बुधवार, 27 अक्तूबर 2010

एडवोकेट परीक्षा अव्यवहारिक

एडवोकेट परीक्षा अव्यवहारिक
इस वर्ष प्रथम बार वकालत करने के लिए एल -एल .बी.उत्तीर्ण करने के बाद एक योग्यता परीक्षा भी उत्तीर्ण करनी होगी जिसका आयोजन बार काउन्सिल आफ इंडिया कर रही है .यद्यपि राज्यों के बार काउन्सिल ने इसका विरोध किया है ,परन्तु परीक्षा होगी और इसे उत्तीर्ण करना अनिवार्य होगा यदि न्यायालय जा कर वकालत करनी है । परीक्षा का औचित्य समझ से परे है । यदि इसके लिए छात्रों के विधि ज्ञान को न्यून स्तर का माना जा रहा है तो यह दोष बार काउन्सिल का ही है क्योंकि इसने बिना शिक्षक , बिना किसी सुविधा वाले अनेक शासकीय एवं अशासकीय महाविद्यालयों को विधि शिक्षा के लिए अनुमति दे रखी है . अनेक महाविद्यालयों में एक भी नियमित शिक्षक नहीं होते हैं ,बार काउन्सिल ने उनकी न तो मान्यता समाप्त की न ही उन पर शिक्षकों की नियुक्ति के लिए दबाव बनाया। अनेक छात्र कॉलेज जाते ही नहीं हैं .उनकी उपस्थिति के लिए कभी प्रयास नहीं किये गए . महाविद्यालयों में पुस्तकालयों में कानून की पुस्तकें हैं या नहीं ,कभी नहीं देखा गया । बार काउन्सिल को कानून शिक्षा व्यवस्था पर पूरा नियंत्रण रखना चाहिए।
राष्ट्रीय विधि महाविद्यालयों में कठिन प्रवेश परीक्षा के पश्चात ५ वर्षीय विधि स्नातक पाठ्यक्रम में प्रवेश दिए जाते हैं । अनेक अन्य विधि संस्थानों में भी स्तरीय पढाई होती है ,वहां से उत्तीर्ण छात्रों को भी यह परीक्षा देनी होगी । यह उन संस्थानों तथा छात्रों की प्रतिष्ठा के विपरीत होगा । आई.आई.टी तथा आई आई एम् से उत्तीर्ण छात्रों के भी इंटर व्यू लिए जाते हैं पर उसके पश्चात् कंपनिया उन्हें अच्छे वेतन पर नियुक्ति देती हैं । क्या बार काउन्सिल परीक्षा उत्तीर्ण करने वालों को कोई निश्चित आय का भी प्रावधान करने वाली है ? ऐसे अनेक संस्थान भी हैं जो परीक्षाएं लेते हैं ,प्रवेश के समय भी और पाठ्यक्रम पूर्ण करने पर भी . चार्टर्ड अकाउनटेंट ,कंपनी सेक्रेटरी ,ए एम् आई इ ,इलेक्ट्रानिक विभाग द्वारा 'ओ' ,'ए', 'बी','सी', स्तर की कंप्यूटर परीक्षा आदि । परन्तु इन संस्थानों के छात्रों को किसी संस्था में नियमित रूप से पढने का प्रावधान नहीं रखा गया है । कहीं भी पढो,कैसे भी पढो ,किसी भी पुस्तक से पढो ,इन संस्थाओं को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है .क्या भारत की बार काउन्सिल भी ऐसा प्रावधान करने जा रही है ? क्या अब विधि की शिक्षा किसी संस्थान में बिना शिक्षा ग्रहण किये ,निजी स्तर पर पढ़ कर भी उत्तीर्ण की जा सकेगी ?बार काउन्सिल यदि अपनी परीक्षा के स्तर का विश्वास करती है तो उसे इतना साहस भी दिखाना चाहिए कि अब तक जो छात्र बिना पढ़े विधि परीक्षा उत्तीर्ण करते चले आ रहे थे , उस व्यवस्था को घोषित रूप से स्वीकार कर ले ।
बार काउन्सिल आफ इंडिया को अनेक अन्य कार्य भी करने चाहिए जिससे वकीलों की प्रतिष्ठा में वृद्धि हो। वकीलों के पहचान पत्रों को सरकार मान्यता नहीं देती है । चुनाव के समय मतदान करते समय , फोन ,मोबाईल ,गैस आदि का कनेक्शन लेने में ,बैंक में एकाउंट खुलवाने में या इसी प्रकार के अन्य कार्यों में वकील को बार काउन्सिल द्वारा दिए गए पहचान पत्र को स्वीकार नहीं किया जाता है ,न ही उसे सरकार द्वारा पहचान पत्रों कि सूची में रखा गया है .उसमें राशन कार्ड , ड्राइविंग लाइंसेंस , पासपोर्ट जैसे पहचान पत्र तो हैं जिन्हें एजेंटों के माध्यम से कैसे भी बनवाया जा सकता है और यह तथ्य सभी जानते भी हैं ,परन्तु राज्यों की बार कौंसिलों द्वारा दसवीं से लेकर अंतिम उत्तीर्ण परीक्षा तक तक सभी अंक सूचिओं तथा प्रमाणपत्रों को मूल रूप से मिलान कर दिए गए पहचान पत्र सरकारी नजर में कुछ नहीं हैं। बार काउन्सिल को मुकदमें जल्दी निपटाने तथा न्यायालयों पर बोझ कम करने के प्रयास भी करने चाहिए .अनेक गरीब लोग थोड़े से अर्थदंड न चुका पाने के कारण जेलों में पड़े रहते हैं । जाँच पड़ताल के बाद सरकार से उसे माफ़ करवाने के प्रयास करने चाहिए । भूमि प्रकरणों में भारी न्याय शुल्क को कम करवाना चाहिए .इनसे वकीलों की प्रतिष्ठा बढ़ेगी ।

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