धर्म :
हिंसा और अहिंसा का द्वन्द
व्यक्ति को हिंसक होना चाहिए या अहिंसक, उसे हिंसा करनी चाहिए या नहीं और यदि करनी चाहिए तो किस सीमा तक ? जैसे अनेक प्रश्न व्यक्ति के मन में उठते रहते हैं . ईसा ने कहा है कि यदि कोई एक गाल पर चांटा माँरे तो दूसरा गाल भी आगे कर दो . परन्तु व्यव्हार में ऐसा नहीं है . शांति के दूत ईसा को सूली पर चढ़ाया गया और उनके अनुयायी ईसाइयों ने अपने धर्म के प्रचार के लिए क्रूरता से हिंसा की . इतिहास इसका साक्षी है . विदेशी मुस्लिम आक्रामकों और शासकों ने भी इस्लाम के प्रचार के लिए हिंसा का मार्ग भी अपनाया . भारत में प्रवर्तित किसी भी धर्म ने धर्म प्रचार के लिए कभी हिंसा का सहारा नहीं लिया . अतः निरपेक्ष रूप से यह नहीं कहा जा सकता कि धर्म हिंसा का समर्थन करता है या अहिंसा का . परन्तु अब यह सामान्य मानवीय अवधारणा स्वीकार कर ली गई है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म का पालन करने का अधिकार है और धर्म सम्बन्धी हिंसा अस्वीकार्य है .
विश्व का इतिहास इस बात का साक्ष्य है कि राज्य और शासन सदैव शक्तिशाली का ही होता है , वह अच्छा है या नहीं , यह भिन्न विषय है .छोटा से छोटा राजा भी अपना राज्य और शासन व्यवस्था बड़े या शक्ति शाली राजा को नहीं सौंपता है और कोई भी राजा बिना हिंसा के अपने राज्य का विस्तार नहीं कर सकता है . बड़े राजा को लोग बड़े सम्मान के साथ स्वीकार करते हैं , इतिहास उसकी प्रशंसा करता है , उसके देशवासी स्वयं को गौरवान्वित अनुभव करते हैं . हारे गए देश के लोग अपने राजा को कोसते हैं , उसकी दुर्बलता की निंदा करते हैं और स्वयं को अपमानित महसूस करते हैं . जहां तक हार-जीत का प्रश्न है, राजा क्या, किसी खेल में अपने देश की टीम की विजय से लोग गौरवान्वित होते हैं और हारने पर दुखी . विजय हिंसा द्वारा प्राप्त की गई हो या अहिंसा द्वारा , इतिहास में वह सम्मान प्राप्त करती है .
भारत के सन्दर्भ में अक्टूबर माह का विशेष महत्व होता है . दो अक्टूबर को महात्मा गाँधी का जन्म दिन होता है . महात्मा गाँधी का नाम आते ही अहिंसा का सिद्धांत सामने आ जाता है . गाँधी जी ने असहयोग आंदोलनों के द्वारा भारत में अंग्रेजी शासन से संघर्ष किया था और अनेक लोग उनके अहिंसात्मक आन्दोलन को भारत की आज़ादी का श्रेय देते हैं . आज विश्व के अनेक नेता उनके शांति पूर्ण ढंग से राजनीतिक विवाद सुलझाने की वकालत करते हैं . भारत के नेता तो अहिंसा का नाम लेते ही गद्गगद हो जाते हैं . परन्तु गाँधी जी अहिंसा के पूर्व सत्य पर चलने , स्वार्थ त्यागने और निडर होने की बात करते हैं जबकि हमारे आज के नेता जो गाँधी जी के अहिंसा के सिद्धांत का शोर मचाते हैं , अपवाद छोड़कर सदैव मिथ्याचरण करते है , अपने स्वार्थ के लिए काम करते हैं और अत्यंत भयभीत रहते हैं . वे ज़ेड कमांडो के बिना एक कदम भी नहीं चल पाते हैं . प्रश्न यह है कि अहिंसा को मानने वाले लोग हिंसा से इतना क्यों डरे हुए हैं ? क्या अहिंसा हिंसा से बहुत कमज़ोर होती है ?
अक्टूबर के महीने में ही प्रायः दुर्गा पूजा और दशहरा आते हैं . देवी दुर्गा ने तो महिषासुर , शुम्ब-निशुम्भ , चंड-मुंड , रक्तबीज जैसे अत्यंत बलवान और क्रूर राक्षसों का वध किया था . रक्तबीज राक्षस को यह वरदान प्राप्त था कि जहां पर उसका रक्त गिरेगा , उसकी हर बूँद से नया रक्तबीज राक्षस उत्पन्न हो जायगा . जब माँ काली ने उसका गला काटा तो उसके रक्त के पृथ्वी पर गिरते ही अनेक रक्तबीज उत्पन्न हो कर युद्ध करने लगे . उसे मारा जाय और खून ज़मीन पर न गिरे , यह कैसे सम्भव था ! अंततः माँ काली ने एक पात्र भी हाथ में लिया ताकि उसके गिरने वाले रक्त को उसमें ही गिराया जाय और कहीं पृथ्वी पर न गिरे . इसलिए रक्तबीज को मारने के साथ-साथ उसका रक्तपान भी करती गईं . उन्होंने इतनी तीव्र गति से युद्ध किये कि रक्तबीज का गला काटा , पात्र में रक्त इकठ्ठा किया , उसे पी लिया और दूसरे रक्तबीज को मारा . इस प्रकार उनका अंत किया .
भगवान राम ने भी रावण पर विजय प्राप्त करने के लिए शक्ति अर्थात भगवती की उपासना की थी . किसी भी धर्म ग्रन्थ या अन्य पुस्तक में राक्षसों के संहार को हिंसा के रूप में निरूपित नहीं किया गया है . दशहरे पर रावण का वध और दहन किया जाता है . राम की विजय को बुराई पर अच्छाई की जीत कहा जाता है . राम ने ताड़का को भी मारा था जबकि हिन्दू धर्म में स्त्री और ब्राह्मण के वध का निषेध है और उसे बहुत बड़ा पाप माना गया है . यह तथ्य राम भी जानते थे . परन्तु अपने पाप और उसके होने वाले परिणामों को देखें या जन सामान्य की पीड़ा को ? इसलिए उन्होंने स्वयं पाप झेलते हुए भी जनहित में आततायियों को मारा . बाद में प्रायश्चित स्वरूप उन्होंने यज्ञ और दान–पुण्य किये . पंडितों ने इसे धर्म सम्मत कहा है . भगवती देवी एवं श्री राम को हिन्दू भगवान् स्वीकार करते हैं , उनकी पूजा करते हैं .
भारतीय न्यायालय मृत्यु दण्ड को उचित नहीं मानते . जब पाकिस्तानी सैनिक भारतीय सैनिकों का सिर काट ले जाते हैं तो हमारी सरकार उनकी निंदा करने के बाद अहिंसा की बात करने लगती है . जब अधिकारी, मंत्री मनमाने ढंग से लूटपाट और राक्षसों के सामान जन पीड़ा दायक कर्म करते जाते हैं तो उन्हें पूरी छूट दी जाती है क्योंकि वे इसे अहिंसा पूर्वक करते हैं . जब पीड़ित जनता विद्रोह करती है तो सरकार द्वारा उसे हिंसा कह कर उन पर हिंसक आक्रमण किये जाते हैं और उन्हें जेलों में बंद कर दिया जाता है और अनेक कष्ट दिए जाते हैं . प्रश्न यह है कि क्या अहिंसक लूट और अत्याचार सर्वमान्य हैं तथा उनके विरोध स्वरूप हिंसा अनुचित है ? क्या इसीलिए भारतीय क्रांतिकारियों को सेकुलरवादी इतिहासकारों ने आतंकवादी कहा है , लोकमान्य तिलक को आतंकवादियों को प्रेरित करने वाला कहा गया है ?
हिंसा - अहिंसा का द्वन्द्व इतना ही है कि शक्तिशाली व्यक्ति के कार्य अहिंसक होते हैं और शक्तिशाली व्यक्ति किसी भी कार्य को न्याय विरुद्ध अथवा हिंसक निरूपित कर सकते हैं और हिंसा द्वारा उनको दबा सकते हैं उनका अंत कर सकते हैं . कुछ विद्वानों की उक्तियों के परिप्रेक्ष्य में भी इसे समझना उपयुक्त होगा .
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ : हिंसा का आघात तपस्या ने कब कहाँ सहा है ?
देवों का दल सदा दानवों से हारता रहा है .
विनोबा भावे : जो फूट डालती है , भेद बढ़ाती , वही हिंसा है .
विनोबा जी के कथन के अनुसार तो भारतीय नेता भयंकर हिंसक हैं क्योंकि वे अपनी पूरी शक्ति से लोगों में भेद बढ़ाने और फूट डालने में व्यस्त हैं ताकि जनता इतनी कमजोर हो जाये कि उन्हें मनमानी लूट-खसोट करने से कोई रोक न सके .
शुभचन्द्राचार्य : हिंसा ही दुर्गति का द्वार है , हिंसा ही पाप का समुद्र है , हिंसा ही घोर नरक है , हिंसा ही महा अंधकार है .
डा. ए. डी. खत्री :शरीर पर आघात ही हिंसा नहीं है अपितु मन , वचन और कर्म से किसी भी प्राणी को मानसिक , शारीरिक अथवा आर्थिक कष्ट देना अथवा कोई ऐसा कार्य करना जिससे किसी को वर्तमान या भविष्य में क्षति हो , हिंसा है .
मानसिक विकृति के असामान्य कार्य इसके अपवाद होंगे . यदि कोई सामान्य लड़की अनायास किसी प्रतिष्ठित पुरुष से या व्यक्ति किसी महिला से कहे कि वह उससे विवाह करे तो यह संभव नहीं होगा और इससे यदि चाहने वाले को कोई कष्ट होता है तो यह हिंसा नहीं होगी . इसी प्रकार यदि कोई नशा करने के लिए अथवा आपराधिक कृत्य करने के लिए किसी से धन या सहयोग मांगे और वह न दे तो मांगने वाले को होने वाले कष्ट के लिए इन्कार करना कोई हिंसा नहीं है . देश में शिक्षा व्यवस्था चौपट करने , चिकित्सालयों में सुविधाएँ न देने , नगर पालिकाओं द्वारा धन वसूलने और नागरिकों को कोई सुविधा न देने जैसे अनेक सरकारी कृत्य , भ्रष्टाचार , घूंस , गबन , अयोग्य लोगों की नियुक्तियां, न्यायालयों द्वारा न्याय न देना या उसमें विलम्ब करना आदि अहिंसा के वेश में छुपे हुए अत्यंत क्रूर राक्षसी कर्म हैं और हिंसा का मूल हैं . इससे पीड़ित व्यक्ति के मन में आक्रोश भरता जाता है जो दबे हुए क्रोध और बैर में परिणित होता जाता है तथा अवसर मिलते ही विद्रोह, सरकार और सार्वजानिक संपत्ति को हिंसक कार्यों द्वारा नष्ट करने, आगजनी करने , दंगे करवाने तथा क्रांति करने जैसे अनेक रूपों में प्रकट होता है. इससे वर्तमान ही नहीं आने वाली अनेक पीढ़ियां विभिन्न प्रकार हिंसा तथा कष्ट उठाने को बाध्य होती हैं .
शेर द्वारा पशु का भक्षण हिंसा नहीं है , उसका धर्म ( प्रकृति ) है . सेना द्वारा आक्रमणकारी शत्रुओं का संहार , न्यायाधीश द्वारा अपराधी को दिया गया दंड , जल्लाद द्वारा दी गई फांसी जैसे अनेक कार्य हिंसा नहीं हैं जो असामान्य स्थितियों में कर्तव्य पालन के लिए किये गए हों .
अहिंसा के सम्बन्ध में विचार
महात्मा गाँधी : अहिंसा सत्य का प्राण है उसके बिना मनुष्य पशु है . अहिंसा का अर्थ है ईश्वर पर भरोसा करना .
पतंजलि : जब कोई व्यक्ति अहिंसा की कसौटी पर खरा उतर जाता है तो दूसरे व्यक्ति स्वयं ही उसके पास आकर वैरभाव भूल जाते हैं .
शंकराचार्य : जीवमात्र की अहिंसा स्वर्ग को देने वाली है .
भगवती चरण वर्मा : हममें दया , प्रेम , त्याग , ये सब प्रवृत्तियां मौजूद हैं इन सब को विकसित करके अपने सत्य और मानवता के सत्य को एकरूप कर देना – यही अहिंसा है .
डा.ए.डी.खत्री : जिस प्रकार नपुंसक व्यक्ति ब्रह्मचारी नहीं कहा जाता है, पदहीन व्यक्ति का सदाचारी होना अर्थहीन है, , दुर्बल व्यक्ति भी अहिंसक होने की प्रतिष्ठा नहीं प्राप्त कर सकता है . अहिंसक होने के लिए व्यक्ति का शक्तिशाली होना अनिवार्य शर्त है . शक्तिशाली व्यक्ति या देश पर कोई हमले या क्षति पहुँचाने का साहस नहीं करता है जिससे अहिंसक व्यवस्था बनी रहती है .
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