बुधवार, 29 अक्टूबर 2014

व्यक्तित्व के तत्व

                                  व्यक्तित्व  के तत्व
    किसी व्यक्ति का व्यक्तित्व उस व्यक्ति के गुणों, उसके व्यवहार एवं उसे प्राप्त अवसरों का फलन ( सामूहिक अभिव्यक्ति ) होता है जो परिस्थितियों के अनुसार उसकी क्षमता के रूप में प्रगट होता है तथा लोगों को प्रभावित करता है.  व्यक्ति जितने अधिक लोगों को जितना अधिक प्रभावित करता है, उसका व्यक्तित्व उतना ही प्रभावशाली माना जाता है. सामान्य रूप से व्यक्तित्व का विकास आयु बढ़ने के साथ धीरे-धीरे प्रौढ़ावस्था तक  होता रहता है परन्तु विशेष अवसर प्राप्त होने पर, चुनौतियों का सफलता पूर्वक सामना करने पर  व्यक्ति का व्यक्तित्व अचानक अप्रत्याशित रूप से कई गुना बढ़ जाता है.
 जहाँ तक व्यक्ति के व्यवहार का प्रश्न है तो धीरे-धीरे प्रत्येक व्यक्ति का व्यवहार एक निश्चित पैटर्न धारण कर लेता है . जैसे एक गृहणी का कार्य प्रातः उठकर बच्चों को उठाना, तैयार करना, उनका नाश्ता-भोजन बनाना आदि रहता है . जब वह किसी से मिलती है तो उसकी बातों का दायरा भी प्रायः निश्चित रहता है , अपने ससुराल और मायके वालों से उसका व्यवहार भी निश्चित सा होता है . उसका खाना -पीना, पहनावा आदि भी विशिष्ट होते हैं और ये सब मिलकर उसका व्यक्तित्व निर्धारित करते हैं . सामान्य रूप से प्रत्येक व्यक्ति की प्रकृति और  व्यवहार एक निश्चित पैटर्न का बन जाता है, उसमें संगतता पाई जाती है अर्थात वह प्रायः एक सामान व्यवहार करता है  और वही उस व्यक्ति की विशिष्टता है , उसकी पहचान है , उसका व्यक्तित्व है . यद्यपि व्यक्ति का व्यक्तित्व प्रायः निश्चित होता है परन्तु भिन्न-भिन्न संबंधों के कारण उसका व्यवहार कुछ लोगों से अलग प्रकार का हो सकता है जिससे वे व्यक्ति भी उसके व्यक्तित्व को भिन्न-भिन्न रूपों में देखते हैं . जया ललिता को भ्रष्टाचार के आरोप में सज़ा एवं अर्थदंड दिया गया . न्यायालय एवं दूर के लोगों के लिए वह दोषी हो सकती है परन्तु उसके लाखों अनुयायी उसे आज भी अपनी अराध्य देवी मानते हैं . उसे जेल भेजने पर अनेक लोगों ने प्रदर्शन किए तथा कुछ लोगों ने दुःख के कारण आत्महत्या तक कर ली. अतः व्यक्ति के व्यक्तित्व के विभिन्न आयाम या पक्ष होते हैं . एक व्यक्ति कलेक्टर है. मंत्री के लिए वह एक महत्वपूर्ण अधिकारी है, कर्मचारियों के लिए बहुत शक्तिशाली अधिकारी है, पत्नी के लिए पति है, बच्चों का पिता है, मित्रों का मित्र है. जिस व्यक्ति के प्रति उसका व्यवहार जैसा होता है वह उसका वैसा ही व्यक्तित्व देखता और समझता है. ठग को धन देते समय व्यक्ति उसे अच्छा एवं हितैषी मानकर ही देता है परन्तु उसके धन लेकर भाग जाने पर ही उसे उसका वास्तविक व्यक्तित्व समझ में आता है . इसके लिए तुलसी दस ने ठीक ही लिखा है , “जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी  तिन तैसी .”
  व्यक्तित्व को संक्षेप में निम्नानुसार व्यक्त कर सकते हैं :
 ( यहाँ पर दर्शक के दृष्टिकोण को f एक फलन ( फंक्शन ) के रूप में व्यक्त किया गया है अर्थात अन्य व्यक्ति निम्नलिखित कोष्ठकों  में दिए गए किसी व्यक्तित्व के तत्वों (गुणों) को समूहिक रूप से किस प्रकार देखते हैं . व्यक्तित्व, व्यक्ति, व्यवहार और अवसर उनके सामने f के आगे कोष्ठक में दिए गए तत्वों के संयोजन पर निर्भर करते हैं. 
व्यक्तित्व =     f ( व्यक्ति, व्यवहार, अवसर एवं चुनौतियाँ )
जहाँ पर,
व्यक्ति  =      f ( आत्मशक्ति, भाग्य, अनुवांशिकता, पद, कार्य, धन-संपत्ति, आदर्श, विचार,
                   अंतर्मुखी-बहिर्मुखी प्रकृति,  व्यक्ति के सभी शारीरिक-मानसिक गुण )
व्यवहार   =    f ( चरित्र (आचरण), परिस्थितियां, शारीरिक- मानसिक अनुक्रियाएं , गत्यात्मकता, संगतता  ) 
अवसर    =    f (अवसर, चुनौतियाँ )  
    जब किसी व्यक्ति के सम्बन्ध में विचार किया जाता है तो उसका नाम ध्यान में आते ही उसके रूप, रंग, डील-डौल, उसके गुण, उसका पद, उसके कार्य, परिवार, आदि अनेक तत्वों का मिला-जुला रूप मन में उभर आता है . व्यक्तित्व को समझने के लिए व्यक्ति, व्यवहार एवं अवसरों के लिए उक्त कोष्ठकों में दिए गए सभी तत्वों पर पृथक-पृथक विचार करना होगा .
                                  व्यक्ति के तत्व
आत्मशक्ति : आत्मशक्ति मनुष्य की सबसे बड़ी विशेषता है . इसी से वह प्रबल इच्छा शक्ति रखता है और उसे पूरी करने की क्षमता रखता है. आत्मशक्ति विहीन व्यक्ति केवल भाग्य के भरोसे उसी प्रकार रहते हैं जैसे पशु रहते हैं. ज्ञान-विज्ञान, तकनीकी, उद्योग, व्यवसाय, साहित्य, कला, धर्म, संस्कृति, दर्शन,  इतिहास, राजनीति, खेल, युद्ध, मीडिया आदि सभी क्षेत्रों में अप्रत्याशित परिवर्तन और विकास उन्हीं  लोगों ने किए हैं जिनमें प्रबल आत्म शक्ति थी. उन्होंने विचार किए, लक्ष्य निर्धारित किए और बिना कोई संदेह किए, किन्तु-परन्तु या कोई शर्त लगाए, उन्हें पूरा करने में जुट गए . उन्होंने अपने लक्ष्य पूरे किए और जो लोग पूरे नहीं कर पाए,  वे आने वालों के लिए निश्चित मार्ग बना गए.   
भाग्य : व्यक्तित्व निर्माण में कभी-कभी भाग्य का प्रभाव भी  बहुत अधिक होता है . मलाला यूसुफजई का उदाहरण इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है . आतंकवादी लोगों को सामूहिक रूप से धमकी देते रहते हैं और जो उनका कहना नहीं मानते, उन्हें धमकाते हैं, उनकी हत्याएं तक कर देते हैं. आतंकवादियों ने मलाला को कोई अलग से धमकी नहीं  दी थी और न ही मलाला ने उनके फ़तवे के विरोध में शिक्षा का कोई अभियान चलाया था . आतंकवादियों की गोली से अनेक लोग मरते रहते हैं . दो अन्य छात्राओं  के साथ उसे भी गोली लगी और वह इतनी चर्चा में आ गई कि उसे विश्वस्तरीय समर्थन प्राप्त हो गया. उसे ब्रिटेन जाने, वहां रहने के साथ में चिकित्सा सुविधाएँ भी मिल गईं . उसे लड़कियों की शिक्षा का अग्रदूत मान लिया गया और १७ वर्ष की आयु  में नोबेल पुरस्कार भी मिल गया जब कि अनेक लोग जीवन भर सामाजिक कार्य करते रहते हैं और अपने क्षेत्र में भी प्रसिद्धि प्राप्त नहीं कर पाते हैं. कैलाश सत्यार्थी विगत ३४ वर्षों से बच्चों का बचपन संवारने का काम कर रहे हैं तथा  हज़ारों बच्चों का जीवन संवार चुके हैं . उन्होंने अनेक बार माफियाओं और गुंडों के घातक हमले सहे हैं, अनेक बार गंभीर रूप से घायल हुए हैं. उन्हें अब नोबेल पुरस्कार मिला है . उन्हें देश में ही कितने लोग जानते थे ? मलाला के पुरस्कार की व्याख्या उसके भाग्य के अतिरिक्त किसी तत्व से नहीं की जा सकती है . डा. भीमराव अम्बेडकर ने भारत में करोड़ों दलितों का उद्धार किया परन्तु नोबेल पुरस्कार के लिए उनके नाम की चर्चा तक नहीं की गई. ऐसे अनेक व्यक्ति हैं जिन्होंने अपने भाग्य के कारण पद, धन एवं सम्मान पाए हैं परन्तु भाग्य से ही सब काम होते हों, ऐसा नहीं  है. अनेक लोगों ने अपने कार्यों और परिश्रम के द्वारा प्रसिद्धि पाई है. प्रसिद्धि से व्यक्तित्व स्वयमेव प्रगट होने लगता है और अनेक लोग उसका अनुकरण करने लगते हैं .
अनुवांशिकता : व्यक्ति के जीवन में उसके परिवार का बहुत बड़ा योगदान होता है . राजवंश के लोगों का व्यक्तित्व सबसे अलग रहा है . पहले तो राजा या राजकुमार के दर्शन मात्र से ही लोग गद्गद हो जाते थे . फ़्रांस की क्रांति में राजा लुईस सोलहवें तथा उनकी महारानी के साथ ही अनेक सामंतों की हत्या कर दी गई थी . उसके २६ वर्ष बाद जब नेपोलियन अंतिम रूप से हार गया, फ़्रांस के राजा के दूर के भाई लुईस अठारहवें को ढूंढ कर फ़्रांस की सत्ता सौंपी गई . भारत में स्वतंत्रता संग्राम में संघर्ष के कारण नेहरु जी की बहुत प्रतिष्ठा थी . भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में उन्हें बहुत सम्मान मिला . उनके बाद उनके वंशजों, इंदिरा गाँधी, राजीव गाँधी और सोनिया गाँधी को अपनी पारिवारिक पृष्ठ भूमि के कारण सत्ता मिलती रही . उनके व्यक्तित्व का प्रभाव जन सामान्य पर बहुत अधिक पड़ा.  परिवार के आधार पर ही मजदूर के बेटे का व्यक्तित्व भी मजदूर जैसा ही माना जाता है कि वह भी बड़ा होकर ऐसे ही मजदूरी करता रहेगा . परन्तु सभी क्षेत्रों में अनेक लोग ऐसे हैं जिन्होंने गरीबी में रहते हुए भी अपने परिश्रम और शिक्षा से  उच्च स्थान प्राप्त किए और अपना व्यक्तित्व अनुकरणीय बनाया.
पद : बड़े पद से भी व्यक्ति का व्यक्तित्व प्रभावशाली हो जाता है. बड़े प्रशासनिक अधिकारी का अपने पूरे विभाग में दबदबा रहता है. बड़े एवं नामी चिकित्सालयों में पदस्थ चिकित्सकों का व्यक्तिव उनके पद से ही स्वीकार कर लिया जाता है. भारत में तो पुलिस विभाग में पदस्थ अधिकारीयों का विशेष रुतबा उनके पदों के कारण  ही होता है . पद से प्राप्त व्यक्तित्व के कारण मूर्ख एवं धूर्त अधिकारी भी सम्मान पाते रहते हैं.
धन-संपत्ति : जिनके पास धन एवं संपत्ति अधिक होती है उनका व्यक्तित्व भी अपना विशेष प्रभाव रखता है .
कार्य : कार्य व्यक्तित्व का सबसे प्रभावशाली तत्व है. अच्छे कार्यों से अर्जित व्यक्तित्व से सम्मान तथा बुरे कार्यों से अर्जित व्यक्तित्व से बदनामी मिलती है. कार्य ऐसा तत्व है जिसे व्यक्ति अपने श्रम एवं बुद्धि से संपन्न कर सकता है . जो व्यक्ति किसी रोजगार में लगा हुआ है , किसी सेवा या व्यवसाय में लगा हुआ है , समाज में उसका व्यक्तित्व उस व्यक्ति की तुलना में बहुत अच्छा माना जाता है जो बेरोजगार है, अपने जीवन -यापन के लिए पराश्रित है . कार्य से अर्जित धन की मात्रा अधिक होने पर व्यक्ति का सम्मान अधिक होता है . परन्तु अनेक कार्य ऐसे होते हैं जहाँ पद एवं धन नहीं , कार्य ही व्यक्तित्व को ऊंचाइयां प्रदान करता है और उसे अत्यंत लोकप्रिय बनाता है. खिलाड़ी, अभिनेता, धर्मगुरु, योद्धा, वैज्ञानिक, साहित्यकार, गायक, गीतकार संगीतकार, फिल्म निर्माता, उद्यमी, मीडिया के प्रभावशाली पत्रकार, शिक्षक जिनके छात्र अच्छे पद प्राप्त करते रहते हों, शासक  और अनेक नेता आदि भी अपने अच्छे प्रदर्शनों से जन-जन के दिल में समा जाते हैं . तमिलनाडु की पूर्व मुख्य मंत्री जया ललिता यद्यपि न्यायलय द्वारा अपराधी घोषित हो गई हैं, परन्तु अपने कार्यों के कारण उनका जो व्यक्तित्व निर्मित हुआ है उससे उनके लाखों अनुयायी आज भी उनके भक्त हैं और वे उनकी आराध्य देवी हैं . कार्य व्यक्ति के मानसिक विचारों और शारीरिक अनुक्रियाओं की अभिव्यक्ति होते हैं . अतः व्यक्ति के छोटे- बड़े सभी कार्य उसके व्यक्तित्व निर्माण में योगदान देते हैं . यदि एक धनवान व्यक्ति बहुत कंजूस हो तो उसका  व्यक्तित्व उसकी कंजूसी से प्रभावित माना जायगा .      
आदर्श एवं विचार : व्यक्ति के व्यक्तित्व पर उसके जीवन के आदर्शों और विचारों का भी बहुत प्रभाव पड़ता है . चन्द्र शेखर आज़ाद ने बाल्यावस्था में ही जज के सामने जितने साहस के साथ उत्तर दिए थे और कोड़े खाते हुए भी ‘भारत माता की जय’ के नारे लगाते रहे, उनका व्यक्तित्व उसी दिन से लोगों के मस्तिष्क पर छा गया था. अपने आदर्श एवं विचारों के कारण गांधीजी सबके लिए सम्मानित रहे, आज भी हैं और आने वाले समय में भी रहेंगे. विचारों एवं कार्यों के कारण ही बाबा साहेब अम्बेडकर भारत में करोड़ों लोगो के पूज्य हैं . जिसके अपने कोई आदर्श या विचार नहीं होते हैं , उसका व्यक्तित्व अति सामान्य होता है तथा उस पर कोई ध्यान नहीं देता है . अपने आदर्श एवं विचारों के अनुसार लोग विभिन्न क्षेत्रों में अपना भविष्य बनाते हैं .
शारीरिक एवं मानसिक गुण : व्यक्तित्व का प्रथम प्रभाव व्यक्ति के शरीर, रूप, रंग, वेशभूषा और शरीर एवं मुख की अभिव्यक्ति ( बॉडी लैंग्वेज) का पड़ता है . उसके पश्चात प्रभाव उसकी भाषा का, सम्प्रेष्ण का होता है . विचारों की अभिव्यक्ति, भाषा तथा  सम्प्रेषण का प्रभाव भी विभिन्न प्रकार से पड़ता है . मधुर वाणी, श्रोता की रूचि के विचार, तर्क सम्मत विचार,  ज्ञान युक्त वाणी  आदि का प्रभाव व्यक्तित्व को विशेष स्तर प्रदान करता है. जिनकी अभिव्यक्ति एवं सम्प्रेषण क्षमता अच्छी होती है उनका व्यक्तित्व प्रभावशाली हो जाता है . वे अपने विचारों से दूसरों को बहुत प्रभावित कर देते हैं तथा लोकप्रिय होते हैं. ऐसे व्यक्ति अच्छे व्यवसायी, नेता, प्रवाचक, वकील, उद्घोषक आदि होते हैं.
   व्यक्ति में सामान्य रूप से  जैविक गुणों (अपनी चिंता करना), मानवीय गुणों (सहयोग की भावना, दूरदृष्टि) अथवा आसुरी गुणों ( दूसरों को कष्ट देना) का जितना प्रभाव होता है, उसका व्यक्तित्व उसी के अनुरूप निर्मित हो जाता है .
   व्यक्ति के शारीरिक-मानसिक  गुणों में उसके स्वास्थ्य, मस्तिष्क की संरचना, बुद्धि, मेधा, स्मृति, विद्या, ज्ञान, कौशल, विवेक आदि तथा उसके संवेगों, भावनाओं, अभिप्रेरणाओं आदि  का उसके व्यक्तित्व पर विशेष प्रभाव पड़ता है.
                          व्यवहार के तत्व
चरित्र : व्यक्ति के चरित्र एवं आचरण का व्यक्तित्व पर विशेष प्रभाव पड़ता है . अनेक गुण होते हुए भी चरित्रहीन एवं आचरण विहीन व्यक्ति को लोग पसंद नहीं करते हैं .
शारीरिक-मानसिक अनुक्रियाएं : व्यक्ति के चलने, उठने-बैठने, खाने-पीने, कपड़े पहनने  आदि शारीरिक गुण तथा, काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, साहस, कायरता, वीरता, ढुलमुल व्यवहार, कामचोर, कार्य में तत्पर, ईमानदार, बेईमान, लापरवाह आदि अनेक गुण व्यक्ति के व्यवहार के प्रमुख तत्व हैं तथा उसे पृथक विशिष्टता प्रदान करते हैं .
परिस्थितियां : व्यक्ति स्वयं को परिस्थितियों के कितना अनुकूल बना सकता है, परिस्थितियों के अनुसार व्यक्ति कैसा व्यवहार करता है, अन्य लोगों से सहयोग करता है या नहीं, यह उसके व्यक्तित्व की प्रमुख विशेषता मानी जाती है .                 
गत्यात्मकता : व्यक्ति के गुण और व्यवहारों में कोई निश्चित क्रम या सम्बन्ध नहीं पाया जाता है और वे किसी भी रूप में प्रगट हो सकते हैं . कोई भी अच्छा या बुरा गुण किसी दूसरे गुण से परिस्थितियों एवं अवसरों के अनुसार जुड़-घट सकता है. एक व्यक्ति बहुत ज्ञानी होने के साथ लालची, झगड़ालू या चरित्रहीन भी हो सकता है. सगे सम्बन्धियों में बहुत प्रेम होता है परन्तु किसी विवाद में वे एक-दूसरे की कब हत्या कर दें, कहा नहीं जा सकता . कर्मचारी संघों के नेता कर्मचारियों के सामने शासन या अधिकारियों के विरुद्ध अनेक बातें करते हैं परन्तु अनेक नेता अधिकारियों के सामने जाकर कर्मचारी हित के स्थान पर अपने व्यक्तिगत हित की बात करते हैं . सम्राट अशोक ने कलिंग विजय प्राप्त की और प्रसन्न होने के स्थान पर इतना दुखी हुए कि बौद्ध हो गए, पूरी तरह अहिंसक हो गए, धर्म प्रचार में लग गए. अरविन्द घोष को उनके पिता ने प्रारम्भ से ऐसे वातावरण में रखा कि उन पर भारतीय विचारों की छाया भी न पड़ सके और वे पूर्णतयः अंग्रेजी सभ्यता में रंग जाएं . इंग्लैण्ड में शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् वे भारत लौटे तो अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध क्रांतिकारियों से जुड़ गए तथा कुछ समय पश्चात योगी हो गए, तपस्या में लीन हो गए. मनुष्य के व्यवहार में यह अप्रत्याशित परिवर्तन गुणों एवं उसकी अनुक्रियाओं में गत्यात्मकता के कारण होता है .
संगतता या पैटर्न : गत्यात्मकता के कारण व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन संभव है परन्तु सामान्य रूप से व्यक्ति का व्यवहार एक सा रहता है अर्थात वह जैसे आज काम कर रहा है, कल और आने वाले दिनों में भी वैसा ही करेगा. इसी तथ्य को उसके काम या व्यवहार का निश्चित पैटर्न कहा जाता है. व्यवहार की एकरूपता ही व्यवहारों की संगतता है . जब किसी व्यक्ति का ध्यान आता है तो उसके कार्य करने के ढंग, उसके व्यवहार, उसकी अभिव्यक्तियाँ आदि सभी एक साथ मस्तिष्क में उभर आती हैं क्योंकि उनमें संगतता होती है.     
                                     अवसर
अवसर एवं चुनौतियों का भी व्यक्तिव निर्माण में बहुत प्रभाव पड़ता है. बल्ब से लेकर फिल्मों तक ११०० से अधिक अविष्कार करने वाले महान वैज्ञानिक एडिसन ने कहा है कि प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में अवसर आते हैं . आवश्यकता है उन्हें पहचानने और पूरा करने का प्रयास करने की. अवसर प्राप्त करना और उपस्थित चुनौतियों का सामना करने से व्यक्तित्व का अपूर्व विकास होता है . भारत स्वतन्त्र हुआ . गांधीजी से निकटता के कारण जवाहर लाल नेहरू देश के प्रधान मंत्री बनने का अवसर मिला . पिछड़े हुए देश को आगे बढ़ने की चुनौती उनके सामने थी . उन्होंने कुछ सार्थक प्रयास भी किये जिससे उनका नाम देशवासियों के लिए आदरणीय हो गया, वे जन नायक बन गए. इंदिरागांधी को प्रधान मंत्री बनने का अवसर नहीं मिला उन्होंने अपनी आत्मशक्ति से अवसर उत्पन्न किया और विरोधियों को मात देकर प्रधान मंत्री बनीं. १९७५ में जब  भ्रष्टाचार के कारण इलाहबाद उच्च न्यायालय ने उन्हें सांसद पद के अयोग्य ठहरा दिया तो उन्होंने अपनी शासक वृत्ति की प्रबल आत्मशक्ति से न्यायालय को दबा दिया और आपातकाल लगाकर सभी विरोधियों को जेल में ठूंस दिया और तानाशाह बन कर देश का शासन किया . डा. मनमोहन सिंह को १९९१ में वित्तमंत्री और २००४ में प्रधान मंत्री बनने का अप्रत्याशित अवसर भाग्य से मिला . वे दस वर्ष तक प्रधानमंत्री रहे परन्तु उनमे आत्मशक्ति न होने के कारण देश-विदेश के लोग उनकी कार्य प्रणाली का उपहास उड़ाते रहे. भारत के संविधान का उपहास उड़ाते हुए उन्होंने अनेक बार कहा कि राहुल गाँधी जब कहें वे उनके लिए पद छोड़ने को तैयार हैं जैसे प्रधान मंत्री का पद कोई पारिवारिक या व्यक्तिगत संपत्ति हो. इतने उच्च पद पर रहते हुए भी  उन्होंने अनुभवहीन युवराज राहुल गाँधी के नेतृत्व  में काम करने की इच्छा  व्यक्त की . देश के सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी के बाद कि अपराधी लोगों को मंत्री एवं सांसद पद  के लिए अयोग्य माना जाए,  डा सिंह ने अपने मंत्रिमंडल से प्रस्ताव पारित करवाया कि न्यायलय का उक्त आदेश लागू नहीं किया जायगा . जब डा. सिंह अमेरिका दौरे पर थे और वहां महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा कर रहे थे, भारत में राहुल गाँधी ने मंत्रिमंडल के उक्त निर्णय को नॉन सेन्स कहा और कहा कि ऐसे निर्णय को कचरे में फेंक देना चाहिए और उसे कचरे में फेंक दिया गया. आत्मशक्ति के अभाव में डा सिंह उसका विरोध न कर सके . इस प्रकार के कार्यों से भाग्य के कारण प्राप्त उच्च पद से निर्मित हुए उनके व्यक्तित्व पर बहुत बड़ा धब्बा लग गया जिसमें  विद्वता से निर्मित उनका व्यक्तित्व भी तिरोहित हो गया .
 प्रबल आत्मशक्ति के लोग स्वयं नए-नए अवसर उत्पन्न करते हैं और सम्मुख आई चुनौतियों का सामना करते हैं जिससे वे इतिहास में प्रसिद्द हो जाते हैं . बाबर, हुमायूं, अकबर, विदेशी थे परन्तु अपनी प्रबल आत्मशक्ति के कारण उन्होंने अवसर उत्पन्न किए, चुनौतियाँ स्वीकार कीं और भारत में राज्य स्थापित किया. महाराणा प्रताप के सामने अकबर ने चुनौती खड़ी की जिसे उन्होंने स्वीकार किया और अंततः अपना स्वतन्त्र राज्य बचाने में सफल रहे . राजस्थान में अनेक राज-महाराजा हो गए हैं परन्तु महाराणा प्रताप के व्यक्तित्व का प्रभाव आज भी है और सदियों तक रहेगा. शिवाजी और छत्रसाल ने स्वयं अवसर उत्पन्न किए और अपने स्वतन्त्र राज्य स्थापित किए . उनका व्यक्तित्व भी अद्भुत था और सदैव याद किया जाता रहेगा.
   भारत में उद्योग के क्षेत्र में धीरुभाई अम्बानी ने, सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नारायण मूर्ती ने अवसर उत्पन्न करके चुनौतियाँ स्वीकार कीं और विश्व विख्यात सफलता प्राप्त की. विज्ञान के क्षेत्र में स्वतंत्रता के पूर्व डा. सी वी रमन ने जिस आत्मशक्ति से भौतिकशास्त्र में न्यूनतम साधनों में उत्कृष्ट शोध कार्य किए और नोबेल पुरस्कार प्राप्त किया, उससे उनका ही नहीं देश का नाम भी ऊंचा हुआ . हिन्दू धर्म को विश्व के लोग उपेक्षनीय  और उपहास का विषय मानते थे . परतंत्र भारत में साधन विहीन स्वामी विवेकानंद ने अपने धर्म के सम्मुख उपस्थित चुनौती को जितनी शान से स्वीकार किया और अपनी अद्भुत आत्मशक्ति से जिस प्रकार विश्व मंच पर प्रस्तुत किया, उससे उनका व्यक्तित्व और हिन्दू धर्म दोनों सर्वत्र छा गए. वे सर्वमान्य आदर्श के दैदीप्यमान पुंज बन गए है . उनके ज्ञान प्रकाश से मानवता सदियों तक आलोकित होती रहेगी.
                 मनोवैज्ञानिकों द्वारा दी गई परिभाषाएँ              
आइजेंक (१९५२) : “व्यक्तित्व व्यक्ति के चरित्र, चित्त प्रकृति, ज्ञानशक्ति तथा शरीर संगठन का लगभग एक स्थाई एवं टिकाऊ संगठन है जो वातावरण में उसके विशिष्ट व्यवहार एवं विचारों को निर्धारित करता है .”
आलपोर्ट (१९६१) : व्यक्तित्व व्यक्ति  के अन्दर उन मनोशारीरिक तंत्रों का गत्यात्मक संगठन है . जो वातावरण में उसके अपूर्व समायोजन का निर्धारण करता है.”
चाइल्ड (१९६८) : “व्यक्तित्व से अभिप्राय लगभग स्थाई आंतरिक कारकों से होता है जो व्यक्ति के व्यवहार को एक से दूसरे समय में संगत बनाता है तथा समतुल्य परिस्थितियों में अन्य लोगों के व्यवहार से भिन्नता प्रदर्शित करता है .”
वाल्टर मिस्केल (१९८१) : व्यक्तित्व से तात्पर्य प्रायः ( विचार एवं भावनाओं को सम्मिलित करते हुए ) उस विशिष्ट पैटर्न से होता है जो प्रत्येक व्यक्ति के जीवन  की परिस्थितियों के साथ होने वाले संयोजन का निर्धारण करता है .”
मैक्कार्डी (१९८५) : “व्यक्तित्व प्रतिमानों ( पैटर्न, रुचियों ) का एक संगठन है जो प्राणी के व्यवहार को विशिष्ट वैयक्तिक दिशा प्रदान करता है .”  
बेरोन  ( १९९३) : “व्यक्तियों के संवेगों, चिंताओं, तथा व्यवहारों के अपूर्व एवं सापेक्ष रूप से स्थिर पैटर्न के रूप में परिभाषित किया जाता है .”






















                         








        




      

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