पशु - सभा
जंगल में पशुसभा लगी थी
आये सारे जंतु विचरने
सभी बड़े मुदित मन आये
लगे परस्पर परिचय करने .
गदहों ने ऊंटों को देखा
बोल उठे क्या रूप मिला है
गर्दभ राग सुन ऊँट यों बोले
प्रभु ने सुर कितना मधुर दिया है .
मन की मैल
मन का यह विशाल आकाश
चारों ओर दूर तक फैला
नहीं क्षितिज का पाता भेद
भरा है जिसके मन में मैला .
मन में पसरा मैल
किसी का साफ़ न होता
दिन पर दिन होती वृद्धि
जहाँ शिक्षा और न्याय न होता .
सीमा
पशु ही जाने पशु कि भाषा
मनुज उसे कोई समझ न पाया
उनके चाल -चलन को देखा
कुछ- कुछ यह अनुमान लगाया
ये पशु हैं बस चरना जानें
पेट है इनकी अंतिम सीम
उन लोगों से कोटिशः अच्छे
जिनके खाने कि नहीं कोई सीमा .
पशु नहीं करते लोभ,
न करते जमा,
ईश्वर का उन्हेई सहारा
मनुज हुआ क्यों भ्रष्ट
न भरता पेट,
उसे लालच ने मारा .
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