छात्रों की प्रवेश समस्या
छात्र नर्सरी का हो या किसी उच्च शिक्षा का , प्रवेश में समस्याएं ही समस्याएं हैं . हाँ यदि सरकारी स्कूल में प्रवेश लेना हो जहाँ न शिक्षक हों न अन्य सुविधाएं , तो प्रवेश मिल जायगा . छोटी कक्षाओं में गली कूचे में खुले स्कूलों में भी प्रवेश मिल जाता है परन्तु यदि स्कूल का नाम है , बड़ी फीस है तो अभिभावकों को भटकन पड़ता है .यह तो अब गरीब को भी समझ आ रहा है कि अच्छी पढ़ाई करने पर अच्छी नौकरी मिल जाती है . अतः वे भी अपनी क्षमतानुसारर निकम्मे सरकारी स्कूलों से दूर किसी निजी स्कूल में अपने बच्चों को प्रवेश दिलाते हैं . अब स्कूल वाले टेस्ट ले नहीं सकते , अतः चयन प्रक्रिया भी गोलमोल हो गई है . हाँ इस सारी प्रक्रिया में यदि किसी को फायदा हुआ है तो वे सरकारी अफसर हैं जो अपने स्कूल बर्बाद करने के बाद अब निजी स्कूलों की ओर कुदृष्टि जमाये हैं . यदि इनमें योग्यता होती तो ये अपने स्कूल न सुधार लेते , लोग ढेर सारा रुपया लेकर क्यों यहाँ से वहां मारे- मारे फिरते.
कपिल सिब्बल साहब परम दयालु हैं . उन्होंने क़ानून बनवा दिया कि आठवीं तक न तो कोई छात्र फेल किया जा सकता है ,न उससे कोई पढ़ने के लिए कह सकता है . पर उनकी शिक्षा का क्रूर रूप तब प्रगट होता है जब बहुत मेहनत करने के बाद भी , ट्यूशन पढ़ने के बाद भी दुर्भाग्य से उनके अंक कम आ जाते हैं और उन्हें कभी ग्यारहवी में कभी स्नातक स्तर पर और कभी तकनीकी या मेडिकल में इच्छानुसार प्रवेश नहीं मिलता या विषय नहीं मिलते . दिल्ली विश्विद्यालय के कालेजों में तो पिछले वर्ष १००% अंक वालों को ही बीकाम में प्रवेश मिल पा रहा था , इस वर्ष ९९% से अधिक वालों को मिला है . अन्य लोग कहाँ जाएँ ? माता -पिता बच्चे को बहुत अच्छे स्कूल में नर्सरी में प्रवेश दिलाकर निश्चिन्त हो जाते है कि चलो १२वी तक कि पढ़ाई यहाँ हो जायगी . परन्तु अनेक बच्चों को ११वी में गणित विषय नहीं मिल पाता है या फिर उससे निम्न स्तर के स्कूल में जगह ढूढो . जब से आई.आई टी. में प्रवेश के लिए १२वी में टाप २०% में आने कि शर्त जोड़ने की बात आ रही है , स्कूल वाले और सतर्क हो गए हैं कि सर्वश्रेष्ठ बच्चे ही लो , ताकि स्कूल का परीक्षा फल बहुत अच्छा हो . इससे भविष्य में भी अच्छे बच्चे ही आयेंगे . यदि एक बार रिजल्ट बिगड़ गया तो प्रतिष्ठा गिर जायगी , न अच्छे बच्चे आयेंगे , न अमीर बाप आयेंगे . समस्या उस समय आती है जब अभिभावक अपने एक बच्चे के लिए 'जैसे भी' की जुगाड़ करते हैं और स्कूल वाले भविष्य के लाभ - हानि को ध्यान में रखकर काम करते हैं . इसमें सर्वाधिक आश्चर्य जनक बात यह है कि कपिल साहब को इन युवाओं से कोई सहानुभूति क्यों नहीं है ? आठवी तक बच्चे धकिया दिए , उसके बाद वे जियें या मरें , उन्हें कोई मतलब नहीं है . कपिल सिब्बल और उस मूढ़ , अज्ञानी पिता में क्या अंतर है जो बच्चे बिना रोक -टोक के पैदा करता जाता है , बिना सोचे - समझे कि आगे जिन्दगी कैसे चलेगी . यदि वे आठवी तक सबको पास करने का फरमान जारी कर सकते हैं तो कम से कम उसके बाद बच्चों की मन पसंद के स्कूल और विषय देने में तो कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए . सिर्फ सिब्बल ही नहीं राज्य सरकारें उससे भी ज्यादा दोषी हैं . ये सरकारें घूम - घूम कर तरह - तरह कि नौटंकी पर अनाप - शनाब व्यय करती रहती हैं परन्तु बच्चों की शिक्षा की ओर से आँखे मूँद लेती हैं . वे स्कूलों में या तो शिक्षक देती ही नहीं हैं , देती हैं तो अयोग्य लोगों को भरती कर लेते हैं या इक्का - दुक्का टीचर देंगे . और यदि पूरे शिक्षक कहीं पर दे भी दिए तो इस बात का पूरा ध्यान रखा जाता है कि कही वे बच्चों को पढाने न पायें .
सरकारी नेताओं ने सबसे बड़ी चाल यह चली कि अमीर गरीब के मध्य बड़ी खाई खोद दी . उन्होंने पैसे वालों के लिए निजी स्कूलों का जाल बिछाया और निजी स्कूल वालों से पैसे खाए . और उनके सरकारी दलालों ने निजी स्कूलों को कोसना शुरू कर दिया . लोगो समझते तो हैं नहीं, उन्होंने सोचा कि निजी स्कूल वाले बुरे हैं . इससे सरकारी स्कूलों को बर्बादी से बचाने की किसी ने कोशिश ही नहीं की . यदि सरकारी स्कूल जितने अच्छे पहले थे उतने ही अच्छे बने रहते ,तो न निजी स्कूलों का जाल फैलता न लोग परेशान होते . लोगों की स्थित ऐसी है कि उन्हें अपनी बीमारी की चिंता नहीं है , वह इसलिए मरे जा रहे हैं कि दूसरा क्यों खा रहा है . सरकार ने पहले निजी स्कूलों के लिए अपने स्कूल बर्बाद किये , अब वह अधिक लालच में विदेशी स्कूल से विश्विद्यालय तक खुलवाने के लिए निजी स्कूलों को बर्बाद करने पर उतारू है .यदि सरकार को अनिवार्य शिक्षा कानून की थोड़ी सी भी शर्म है तो वह सारा ध्यान अपने स्कूलों - कालेजों को सुधारने में लगाये , रिकार्ड बनाकर वाहवाही लूटने कि प्रवृत्ति छोड़े . लार्ड मैकाले कि शिक्षा को कोसने वालों जरा सोचो कि विदेशी होकर भी उसने ऐसी व्यवस्था तो की कि १०वी पास लोग कार्यालय का काम तो अच्छी प्रकार कर लेते थे , तुम्हारी व्यवस्था में तो पांचवी पास बच्चा ठीक से पढ़ भी नहीं पाता ,१०वी पास क्या , अधिकांश स्नातकोत्तर छात्र आवेदन भी नहीं लिख पाते .
शिक्षा समाज की आत्मा है . जिस प्रकार आत्मा के बिना शरीर नहीं चल सकता उसी प्रकार शिक्षा के बिना समाज की कोई गति नहीं है .सरकार शिक्षा के नाम पर नगर पालिका कर से लेकर आयकर तक शिक्षा कर वसूलती है . यदि सरकारी स्कूलों के बच्चों के अभिभावक अपने स्कूल अच्छे बनाने के लिए आन्दोलन करेंगे तो स्कूल जितने अच्छे बनेंगे , देश की उतनी ही बड़ी सेवा होगी और उनके बच्चों का भविष्य उज्जवल होगा . चूंकि सभी बच्चे १२वी में टाप २०% में नहीं आ सकते ८०% बच्चों को आई. आई. टी की प्रवेश परीक्षा से वंचित करना ( जो कि निजी तकनीकी कालेजों को लाभ पहुँचाने के लिए किया जा रहा है ) कि वे अयोग्य हैं ., सारे देश की जनता का अपमान और उससे गद्दारी है .सभी अच्छी संस्थाओं के लिए बच्चों को प्रतियोगिता का अवसर दिया जाना चाहिए क्योंकि बोर्ड में उच्च अंक प्राप्त करने वाले बच्चे कुशाग्र बुद्धि के हों और प्रतियोगिताओं में भी अव्वल आयें , यह आवश्यक नहीं है .