संतरी से मंत्री तक
छापा पड़ा इक भृत्य के घर .
संपत्ति का भण्डार था
जब क्लर्क से पूछा गया
तो वह भी मालामाल था ,
छोटे बड़े कई अफसरों की
धन, कार , घरों की शान है
आई ए एस ने खोला खजाना
सबने कहा वह महान है .
राजा- कोंडा से कई मंत्री
सर्वत्र आनंद कर रहे
जितनी जो सेवा कर रहे
उतने वे खाते भर रहे .
इस देश में संत्री से मंत्री
करोड़पति और मालामाल हैं
कर्जे में डूबा देश सारा
गरीब और बेहाल है .
शिक्षा -रक्षा को धन नहीं है
भ्रष्टाचरण में महान है
शत्रु बढ़ते आ रहे
इसका न उसको भान है
है बढ़ रही प्रवृत्ति आसुरी
धन -लालसा सर्वत्र है
दुःख दे कर के धन लूटना
उन सबका मूलमंत्र है .
'टैक्स-धन' अपना बताते
आती न उनको लाज है
जितना अधिक जो लूट सकता
क्षत्रप वही सरताज है .
ये देशद्रोही दिन पर दिन
नए करतब हैं कर रहे
एक हो ताकत लगाओ
मनमानी न कोई कर सके .
भ्रष्टाचारी आत्मा
भ्रष्टाचारी आत्मा ईश्वर से करे पुकार .
दाता मेरी झोली भर दे ,दुश्मन को दे मार ..
देख रुपैया दिल ललचाया
मान और ईमान गंवाया
जो भी आए देता जाये
ईश्वर सब दिन ऐसा आये .
गरजमंद हों आने वाले
उनके काम हों मेरे हवाले .
अटकाऊं काम बड़ी टेबुल पर
नोट सजें फिर नीचे ऊपर .
गद्दे में नित भरूँ रुपैये
लाकर में नित भरूँ रुपैये
धरती लूं , बंगले बनवाऊँ
सोने से कोठी चमकाऊँ .
रोज मेरे घर हो दीवाली
फिर भी मन हो मेरा खाली .
सिर्फ यही है विनती मेरी
सजे रोज रुपयों के ढेरी .
मैं करता हूँ सच्ची पूजा
काम नहीं है मेरा दूजा
प्रभु जी दो सेवा का अवसर
पुण्य कमाऊँ मै जी भरकर ..
भ्रष्टाचारी आत्मा धरकर रूप अनेक .
सर्वत्र लूट मचा रही , भरे न उसका पेट ..
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