रविवार, 15 जुलाई 2012

संतरी से मंत्री तक

संतरी से मंत्री तक 
छापा पड़ा इक भृत्य के घर .
 संपत्ति का भण्डार था 
जब क्लर्क से पूछा गया
 तो वह भी मालामाल था ,
छोटे बड़े कई अफसरों की 
धन, कार , घरों की शान है 
आई ए एस ने खोला खजाना 
सबने कहा वह महान है .
राजा- कोंडा से कई मंत्री 
 सर्वत्र आनंद कर रहे 
जितनी जो सेवा कर रहे 
उतने वे खाते भर रहे .
इस देश में संत्री से मंत्री 
करोड़पति और मालामाल हैं 
कर्जे में डूबा देश सारा 
गरीब और बेहाल है .
शिक्षा -रक्षा को धन नहीं है 
भ्रष्टाचरण में महान है 
शत्रु  बढ़ते आ रहे 
इसका न उसको भान है 
है बढ़ रही प्रवृत्ति आसुरी 
धन -लालसा सर्वत्र है 
 दुःख दे कर के  धन लूटना 
उन सबका मूलमंत्र है .
'टैक्स-धन' अपना बताते 
 आती न उनको लाज है 
जितना अधिक जो लूट सकता
 क्षत्रप वही सरताज है .
ये देशद्रोही दिन पर दिन 
नए करतब हैं कर रहे 
एक हो ताकत लगाओ 
मनमानी न कोई कर सके .

भ्रष्टाचारी आत्मा 
भ्रष्टाचारी आत्मा    ईश्वर से करे पुकार .
दाता मेरी झोली भर दे ,दुश्मन को दे मार ..
देख रुपैया दिल ललचाया 
मान और ईमान गंवाया 
जो भी आए देता जाये 
ईश्वर सब दिन ऐसा आये .
गरजमंद हों आने वाले 
उनके काम हों मेरे हवाले .
अटकाऊं  काम बड़ी  टेबुल  पर 
नोट सजें फिर नीचे  ऊपर .
गद्दे में  नित  भरूँ  रुपैये 
लाकर  में नित भरूँ रुपैये 
धरती लूं , बंगले बनवाऊँ 
सोने से कोठी चमकाऊँ .
रोज मेरे घर हो दीवाली 
फिर भी मन हो मेरा खाली .
सिर्फ यही है विनती मेरी 
सजे रोज रुपयों के ढेरी .
मैं करता हूँ सच्ची पूजा 
काम नहीं है मेरा दूजा 
प्रभु जी दो सेवा का अवसर 
पुण्य कमाऊँ मै जी भरकर ..
भ्रष्टाचारी आत्मा  धरकर रूप अनेक .
सर्वत्र लूट मचा रही , भरे न उसका पेट ..




















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