नाज़ीवाद
नाज़ीवाद एक राजनीतिक विचारधारा है जिसका जिसे जर्मनी के तानाशाह हिटलर ने प्रारंभ किया था . हिटलर का मानना था कि जर्मन आर्य है और विश्व में सर्वश्रेष्ठ हैं . इसलिए उनको सारी दुनिया पर राज्य करने का अधिकार है . अपने तानाशाही पूर्ण आचरण से उसने विश्व को द्वितीय विश्व युद्ध में झोंक दिया था . १९४५ में हिटलर के मरने के साथ ही नाज़ीवाद का अंत हो गया परन्तु ‘नाज़ीवाद’ और ‘हिटलर होना’ मानवीय क्रूरता के पर्याय बन कर आज भी भटक रहे है .
हिटलर का जन्म १८८९ में आस्ट्रिया में हुआ था . १२ वर्ष की आयु में उसके पिता का निधन हो गया था जिससे उसे आर्थिक संकटों से जूझना पड़ा . उसे चित्रकला में बहुत रूचि थी . उसने चित्रकला पढ़ने के लिए दो बार प्रयास किये परन्तु उसे प्रवेश नहीं मिल सका . बाद में उसे मजदूरी से तथा घरों में पेंट पुताई करके जीवन यापन करना पड़ा . प्रथम विश्व युद्ध प्रारंभ होने पर वह सेना में भरती हो गया . वीरता के लिए उसे आर्यन क्रास से सम्मानित किया गया . युद्ध समाप्त होने पर वह एक संगठन
जर्मन लेबर पार्टी में सम्मिलित हो गया जिसमें मात्र २०-२५ सदस्य थे . हिटलर के भाषणों से अल्प अवधि में ही उसके सदस्यों की संख्या हजारों में पहुँच गई . पार्टी का नया नाम रखा गया ‘नेशनल सोशलिस्ट जर्मन लेबर पार्टी’ . जर्मन में इसका संक्षेप में नाम है ‘नाज़ी पार्टी’ . हिटलर द्वारा प्रतिपादित इसके सिद्धांत ही नाज़ीवाद कहलाते हैं .
हिटलर ने जर्मन सरकार के विरुद्ध विद्रोह का प्रयास किया . उसे बंदी बना लिया गया और ५ वर्ष की जेल हुई . जेल में उसने अपनी आत्म कथा ‘मेरा संघर्ष’ लिखी . इस पुस्तक में उसके विचार दिए हुए हैं . इस पुस्तक की लाखों प्रतियाँ शीघ्र बिक गईं जिससे उसे बहुत ख्याति मिली . उसकी नाज़ी पार्टी को पहले तो चुनावों में कम सीटें मिलीं परन्तु १९३३ तक उसने जर्मनी की सत्ता पर पूरा अधिकार का लिया और एक छत्र तानाशाह बन गया . उसने अपने आसपास के देशों पर कब्जे करने शुरू कर दिए जिससे दूसरा विश्व युद्ध प्राम्भ हो गया . वह यहूदियों से बहुत घृणा करता था . उसने उन पर बहुत अत्याचार किये , कमरों में ठूँसकर विषैली गैस से हजारों लोग मार दिए गए . ६ वर्षों के युद्ध के बाद वह हार गया और उसने अपनी प्रेमिका, जिसके साथ उसने एक-दो दिन पहले ही विवाह किया था, के साथ गोली मारकर आत्महत्या कर ली .
नाज़ीवाद के उदय के कारण
प्रथम विश्व युद्ध १९१४ से १९१९ तक चला था . इसमें जर्मनी हार गया था . युद्ध के कारण उसकी बहुत क्षति हुई . इन सब के ऊपर ब्रिटेन, फ़्रांस आदि मित्र राष्ट्रों ने उस पर बहुत अधिक दंड लगा दिए . उसकी सेना बहुत छोटी कर दी, उसकी प्रमुख खदानों पर कब्ज़ा कर लिया तथा इतना अधिक अर्थ दंड लगा दिया कि अनेक वर्षों तक अपनी अधिकांश कमाई उन्हें देने के बाद भी जर्मनी का कर्जा कम नहीं हो रहा था .१९१४ में एक डालर =४.२ मार्क था जो १९२१ में ६० मार्क, नवम्बर १९२२ में ७०० मार्क,जुलाई १९२३ में एक लाख ६० हजार मार्क तथा नवम्बर १९२३ में एक डालर = २५ ख़राब २० अरब मार्क के बराबर हो गया . अर्थात मार्क लगभग शून्य हो गया जिससे मंदी, मंहगाई और बेरोजगारी का अभूतपूर्व संकट पैदा हो गया . उस समय चुनी हुई सरकार के लोग अपना जीवन तो ठाट- बात से बिता रहे थे परन्तु देश की समस्याएँ कैसे हल करें , उन्हें न तो इसका ज्ञान था और न ही बहुत चिंता थी . ऐसे समय में हिटलर ने अपने ओजस्वी भाषणों से जनता को समस्याएँ हल करने का पूरा विश्वास दिलाया . इसके साथ ही उसके विशेष रूप से प्रशिक्षित कमांडों विरोधियों को माँरने तथा आतंक फ़ैलाने के काम भी कर रहे थे जिससे उसकी पार्टी को धीरे- धीरे सत्ता में भागीदारी मिलती गई और एक बार चांसलर ( प्रधान मंत्री ) बनने के बाद उसने सभी विरोधियों का सफाया कर दिया और संसद की सारी शक्ति अपने हाथों में केन्द्रित कर ली . उसके बाद वे देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री सबकुछ बन गए . उन्हें फ्यूरर कहा जाता था .
नाज़ीवाद का आधार
हिटलर से 11वर्ष पूर्व इटली के प्रधानमंत्री मुसोलिनी भी अपने फ़ासीवादी विचारों के साथ तानाशाही पूर्ण शासन चला रहे थे . दोनों विचारधाराएँ समग्र अधिकारवादी, अधिनायकवादी, उग्र सैनिकवादी, साम्राज्यवादी, शक्ति एवं प्रबल हिंसा की समर्थक,लोकतंत्र एवं उदारवाद की विरोधी, व्यक्ति की समानता,स्वतंत्रता एवं मानवीयता की पूर्ण विरोधी तथा राष्ट्रीय समाजवाद (अर्थात राष्ट्र ही सब कुछ है . व्यक्ति के सारे कर्तव्य राष्ट्रीय हित में कार्य करने में हैं ) की कट्टर समर्थक हैं . ये सब समानताएं होते हुए भी जर्मनी ने अपने सिद्धांत फासीवाद से नहीं लिए . इसका विधिवत प्रतिपादन १९२० में गाटफ्रीड ने किया था जिसका विस्तृत विवरण हिटलर ने अपनी पुस्तक ‘मेरा संघर्ष’ में किया तथा १९३० में ए. रोज़नबर्ग ने पुनः इसकी व्याख्या की थी . इस प्रकार हिटलर के सत्ता में आने के पूर्व ही नाज़ीवाद के सिद्धांत स्पष्ट रूप से लोगों के सामने थे जबकि अपने कार्यों को सही सिद्ध करने के लिए मुसोलिनी ने सत्ता में आने के बाद अपने फ़ासीवादी सिद्धांतों को प्रतिपादित किया था . इतना ही नहीं जर्मनों की श्रेष्ठता का वर्णन अनेक विद्वान् करते आ रहे थे और १०० वर्षों से भी अधिक समय से जर्मनों के मन में अपनी श्रेष्ठता के विचार पनप रहे थे जिन्हें हिटलर ने मूर्त रूप प्रदान किया .
नाज़ीवाद के सिद्धांत
प्रजातिवाद : १८५४ में फ्रेंच लेखक गोबिनो ने १८५४ तथा १८८४ में अपने निबंध ‘मानव जातियों की असमानता’में यह सिद्धांत प्रतिपादित किया था कि विश्व की सभी प्रजातियों में गोरे आर्य या ट्यूटन नस्ल सर्वश्रेष्ठ है . १८९९ में ब्रिटिश लेखक चैम्बरलेन ने इसका अनुमोदन किया .जर्मन सम्राट कैसर विल्हेल्म द्वितीय ने देश में सभी पुस्तकालयों में इसकी पुस्तक रखवाई तथा लोगों को इसे पढ़ने के लिए प्रेरित किया . अतः जर्मन स्वयं को पहले से ही सर्व श्रेष्ठ मानते थे . नाज़ीवाद में इस भावना को प्रमुख स्थान दिया गया .
हिटलर ने यह विचार रखा कि उनके अतिरिक्त अन्य गोरे लोग भी मिश्रित प्रजाति के हैं अतः जर्मन लोगों को यह नैसर्गिक अधिकार है कि वे काले एवं पीले लोगों पर शासन करें, उन्हें सभ्य बनाएं . इससे हिटलर ने स्वयं यह निष्कर्ष निकाल लिया कि उसे अन्य लोगों के देशों पर अधिकार करने का हक़ है . उसने लोगों का आह्वान किया कि श्रेष्ठ जर्मन नागरिक शुद्ध रक्त की संतान उत्पन्न करें . जर्मनी में अशक्त एवं रोगी लोगों के संतान उत्पन्न करने पर रोक लगा दी गई ताकि देश में भविष्य में सदैव स्वस्थ एवं शुद्ध रक्त के बच्चे ही जन्म लें .
हिटलर का मानना था कि यहूदी देश का भारी शोषण कर रहे हैं . अतः वह उनसे बहुत घृणा करता था . परिणाम स्वरूप सदियों से वहां रहने वाले यहूदियों को अमानवीय यातनाएं दे कर मार डाला गया और उनकी संपत्ति राजसात कर ली गई . अनेक यहूदी देश छोड़ कर भाग गए . उस भीषण त्रासदी ने यहूदियों के सामने अपना पृथक देश बनाने की चुनौती उत्पन्न कर दी जिससे इस्रायल का निर्माण हुआ .
राज्य सम्बन्धी विचार : नाजीवाद में राज्य को साधन के रूप में स्वीकार किया गया है जिसके माध्यम से लोग प्रगति करेंगे . हिटलर के मतानुसार राष्ट्रीयता पर आधारित राज्य ही शक्तिशाली बन सकता है क्योंकि उसमें नस्ल, भाषा, परंपरा, रीति-रिवाज आदि सभी समान होने के कारण लोगों में सुदृढ़ एकता और सहयोग की भावना होती है जो विभिन्न भाषा, धर्म एवं प्रजाति के लोगों में होना संभव नहीं है . हिटलर ने सभी जर्मनों को एक करने के लिए अपने पड़ोसी देशों आस्ट्रिया, चेकोस्लोवाकिया आदि के जर्मन बहुल इलाकों को उन देशों पर दबाव डाल कर जर्मनी में मिला लिया तथा बाद में उनके पूरे देश पर ही कब्ज़ा कर लिया . अनेक देशों पर कब्ज़ा करने को नाजियों ने इसलिए आवश्यक बताया कि सर्व श्रेष्ठ होते हुए भी जर्मनों के पास भूमि एवं संसाधन बहुत कम हैं जबकि उनकी आबादी बढ़ रही है . समुचित जीवन निर्वाह के लिए अन्य देशों पर अधिकार करने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं है .इसलिए हिटलर एक के बाद दूसरे देश पर कब्जे करता चला गया .
जर्मनी में राज्य का अर्थ था हिटलर . वह देश, शासन, धर्म सभी का प्रमुख था . हिटलर को सच्चा देवदूत कहा जाता था . बच्चों को पाठशाला में पढ़ाया जाता था – “ हमारे नेता एडोल्फ़ हिटलर ! हम आपसे से प्रेम करते हैं, आपके लिए प्रार्थना करते हैं, हम आपका भाषण सुनना चाहते हैं . हम आपके लिए कार्य करना चाहते हैं .” हिटलर ने अपने कमांडों के द्वारा आतंक का वातावरण पहले ही निर्मित कर दिया था . उसे जैसे ही सत्ता में भागीदारी मिली ,उसने सर्व प्रथम विपक्षी दलों का सफाया कर दिया . एक राष्ट्र , एक दल, एक नेता का सिद्धांत उसने बड़ी क्रूरता पूर्वक लागू किया था . उसके विरोध का अर्थ था मृत्यु .
व्यक्ति का स्थान : नाजी कान्ट तथा फिख्टे के इस विचार को मानते थे कि व्यक्ति के लिए सच्ची स्वतंत्रता इस बात में निहित है कि वह राष्ट्र के कल्याण के लिए कार्य करे . उनका कहना था कि एक जर्मन तब तक स्वतन्त्र नहीं हो सकता जब तक जर्मनी राजनीतिक और आर्थिक दृष्टि से स्वतन्त्र न हो जो उस समय वह वार्साय संधि की शर्तों के अनुसार संभव ही नहीं था . नाजियों का एक ही नारा था कि व्यक्ति कुछ नहीं है , राष्ट्र सब कुछ है . अतः व्यक्ति को अपने सभी हित राष्ट्र के लिए बलिदान कर देने चाहिए . मित्र देशों के चंगुल से जर्मनी को मुक्त करने के लिए उस समय यह भावना आवश्यक भी थी . परन्तु नाजियों ने इसका विस्तार शिक्षा, धर्म, साहित्य, संस्कृति, कलाओं, विज्ञान, मनोरंजन, अर्थ-व्यवस्था आदि जीवन के सभी क्षेत्रों में कर दिया था .इससे सभी नागरिक नाज़ियो के हाथ के कठपुतले से बन गए थे .
बुद्धिवाद का विरोध : शापेनहार, नीत्शे, जेम्स, सोरेल, परेतो जैसे अनेक दार्शनिकों ने बुद्धिवाद के स्थान पर लोगों की सहज बुद्धि ( इंस्टिंक्ट ), इच्छा शक्ति,और अंतर दृष्टि ( इंट्यूशन )को उच्च स्थान दिया था . नाजी भी इसी विचार को मानते थे कि व्यक्ति अपनी बुद्धि से नहीं भावनाओं से कार्य करता है . इसलिए अधिकांश पढ़े-लिखे और सुशिक्षित व्यक्ति भी मूर्ख होते हैं . उनमें निष्पक्ष विचार करने के क्षमता नहीं होती है . वे अपने मामलों में भी बुद्धि पूर्वक विचार नहीं करते हैं . वे भावनाओं तथा पूर्व निर्मित अव धारणाओं के आधार पर कार्य करते हैं . इसलिए जनता को यदि अपने अनुकूल कर लिया जाये तो उसे बड़े से बड़े झूठ को भी सत्य मनवाया जा सकता है . बुद्धि का उपयोग करके लोग परस्पर असहमति तो बढ़ा सकते हैं परन्तु किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच सकते हैं . अतः बुद्धिमानों को साथ लेकर एक सफल एवं शक्ति शाली संगठन नहीं बनाया जा सकता है . शक्ति शाली राष्ट्र निर्माण के लिए यह आवश्यक है कि लोगों को बुद्धमान बनाने के स्थान पर उत्तम नागरिक बनाया जाना चाहिए . उनके लिए तर्क एवं दर्शन के स्थान पर शारीरिक, नैतिक एवं औद्योगिक शिक्षा देनी चाहिए . उच्च शिक्षा केवल प्रजातीय दृष्टि से शुद्ध जर्मनों को ही दी जानी चाहिए जो राष्ट्र के प्रति अगाध श्रद्धा रखते हों . नेताओं को भी उतना ही बुद्धिवादी होना चाहिए कि वह जनता कि मूर्खता से लाभ उठा सके और अपने कार्य क्रम बना सकें . अबुद्धिवाद से नाज़ियों ने अनेक महत्वपूर्ण परिणाम निकाले और अपनी पृथक राजनीतिक विचारधारा स्थापित की .
लोकतंत्र विरोधी : प्लेटो की भांति हिटलर भी लोकतंत्र का आलोचक था . उसके अनुसार अधिकांश व्यक्ति बुद्धि शून्य, मूर्ख, कायर और निकम्मे होते हैं जो अपना हित नहीं सोच सकते हैं . ऐसे लोगों का शासन कुछ भद्र लोगों द्वारा ही चलाया जाना चाहिए .
साम्यवाद विरोधी : साम्यवाद मानता है कि अर्थ या धन ही सभी कार्यों का प्रेरणा स्रोत है . धन के लिए ही व्यक्ति कार्य करता है और उसी के अनुसार सामाजिक तथा राजनीतिक व्यवस्थाएं निर्मित होती हैं . परन्तु अधिकांश व्यक्ति बुद्धिहीन होने के कारण अपना हित सोचने में असमर्थ होते हैं . उनके अनुसार साम्यवाद वर्तमान से भी बुरे शोषण को जन्म देगा .
अंध श्रद्धा ( सोशल मीथ ) : सोरेल की भांति हिटलर भी यही मानता था कि व्यक्ति बुद्धि और विवेक के स्थान पर अंध श्रद्धा से कार्य करता है . यह अंध श्रद्धा लोगों को राष्ट्र के लिए बड़ा से बड़ा बलिदान करने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है . नाज़ियों ने जर्मन लोगों में अनेक प्रकार की अंध श्रद्धाएँ उत्पन्न कीं और उन्हें राष्ट्र निर्माण में तत्पर कर दिया .
शक्ति और हिंसा का सिद्धांत : नाज़ियों ने लोगो में अन्ध श्रद्धा उत्पन्न कर दी कि जो लड़ना नहीं चाहता उसे इस दुनियां में जीवित रहने का कोई अधिकार नहीं है . इस सिद्धांत को प्रतिपादित करना हिटलर की मजबूरी भी थी क्योंकि प्रथम विश्व युद्ध के बाद हुई वार्साय की संधि में उस पर जो दंड एवं प्रतिबन्ध लगाए गए थे , वार्ता द्वारा उससे बाहर निकलने का कोई मार्ग नहीं था . उन परिस्थितियों में युद्ध ही एक मात्र रास्ता था और उसके लिए सभी जर्मन वासियों का सहयोग आवश्यक था . इसलिए लोगों ने उसे सहयोग भी दिया .
अर्थव्यवस्था : वह साम्यवाद का विरोधी था इसलिए जर्मनी के पूंजीपतियों ने उसे पूरा सहयोग दिया . परन्तु उसका पूंजीवाद स्वच्छंद नहीं था , उपूंजीपतियों को मनमानी लूट और धन अर्जन का अधिकार नहीं था . वह उसी सीमा तक मान्य था जो नाज़ियों के सिद्धांत और जर्मन राष्ट्र के हित के अनुकूल हो .
उसने उत्पादन बढ़ाने के लिए सभी तरह के आंदोलनों , प्रदर्शनों और हड़तालों पर प्रतिबन्ध लगा दिया था . सभी वर्गों के संगठन बना दिए गए थे जो विवाद होने पर न्यायोचित समाधान निकाल लेते थे ताकि किसी का भी अनावश्यक शोषण न हो . अधिक रोजगार देने के लिए उसने पहले एक परिवार एक नौकरी का सिद्धांत लागू किया फिर अधिक वेतन वाले पदों का वेतन घटा कर एक के स्थान पर दो व्यक्तियों को रोजगार दिया . इस प्रकार उसने दो वर्षों में ही अधिकांश लोगों , जिनकी संख्या लाखों में थी, को रोजगार उपलब्ध कराये . इससे शिक्षा, व्यवसाय, कृषि, उद्योग, विज्ञानं, निर्माण आदि सभी क्षेत्रों में जर्मनी ने अभूतपूर्ण उन्नति कर ली . १९३३ से लेकर १९३९ तक छः वर्षों में उसकी प्रगति का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि जिस जर्मनी का कोष रिक्त हो चुका था, देश पर अरबों पौंड का कर्जा था, प्राकृतिक संसाधनों पर मित्र देशों ने कब्ज़ा कर लिया था और उसकी सेना नगण्य रह गई थी , वही जर्मनी विश्व के बड़े राष्ट्रों के विरुद्ध एक साथ आक्रमण करने कि स्थिति में था, सभी देशों में हिटलर का आतंक व्याप्त था और वह इंग्लैंड, रूस तक अपने देश में बने विमानों से जर्मनी में ही बने बड़े-बड़े बम गिरा रहा था . मात्र छः वर्षों में उसने इतना धन एवं शक्ति अर्जित कर ली थी जो अनेक वर्षों में भी संभव नहीं है .
स्वयं को सर्वशक्तिमान समझने के कारण हिटलर युद्ध हार गया, उसने आत्म हत्या कर ली . पराजित हुआ व्यक्ति ही इतिहास में गलत माना जाता है अतः द्वितीय विश्वयुद्ध की सभी गलतियों के लिए हिटलर और मुसोलिनी उत्तरदायी ठहराए गए और आज भी सभी राजनीतिक विद्रूपताओं के लिए ‘हिटलर होना’, ‘फासीवादी होना’ मुहावरे बन गए हैं .
हिटलर और नाज़ियों के अबुद्धिवाद के सिद्धांत अर्थात मनुष्य बुद्धिशून्य और मूर्ख होता है और अपना हित नहीं समझ पाता है, का सर्वाधिक कुशलता पूर्वक प्रयोग भारत में हो रहा है . नेता-परिवारों के प्रति अंध श्रद्धा के कारण ही यहाँ के लोकतंत्र में सामंत का लड़का- लड़की सामंत, मुख्यमंत्री का लड़का मुख्यमंत्री , मंत्री का लड़का मंत्री आसानी से बन जाते हैं. उसी अबुद्धिवाद और अंध श्रद्धा के कारण सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी ही देश चला सकते हैं क्योंकि वे नेहरु और इंदिरा गाँधी के वारिस हैं भले ही कांग्रेस के शासन काल में भ्रष्टाचार और मंहगाई, अपराध, साम्प्रदायिकता और आतंकवाद निरंतर बढ़ते जा रहे हों . उसी के आधार पर एक कुशल नेता की छवि निर्मित करके अब नरेंद्र मोदी प्रधान मंत्री बनने के प्रयास कर रहे हैं . उनकी सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि देश के कितने लोगों में उनके प्रति अंध श्रद्धा उत्पन्न हो पाती है .
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