शुक्रवार, 22 नवंबर 2013

उत्पाद , बाज़ार और धन


                    उत्पाद , बाज़ार और धन
    सामान्य जन की भाषा में बाज़ार का अर्थ ऐसे स्थान से होता है जहाँ स्थाई-अस्थाई , कच्ची-पक्की कई दुकानें स्थित हों और एक ही स्थान पर विभिन्न उपयोगी वस्तुएं क्रय-विक्रय की जा रही हों . आज कल डिपार्टमेंटल स्टोर और माल ऐसे स्थान हैं जहाँ एक बड़ा व्यापारी अकेला ही व्यक्ति के उपयोग की अनेक वस्तुएं उपलब्ध करा देता है . इसके भी आगे नेट -मार्केटिंग से विश्व के किसी भी कोने से कम्पनियाँ अपना सामान अनेक देशों में बेच रही हैं . अतः बाज़ार का अभिप्राय उस समस्त क्षेत्र से है जहाँ तक उत्पाद बेचे जा सकते हैं . यह  कुछ दुकानों के सीमित क्षेत्र से लेकर राज्य और देश की सीमाओं के पार तक हो सकता है .
  इसी प्रकार उत्पाद भी स्थूल रूप से लेकर अमूर्त रूप तक हो सकते हैं यदि उसे बेच कर धन प्राप्त किया जा सकता हो . आजकल सेवा,  नैतिकता और मानवता स्वर्गवासी हो गई हैं . इसीलिए नामी-गरामी साधु - संत स्वर्ग और भगवान के नाम का लाइसेंस जनता को बेचकर धन बटोर रहे हैं और स्वयं धन बल से धरती पर इस नश्वर शरीर के सारे सुख भोग रहे हैं .भक्तों का समूह उनका बाज़ार है .
 धरती पर और विशेष रूप से भारत जैसे देश में जहां अनेक लोग सदियों से भुक्खड़ रहे हैं ,  धन कमाने के लिए कितना परिश्रम कर रहे हैं , कैसे –कैसे कार्य कर रहे हैं , इसे देखना -समझना अर्थशास्त्र के विद्यार्थियों के लिए आवश्यक ही नहीं अनिवार्य भी है क्योंकि इन व्यवस्थाओं को विदेशों से प्राप्त ज्ञान चक्षुओं से नहीं समझा जा सकता है .
  सबसे सरल उदाहरण शिक्षक का है . वह शिक्षा बेच कर धन कमाता है तो चिकित्सक अपनी सलाह देकर . शिक्षक के लिए विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय बाज़ार है तो चिकित्सक के लिए चिकित्सालय . वकील-जजों के लिए कोर्ट बाज़ार है . खिलाड़ी अपनी क्रीड़ा योग्यता को खेलों में बेचता है , अपने नाम को मीडिया पर बेचता है . अभिनेता अपनी अभिनय कला को फिल्मों और दूरदर्शन के माध्यम से सम्पूर्ण विश्व में बेचता है . अभियंता और प्रबंधक अपनी विशिष्ट  योग्यता को कंपनियों , संस्थाओं में बेचते हैं , उनके लिए वही बाज़ार है . नगरपालिका या निगम के उत्पाद अपने नगर क्षेत्र में वैध-अवैध अनुमतियाँ और लाइसेंस हैं . वे इसे बेचकर गुज़ारा कर रहे हैं तो सरकारी अधिकारी भी अपने विभाग के मातहत अनुमतियाँ , लाइसेंस , ठेके देकर कारोबार कर रहे हैं .    विश्वविद्यालयों के कुलपति , रजिस्ट्रार फर्जी प्रवेश और डिग्रियां बेचने पर तुले हुए हैं . वे अकेले ही इतना बड़ा काम करने में अक्षम होने के कारण अनेक शिक्षण संस्थाओं को भी डिग्रियां बाँटने में सहयोग करने का लाइसेंस बेच कर परोपकार कर रहे हैं . फिर आगे वे बी. एड. से लेकर बी डी एस और उसके भी आगे तकनीकी तथा चिकित्सा के क्षेत्र में स्नातकोत्तर और पी.एच-डी . डिग्री जैसे उत्पाद बेचकर धनोपार्जन कर रहे हैं . म.प्र. में तो व्यापम जैसे संस्थानों के संचालक और उनके सहयोगी विद्यार्थियों को ‘प्रवेश’ नामक उत्पाद ही बेचकर लाखों के वारे-न्यारे कर रहे हैं . उनके जैसे सक्षम संस्थान नौकरियां भी बेचने से इन्कार नहीं करते हैं . अपने राज्य ही नहीं सारे देश के विद्यार्थी उनके लिए खुला बाज़ार है .
   पुलिस का तो कहना ही क्या है ! उनके पास अधिकार के साथ डंडा भी होता है . अतः वे जिसे अनुमतियाँ बेचते हैं उसके व्यसाय में सहयोग भी करते हैं . रिक्शे , ऑटो , वैन , बसों तथा ट्रकों से वसूली तो सामान्य बात है . समाचार पत्रों से ज्ञात हुआ है कि  म.प्र. के रतनपुर माता जी के मेले में उन्होंने ट्रैक्टरों को अनुमति बेच दी . लोग आगे –पीछे हटने का नाम ही नहीं ले रहे थे . शायद पुल खाली करवाने के लिए उन्होंने लाठी चलाई होगी और लोग तब भी नहीं हटे तो उन्हें डराने के लिए कुछ लोगों को नीचे नदी में फेंक दिया होगा .बस बड़ा हादसा हो गया . उनके पास डंडा नहीं होगा तो असामाजिक तत्वों का बाज़ार कैसे चलेगा, बाज़ार नहीं चलेगा तो बेचारा पुलिसवाला क्या खायेगा ? अवैध धंधों के सभी क्षेत्र उनके बाज़ार हैं .
   सचिव, मंत्री, मुख्य मंत्री ही नहीं बल्कि ज्ञात हुआ है कि प्रधान मंत्री तक खदानें बेच रहे है , टूजी तो पहले ही बेच चुके हैं या बेचने में सहयोग दे रहे हैं .बड़े-बड़े औद्योगिक घराने उनका बाज़ार हैं . ये मंत्री बड़े मंजे खिलाड़ी होते हैं . ऊपर जिन-जिन उत्पादों और बाज़ारों का वर्णन किया है या जिनका नाम नहीं लिया है उन सभी के जनक और स्रोत ये सचिव और मंत्री ही होते हैं . ये अपने संवैधानिक अधिकारों से प्राप्त शक्तियों से ऐसे नए-नए जीवों ( पदों और अधिकारियों ) का उत्पादन करते हैं जो धन के लिए सब कुछ बेच सकते हैं . धरती, आकाश ( टूजी स्पेक्ट्रा ) , पाताल ( दानें ) अर्थात तीनों लोक उनके लिए बाज़ार हैं जहाँ वे कुछ भी बेच सकते हैं . उत्पाद, बाज़ार और धन के आधुनिक अर्थशास्त्र का ये महापुरुष ही भूगोल हैं और ये ही इतिहास हैं .  

    

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