सदाचारी राजा
इक्ष्वाकु वंश में अनेक प्रतापी एवं सदाचारी राजा हुए हैं . उनमें से महाराजा दिलीप का नाम भी बहुत आदर के साथ लिया जाता है .महाराज दिलीप के पास सर्व सुख वैभव थे परन्तु संतान नहीं थी . अतः वे दुखी रहते थे . एक दिन वे अपनी पत्नी सुदक्षीणा के साथ अपने राज गुरु महर्षि वशिष्ठ के आश्रम में गए . दोनों ने गुरु जी को प्रणाम किया . आश्रम में उनका भी सत्कार किया गया ,उसके पश्चात वे गुरूजी के सान्निध्य में आकर बैठ गए . महर्षि वशिष्ठ ने राजा से पूछा , ' राजन! आपके राज्य में सब कुशल तो है ?' उत्तर में महाराज दिलीप कुछ गंभीर होकर बोले , ' आपकी कृपा से इस राज्य में राजा ,मंत्री , राज्य( लोग + भूभाग ) , मित्र , राजकोष , सेना और दुर्ग , सातों अंग भरपूर हैं ,अग्नि , महामारी , अकाल मृत्यु जैसी दैविक विपत्ति और चोर डाकू शत्रु, आदि मानुषी आपत्तियों के निवारण के लिए आप बैठे ही हैं . ' राज्य चर्चा समाप्त होने पर उन्होंने गुरु जी से पुत्र न होने कि व्यथा व्यक्त की. गुरु जी ने पुत्र प्राप्ति हेतु यज्ञ का आयोजन करने का निर्देश दिया .
राजा दिलीप की वाणी में कोमलता , मिठास और धैर्य था . वे अहंकारी नहीं, सदाचारी थे .जैसे सूर्य अपनी किरणों से पृथ्वी का जल सोखकर , उससे सहस्त्र गुना जल वर्षा के रूप धरती को देता है वैसे ही राजा दिलीप भी अपनी प्रजा कि भलाई के लिए प्रजा से कर लेते थे . वे प्रजा का पालन न्याय पूर्वक करते थे . राजा ने पत्नी सहित यज्ञ किया एवं तपस्या में लग गए . बिना कठिन साधना के कोई भी अभीष्ट प्राप्त नहीं किया जा सकता है .आशा के साथ साधना भी आवश्यक है .साधना करते राजा को बहुत समय व्यतीत हो गया . एक दिन जब वे गुरु जी के आश्रम जा रहे थे ,रास्ते में उन्होंने देखा एक सिंह गुरूजी कि गौ नंदिनी की गर्दन पर सवार बैठा है . ऊन्होने तत्काल अपना हाथ तूणीर में रखे बाण पर रखा परन्तु दाएं हाथ कि अंगुली बाण के पंखों में चिपक गई और उनका हाथ बंध गया . उन्होंने सिंह से अनुरोध किया, ' हे सिंह ! गाय का बछड़ा सायं इसकी बाट देखता होगा . इसके न रहने से वह भूख से विह्वल हो जायगा . अतःइस गौ के बदले तुम मुझे खा लो और इसे जाने दो .'राजा के वचन सुनकर सिंह ने कहा , हे राजन! लगता है कि तुममे सोचने कि शक्ति नहीं रह गई है तुम्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं , तुम्हें इसका कोई ज्ञान नहीं है. तुम एक साधारण गाय के लिए अपना सुन्दर शरीर, यौवन और इतना बड़ा राज्य छोड़ने के लिए तैयार हो गए हो . यदि तुम प्राणियों पर दया के विचार से ऐसा कर रहे हो ,तो भी इतना त्याग ठीक नहीं है क्योंकि इस समय मेरा भोजन बनने पर तुम एक गाय की रक्षा करोगे और यदि जीवित रहोगे तो पिता के समान तुम अपनी पूरी प्रजा कि रक्षा कर सकोगे .' सिंह की इन बातों को सुनकर राजा ने कहा,' हे सिंह ! क्षत्रिय का अर्थ होता है क्षत ( आघात )से त्राण ( मुक्ति ) दिलाने वाला .यदि गौ रक्षा नहीं की तो राज्य किस कम का ?और अपयश लेकर जीते रहना किस काम का ? चक्रवर्ती राजा का धर्म है गुरु भक्ति और स्वधर्म का पालन . '
राजा ने देखा कि अचानक सिंह गायब हो गया है और नंदिनी हंस रही है . नंदिनी ने अत्यंत स्नेह से कहा , राजन ! मैं तुमसे प्रसन्न हूँ . तुम्हारी साधना पूर्ण हुई . वर मांगो .' राजा ने विनम्रता पूर्वक अपने पुत्र प्राप्ति कि इच्छा व्यक्त की. नंदिनी ने कहा कि तुम मेरा दूध दुह कर पी लो . तुम्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी . राजा ने कहा , ' हे माँ !. मैं सोचता हूँ कि बछड़े के पी चुकने के बाद और हवन क्रिया से बचे रहने के बाद , ऋषि कि आज्ञा लेकर मैं मै उसी प्रकार आपका दूध ग्रहण करूँ जैसे मैं राज्य कि रक्षा के लिए लोगों से उनकी आय का छठा भाग ग्रहण करता हूँ . ' नंदिनी ने राजा का मान बढ़ाते हुए कहा , ' राजन ! तुम गौमाता के सच्चे पुत्र हो तुम्हारा चरित्र , धर्म व्यवहार , नीति आदि सब कुछ तुम्हारी महान पारिवारिक परम्परा के अनुकूल है . मैं तुम पर अति प्रसन्न हूँ . तुम्हारी इच्छा शीघ्र पूर्ण होगी . ' राजा गौ को प्रणाम करके चला गया . समय आने पर राजा को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जो इतिहास- पुराणों में भागीरथ के नाम से विख्यात हुए .
(कालिदास रचित रघुवंशम से )
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