मंगलवार, 26 अक्तूबर 2010

राज्यों का विघटन

राज्यों के विघटन की प्रक्रिया

स्थिर सामाजिक -राजनीतिक व्यवस्था के मुख्या कारक हैं --संस्कृतिक एकता ,वैचारिक सामंजस्य ,परस्पर विश्वास ,दूसरों का सम्मान ,उपेक्षा एवं शोषण का अभाव , स्थिर राजनीतिक व्यवस्था तथा राजनीतिक दूरदृष्टि । सामान्य विश्लेषण के पूर्व इसे मध्यप्रदेश के सन्दर्भ में समझना उपयुक्त होगा । १ नवम्बर १९५६ को महाकोशल तथा छत्तीसगढ़ मिलकर मध्य प्रदेश बना । बाद में मध्य भारत ,विन्ध्य प्रदेश एवं भोपाल राज्य का भी इसमें विलय हो गया। ४५ वर्ष पश्चात छत्तीसगढ़ इससे पृथक हो गया । मध्य प्रदेश में आज भी स्थापना दिवस पूर्व की भांति १ नवम्बर को बड़ी शानशौकत से मनाया जा रहा है । आपत्ति उत्सव मनाने पर नहीं है । दुःख इस बात का है की १ नवम्बर ही इसका विघटन दिवस भी है । मध्य प्रदेश का विघटन क्यों हुआ इस पर भी चर्चा - विचार विमर्श होना चाहिए था , जो नहीं हो रहा है । कल को अन्य क्षेत्र भी पृथक हो सकते हैं । छत्तीसगढ़ के पृथक होने का कारण उस क्षेत्र के लोगों का भारी शोषण था जिससे असंतोष उत्पन्न होता गया । छत्तीसगढ़ की प्राकृतिक सम्पदा का शोषण जम कर किया गया परन्तु उनके विकास पर ध्यान नहीं दिया गया । १९८८ में मैं जगदलपुर में पदस्थ था .जगदलपुर से विशाखा पट्टनम के लिए लौह अयस्क ढोने के लिए तो ट्रेन थी परन्तु मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल तथा उच्च न्यायालय जबलपुर आने के लिए कोई ट्रेन नहीं थी । धक्के खाते हुए पहले बस से रायपुर आइए फिर देखिए कि आगे क्या मिलेगा । कुल मिलाकर ऐसी व्यवस्था बना कर रखी गयी थी कि आदिवासी हमेशा के लिए आदिवासी बने रहें और महा पुरुष इच्छानुसार उनका शोषण करते रहें .इसी कारण से बिहार से झारखण्ड तथा उत्तर प्रदेश से उत्तरांचल पृथक हुए । हमने कोई सबक नहीं सीखा .पूर्वांचल धधक रहा है .तेलंगाना आंध्र से पृथक होने को बेताब है ।
आज कश्मीर के विघटन की कगार पर पहुँचने पर कुछ लोगों के दुखी होने से समस्या हल होने वाली नहीं है .हम आजादी का जश्न मनाते आ रहे हैं । क्या हमने कभी सोचा है की भारत का विघटन क्यों हुआ ? आजादी के पूर्व भारतीय नेताओं में दूरदृष्टि नहीं थी । स्वार्थी मुस्लिम लीगी नेताओं ने सोचा की जैसे मुस्लिमों ने सदिओं से हिन्दुओं पर अत्याचार किये है हिन्दुओं का राज होगा तो वे बदला ले सकते हैं .यह भावना सांस्कृतिक एकता के अभाव और परस्पर अविश्वास के कारण उत्पन्न हुई । गाँधी - नेहरु जिन्ना का पूरा विश्वास करते थे परन्तु जिन्ना उनकी उपेक्षा के साथ सदिओं पुरानी आक्रान्ताओं की आक्रमण नीति का अनुसरण करता था । भारत से दो पाकिस्तान अलग हुए धर्म के नाम पर । परन्तु बाद में वहां पंजाबिओं - सिन्धिओं ने बंगालिओं की उपेक्षा तथा शोषण प्रारंभ कर दिया जिससे बंगलादेश बन गया .आज पाकिस्तान भावी विघटन की ओर बढ़ रहा है । इन्हीं कारणों से शक्तिशाली कहे जाने वाले युगोस्लाविया के तीन और रूस के २४ टुकड़े हो गए । नेताओं की तो छोडिए ,क्या किसी समाजशास्त्र -राजनीतिशास्त्र के प्रोफ़ेसर ने इन पर विचार करने का प्रयत्न किया ? भारतीय राजनीति पर पाकिस्तान समर्थकों का शिकंजा कस चुका है । इसलिए कश्मीर वार्ता के लिए बनाई गई समिति ने बिना कोई प्रयास किये घोषणा कर दी कि कश्मीर का हल पाकिस्तान ही निकाल सकता है और इस संगीत में भारतीयता की चादर ओढ़े अनेक सियार हुआ -हुआ करने लगे हैं । यदि हम अब भी मनमानी करते रहेंगे , बिना चिंतन किये जश्न में डूबे रहेंगे , सियारों से डरते रहेंगे तो कश्मीर के आगे भी विघटन की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता है ।

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