रोजगार के अधिक अवसर प्राप्त होंगे .तीन वर्षों के बाद दिल्ली में स्नातकोत्तर कक्षाओं के लिए कौन से छात्र मिलेंगे, क्योंकि वहां पढ़ाकू विद्यार्थी तो स्नातक का चौथा वर्ष पढ़ रहे होंगे।  उस समय या तो दिल्ली के ड्राप आउट अर्थात तीन वर्ष बाद पढ़ाई बंद करने वाले छात्र मिलेंगे या फिर देश के अन्य विश्वविद्यालयों के लोग प्रवेश लेने आयेंगे।  जब चार वर्षीय स्नातक आनर्स छात्र कोर्स पूरा करके आयेंगे तो क्या उस समय तीन वर्षीय कोर्स उत्तीर्ण विद्यार्थियों को भी उन्हीं के साथ प्रवेश मिलेगा या उन्हें प्रवेश से पूरी तरह वंचित कर दिया जायगा ? यदि एक छात्र अन्य विश्वविद्यालय से स्नातक डिग्री लेकर आता है तो उसे दिल्ली में स्नातकोत्तर करने के लिए कैसे और किस कक्षा में प्रवेश मिलेगा ? यदि दिल्ली से कोई छात्र अन्य विश्विद्यालय में दो वर्षीय डिप्लोमा कोर्स करके जाता है तो उसे किस कक्षा में प्रवेश मिलेगा , चार वर्षीय स्नातक कोर्स करके जाता है तो क्या उसका वहां पर स्नातकोत्तर में एक वर्ष कम हो जायगा अथवा उसे भी सबके समान पुनः दो वर्ष का स्नातकोत्तर कोर्स करना होगा ? क्या भविष्य में दो वर्षीय कोर्स करने वालों के लिए कोई पृथक  प्रकार की नौकरियां सृजित की जांयगी जिनमें वांछित योग्यता  हायर सेकेंडरी से अधिक हो और स्नातक से कम हो ? ऐसे अनेक अनुत्तरित प्रश्न हैं जिनकी कुंजी केवल दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति के पास नजरबंद है।  
 पुराने पाठ्यक्रम में छात्रों के विश्लेषणात्मक ज्ञान एवं लेखन क्षमता बढ़ाने के लिए प्रत्येक प्रश्नपत्र में एक असाइनमेंट और एक प्रोजेक्ट कार्य पूर्ण करना होता है . उनके स्थान पर अब उन्हें केवल एक समूह चर्चा में भाग लेना होगा अर्थात बहुत कम परिश्रम करना होगा . प्रत्येक प्रश्नपत्र के लिए प्रति सप्ताह लगने वाली कक्षाएं भी कम कर दी गईं हैं . इनसे प्रत्यक्ष रूप से तो ऐसा लगता है कि शिक्षा का स्तर गिरेगा .
   दिल्ली के प्राध्यापकों तथा अनेक बुद्धिजीवियों ने इसका विरोध किया है परन्तु विश्वविद्यालय प्रशासन के आदेश के आगे कोई कुछ नहीं कर सकता . प्राध्यापकों को नौकरी करनी है इसलिए पढ़ा रहे हैं . विद्यार्थियों को डिग्री लेनी है , इसलिए पढ़ रहे हैं . इसके लिए जब कुछ प्राध्यापकों से पूछा गया तो उनका यही कहना है कि इसके विषय में वे कुछ नहीं जानते हैं , प्रशासन को पता होगा .
   यदि  यह व्यवस्था बहुत अच्छी है तो इसे चुपचाप केवल दिल्ली विश्वविद्यालय में ही क्यों लागू किया गया ? इस पर सारे देश में चर्चा क्यों नहीं की गई ? म. प्र. के मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कुछ अति होशियार लोगों के कहने या स्वयं की बुद्धि से २००८ में देश में सर्वप्रथम सेमेस्टर व्यवस्था लागू करके वाहवाही लूटी थी जबकि मैंने इसका पुरजोर विरोध किया था कि इससे सारी पढ़ाई व्यवस्था चौपट होने के साथ ही विद्यार्थियों को समय पर परीक्षाफल देना भी संभव नहीं होगा परन्तु मेरी बात नहीं सुनी गई . पढ़ाई लगभग बंद करवाने के साथ तीन वर्षों तक लाखों विद्यार्थियों के एक - एक वर्ष बर्बाद करने के बाद परीक्षा व्यवस्था में आंशिक सुधार किये गए और उसके लिए किसी भी छात्र को कोई क्षति पूर्ति  नहीं दी  गई . आदि काल से प्रजा की कीमत पर राजा और सामंत अपना मनोरंजन करते आ रहे हैं . आज के राजा – सामंत उसके अपवाद कैसे हो सकते हैं ? भविष्य बर्बाद होगा तो गौ के जैसे सीधे – सादे विद्यार्थियों का होगा जो नहीं जानते कि सही और गलत क्या है .
  भारत में सरकारों ने शिक्षा को घोषित रूप से एक लाभदायक उद्योग में बदल दिया है . सरकार में घुसे अफसर , मंत्री , नेता और उनके चहेते शिक्षा का अच्छा व्यवसाय कर रहे हैं . अतः इनसे किसी कल्याणकारी योजना की आशा करना व्यर्थ है . यहाँ के अधिकारी जनता के धन पर विदेश घूमते रहते हैं . वहां की कोई बात उन्हें अच्छी लग गई तो उसे अपने देश ले आते हैं . यहाँ तक तो सब ठीक है परन्तु भारत में उसे क्रियान्वित करने में केवल एक ही बात का ध्यान रखा जाता है कि उससे निजी लाभ कैसे कमाया जाय .  हांगकांग विश्विद्यालय ने २००५ में ४ वर्षीय स्नातक कोर्स प्रारंभ करने की योजना बनाई . ८ वर्ष तक तैयारियां करने के बाद उसे २०१३ में लागू किया . वहां स्कूल शिक्षा पुनः ११वीं तक कर दी गई और उसके बाद स्नातक ४ वर्ष का रखा गया . उनके विश्विद्यालय में छात्रों की संख्या मात्र साढ़े ग्यारह हजार है . उन्होंने पहले शिक्षा के मानक स्थापित किये , तदनुसार व्यवस्थाएं कीं . दुबई में भी पूरी तैयारी करने के बाद इसे लागू किया गया।  दिल्ली के होशियार लोगों ने २०१२ में सोचा और बिना किसी तैयारी के लाखों छात्रों के लिए तुरंत लागू कर दिया . ऐसे महापुरुषों को हम सलाम करते हैं और शुभ कामनाएँ देते हैं कि उनकी लम्बी छलांग, ऊंची उड़ान सफल हो .
  अमेरिका में ४ वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम हैं .वे ४ वर्ष की स्नातक डिग्री को मान्यता देते हैं जैसे हमारी बी ई या बी टेक. उसके पश्चात् उनके मास्टर डिग्री के पाठ्यक्रम शोध आधारित हैं और उसके बाद पी.एच-डी.  होती है , हमारे देश की भांति एमफिल जैसी कोई डिग्री नहीं करनी पड़ती है . जिस प्रकार म. प्र. में लाखों विद्यार्थियों का समय और धन नष्ट करने तथा शिक्षा का स्तर  गिराने के गीत म.प्र. की सरकार और उसके सरकारी शिक्षाविद झूम-झूम के गा रहे हैं और देश के अन्य राज्यों के विश्विद्यालय उनका अनुकरण करके स्वयं को गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं, मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है की ऐसा ही दिल्ली विश्विद्यालय का अनुकरण करके भी होगा।  हो सकता है वहां के ज्ञानी कुलपति ने यह पाठ्यक्रम भारत के राष्ट्रपति की इस चिंता के निवारण के लिए प्रारंभ किया हो कि भारत के विश्वविद्यालय दुनियां के अन्य संस्थानों से पीछे क्यों हैं । आश्चर्य की बात है कि यू जी सी इस सारे प्रकरण पर खामोश है और अन्य संस्थाओं की भाँति दूर से ही तमाशा देख रही है।    
  

   

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