मंगलवार, 26 अक्तूबर 2010

लिव इन रिलेशन शिप

कानून की भी सीमा होती है

जब स्त्री-पुरुष बिना विवाह के साथ -साथ रहते हैं ,तो उन्हें यह मानने का कोई अधिकार नहीं है की उन्हें भी उन कानूनों का लाभ मिलेगा जो समाज के शरीफ लोगों के लिए बनाए गए हैं .फिजा -चाँद मुहम्मद का प्रकरण सबके सामने है । चन्द्रमोहन के परिवार में हस्तक्षेप करने के लिए वे हिन्दू से मुसलमान बन गए । जब मुस्लिम क़ानून के अनुसार चाँद मुहम्मद ने तलाक दिया तो फिजा को हिन्दू धर्म जैसी वफ़ादारी याद आने लगी । उसे लगा की उसके साथ बड़ा अन्याय हो रहा है जबकि चन्द्रमोहन की धर्म पत्नी के साथ उसके द्वारा किये गए अन्याय को वह भूल गई.हिन्दू और मुस्लिम दोनों कानूनों का एक साथ लाभ उसे कैसे मिल सकता था ?पैसे या शरीर -सुख के लिए अथवा किसी गैर कानूनी कार्य के लिए यदि कोई महिला स्वेच्छा से किसी पुरुष के साथ रह रही है तो उसे विवाह के लाभों के लिए सोचने का भी अधिकार नहीं है । विवाह न करने का अर्थ है की वह भी किसी अच्छे अवसर पर दूसरे के साथ रह सकती है । विवाह सर्वाधिक प्राचीन सामाजिक संस्था है , बिना किसी कारण के उसका मजाक उड़ाने का किसी को अधिकार नहीं है .बिना विवाह किसी पुरुष के साथ रहने वाली महिला को शुरू से ही रखैल कहा जाता है ,रखैल माना जाता रहा है जो पुरुष की यौन संतुष्टि के लिए है। फिर न्यायाधीश उसके लिए किस शब्द का प्रयोग करते जिससे स्त्री के सम्मान में वृद्धि हो जाती ? क्या कालगर्ल अथवा सेक्स वर्कर कहने से वेश्या के सम्मान में वृद्धि हो जाती है ? ऐसे लोगों को विवाह के लाभ और सम्मान क्यों मिलने चाहिए ? विवाह से दो व्यक्तियों ही नहीं परिवारों के मध्य कर्तव्यों तथा दायित्वों का सृजन होता है .विवाह के पश्चात् संपत्ति का अधिकार सर्वाधिक महत्त्व पूर्ण है जिस पर प्रथम अधिकार स्वतः पत्नी या पति का हो जाता है .उसके पश्चात् बच्चों का अधिकार होता है और इसे समाज स्वीकार करता है .यदि स्त्री या पुरुष का विवाह नहीं हुआ है तो सम्पति पर उनके माता- पिता, भाई- बहनों का अधिकार होता है । विवाह के बिना संपत्ति के उत्तराधिकार के असंख्य प्रकारों के लिए व्यावहारिक क़ानून बनाना दुष्कर है । इसके साथ ही इससे समाज में अन्य विद्रूपताएँ भी उत्पन्न होंगी । अतः इसे यथा संभव हतोत्साहित करना चाहिए ।

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