शुक्रवार, 22 नवंबर 2013

निंदा शास्त्र महा शास्त्र


              निंदा शास्त्र महा शास्त्र
डा खत्री ने यह लेख २००३ में लिखा गया था . उस समय अमेरिका ने ईराक पर हमला कर दिया था . २००४ में भारत में आम चुनाव होने थे . उस समय लालकृष्ण आडवाणी इंडिया शाइनिंग का नारा दे रहे थे जबकि सोनिया गाँधी एनडीए सरकार की कठोर शब्दों में निंदा कर रही थीं . निंदा शास्त्र के आधार पर उस समय जो राजनीतिक विश्लेषण किये गए थे , वे आज भी उतने ही सत्य दृष्टिगोचर हो रहे हैं .     
  निंदा शास्त्र महान अस्त्र है ,महान शस्त्र है . यह सदियों से स्वयं सिद्ध है . निंदा के द्वारा बड़े से बड़े काम होते आ रहे हैं .चुनाव में नेता निंदा रुपी शस्त्र से ही विपक्षियों को धराशायी करते हैं . संसद में क्या होता है ? विधान सभाओं में क्या होता है ? सारी चर्चा निंदा के इर्द-गिर्द घूमती रहती है . पेड़ से सेव आदिकाल से गिरते आ रहे हैं, परन्तु न्यूटन के दिमाग पर सेव गिरने की ऐसी चोट लगी कि उन्होंने गिरने, उठने, बैठने, सोने, भागने आदि सभी विधाओं की साइन्टिफिक व्याख्याएं कर डालीं जो आज हमारे काम आ रही हैं . मेरे मस्तिष्क को भी आधुनिक युग की एक घटना ने पूरी तरह झकझोर दिया है . भारतीय संसद पर आतंकी हमला हुआ . हमारे देश के लोगों ने उन लोगों की भरपूर निंदा की जिन्होंने हमला करवाया था . सबने एक सुर में कड़े इसे कड़े शब्दों में निंदा की . माननीय नेताओं का यह कार्य अत्यंत प्रशंसनीय था . लेकिन दुःख की बात तब प्रारम्भ हुई जब ईराक पर हमले कि लिए भारतीय संसद अमरीका की निंदा करने के लिए शब्द ही नहीं ढूढ़ पाई .निंदा करना तो वीरों का वीरों के लिए शस्त्र है . अमरीका ने पिद्दी ईराक पर बमों से हमला किया परन्तु वीर फ़्रांस और वीर रूस की , हमले का समर्थन न करने के लिए निंदा की . अमेरिका तो महावीर है . उसकी निंदा तो ठोस शब्दों में की जनी चाहिए थी, परन्तु सांसदों को शब्द ही नहीं मिले . भारतीय संसद की इस दशा ने मुझे निंदा पुराण का विस्तृत विवेचन एवं शोध करने के लिए प्रेरित किया . जो देश कुछ भी न कर पाता हो, वह निंदा भी न कर पाए तो जियेगा कैसे ! रोटी न मिले, पानी न मिले पर हवा तो मिले . निंदा हवा है . चुनाव आ रहे हैं . यदि नेताओं की सारी हवा निकल गई तो विपक्षियों की निंदा कौन करेगा ?यदि निंदा से प्रहार नहीं करेंगे तो किन शस्त्रों से चुनाव लड़ा जायगा ? हार-जीत कैसे होगी, नहीं होगी तो लोकतंत्र का क्या होगा, लोकतंत्र नहीं रहेगा तो क्या तानाशाई होगी, तानाशाही होगी तो किसकी होगी आदि अनेक प्रश्न मेरे मस्तिष्क में भर गए . इनके दबाव के कारण मुझे शोध करके निंदा महा पुराण का सार प्रस्तुत करने के लिए बाध्य होना पड़ा . निंदा पुराण जिसने समझ लिया उसने दुनिया और उसके आगे सब कुछ समझ लिया .यह लोक और परलोक दोनों स्थानों पर समान गुणकारी है . निंदक एवं निन्दित दोनों आत्माओं को इसका पुण्य लाभ समान रूप से मिलता है .
    यह निंदा का महात्म्य है कि इसमें जितना डूबते जाओ, उतना ही आनंद आता है . मन में निंदा करने के नित नए-नए विचार उत्पन्न होते हैं . यदि आप इसमें माहिर हो गए तो चुनावों में गिरी हालत में भी विधायक तो बन ही जायेंगे . श्री काशी राम और सुश्री मायावती ने क्या किया ? ठाकुर – ब्राह्मणों की कठोर शब्दों में निंदा करते गए . उनका कद बढ़ गया . निंदा रथ पर चढ़ कर लालू अमर हो गए . लालू चालीसा लिखे गए . लेकिन यह शुभ लक्षण नहीं है कि लालू जैसे शुद्ध अहिंसक, समाजवादी नेता निंदा जैसे परम अस्त्र का त्याग करके लाठी की बैसाखी के सहारे चलने लगे हैं . वाम पंथियों की निंदा सामर्थ्य शक्ति का भारी ह्रास हो ही चुका है . इसलिए लोक सभा को निंदा प्रस्ताव के समय शर्मनाक  स्थिति से गुजरना पड़ा .  यदि निंदा समाप्त हो गई तो लोग अहिंसक से हिंसक हो जायेंगे . कोई लाठी भांजेगा,  कोई त्रिशूल बांटेगा तो कोई तलवार चमकाएगा . जूते भी चला सकते हैं . मेरी भांति आप भी इनसे सहमत नहीं होंगे . शेर, चीतों, तेंदुओं जैसे हिंसक जीवों  की रक्षा के लिए अभ्यारण्य और अहिंसक निन्दाजी के लिए कुछ नहीं .इसके लिए मेरा मत है कि निंदा शास्त्र को ज्योतिष के समान एक विषय का स्वरूप दिया जाना चाहिए . विद्यालयों में तो इसे कम्पलसरी सब्जेक्ट के रूप में पढ़ाया जाए क्योंकि काम चलाऊ अंग्रेजी की भांति निंदा भी सबको आनी चाहिए .कालेज स्तर पर टेस्ट लेकर प्रवेश देना ही उपयुक्त होगा . होनहारों को सी.एम्. के आगे पी.एम. की कुर्सी तक रेस करनी है . मेरा दावा है कि इसमें छात्र संख्या इतनी अधिक हो जायगी कि एक क्या अनेक निंदा विश्विद्यालय खोलने पड़ेंगे . जब एक्टिंग संस्थानों से ट्रेनिंग लेकर अनेक हीरो लोगों के दिलों पर राज कर सकते हैं तो निंदा संस्थानों से निकलने वाले लोग जनता के ऊपर राज क्यों नहीं करेंगे ?
       निंदा से भगवान् तक अभिभूत हो जाते हैं तो आम आदमी की बिसात ही क्या  है ? मैं लम्बे- चौड़े इतिहास में न पड़ कर निंदा का साहित्यिक अध्ययन संत कबीर की वाणी से प्रारम्भ करता हूँ – ‘ निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय . बिन पानी, साबुन बिना निर्मल करे सुभाय ..‘ कबीर दस जी कहते हैं कि निंदा रस का आस्वादन निरंतर मिलता रहे, इसके लिए निंदा उद्योग लगाइए .अपने आँगन में एक टपरा डालकर अपने निंदक को उसमें बसाइए . बस लग गया निंदा - उद्योग .आप जब भी कमरे से बाहर निकलेंगे आपको निंदा का प्रसाद मिलेगा . निंदक को नियरे रखने में कभी भी अच्छा मकान या महल बना कर मत दीजिये . इससे वह निंदा के स्थान पर आपकी स्तुति करेगा और आपका स्वभाव निर्मल होने के स्थान पर कठोर होता जायगा . इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण बाजपेयी सरकार है . जब उन्होंने अपने निंदकों को पहचान लिया तो उन्हें मंत्री बना दिया और कुटिया के बदले बड़े-बड़े बंगले दे दिए . कबीर-वाणी का मखौल उड़ाया . नेता निंदा करना भूल गए . इसका प्रभाव अमरीका के विरुद्ध निंदा प्रस्ताव के समय सबने देखा . अब आप इनसे पूछो कि जब तुम्हारे पास निंदा शास्त्र ही नहीं रहा तो अगला चुनाव क्या एटम बम से लड़ोगे ? जब तक लोग संघ और भाजपा को कोसते रहे, निंदा करते रहे,उनका स्वभाव निर्मल होता गया . वे अबाध गति से आगे बढ़ते गए . बाजपेई जी प्रधान मंत्री बने और कार्यकाल भी पूरा कर रहे हैं . नरेंद्र मोदी जी की तो जितनी निंदा की गई, वे उतना ही प्रखर होकर उभरे . यह है एक महान संत की वाणी का प्रभाव ! एक और महात्व पूर्ण उदाहरण है निंदा पुराण का . लोग इंद्रा जी की कितनी निंदा करते रहे, वे गद्दी पर जमी रहीं . उन्होंने आपात काल लगाया . निंदकों को दूर कर दिया .वे चुनाव हार गईं . जनता पार्टी की सरकार बनी .ढेर सारे निंदक इंदिरा जी का स्वभाव निर्मल करने लगे और जनता ने उन्हें पुनः सर- आँखों पर बैठा लिया .
   अब निंदा के  आध्यात्मिक महत्त्व का वर्णन करते हैं . महात्मा गाँधी ने विश्व को प्रेम व् अहिंसा का पाठ  पढ़ाया . निंदा से बढ़ कर कोई भी अहिंसक अस्त्र-शस्त्र नहीं हो सकता . आप प्रेम पूर्वक निंदक को नियरे रखिये वह शुद्ध अहिंसक ढंग से आपका स्वभाव निर्मल करता रहेगा . अहिंसा आत्मा है , निंदा मन है , निंदक शरीर है . इनका समग्र रूप ही विश्व कल्याण का मार्ग है .
    लोग कहते है कि पाकिस्तान बनाकर भारी भूल की गई . वह हिंदुस्तान का सबसे बड़ा निंदक है . उसे निकट रख कर अच्छा कार्य किया . एक नहीं, दो पाकिस्तान , ताकि दोनों कानों से निंदा रस का आनंद मिल सके .पिछले वर्ष भारत- पाक की सेनाएं आमने- सामने खड़ी थीं . लगता था कभी भी एटम बम का विस्फोट हो सकता है . कठिन घडी में बुश द  ग्रेट काम आये . उन्होंने दोनों देशों को निंदा पुराण का चिन्तन- मनन करने की सलाह दी . प्रयोग सफल रहा . सेनाएं सुख पूर्वक वापस लौट गईं .हमलों के लिए निंदा , हत्याओं के लिए निंदा , आगजनी के लिए निंदा , बम विस्फोट के लिए निंदा , इसके लिए निंदा , उसके लिए निंदा , सबके लिए निंदा . क्या फार्मूला है . सारे कार्य हमारी शांति एवं अहिंसा के सिद्धांत के अनुसार संपन्न हो गए .
निंदा के अमर प्रयोग : अंग्रेजी राज्य में सरकार नेताओं की निंदा न करके जेल में ठूंस देती थी . इससे उनकी चमड़ी कठोर और  खुरदरी हो गई . जब वे सरकार बने तो भारी समस्या खड़ी हो गई . छोटी–छोटी बातें उन्हें जोंक की तरह चिपक जातीं और कष्ट देतीं थीं . स्वतन्त्र भारत में निंदा का प्रचार हुआ, प्रसार हुआ . नेताओं की त्वचा चिकनी और आत्मा शुद्ध होती गई . अब नेताओं पर बड़ी – बड़ी बातों का प्रभाव भी नहीं पड़ता . चिकनी त्वचा से सब कुछ फिसल जाता है . पाकिस्तान ने हमारे नेताओं की जम कर निंदा की . देश के नेताओं ने भी उनके एहसान का फल चुकाया . १९४८ में पाकिस्तानी कबाइलियों को कश्मीर में बसाया ही नहीं , उन्हें कश्मीर ही दे दिया . १९६५ में भारत ने जीतकर पाकिस्तान को इलाके लौटा दिए .१९७१ में पाकिस्तान को हराकर भारत ने उसके इलाके एवं एक लाख सैनिकों को, खिला–पिलाकर हट्ट-कट्टे बनाकर सम्मान सहित वापिस किया  .इतना ही नहीं शरणार्थियों के रूप में एक करोड़ बंगला देशियों को वोटर का सम्मान भी प्रदान किया . यदि पाकिस्तान भारत की लगातार निंदा न करता तो देश के नेताओं का स्वभाव इतना खूबसूरत कैसे होता !
   लोग कहते हैं कोई –कोई मंत्री रूपये खा जाते हैं . उनकी सर्वत्र निंदा की जाती है .बैंकों का पैसा लोग खा गए . उनकी निंदा होती रहती है . भोपाल के देना बैंक टीटी नगर ने बाकायदा एक मुर्गी वाले ऋणी का निंदा प्रशस्ति पटल तैयार करवाकर आगंतुकों के दर्शनार्थ रखा ताकि अन्य लोग भी उससे प्रेरणा लें . ऋण वापस न करें .उनके प्रशस्ति पत्र भी टगेंगे .निंदा कर दी, वसूली की आवश्यकता ही नहीं रही . वाह निंदा रानी वाह .
   लेखक को दुःख इस बात का होता है कि जब इतनी बड़ी – बड़ी घटनाएं निंदा के द्वारा सहज में निपट जाती हैं तो छोटी मोटी घटनाओं में यह प्रयोग क्यों नहीं करने चाहिए.? हमारे न्यायालयों में करोड़ों मुकदमें लंबित हैं . निंदा का प्रयोग करें . सभी मुकदमें आनन – फानन में समाप्त हो जायेंगे . एक मुश्त हत्याओं के लिए निंदा और थोड़ी बहुत कहा – सुनी के लिए मुकदमें ! करोड़ों की चोरी के लिए निंदा और छोटी – मोटी चोरियों के लिए दण्ड . यह कहाँ का न्याय है ?यदि निंदा को राष्ट्रीय आभूषण घोषित कर दिया जाये तो फालतू के मुकदमें नहीं करने पड़ेंगे . सब काम एक ही सूत्र ‘ निंदा ‘ से चल जायेंगे . पुलिस की आवश्यकता नहीं रहेगी , न्यायालय भी सीमित हो जायेंगे . सेनाओं की आवश्यकता समाप्त हो जायगी .देश में नौकरी से निकलने का अभियान भी नहीं चलाना पड़ेगा .सबको निंदा करने में एक्सपर्ट बनाकर सेवाएं समाप्त कर दीजिये .वे सड़क पर निंदा पुराण गायेंगे . देश की बचत ही बचत होगी .कभी कोई चोरी वगैरह हो भी जायगी तो सरकारी कोष में बचत का इतना पैसा होगा कि उससे दुगुनी क्षतिपूर्ति की जा सकेगी . देश में इतने महान शास्त्र के होते हुए भी जब कुछ नासमझ जीव , परीक्षाओं में बच्चों को नकल के नाम पर पकड़ कर दण्ड देने की बात करते हैं तो दिल ज़ार- ज़ार हो जाता है . उन्हें कौन समझाए कि अबोध नौनिहालों पर इतना अत्याचार क्यों कर रहे हैं ? उनकी तो अभी निंदा झेलने की उम्र भी नहीं है .

                  

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