मंगलवार, 10 जुलाई 2012

पशु - सभा

    पशु - सभा 
जंगल में पशुसभा लगी थी 
आये सारे जंतु विचरने
सभी बड़े मुदित मन आये    
लगे परस्पर परिचय करने .
गदहों ने ऊंटों को देखा 
बोल उठे क्या रूप मिला है 
गर्दभ  राग सुन ऊँट यों बोले 
 प्रभु ने सुर कितना मधुर दिया है .

        मन की मैल
  मन का यह विशाल आकाश 
चारों ओर दूर तक फैला 
नहीं क्षितिज का पाता भेद 
भरा है जिसके मन में मैला .
मन में पसरा मैल
  किसी का साफ़ न होता 
दिन पर दिन होती वृद्धि 
जहाँ शिक्षा और न्याय  न होता .

              सीमा 
पशु ही जाने पशु कि भाषा 
मनुज उसे कोई समझ न पाया 
उनके चाल -चलन को देखा 
कुछ- कुछ यह अनुमान लगाया 
ये पशु हैं बस चरना जानें 
पेट है इनकी अंतिम सीम 
उन लोगों से कोटिशः अच्छे 
जिनके खाने कि नहीं कोई सीमा .
पशु नहीं करते लोभ,
न करते जमा,
ईश्वर का उन्हेई सहारा 
मनुज  हुआ क्यों भ्रष्ट 
न  भरता पेट,
उसे लालच ने मारा .

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