शुक्रवार, 22 नवंबर 2013

शादी

                            शादी

  सुदीप का जन्मदिन सैनिक अधिकारियों की मेस में बड़ी धूमधाम से  मनाया जा रहा था . इसी माह उसका प्रमोशन कैप्टेन के रैंक पर हुआ था . अनेक वरिष्ठ सैनिक अधिकारी एवं उनके परिवार के सदस्य वहां उपस्थित थे . डी जे पर मस्त संगीत चल रहा था . सैनिक अधिकारी हों , जाम हो और संगीत हो तो फिर मस्ती का कहना ही क्या है .सब नाच-गा रहे  थे . पहले तो सिर्फ अधिकारी ही थिरक रहे थे फिर धीरे-धीरे उनकी पत्नियाँ और बच्चे भी सम्मिलित होते गए . सुदीप की जोड़ी रीना से बहुत जम रही थी . उनके नृत्य को देख कर लगता था जैसे किसी संगीत अकादमी से वे उस दिन के नृत्य के लिए विशेष प्रशिक्षण प्राप्त करके आये हों . सामूहिक नृत्य के बाद उन्होंने अलग से भी  डांस किया . उन्हें  देख कर सब वाह- वाह कहने लगे . नृत्य के बाद बड़ी देर तक तालियों की गड़गड़ाहट से हाल गूंजता रहा . उसके बाद सबने भोजन किया . कार्यक्रम समाप्त होते-होते रात्रि के १२ बज गए .
   घर आकर सुदीप सोने के लिए बिस्तर पर लेट तो गया परन्तु उसकी आँखों से नींद नदारद थी . बार-बार उसे रीना याद आ रही थी . रीना की एक-एक अदाएं उसके सामने बार-बार नाच रहीं थीं . दिन में वह डयूटी पर होता तो भी सामने रीना दिखती . वह पल-पल यही सोचता रहता कि रीना उसकी कैसे हो जाय . उधर रीना भी सुदीप की याद में खोई रहती . जब भी समय मिलता दोनों घूमने जाते . वे मुलाकातें उनकी मिलन की प्यास को बुझाने के बदले और बढ़ा देतीं .
   रीना कर्नल राठौर की इकलौती बेटी थी . कर्नल उसे अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करते थे . वह इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करके दो महीने पहले ही लौटी थी . रीना बहुत सुन्दर होने के साथ ही बुद्धिमान भी बहुत थी . उसका चयन ऊंचे वेतन पर एक बहु राष्ट्रीय कंपनी में हो गया था . वह कंपनी के बुलावे की प्रतीक्षा कर रही थी . पिता के साथ वह भी मेस जाती , सभी कार्यक्रमों में वह उत्साह से भाग लेती और अपने मधुर स्वभाव से सबका मन मोह लेती . उससे मिलकर सुदीप का तो दिल ही उससे दगा दे  गया था . उसे कुछ भी अच्छा नहीं लगता था . दोनों में दोस्ती तो अच्छी थी परन्तु सुदीप को यही विचार सताता रहता कि रीना उससे विवाह नहीं करेगी . एक तो उसकी बहुत अच्छी नौकरी लग चुकी है , दूसरे वह कर्नल राठौर की बेटी है जो एक बहुत बड़े जमींदार परिवार से हैं और आज भी उसी शान शौकत से रहते हैं जबकि वह एक सामान्य गुप्ता परिवार का है . कभी एक फौजी के साहस का सहारा लेकर और  कभी फिल्मों से प्रेरणा लेकर उसने निश्चय किया कि वह कर्नल साहब से विवाह की बात करेगा .
   कर्नल साहब बड़े ठाकुर परिवार से होने के बावजूद आधुनिक विचारों के थे और जांति-पाति के दकियानूसी विचारों को नहीं मानते थे . उन्हें भी सुदीप बहुत अच्छा लगता था . वह भी इंजीनियर था, होनहार था . उसका रंग भी साफ़ था, छः फीट लम्बा था, स्वास्थ्य बहुत अच्छा था .  एक लड़के में और क्या चाहिए ? उनके सामने भी एक ही समस्या थी, रीना का कैरियर . अब वह  समय तो रहा नहीं  है कि बेटी पिया के घर चली गई और वहीं समा गई . अतः वे भी सुदीप से कुछ नहीं बोले . जब सुदीप ने उनसे रीना का हाथ माँगा तो वे भी बहुत प्रसन्न हुए परन्तु उन्होंने संयमित होकर यही उत्तर दिया कि वे सोचकर बताएँगे .
   कर्नल साहब ने अपनी पत्नी से चर्चा की . वे दोनों ही जानते थे कि रीना भी सुदीप को चाहती है परन्तु विवाह  कोई एक दिन का काम तो है नहीं, उसके सभी पक्षों पर विचार करना आवश्यक है . रीना के लिए उनके परिवार में ही कुछ बहुत अच्छे लड़के थे . कोई उच्च शासकीय पदों पर थे तो कोई बड़ी कंपनियों में थे . उनके सम्बन्धियों ने इशारों में रिश्ता माँगा भी था  परन्तु उस समय रीना पढ़ रही थी अतः किसी ने खुलकर बात नहीं की . अभी भी  रीना की उम्र मात्र २२  वर्ष ही थी , विवाह की कोई जल्दी नहीं थी परन्तु अंतिम निर्णय लेने से पूर्व उन्होंने एक बार रीना से पूछना उचित समझा . जब माँ ने रीना से पूछा तो पहले वह न नुकुर करती रही फिर सकुचाते हुए बोली, “जैसा आपको अच्छा लगे , आप निर्णय ले लें .” बेटी की आयु कम है परन्तु भगवान् ने घर बैठे ही इतना अच्छा रिश्ता भेज दिया है , लड़का देखा हुआ है , सब तरह से अच्छा है अतः उन्होंने भी रिश्ते का मन बना लिया .
  विवाह कोई गुड्डे- गुडिया का खेल तो है नहीं कि जहां जब और जैसे चाहा रिश्ता कर लिया .उसमें परिवारों का मिलन होता है . अतः कर्नल साहब ने सुदीप से तो हाँ कह दी परन्तु कहा कि इसके लिए वे उसके पिता से बात करेंगे . सुदीप की ख़ुशी का ठिकाना न रहा . वह अपने परिवार और पिता जी को अच्छी प्रकार  जानता था . उसके पिता कई बार कह चुके थे कि उनका लड़का इंजीनियर है , कैप्टेन हो गया है , उन्हें २०-२५ लाख का दहेज़ तो मिलना ही चाहिए . सुदीप जानता था कि यदि उसके पिता जी ने दहेज का नाम लिया तो कर्नल साहब कभी  भी रिश्ता नहीं करेंगे और अधिकारीयों के मध्य  उसकी स्थिति भी  खराब हो जायगी . अतः उसने अपने पिता को समझा दिया कि वह रीना से विवाह करना चाहता है, कर्नल साहब उनसे बात करेंगे तो वे दहेज़ की कोई बात न करें . कर्नल साहब बहुत बड़े परिवार के हैं , रीना उनकी इकलौती बेटी है . अतः उसे अभी नहीं  तो बाद में ही सही, उनकी सारी संपत्ति मिल जायगी . अतः वे लेनदेन की कोई बात भूल कर भी न करें . सुदीप ने यह भी चेतावनी दे दी कि यदि उसकी शादी रीना से न  हुई तो वह विवाह करेगा ही नहीं . उसके पिता के लिए यह शर्त पहाड़ के समान थी . वे पारिवारिक परम्पराओं को छोड़ने के पक्ष में नहीं थे .उनके पास अच्छे-अच्छे रिश्ते आ रहे थे . उन्हें मुफ्त में छोड़ना उनकी समझ से परे था . घर में कोहराम मच गया . परन्तु सुदीप की माँ तथा अन्य रिश्तेदारों के समझाने पर वे दिल पर पत्थर रख कर बात करने के लिए तैयार हो गए . कर्नल साहब ने पूरे मान - सम्मान के साथ उनसे बात की और रिश्ता पक्का हो गया .
  अब  पुराना ज़माना नहीं रहा जब गाँव और कस्बों में ही रिश्ते हो जाते थे . लड़के वाले कहीं के होते हैं , लड़की वाले कहीं के . सब चाहते हैं कि विवाह उनके घर से उनकी सुविधानुसार हो . सुदीप लखनऊ का रहने वाला था . कर्नल राठौर  जयपुर से थे . उस समय दोनों की पोस्टिंग देहरादून में थी . सुदीप के पिता ने कहा कि शादी लखनऊ से ही करनी होगी . कुछ आनाकानी के बाद कर्नल साहब इसके लिए तैयार हो गए . विवाह के एक दिन पूर्व तिलक  होगा जिसमें २०० लोग आयेंगे तथा विवाह में ५-६ सौ बाराती होंगे जैसे अन्य छोटे-मोटे परन्तु महत्वपूर्ण विन्दुओं पर भी सहमती हो गई . एक अच्छे शादीघर में विवाह करने का निर्णय भी ले लिया गया .
   कुछ समय बाद सुदीप का स्थानांतरण कानपुर हो गया . फोन – मोबाईल पर बातें होती रहतीं . विवाह की तिथि कब आ गई पता ही न चला . कर्नल साहब ने अपनी ओर से कोई कमी न रहने दी . तिलक में सबकी अच्छी आवभगत की गई . नगद के अलावा सुदीप की माँ, बहन, पिता को स्वर्ण के एवं अन्य सम्बंधियों को भी अच्छे उपहार दिए गए . भोजन भी बहुत अच्छा था . बहुत ही अच्छे और उत्साह पूर्ण वातावरण में कार्यक्रम संपन्न  हुआ . सुदीप खुश था , उसके घरवाले भी खुश थे परन्तु पिता चुप-चुप थे . उनके अन्दर उथल-पुथल मची हुई थी . अंततः उनसे न रहा गया . वे अपने साले को लेकर कर्नल साहब के पास पहुंचे . कर्नल साहब ने उनका स्वागत किया और आने का कारण पूछा . गुप्ता जी ने कहा कि उनके कार्यक्रम से वे खुश है परन्तु वे चाहते हैं कि कल विवाह के समय कार अवश्य दी जाये . मेरा लड़का इतना योग्य है , आप का भी स्टेटस इतना बड़ा है , हमारी भी शहर में अच्छी प्रतिष्ठा है , कार तो मिलनी ही चाहिए . कर्नल साहब बहुत दुविधा में पड़ गए . उन्होंने कहा कि वे इस तैयारी के साथ नहीं आए  हैं .वह बाद में दे देंगे . परन्तु गुप्ता जी नहीं माने . एक तरह से उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि विवाह के पूर्व कार देनी ही होगी . अपनी बात कह कर गुप्ता जी चले गए .
   उनके जाने के बाद कर्नल उद्विग्न हो गए . वे अपने उसूलों के पक्के थे, खानदानी ठाकुर, ऊपर से फौजी अफसर . परन्तु आज प्रश्न उनकी बेटी के विवाह का था . क्रोध और जल्दबाजी में निर्णय लेना उचित नहीं  था . अतः उन्होंने पहले अपनी पत्नी से बात की . वह बेचारी क्या कहती ? सन्न रह गई . अन्य संबन्धियों से भी चर्चा की गई . कोई हल नहीं निकल पा रहा था . गंभीर वातावरण और खुसर-पुसर की जानकारी रीना को भी हो गई . उसे बहुत  सदमा लगा और वह चुप हो गई . सबके सामने यक्ष प्रश्न था कि कल कार न देने पर उन्होंने यदि शादी से इन्कार कर दिया तो क्या होगा ! उधर रीना सोचने लगी कि क्या प्यार – विवाह – रिश्तों की सीमा पैसों और कार तक ही होती है ? अपने पिता का सदा हंसमुख और रौबदार रहने वाला चेहरा उदास देखकर वह विद्रोह कर उठी . उसका प्यार-व्यार उसके क्रोध से कपूर की भांति उड़ गया . उसने सबके सामने यह निर्णय सुना दिया कि वह किसी भी कीमत पर सुदीप से विवाह नहीं करेगी . इस निर्णय को लागू करना भी इतना आसा न था . कर्नल साहब ने अंतिम प्रयास के रूप में एक बार संदीप से बात करना उचित समझा परन्तु रीना टस से मस  हुई . उसने कहा कि वह शादी नहीं करेगी, नहीं करेगी, नहीं करेगी और यदि जबरदस्ती की गई तो वह प्राण दे देगी . उसके आगे किसी को कुछ कहने की हिम्मत नहीं हुई .
    उधर सुदीप के घर में खुशियाँ ही खुशियां थीं . जिसने भी रीना को देखा था , उसके मन में रीना थी  आँखों के आगे रीना थी और सबके मुंह में एक ही बात थी कि भगवान ने कितनी अच्छी जोड़ी बनाई है , कितना अच्छा परिवार है . सुदीप विवाह  के लिए तैयार हुआ . उसने जरी का काम की हुई शेरवानी और चूड़ीदार पायजामा पहना , सेहरा बांधा और खूबसूरत बग्घी में सवार हो गया . डी जे पर धुनें बज रहीं थीं और बाल, युवा, प्रौढ़ , स्त्री, पुरुष सभी नाच रहे थे . युवाओं पर तो मस्ती का रंग इतना चढ़ा था कि बारात को आगे बढ़ाने उनको ढकेलना पड़  रहा था . बारात शादी घर के पास पहुंची तो लोगों को आश्चर्य हुआ कि वहां न तो कोई सजावट थी और न ही संगीत बज रहा था . पहले तो सबने समझा कि बिजली उड़ गई होगी ,सुधार रहे होंगे परतु वहां जाकर सबने देखा कि वहां सजावट, संगीत, और विवाह की व्यवस्थाएं क्या , कोई भी नहीं था . प्रबंधक ने पूछने पर बताया कि कर्नल साहब सब कुछ निरस्त करके सुबह ही यहाँ से चले गए हैं . सबको आश्चर्य हो रहा था कि अचानक ऐसा क्या हो  गया कि वे विवाह छोड़ कर चले गए और जाना ही था तो बताकर जाते . यह फजीहत तो न होती . सब गुप्ता जी से पूछने लगे कि ऐसी क्या बात हो गई ? क्या लेनदेन का विवाद  हुआ था ? गुप्ता जी क्या कहते ? बड़े भोले बनकर वे सबको समझा रहे थे कि उन्होंने कर्नल साहब को कितना सहयोग दिया और वे सारे शहर में उनकी प्रतिष्ठा को धूल में मिलाकर चले गए . बारातियों में तरह - तरह की बातें होने लगीं। 
   सेना में यह परंपरा है कि विवाह आदि आयोजनों में उस व्यक्ति की यूनिट से के एक-दो लोगो को भेजा जाता है जो उस यूनिट का प्रतिनिधित्व करते हैं . सुदीप को भी बहुत क्रोध आ रहा था . उन्होंने वापस जाकर कर्नल की शिकायत की . परन्तु कर्नल साहब तो पहले ही उसके कमांडिंग अधिकारी को रिपोर्ट कर चुके थे . सारे मामले की जांच हुई . सुदीप का कोर्ट मार्शल किया गया . उसे उपहार में मिला सामान तो वापस करना ही पड़ा , नौकरी से भी बर्खास्त कर दिया गया . कार के चक्कर में बीबी भी गई , नौकरी भी गई और बचा खुचा प्रकरण पुलिस के हवाले कर दिया गया .          
                                                                       
                                                                       

 रियों की मेस में बड़ी धूमधाम से  मनाया जा रहा था . इसी माह उसका प्रमोशन कैप्टेन के रैंक पर हुआ था . अनेक वरिष्ठ सैनिक अधिकारी एवं उनके परिवार के सदस्य वहां उपस्थित थे . डी जे पर मस्त संगीत चल रहा था . सैनिक अधिकारी हों , जाम हो और संगीत हो तो फिर मस्ती का कहना ही क्या है .सब नाच-गा रहे  थे . पहले तो सिर्फ अधिकारी ही थिरक रहे थे फिर धीरे-धीरे उनकी पत्नियाँ और बच्चे भी सम्मिलित होते गए . सुदीप की जोड़ी रीना से बहुत जम रही थी . उनके नृत्य को देख कर लगता था जैसे किसी संगीत अकादमी से वे उस दिन के नृत्य के लिए विशेष प्रशिक्षण प्राप्त करके आये हों . सामूहिक नृत्य के बाद उन्होंने अलग से भी  डांस किया . उन्हें  देख कर सब वाह- वाह कहने लगे . नृत्य के बाद बड़ी देर तक तालियों की गड़गड़ाहट से हाल गूंजता रहा . उसके बाद सबने भोजन किया . कार्यक्रम समाप्त होते-होते रात्रि के १२ बज गए .
   घर आकर सुदीप सोने के लिए बिस्तर पर लेट तो गया परन्तु उसकी आँखों से नींद नदारद थी . बार-बार उसे रीना याद आ रही थी . रीना की एक-एक अदाएं उसके सामने बार-बार नाच रहीं थीं . दिन में वह डयूटी पर होता तो भी सामने रीना दिखती . वह पल-पल यही सोचता रहता कि रीना उसकी कैसे हो जाय . उधर रीना भी सुदीप की याद में खोई रहती . जब भी समय मिलता दोनों घूमने जाते . वे मुलाकातें उनकी मिलन की प्यास को बुझाने के बदले और बढ़ा देतीं .
   रीना कर्नल राठौर की इकलौती बेटी थी . कर्नल उसे अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करते थे . वह इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करके दो महीने पहले ही लौटी थी . रीना बहुत सुन्दर होने के साथ ही बुद्धिमान भी बहुत थी . उसका चयन ऊंचे वेतन पर एक बहु राष्ट्रीय कंपनी में हो गया था . वह कंपनी के बुलावे की प्रतीक्षा कर रही थी . पिता के साथ वह भी मेस जाती , सभी कार्यक्रमों में वह उत्साह से भाग लेती और अपने मधुर स्वभाव से सबका मन मोह लेती . उससे मिलकर सुदीप का तो दिल ही उससे दगा दे  गया था . उसे कुछ भी अच्छा नहीं लगता था . दोनों में दोस्ती तो अच्छी थी परन्तु सुदीप को यही विचार सताता रहता कि रीना उससे विवाह नहीं करेगी . एक तो उसकी बहुत अच्छी नौकरी लग चुकी है , दूसरे वह कर्नल राठौर की बेटी है जो एक बहुत बड़े जमींदार परिवार से हैं और आज भी उसी शान शौकत से रहते हैं जबकि वह एक सामान्य गुप्ता परिवार का है . कभी एक फौजी के साहस का सहारा लेकर और  कभी फिल्मों से प्रेरणा लेकर उसने निश्चय किया कि वह कर्नल साहब से विवाह की बात करेगा .
   कर्नल साहब बड़े ठाकुर परिवार से होने के बावजूद आधुनिक विचारों के थे और जांति-पाति के दकियानूसी विचारों को नहीं मानते थे . उन्हें भी सुदीप बहुत अच्छा लगता था . वह भी इंजीनियर था, होनहार था . उसका रंग भी साफ़ था, छः फीट लम्बा था, स्वास्थ्य बहुत अच्छा था .  एक लड़के में और क्या चाहिए ? उनके सामने भी एक ही समस्या थी, रीना का कैरियर . अब वह  समय तो रहा नहीं  है कि बेटी पिया के घर चली गई और वहीं समा गई . अतः वे भी सुदीप से कुछ नहीं बोले . जब सुदीप ने उनसे रीना का हाथ माँगा तो वे भी बहुत प्रसन्न हुए परन्तु उन्होंने संयमित होकर यही उत्तर दिया कि वे सोचकर बताएँगे .
   कर्नल साहब ने अपनी पत्नी से चर्चा की . वे दोनों ही जानते थे कि रीना भी सुदीप को चाहती है परन्तु विवाह  कोई एक दिन का काम तो है नहीं, उसके सभी पक्षों पर विचार करना आवश्यक है . रीना के लिए उनके परिवार में ही कुछ बहुत अच्छे लड़के थे . कोई उच्च शासकीय पदों पर थे तो कोई बड़ी कंपनियों में थे . उनके सम्बन्धियों ने इशारों में रिश्ता माँगा भी था  परन्तु उस समय रीना पढ़ रही थी अतः किसी ने खुलकर बात नहीं की . अभी भी  रीना की उम्र मात्र २२  वर्ष ही थी , विवाह की कोई जल्दी नहीं थी परन्तु अंतिम निर्णय लेने से पूर्व उन्होंने एक बार रीना से पूछना उचित समझा . जब माँ ने रीना से पूछा तो पहले वह न नुकुर करती रही फिर सकुचाते हुए बोली, “जैसा आपको अच्छा लगे , आप निर्णय ले लें .” बेटी की आयु कम है परन्तु भगवान् ने घर बैठे ही इतना अच्छा रिश्ता भेज दिया है , लड़का देखा हुआ है , सब तरह से अच्छा है अतः उन्होंने भी रिश्ते का मन बना लिया .
  विवाह कोई गुड्डे- गुडिया का खेल तो है नहीं कि जहां जब और जैसे चाहा रिश्ता कर लिया .उसमें परिवारों का मिलन होता है . अतः कर्नल साहब ने सुदीप से तो हाँ कह दी परन्तु कहा कि इसके लिए वे उसके पिता से बात करेंगे . सुदीप की ख़ुशी का ठिकाना न रहा . वह अपने परिवार और पिता जी को अच्छी प्रकार  जानता था . उसके पिता कई बार कह चुके थे कि उनका लड़का इंजीनियर है , कैप्टेन हो गया है , उन्हें २०-२५ लाख का दहेज़ तो मिलना ही चाहिए . सुदीप जानता था कि यदि उसके पिता जी ने दहेज का नाम लिया तो कर्नल साहब कभी  भी रिश्ता नहीं करेंगे और अधिकारीयों के मध्य  उसकी स्थिति भी  खराब हो जायगी . अतः उसने अपने पिता को समझा दिया कि वह रीना से विवाह करना चाहता है, कर्नल साहब उनसे बात करेंगे तो वे दहेज़ की कोई बात न करें . कर्नल साहब बहुत बड़े परिवार के हैं , रीना उनकी इकलौती बेटी है . अतः उसे अभी नहीं  तो बाद में ही सही, उनकी सारी संपत्ति मिल जायगी . अतः वे लेनदेन की कोई बात भूल कर भी न करें . सुदीप ने यह भी चेतावनी दे दी कि यदि उसकी शादी रीना से न  हुई तो वह विवाह करेगा ही नहीं . उसके पिता के लिए यह शर्त पहाड़ के समान थी . वे पारिवारिक परम्पराओं को छोड़ने के पक्ष में नहीं थे .उनके पास अच्छे-अच्छे रिश्ते आ रहे थे . उन्हें मुफ्त में छोड़ना उनकी समझ से परे था . घर में कोहराम मच गया . परन्तु सुदीप की माँ तथा अन्य रिश्तेदारों के समझाने पर वे दिल पर पत्थर रख कर बात करने के लिए तैयार हो गए . कर्नल साहब ने पूरे मान - सम्मान के साथ उनसे बात की और रिश्ता पक्का हो गया .
  अब  पुराना ज़माना नहीं रहा जब गाँव और कस्बों में ही रिश्ते हो जाते थे . लड़के वाले कहीं के होते हैं , लड़की वाले कहीं के . सब चाहते हैं कि विवाह उनके घर से उनकी सुविधानुसार हो . सुदीप लखनऊ का रहने वाला था . कर्नल राठौर  जयपुर से थे . उस समय दोनों की पोस्टिंग देहरादून में थी . सुदीप के पिता ने कहा कि शादी लखनऊ से ही करनी होगी . कुछ आनाकानी के बाद कर्नल साहब इसके लिए तैयार हो गए . विवाह के एक दिन पूर्व तिलक  होगा जिसमें २०० लोग आयेंगे तथा विवाह में ५-६ सौ बाराती होंगे जैसे अन्य छोटे-मोटे परन्तु महत्वपूर्ण विन्दुओं पर भी सहमती हो गई . एक अच्छे शादीघर में विवाह करने का निर्णय भी ले लिया गया .
   कुछ समय बाद सुदीप का स्थानांतरण कानपुर हो गया . फोन – मोबाईल पर बातें होती रहतीं . विवाह की तिथि कब आ गई पता ही न चला . कर्नल साहब ने अपनी ओर से कोई कमी न रहने दी . तिलक में सबकी अच्छी आवभगत की गई . नगद के अलावा सुदीप की माँ, बहन, पिता को स्वर्ण के एवं अन्य सम्बंधियों को भी अच्छे उपहार दिए गए . भोजन भी बहुत अच्छा था . बहुत ही अच्छे और उत्साह पूर्ण वातावरण में कार्यक्रम संपन्न  हुआ . सुदीप खुश था , उसके घरवाले भी खुश थे परन्तु पिता चुप-चुप थे . उनके अन्दर उथल-पुथल मची हुई थी . अंततः उनसे न रहा गया . वे अपने साले को लेकर कर्नल साहब के पास पहुंचे . कर्नल साहब ने उनका स्वागत किया और आने का कारण पूछा . गुप्ता जी ने कहा कि उनके कार्यक्रम से वे खुश है परन्तु वे चाहते हैं कि कल विवाह के समय कार अवश्य दी जाये . मेरा लड़का इतना योग्य है , आप का भी स्टेटस इतना बड़ा है , हमारी भी शहर में अच्छी प्रतिष्ठा है , कार तो मिलनी ही चाहिए . कर्नल साहब बहुत दुविधा में पड़ गए . उन्होंने कहा कि वे इस तैयारी के साथ नहीं आए  हैं .वह बाद में दे देंगे . परन्तु गुप्ता जी नहीं माने . एक तरह से उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि विवाह के पूर्व कार देनी ही होगी . अपनी बात कह कर गुप्ता जी चले गए .
   उनके जाने के बाद कर्नल उद्विग्न हो गए . वे अपने उसूलों के पक्के थे, खानदानी ठाकुर, ऊपर से फौजी अफसर . परन्तु आज प्रश्न उनकी बेटी के विवाह का था . क्रोध और जल्दबाजी में निर्णय लेना उचित नहीं  था . अतः उन्होंने पहले अपनी पत्नी से बात की . वह बेचारी क्या कहती ? सन्न रह गई . अन्य संबन्धियों से भी चर्चा की गई . कोई हल नहीं निकल पा रहा था . गंभीर वातावरण और खुसर-पुसर की जानकारी रीना को भी हो गई . उसे बहुत  सदमा लगा और वह चुप हो गई . सबके सामने यक्ष प्रश्न था कि कल कार न देने पर उन्होंने यदि शादी से इन्कार कर दिया तो क्या होगा ! उधर रीना सोचने लगी कि क्या प्यार – विवाह – रिश्तों की सीमा पैसों और कार तक ही होती है ? अपने पिता का सदा हंसमुख और रौबदार रहने वाला चेहरा उदास देखकर वह विद्रोह कर उठी . उसका प्यार-व्यार उसके क्रोध से कपूर की भांति उड़ गया . उसने सबके सामने यह निर्णय सुना दिया कि वह किसी भी कीमत पर सुदीप से विवाह नहीं करेगी . इस निर्णय को लागू करना भी इतना आसा न था . कर्नल साहब ने अंतिम प्रयास के रूप में एक बार संदीप से बात करना उचित समझा परन्तु रीना टस से मस  हुई . उसने कहा कि वह शादी नहीं करेगी, नहीं करेगी, नहीं करेगी और यदि जबरदस्ती की गई तो वह प्राण दे देगी . उसके आगे किसी को कुछ कहने की हिम्मत नहीं हुई .
    उधर सुदीप के घर में खुशियाँ ही खुशियां थीं . जिसने भी रीना को देखा था , उसके मन में रीना थी  आँखों के आगे रीना थी और सबके मुंह में एक ही बात थी कि भगवान ने कितनी अच्छी जोड़ी बनाई है , कितना अच्छा परिवार है . सुदीप विवाह  के लिए तैयार हुआ . उसने जरी का काम की हुई शेरवानी और चूड़ीदार पायजामा पहना , सेहरा बांधा और खूबसूरत बग्घी में सवार हो गया . डी जे पर धुनें बज रहीं थीं और बाल, युवा, प्रौढ़ , स्त्री, पुरुष सभी नाच रहे थे . युवाओं पर तो मस्ती का रंग इतना चढ़ा था कि बारात को आगे बढ़ाने उनको ढकेलना पड़  रहा था . बारात शादी घर के पास पहुंची तो लोगों को आश्चर्य हुआ कि वहां न तो कोई सजावट थी और न ही संगीत बज रहा था . पहले तो सबने समझा कि बिजली उड़ गई होगी ,सुधार रहे होंगे परतु वहां जाकर सबने देखा कि वहां सजावट, संगीत, और विवाह की व्यवस्थाएं क्या , कोई भी नहीं था . प्रबंधक ने पूछने पर बताया कि कर्नल साहब सब कुछ निरस्त करके सुबह ही यहाँ से चले गए हैं . सबको आश्चर्य हो रहा था कि अचानक ऐसा क्या हो  गया कि वे विवाह छोड़ कर चले गए और जाना ही था तो बताकर जाते . यह फजीहत तो न होती . सब गुप्ता जी से पूछने लगे कि ऐसी क्या बात हो गई ? क्या लेनदेन का विवाद  हुआ था ? गुप्ता जी क्या कहते ? बड़े भोले बनकर वे सबको समझा रहे थे कि उन्होंने कर्नल साहब को कितना सहयोग दिया और वे सारे शहर में उनकी प्रतिष्ठा को धूल में मिलाकर चले गए . बारातियों में तरह - तरह की बातें होने लगीं। 
   सेना में यह परंपरा है कि विवाह आदि आयोजनों में उस व्यक्ति की यूनिट से के एक-दो लोगो को भेजा जाता है जो उस यूनिट का प्रतिनिधित्व करते हैं . सुदीप को भी बहुत क्रोध आ रहा था . उन्होंने वापस जाकर कर्नल की शिकायत की . परन्तु कर्नल साहब तो पहले ही उसके कमांडिंग अधिकारी को रिपोर्ट कर चुके थे . सारे मामले की जांच हुई . सुदीप का कोर्ट मार्शल किया गया . उसे उपहार में मिला सामान तो वापस करना ही पड़ा , नौकरी से भी बर्खास्त कर दिया गया . कार के चक्कर में बीबी भी गई , नौकरी भी गई और बचा खुचा प्रकरण पुलिस के हवाले कर दिया गया .          
                                                                       
                                                                       



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