रविवार, 19 फ़रवरी 2012

एलिशा

एलिशा

  जॉन और सारा का छोटा सा परिवार था . एक सुन्दर सी गुड़िया रीनी से घर में रौनक बनी रहती थी .जॉन का कोई पक्का काम नहीं था . परन्तु वह घर के खर्च के लिए आवश्यक धन जुटा ही लेता था . रीनी तीन वर्ष की थी कि घर में एलिशा आ गई . एलिशा श्वेत पुष्प के समान सुन्दर थी . उसे देखकर जॉन और सारा सारे कष्ट भूल जाते थे. उसे हुए अभी दो महीने भी नहीं बीते थे कि सारा कि तबियत खराब होने लगी . जॉन की  आय से मुश्किल  से घर का खर्च ही चला पाता  था  .स्वास्थ्य बीमे  के लिए उसके पास पैसे ही नहीं बचते थे . वह पत्नी का इलाज नहीं करा सका और सारा चल बसी . अभी एलिशा तीन महीने कि भी नहीं थी . जॉन पर कर्जा भी चढ़ गया था . अतः दूसरे विवाह की  बात कहाँ से सोचता . उसने दोनों बेटियों को उनकी मौसी के पास छोड़ दिया और स्वयं काम की  तलाश में सैन फ्रांसिस्को चला गया .बेटियां मौसी के पास बढ़ने लगीं . जब एलिशा की  उम्र बारह वर्ष कि हुई तो मौसी ने उन्हें बोर्डिंग  में डाल दिया . 
        रीनी पढ़ने में अच्छी ही परन्तु एलिशा का मन पढ़ने लिखने में कम लगता था . जब स्कूल में सांस्कृतिक कार्यक्रम होते ,एलिशा उनमें बढ़-चढ़ कर भाग लेती . नृत्य और बेले उसे बहुत पसंद थे . उसके नृत्यों से सभी उसकी प्रशंसा करते . इसलिए पढ़ने  में सामान्य होने पर भी उसके  शिक्षक उसे चाहते थे . एलिशा हाई स्कूल में पढ़ती थी तो उसने क्लबों में जाना शुरू कर दिया था . वहां एक युवक सिम के साथ नाचने में उसे बड़ा अच्छा लगता था . एलिशा खूब सूरत तो थी , उनकी दोस्ती शीघ्र ही प्यार में बदल गई और सत्रह वर्षीय एलिशा ने सिम से विवाह करके स्कूल से मुक्ति पा ली .सिम और रीनी में बहुत प्यार था . एक वर्ष बाद उसने रेमंड  को जन्म दिया . रेमंड चार वर्ष का हुआ तो सिम -एलिशा ने पुनः क्लब जाना शुरू कर दिया . एलिशा की  जवानी सर चढ़ कर बोल रही थी . क्लब में वह जिसे अच्छा नृत्य करते  देखती , उसके साथ नाचने के लिए उसका मन  मचल उठता . उस क्लब में  सैनिक अफसर जोसफ भी आता था . उन दिनों जोसफ की  पोस्टिंग सैन डिएगो में  एक स्कूल में मिलिट्री ट्रेनिंग अफसर के रूप  में हुई थी . उसकी आयु तीस के पार होगी . क्लब में जब वह जोसफ के साथ नाचती लोग ,उन्हें देखते रह जाते परन्तु सिम इसे कब तक देखता रहता . उसने क्लब जाना ही छोड़ दिया . एलिशा पर इसका कोई असर नहीं पड़ा . जब वह क्लब से लौटती , घर में भी उसके पैर थिरकते रहते , ओंठों पर गीत रहते . कभी- कभी वह सिम को भी क्लब के किस्से  सुनाती और उससे कहती कि वह भी  चला करे . अन्दर ही अन्दर घुटता सिम एक दिन फफक ही पड़ा . उनमें तनाव बढ़ने लगा . एलिशा को सिम कि ईर्ष्या से नफरत होने लगी . अब वह जोसफ के और निकट आने लगी और शीघ्र ही उसने सिम को तलाक देकर जोसफ से विवाह कर लिया . वह अपने बेटे रेमंड को लेकर जोसफ के साथ रहने लगी .
      सैन डिएगो एक सुन्दर शहर है . वे कभी प्रशांत महासागर के बीच पर सर्फिंग करने जाते , कभी म्युसिक  कंसर्ट का आनंद लेते , कभी कभी क्लब  जाते . जो और एलिशा की  जोड़ी देखकर लगता था कि  विधाता ने उन्हें एक दूसरे के लिए ही बनाया है .दो वर्ष साथ रहने के बाद जोसफ की  पोस्टिंग बहुत दूर   बोस्टन में हो गई . कुछ समय बाद द्वितीय विश्वयुद्ध छिड़ गया . मित्र देशों की  ओर से अमेरिका    भी युद्ध में शामिल हो गया .अब मिलिट्री वालों को छुट्टी मिलने का सवाल  ही नहीं  था . अतः एलिशा को रे के साथ अकेले ही मिलिट्री की कालोनी में  रहना था , एक दिन एलिशा को पता  चला कि बैंक एक मकान की  नीलामी करने वाला है . उसने सुन रखा था कि नीलामी में कभी -कभी मकान बहुत   सस्ते मिल जाते हैं . एलिशा भी नीलामी में चली गई और उसे एक सस्ता मकान मिल  गया . रे के साथ अब वह अपने मकान में आ गयी .  वहां पर उसके पड़ोस में रे कि आयु के बच्चे भी थे अतः वहां रे का दिल भी जल्दी लग गया . दोनों माँ -बेटा पड़ोसियों में ऐसे घुल -मिल गए जैसे वे उनके सगे सम्बन्धी   हों . एलिशा रे को होम वर्क में मदद करती . आस- पड़ोस के बच्चों को भी प्रोजेक्ट वर्क में मदद करती .इस प्रकार वह सबकी प्रिय आंटी बन गई थी .
       द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त हुआ तो जोसफ को भी छुट्टी मिल गई . जोसफ पत्नी और उसके बेटे के साथ रहने लगा . उसने शीघ्र ही मिलिट्री -सेवा से अवकाश ले लिया और उसने अपना व्यवसाय शुरू कर दिया .  उन्होंने एक अलग मकान ले लिया . एक वर्ष बाद एलिशा ने एक सुन्दर कन्या को जन्म दिया .  कन्या बड़ी हुई , स्कूल जाने लगी तो एलिशा के पास समय बचने लगा .जोसफ व्यवसाय में व्यस्त रहता पर वे कभी-कभी क्लब जाने  और नृत्य कार्यक्रमों में भाग लेने का समय निकाल ही लेते थे . जिन्दगी का कौन सा मोड़ आदमी को कहाँ ले जारहा है , कोई नहीं जानता . एक दिन अचानक जोसफ कि तबियत  ख़राब हुई और बिगडती ही चली गई . बहुत दवा कराई गई परन्तु जोसफ बच न सका . अभी एलिशा पचास की  भी नहीं  थी . बेटे रेमंड का विवाह हो चुका था  . उसके तीन बेटे और एक बेटी थी . उसने माँ से बहुत कहा कि उसके ही साथ रहे लेकिन उसे यह मंजूर नहीं था . अपनी  भी कोई जिंदगी होती है . बच्चों के साथ रहो तो उनके अनुसार ही चलना होगा . फिर उसकी अपनी बेटी भी तो है . परन्तु बेटे के आग्रह को देखते हुए उसने एक मकान उसके घर के पास ले लिया .धीरे -धीरे पति   का गम तो कम होने लगा परन्तु अब वह क्या करे , उसके सामने यह विकट समस्या थी .
   जो लोग दूसरों को देखकर काम करते है , वे दूसरों कि भावनाएं ही देखते रह जाते हैं कि लोग क्या कहेंगे .पता नहीं कितनी जिन्दगी शेष है , परन्तु जितने दिन जियो उत्साह से जियो , कुछ करते हुए जियो . जो लोग इस सिद्धांत को अपना लेते हैं यह दुनियां उनके आगे झुकने लगती है . एलिशा के मन में अनेक विचार आते , परन्तु किसी बात पर मन पक्का न होता . अंत में उसने तय किया कि सबसे पहले वह पढेगी और उसके बाद तय करेगी कि उसे क्या करना है . उसने पुस्तकें ली और बच्चों कि तरह पढ़ना शुरू किय . पहले उसने दसवीं पास की.उसके बाद उसने हायर सेकेंडरी पास की . अब वह हाई स्कूल ग्रेजुएट  थी और आत्म विश्वास से लबरेज थी . उसने टैक्स की गणना करना सीखा और टैक्स विभाग में पंजीयन करवा लिया तथा टैक्स की  प्रैक्टिस  करना सीख लिया . एलिशा बात चीत में तो कुशल थी  ही , उसकी स्वंत्र प्रैक्टिस चलने लगी . . वह सफलता पूर्वक अधिकारियों के समक्ष तर्क रखती और व्यवसायियों  को लाभ होता . उसकी ख्याति बढ़ने लगी . अब वह व्यावसायिक , सामाजिक संगठनों में भी सक्रिय होने लगी थी , उसके व्यक्तित्व का ऐसा प्रभाव होता कि लोग उसे आग्रह पूर्वक अपने संगठनों का अध्यक्ष बनाते . इतनी व्यवस्तताओं के होते हुए भी वह बच्चों के लिए अपना समय देना नहीं भूलती  थी . अपने पौत्रों को ही नहीं , वह स्कूल जाकर  बच्चों की  पढाई में मदद करती थी , गरीब  बच्चों को आर्थिक मदद भी करती थी .अब वह दादी माँ थी .वह  क्लब में भी जाती , नाचती भी ,क्योंकि उसे यह सबसे प्रिय था .
  जिन्दगी के दिन बीत रहे  थे . वह पैसठ की  हो गई थी . उसके नाती -पोते थे जो उसे बहुत चाहते थे . परन्तु एलिशा का  मन अनंत  में घूमता रहता , क्या तलाशता रहता , उसे भी नहीं मालूम था . एक दिन वह अपने कक्ष में बैठी फाइलों में उलझी हुई थी कि उसका एक किरायेदार उसे किराया देने आया . उसके साथ एक मित्र भी था . उसने  मित्र से एलिशा कि बहुत प्रशंसा की .अपने मित्र के बारे में उसने एलिशा को बताया कि अल्फ्रेड भी बहुत खुश मिजाज इन्सान है . उन्हें भी सामाजिक  संस्थाओं में रूचि है और वे नृत्य में बहुत एक्सपर्ट हैं . नृत्य की  बात होते  ही एलिशा के मन के तार झंकार कर उठते . एलिशा ने उससे पूछा कि वह किस क्लब जाता है , वहां और कौन- कौन आते है . कुछ बाते उसके कारोबार और परिवार के सम्बन्ध में भी हुईं . अल्फ्रेड की  उम्र साठ से कुछ कम थी , उसकी पत्नी का निधन हो चुका था . उसके घर में भी नाती -पोते थे . उसके बाद धीरे -धीरे उन  दोनों की बाहर और क्लबों में मुलाकाते बढ़ने लगीं और पता ही   नहीं चला कि कब प्यार हुआ और विवाह भी हो गया . दादा-दादी कि शादी हुई थी .स्वाभाविक है उन्हें दहेज़ में ढेर सारे सौतेले नाती- पोते भी मिले . अपने आकर्षक व्यक्तित्व और मीठे बोलों तथा सहायता कि प्रवृत्ति के कारण सारे बच्चे अपनी प्रिय दादी को बहुत प्यार करने लगे . एलिशा आज भी जवान थी विचारों से भी और काम से भी .इतना बड़ा परिवार होने पर भी वह अपनों -परायों, सभी के लिए समय निकाल लेती थी . उसकी जिन्दादिली ही उसके अच्छे स्वास्थ्य का कारण थी . 
   एलिशा पच्चानबे वर्ष की हो गई थी .बारह वर्ष पूर्व अल्फ्रेड का निधन हो चुका था . उसके पुत्र -दो पौत्र औरपुत्री - पौत्री भी स्वर्ग सिधार चुके थे . उसके परिवार में प्रपौत्रो - प्रपौत्रियों समेत अनेक लोग थे . वह ऊपर से तो आज भी अच्छी थी परन्तु अन्दर से कहीं टूट भी रही थी . एक दिन उसे सीने में दर्द हुआ . बच्चों ने  अस्पताल  ले जाना चाहा परन्तु उसने मना कर दिया . इतना तो जी लिया , सारे सुख भोग लिए . अब उसकी कोई इच्छा नहीं रह गई थी . दादी कि बीमारी का हाल सुन कर सारे सम्बन्धी इकट्ठे हो गये थे . एलिशा सबसे बात करने कि कोशिश  करती . परन्तु वह अचेत होती जा रही थी अचानक उसकी धडकनें बंद सी हो गई . लोगों    ने ध्यान से देखा ,  वह  शांत हो गई थी . छोटे से बड़े , सबकी जुबान पर एलिशा की जिन्दगी के  जीवंत किस्से थे  .

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