रविवार, 9 सितंबर 2012

जल में मानवता रोती है

 जल में मानवता रोती है 
इंदिरा सागर बांध के कारण , जल सत्याग्रह शुरू हुआ ,
स्त्री - पुरुषों ने निज घर छोड़ा ,नर्मदा जी  में स्थान लिया.
 छोटी सी मांग, मुआवजा दे दो ,नेता - अफसर नहीं सुनते हैं ,
उनसे धरती को छीन रहे , असहाय और  बेघर करते हैं .
गर ऊंचे बांधों से लाभ मिलेगा ,, कृषकों का हक क्यों मारते हो ?
नौकरी - मकान तुम बाँट रहे , उन सबको क्यों अस्वीकारते हो ?
यदि वे हैं गलत , बाधा हैं बनते , जेल में क्यों नहीं बंद किया ?
लूटने का साहस है  तुममें , मारकर क्यों नहीं लूट लिया ?
शासन -संवेदना शून्य हुआ , मानवता वादी कुम्भकर्ण बने 
न्याय पुस्तकों में छुपा हुआ , मजबूर  कृषक संघर्ष करें 
शर्मनाक यह राष्ट्र- व्यवस्था , अक्षम लोगों के हाथ पड़ी ,
क्या इसी के लिए शहीद हुए ,कुराज के लिए थी जंग लड़ी 

शुक्रवार, 7 सितंबर 2012

दिग्विजय सिंह महान जादूगर

                                                 दिग्विजय सिंह महान जादूगर 
   दिग्विजय सिंह एक महान जादूगर  हैं .यह उन्होंने अपने अनेक कारनामों से सिद्ध कर दिया है . नया विवाद ठाकरे परिवार का बिहार से आना है . इस विवाद से न तो राज ठाकरे अपने विचार बदलने वाले हैं और न जनता का भला होने वाला है . परन्तु अपने मायाजाल में उन्होंने मीडिया और लोगों को ऐसा उलझाया कि लोग कोयले आदि  के घपलों , मुंबई में हुए पुलिस के जवानों पर आक्रमण , पुलिस कमिश्नर   द्वारा पकड़े गए दंगाइयों को छुड़वाना , दंगा रोकने वाले पुलिस अधिकारियों को सार्वजनिक रूप से डांटना कि उन्हें क्यों पकड़ा और इस काम के लिए महाराष्ट्र की कांग्रेस सरकार द्वारा उनको पदोन्नत करना जैसे मामले उनके हाथ की सफाई से उड़नछू हो गए .लोग  उनके  जादू  में  इतना  खो  गए  कि  वे  यह  भी  भूल  गए  कि मुंबई में ११ अगस्त को हुए दंगो को न रोकने और राज ठाकरे को भी क्षेत्रीयता फ़ैलाने  के लिए न रोकने का काम उनकी कांग्रेस सरकार क्यों नहीं करना चाहती है  . बंगला देशियों के मामले में चुप रहने ,असम के दंगों  में ४ लाख लोगों के विस्थापित होने देने  तथा  अनेक लोगों के  मारे जानेऔर घायल होने  से न रोकने तथा भयभीत  असमियों को बंगलुरु  में धीरज बंधाने के स्थान पर पलायन करने के लिए तीन विशेष ट्रेनों की व्यवस्था   करने  के पीछे केंद्र ,महाराष्ट्र और असम   की कांग्रेस सरकार की देश को पुनः विभाजित करने की कितनी  बड़ी चाल है  .जब -जब कांग्रेस सरकार आफत में फंसती है तो सोनिया जी के दायें हाथ की तरह काम करने वाले दिग्विजय सिंह कभी ठाकरे , कभी हिन्दू आतंकवाद , कभी संघ , कभी साम्प्रदायिकता के मुद्दे इतनी खूबसूरती से उछालते हैं कि लोग आसमान ही देखते रह जाते हैं और जमीन पर शातिर लोग अपनी योजनाएं  सफलता पूर्वक संपन्न कर लेते हैं .दिग्विजय  सिंह  को  शायद  यह  नहीं  मालूम  होगा  कि  कश्मीर  से  जाकर  पंजाब  में  बसने  वाले  एक  ब्रह्मण  परिवार  ने   इस्लाम  धर्म  अपना लिया  था  . २५०  वर्ष  बाद  उसमें  प्रसिद्द  शायर इकबाल हुए जिन्होंने धर्म के आधार पर पृथक पाकिस्तान का विचार सर्वप्रथम दिया था जो उनकी मृत्यु के ९ वर्ष बाद साकार हुआ . 


भूत होता है

                                                             भूत  होता  है  
   भूत को किसी ने देखा है या नहीं , नहीं मालूम, परन्तु भारत जैसे पुराने विचारों वाले देश में ही नहीं , समृद्ध और उन्नत अमरीका की भी बहुत बड़ी आबादी भूतों के अस्तित्व को मानती है .मैं भी कहता हूँ कि भूत होते हैं . और मैंने अनुभव किये हैं .इस सन्दर्भ में मैं अपने जीवन के बचपन , युवावस्था एवं प्रौढ़ावस्था की तीन अलग - अलग घटनाओं का वर्णन करूंगा . 
       बचपन  में हम कानपुर में एक सरकारी कालोनी में रहते थे . १९६० के पहले कि बात है . मैं तीसरी या चौथी में पढता था . हमारे  घर से ४ मकान आगे के मकान में रहने वाले मेरे मित्र के  पिता एक निजी कंपनी में में कार्य करते थे . उन्हें अक्सर बाहर जाना पड़ता था . शायद एक बार रिक्शे से गिर पड़े थे . उस समय उनकी आयु ५० वर्ष  रही होगी . वह बीमार रहने लगे थे . मेरे मित्र ने बताया कि उन पर भूत सवार रहता है . भूत भगाने के लिए कोई मौलवी साहब आते थे . मौलवी आकर क्या करता था , मुझे नहीं मालूम परन्तु उसने पहचान लिया था कि उन पर एक भूत सवार है .एक बार मैं कुतूहल वश  उनके घर जाकर भूत प्रक्रिया को देखने के लिए खड़ा हुआ तो मुझे समझाते हुए दरवाजे से दूर हटा दिया गया कि यदि भूत भागेगा तो रास्ते में खड़े आदमी अर्थात मुझे पकड़ लेगा . मेरा मित्र बताता  था कि मौलवी ने भूत को पकड़ कर बोतल में बंद कर दिया है और वह उस बोतल को कब्रिस्तान में दफ़न कर देगा . भूत को पकड़ने और दफ़नाने के लिए मौलवी ने क्या लिया मुझे नहीं मालूम , पर उनकी दिल में दर्द की बीमारी बढ़ गई . दोस्त का एक भाई दसवीं पास करके नौकरी करने लगा था . किसी की सलाह पर उसने पिताजी को ह्रदय रोग विशेषज्ञ   को दिखाया . धीरे - धीरे वे ठीक होते गए . बाद में उनको अपनी मूर्खता पर पश्चाताप भी हुआ और हंसी भी आई .
             १९७३  में मैं    एम्.एस-सी पास करने के बाद  मैं एक वर्ष की कालेज  व्याखाता  की नौकरी भी कर चुका . अवकाश में घर पर , वहीँ कानपुर में  था . एक दिन दोपहर में हल्ला होने लगा कि घर के सामने रहने वाले मेरे एक मित्र की युवा बहन पर भूत आ गया है . मैं भी दौड़ कर वहां पहुंचा .देख कर मुझे भी सिहरन हुई . वह लड़की पलंग पर लेटी हुई थी और चिल्ला रही थी कि तुमने मेरा संस्कार अच्छी प्रकार नहीं किया है . उसकी माता का कुछ समय पूर्व निधन हुआ था .लोग भी मानते थे कि उसके पिता ने विधान के अनुसार संस्कार , पिंड दान नहीं किये हैं .सिहरन पैदा करने वाली बात यह थी कि दीवार पर लटकी उसकी माँ कि फोटो को जब उसे दिया गया तो उसने फोटो सीने से लगा लिया और चुप हो गई . थोड़ी देर में वह निढाल हो गई . सबने कहा कि माँ आ गई है . तुरंत किसी झाडने वाले को बुलवा भेजा गया . सिहरन होने के बावजूद मैंने मित्र से पूछा कि उसे कोई अन्य बीमारी तो नहीं हुई थी . उसने बताया कि कुछ  दिन पूर्व उसे तीव्र ज्वर  हुआ था जिसे डाक्टर ने एक - दो दिन में ठीक कर दिया था . मैंने कहा कि संभव है किसी दवा की प्रतिक्रिया के कारण ऐसा हो रहा हो और उसके मस्तिष्क पर असर पड़  गया हो . मैंने सब कुछ देखने के बाद भी उसे सलाह दी कि इसे किसे अच्छे होमियो पैथ को दिखाना उचित होगा . मोहल्ले कि चाचियाँ   और मौसियाँ मेरी बात पर अप्रसन्न हो गईं कि सामने देखकर भी ऐसा कह रहे हैं . ये लड़के थोड़ा पढ़ क्या लेते हैं , अपनी मनमानी करते हैं जैसी बातें भी मुझे सुननी पड़ीं . मैं बड़ों का आदर करता रहा हूँ पर उस समय मैंने अपनी बात रखी और २२- २३ वर्ष के मित्र ने उसे मान भी लिया . उसे ले जाने के बाद शायद झाड़ने वाला आया था परन्तु उसके हाथ कुछ नहीं लगा . दवा देने के बाद उसे पुनः ज्वर हो गया जिसे वह होमियोपथ ठीक नहीं कर पा रहा था .शायद एक सप्ताह बाद उसे अन्य अच्छे इलोपैथ डाक्टर को दिखाया .वह शीघ्र ही ठीक हो गई . 
      तीसरी घटना  तीन  वर्ष पूर्व भोपाल की है . मेरे निकट सम्बन्धी की  ३७ वर्षीय बेटी , जो मोटी भी थी  , खाने और सोने के अलावा कुछ  समझती थी  तो यह कि अवसर मिलते ही माँ को कूटना है जो नित्य कर्म से लेकर सारी  देखभाल करती हैं . पिता डांट दें तो चुप हो जाती थी . हल्ला करना भी उसकी आदत में शुमार था . वह क्या बोलती थी कुछ समझ नहीं आता था ,  उसकी माँ समझती थी कि यह अपनी सास को कोस रही है और उसमें गालियाँ भी हैं जैसा सामान्यतः लोग बोलते नहीं हैं पर दूसरा उसे नहीं समझ सकता था . उसका तलाक हो चुका था . माता - पिता समझते हैं कि शादी के बाद उसके ससुराल में मारने - पीटने और सताने के कारण यह स्थिति पैदा हुई है और उन्होंने उसे कुछ झाड- फूंक कर  खिला दिया है . मेडिकल कालेज के प्रोफ़ेसर एवं मनोरोग विशेषज्ञ डा. साहू को भी दिखाया गया जिन्होंने उसके सामान्य होने पर संदेह व्यक्त किया . पर  मेरी  दृष्टि  में  उसे  यूं  ही  छोड़ना  उचित  नहीं  था . माता - पिता अशक्त हो जायेंगे या नहीं रहेंगे तो देखभाल कौन करेगा . मैंने कहा कि हमें सतत प्रयास करने चाहिए  इससे कम से कम माता - पिता का तनाव कुछ कम होगा कि शायद अब कुछ लाभ हो जाये .
         मैंने उसके हल्ला करने के आधार पर कुछ होमियो पैथिक दवाएं प्रारंभ कीं . एक दिन उन्हें लगे कि आज कम  हल्ला   किया है पर एकाध दिन बाद फिर वही स्थिति . न तो अधिक धन खर्च हो रहा था , न दूसरा कोई रास्ता था , अतः दवाएं चलती रहीं . ६ माह बाद हम गुजरात घूमने गए थे कि लड़की की माँ ने अप्रत्याशित फोन किया . लड़की ने कोई शब्द साफ़ साफ़ बोला था . वह बहुत प्रसन्न थीं जैसे किसी छोटे बच्चे के बोलने पर घर वाले होते हैं . हल्ले कि स्थित भी कुछ तो कम थी . कभी -कभी कोई काम को भी हाथ लगाने लगी थी जिससे आशा की  जा सकती थी कि वह ठीक हो सकती है .एक - दो दिन बाद उसने परेशान करना शुरू किया , उतनी दूर से मैं क्या कहता अतः वे किसी सस्ते और अच्छे होमियोपथिक ट्रस्ट से इलाज करवाने लगे . पर उनके मन से यह भाव कभी नहीं गया कि उसके ससुराल वालों ने उसपर  जादू टोना किया है .
          एक दिन उसकी माता को या मेरी पत्नी को किसी ने बताया कि सर्वधर्म कोलर रोड में किसी महिला पर देवी आती हैं . उस समय वह सही भविष्य वाणी  तो  करती  ही हैं  झाड़- फूंक कर रोग मुक्त भी कर देती हैं . अनेक लोग ठीक भी हो रहे हैं .मुझसे पूछा गया , शायद वहीँ से लड़की ठीक हो जाये , कम से कम माता - पिता के मन से यह भय तो निकल जायेगा , दूसरा कोई रास्ता भी नहीं था . मैंने कहा कि ले जाइए. पहली बार में लाभ लगा . सप्ताह में एक बार जाना पड़ता था . वहां तो खर्च नहीं था पर आटो से आने - जाने में २००  रूपये  तो लगते ही थे . लड़की ठीक नहीं हुई . फिर देवी ने कहा कि कि झाड़ - फूंक वाले एक और व्यक्ति हैं जो इसे पूरी तरह ठीक कर देंगे . उनके पास भी गए , देवीजी भी साथ गईं .उसकी माताजी ने मुझे बताया कि इसे नीचे लिटाकर नाभि पर कोई कटोरी या गिलास उल्टा रख दिया था . उसने मन्त्र पढ़े और कटोरी के नीचे से कुछ पदार्थ निकाल कर दिखाया कि यही उसके ससुराल वालों ने खिलाया था जो नाभि के रास्ते  निकाल दिया है . अब यह पूरी तरह ठीक हो जाएगी पर कुछ नहीं हुआ . उसका इलाज तो चल ही रहा था . उसे थाईरायड भी ज्ञात हुआ  . उसका इलाज भी चला . आज वह कहने से कुछ  काम  करने लगी है , बोलने भी लगी है जिसे ध्यान से सुनकर दूसरे भी समझ सकते हैं , हल्ला - गाली भी न के बराबर है , मोटाप भी घटा  है . पूरी ठीक होगी या नहीं, नहीं मालूम .पर उसका भूत उतर गया है , कम से कम घर के लोग तो ऐसा मान सकते हैं . 
         भूतों की दुनियां विचित्र है . यदि झाड़ने के लिए किसी मुस्लिम को लायेंगे तो वह मुस्लिम भूत कहेगा , हिन्दू को लायेंगे तो हिन्दू भूत चढ़ा हुआ मिलेगा . भूत बाहर हो या न हो लोगों के मन में तो था , है और रहेगा . भूतों की सबसे अच्छी कहानी है . एक व्यक्ति जा रहा था उसे सामने से आते हुए आदमी ने अचानक  पूछा ,' आपने कभी भूत देखा है ?' व्यक्ति उसकी ओर देख कर कुछ कहता , सामने वाला गायब हो चुका था .



रविवार, 26 अगस्त 2012

क्रांतिकारियों के साथ छल ?

                                                       क्रांतिकारियों के साथ छल ?
भारतीय इतिहास लेखन में क्रांतिकारियों के साथ भारी छल किया गया है .जिन क्रांति वीरों ने देश की आजादी के लिए अपने प्राणों को न्योछावर किया , इतिहास में उन्हें आतकवादी , जुरमी कहा गया , षड्यंत्रकारी कहा गया , जो भूमिगत होकर कार्य करते, उन्हें भगोड़ा माना गया और स्वतंत्रता का ऐसा इतिहास इंदिरा गाँधी से लेकर राजीव गाँधी तक की  कांग्रेस सरकार ने जनता के पैसों से लिखवाया या प्रकाशित करवाया है  . इन्ही किताबों को पढ़कर लोग आई.ए. एस. , आई. पी. एस बनते रहे जिससे अधिकारियों और नेताओं में राष्ट्र प्रेम जैसी भावनाएं तो दूर , देश को अधिकतम लूटने और निजी स्वार्थ कि भावनाएं प्रबल हो गईं .इसी से भ्रष्टाचार और अराजकता बढ़ती जा रही है .
                      इन इतिहासकारों ने स्वतंत्रता सेनानिनियों के संघर्ष और क्रांति -कार्यों को विद्रोह कहा क्योंकि इनका मानना है कि अंग्रेजों की सरकार एक वैधानिक सरकार थी और वैधानिक सरकार के विरुद्ध संघर्ष विद्रोह होता है .जो विद्रोही है , आतंकवादी है , आतंक वादी जुर्म कर रहा है उसे फांसी नहीं मिलेगी तो और क्या मिलेगा ?और उनके आतंकवादी जुर्म क्या थे --भारतीयों पर जुर्म करने वाले अफसरों तथा उनके भारतीय सहयोगियों को मारना . जिसे अंग्रेजों ने आतंक वादी कहा ,जुरमी कहा, इन्होने भी उनको वैसा ही कहा और देश के युवकों को पढ़ाया . कांग्रेस को इसका लाभ यह मिला कि वह लोगों को यह रटवाने   में सफल हो गई कि आजादी का सारा काम उन्होंने किया है इसलिए केवल उन्हें ही सत्ता में रहने का अधिकार है .यहाँ  पर  उन पुस्तकों से उद्धृत करके कुछ पंक्तियाँ दी जा रही हैं .
१.स्वतंत्रता का इतिहास  लेखक --बिपन चन्द्र ,अमलेश त्रिपाठी , बरुण दे (१९७२), हिंदी अनुवाद , नॅशनल बुक ट्रस्ट ऑफ़ इण्डिया 
 (पृष्ठ ७२)...  उग्रपंथी गुट के नेता तिलक ने बहुत पहले ( बंग भंग आन्दोलन से भी पहले ) अपने युवक अनुयायियों के मन को इतना उत्तेजित कर दिया था जो उनसे निजी तौर पर आतंकवादी कार्य करवाने के लिए काफी था ..
१८९७ में पूना के दामोदर और बालकृष्ण चिपलूणकर बंधुओं ने दो बदनाम अंग्रेज अफसरों की हत्या कर दी  थी .  
(पृष्ठ ७३).... उन्होंने आयरी आतंकवादियों और रूसी निषेध वादियों के चरण चिन्हों पर चलना और उन अधिकारियों की हत्या करना बेहतर समझा जो अपने भारत विरोधी रवैये  या अपने दमनकारी कामों की वजह से काफी बदनाम हो गए थे .
  .....विचार यह था कि शासकों के दिल में आतंक पैदा कर  दिया जाय , जनता को राजनीतिक दृष्टि से उभारा  जाय और अंततः  अंग्रेजों को भारत से खदेड़ दिया जाय .
.....क्रांति कारी आतंकवाद कि तरफ़ जनता का ध्यान गंभीरतापूर्वक तब गया जब खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी  नामक दो युवकों ने मुजफ्फरपुर के जिला जज की हत्या का प्रयत्न किया . बहरहाल  बम से दो निर्दोष महिलाओं की जानें  गई . 
   .... अलीपुर में अरविन्द घोष  , उनके भाई बारीन घोष तथा अन्य लोगों पर षड्यंत्र के आरोप में मुकदमा चला . लेकिन जेल के अहाते में ही क्रांतिकारी आतंकवादियों द्वारा मुखबिर की हत्या कर कर दिए जाने से मुकदमें की सुनवाई में बाधा पैदा हो गई . खुदीराम को फांसी दी गई . मुखबिर के हत्या करने वाले सत्येन  बसु और कन्हाई   दत्त को फांसी के तख्ते पर लटका दिया गया .
(पृष्ठ ८८ ) ...बहुत से षड्यंत्रकारियों को या तो फांसी पर लटका दिया गया कालापानी की सजा देकर अंडमान भेज  दिया गया.
........रासबिहारी बोस जापान भाग गए .
(पृष्ठ १२३  )  स्वतंत्रता आन्दोलन चलाने के लिए सुभाष चन्द्र बोस  तथा अन्य नेताओं ने छोटे - छोटे गिरोहों की स्थापना की.
(पृष्ठ १३6 )  २९ मार्च १९३१ को करांची में कांग्रेस अधिवेशन में भगत सिंह की शहादत के सम्बन्ध में प्रस्ताव था . गाँधी जी ने बहुत मुश्किल से यह प्रस्ताव स्वीकार किया , "किसी भी तरह की राजनीतिक हिंसा से अपने को अलग रखते हुए और उसे अमान्य करते हुए , कांग्रेस उनकी वीरता और बलिदान के प्रति अपनी प्रशंसा को लिखित  ढंग से व्यक्त कर रही  है . ''
   इस पुस्तक में तिलक को आतंकवादी कार्यों के लिए उकसाने वाला कहा गया है , क्रांतिकारियों को षड्यंत्रकारी कहा  है, सुभाष चन्द्र बोस जैसे नेताओं के संगठन को 'गिरोह बनाना कहा है ' .
   २. आधुनिक भारत का इतिहास , हिंदी माध्यम कार्यान्वयन निदेशालय , दिल्ली विश्वविद्यालय (१९८७)संशोधित संस्करण (१९९८) .( हिंदी अनुवाद ) राजीव गाँधी के शासन कल में लिखवाई गई पुस्तक .
(पृष्ठ 528 ) ...१९०७--१९०९ के बीच बंगाली क्रांतिकारियों ने काफी आतंकपूर्ण जुर्म किये . १६ दिसंबर १९०७ को मिदना-   पुर के पास लेफ्टिनेंट गवर्नर की  गाड़ियों  को बम से उड़ाने की कोशिश की गई . इसी तरह ढाका के पहले मजिस्ट्रेट एलन को भी क़त्ल करने का प्रयत्न किया गया जो असफल रहा . क्रांतिकारियों ने इसके बाद प्रेसिडेंसी मजिस्ट्रेट किंग फोर्ड को मरने का फैसला किया जिन्होंने कई युवकों को छोटे--छोटे अपराधों के लिए कोड़े लगवाये थे .खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी  ने ३० अप्रेल १९०८ को मुजफ्फरपुर में उनकी गाड़ी से मिलतीजुलती  गाडी पर बम फेंका , मगर उस गाड़ी में  दो महिलाएं , श्रीमती केनेडी और उनकी पुत्री थीं , जो मारी  गईं . जब क्रांति कारी प्रफुल्ल को कैद किया गया तो उन्होंने गोली मारकर आत्महत्या कर ली . खुदीराम बोस  पर मुकदमा चलाकर  उन्हें फांसी पर लटका दिया . खुदीराम बोस  शहीद  हुए  और बंगाल के युवकों  की नजर में वे एक बहादुर वीर थे . उनके चित्र घर- घर में लगाये गए और युवकों ने अपनी धोतियों और पोषक के बार्डर  पर खुदीराम बोस  का नाम छपवाया .
 भारत  सरकार अंग्रेज अफसरों की जान पर प्रहार से बहुत भयभीत हो गयी थी और उसने इन आतंक वादी संस्थाओं को ख़त्म करने की ठान ली . मुजफ्फरपुर के हत्याकांड के कुछ दिन  बाद   मानिकतला में क्रांति कारियों के निवासस्थान मुरारी पुकुर पर पुलिस ने छापा मारा और वहां से बम , बारूद इत्यादि चीजें बरामद कीं . अरविन्द घोष और उनके भाई बारीन्द्र घोष सहित ३४ लोग गिरफ्तार कर लिए गए . मगर जब मुकदमा चाल रहा था तो कचहरी में गोली मारकर सरकारी वकील और पुलिस के डिप्टी सुपरिंटेंडेंट  की हत्या कर दी गई . १५ आतंकवादियों को सजा हुई और उनमें से कुछ ( जिनमे  बारीन्द्र घोष भी शामिल थे ) को आजीवन कारावास देकर काला पानी भेज दिया गया . अरविन्द घोष को रिहा कर दिया गया . नरेंद्र   गोसाईं की , जो सरकारी गवाह बन गए थे , कन्हाई लाल दत्त और सात्येंद्र बोसे ने गोली मारकर हत्या कर दी . दोनों पर मुकदमा चलाया गया और उन्हें फांसी की सजा हुई . मगर बंगाली युवकों  की दृष्टि  में ये वीर शहीद हुए थे  और हजारों लोगों ने उनके शव के जुलूस में हिस्सा लिया .
 इन क्रांतिकारियों के लिए सारे देश में सहानुभूति थी. उनके त्याग और मौत से जूझने के साहस ने भारत के युवकों को देश प्रेम की भावनाओं से उत्साहित किया . आर सी मजूमदार ने लिखा है "यद्यपि बारीन्द्र घोष को कोई स्पष्ट सफलता नहीं मिल सकी , पर बंगाल में क्रांतिकारी आन्दोलन की एक सुदृढ़ नींव डालने और और उसको एक निश्चित रूप तथा  दिशा  प्रदान करने का श्रेय उन्हीं को है . आन्दोलन का यह रूप और दिशा अंत तक कायम रहे  ." 
( पृष्ठ ५३२ )   ....  अमृतसर से आए इंजीनियरिंग के एक विद्यार्थी श्री मदन लाल धींगरा ने १ जुलाई १९०९ को उसे ( कर्जन विली ) अपनी गोली से मार गिराया .......१७ अगस्त १९०९ को धींगरा का अंतिम संस्कार कर दिया गया ( यह अंग्रेजों  ने चुपके से कर दिया था ) . भारत के कई नेताओं ----बीसी पाल , सुरेन्द्र नाथ बनर्जी , गोखले इत्यादि ने शहीद मदन लाल धींगरा की कड़े शब्दों में निंदा की , मगर कई  अंग्रेज राजनीतिज्ञों ने उनकी प्रशंसा की और आयरलैंड के अखबारों ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए लिखा , " मदन लाल धींगरा को , जिन्होंने अपने देश की खातिर अपना जीवन न्योछावर कर दिया , आयरलैंड अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है . " 
 इसमें कहा  गया है " बंगाली क्रांतिकारियों ने 'काफी आतंकवादी जुर्म किये ",जैसा अंग्रेजों ने लिखा इन्होने उसकी नक़ल करके लिखा कि वे बंगाल युवकों की नज़र में एक बहादुर देश भक्त थे और अंग्रेजों ने आतंकवादी संस्थाओं को ख़त्म करने की थान ली परन्तु सरकारी इतिहास लेखक स्वयं उन्हें ऐसा नहीं समझते जबकि अंग्रेज लेखकों ने भी उनके बलिदान की प्रशंसा की है .
३. आधुनिक भारत का इतिहास , विद्याधर महाजन ,(२००४ )
  पृष्ठ (५४५) : १९ सवीं  सदी के अंत और बीसवीं सदी के के शुरू में भारत में आतंकवादी आन्दोलन चला . आतंकवाद उग्र राष्ट्रवाद की  एक अवस्था थी पर यह तिलक पक्षीय राजनैतिक उग्र वाद से बिलकुल भिन्न थी .क्रन्तिकारी लोग अपीलों प्रेरणाओं  और शांति पूर्ण संघर्षों को नहीं मानते थे . उन्हें यह निश्चय था  कि पशुबल से स्थापित किये गए साम्राज्यवाद  को  हिंसा के बिना  उखाड़ फेंकना संभव  नहीं . वे अपने आन्दोलन को चलाने के लिए सशस्त्र हमले करने और डकैतियां डालने को कोई बुरी बात नहीं मानते  थे . स पुस्तक में 
 १८९९ में जनता की घृणा के पात्र श्री रैंड  और रिहर्स्ट की हत्या की गई . प्रतीत होता है कि श्याम कृष्ण वर्मा का रैंड  की हत्या से  कुछ सम्बन्ध था  पर वह भाग कर लन्दन पहुंचा . वह १९०५ तक चुपचाप रहा और इसके बाद उसने लन्दन की इंडियन होम रुल सोसायटी को जन्म दिया . उसने इन्डियन सोशिओलोजिस्ट  नाम का एक मासिक पत्र भी शुरू किया . पेरिस के एस आर राणा की मदद से एक हजार रुपये की छ: लेक्चररशिप और दो हजार रूपये  प्रत्येक की  तीन घूमने - फिरने की छात्रवृत्तियां भारतीय छात्रों के लिए पेश की गईं .जिनसे वे बाहर जाकर राष्ट्र सेवा के कार्य  में अपने आप को शिक्षित करें . इस प्रकार लन्दन पहुंचे विद्यार्थियों में एक विनायक दामोदर सावरकर भी थे . श्याम जी कृष्ण  वर्मा के   लन्दन से बच भागने के बाद विनायक सावरकर इण्डिया हाउस में क्रन्तिकारी दल के नेता  हो गए . 
(पृष्ठ ५४७) : खुदीराम बोस  के शहीद होने पर शिरोल ने लिखा है ," बंगाल के राष्ट्रवादियों के लिए वह शहीद और अनुकरणीय हो गया. विद्यार्थियों ने और अन्य बहुत से लोगों ने उसके लिए शोक मनाया और उसकी स्मृति में स्कूल दो-तीन दिन बंद रहे . उसके चित्र बहुत  अधिक बिके और धीरे - धीरे नौजवान लोग ऐसी धोतियाँ पहनने लगे ,जिनकी किनारी में खुदीराम बोस  का नाम खुदा  होता था ."
(पृष्ठ 548) : ...बंगाल के आतंकवादियों ने पुलिस अफसरों , मजिस्ट्रेटों , सरकारी वकीलों, विरोधी गवाहों , गद्दारों , देश द्रोहियों ,इकबाली गवाहों ---किसी को भी नहीं छोड़ा . एक-एक करके सबको गोली से उड़ा दिया गया . आतंवादियों के लिए इसका परिणाम महत्वहीन था . 
(पृष्ठ 549) : उच्च मध्य वर्ग के नेता इस आन्दोलन से सहानुभूति नहीं रखते थे . सर आशुतोष मुखर्जी और एस एन बनर्जी जैसे नेताओं ने सरकार से आतंकवादियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही   करने के लिए कहा . भारतीय राष्ट्रवादी आन्दोलन का नेतृत्व गांधीजी के हाथ में आने पर क्रांतिकारी आन्दोलन धीरे- धीरे ख़त्म हो गया  .......  आतंकवादियों ने १९४२ के विद्रोह , भारतीय नौसैनिक विद्रोह और सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिंद फ़ौज में भी काम किया . 
  . विद्याधर महाजन ने भी लिखा कि भारत में आतंकवादी आन्दोलन चला . महान क्रन्तिकारी जिन्होंने इंग्लॅण्ड और अन्य देशों में जाकर क्रांतिका बिगुल बजने वाले श्याम कृष्ण वर्मा के लिए लिखा कि वह भागकर लन्दन पहुंचा तथा " लन्दन से बच भागने के बाद ..."अर्थात वे कायर थे भगोड़े थे .
आतंकवादियों ने १९४२ के विद्रोह में भारतीय नौसेना के विद्रोह में और सुभाषचंद्र बोस की आजाद हिंद फ़ौज में भी काम किया .अर्थात आजाद हिंद  फ़ौज आतंकवादी थी .
    ये यह भी लिखते हैं कि भारतीय राष्ट्रवादी आन्दोलन का नेतृत्त्व गाँधी जी के हाथ में आने पर क्रन्तिकारी आन्दोलन धीरे- धीरे ख़त्म हो गया . गाँधी जी के हाथ में नेतृत्त्व १९२०-२१ में आ गया था .इसका अर्थ हुआ कि भगत सिंह , सुखदेव , राजगुरु , चंद्रशेखर आजाद , राम प्रसाद बिस्मिल और अश्फाकुला खान   जैसे क्रांतिकारियों के बलिदान और नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के कार्य कुछ थे ही नहीं . १९४२ के भारत छोड़ो आन्दोलन में भी  कांग्रेसी नेताओं और गांधीजी के गिरफ्तार होने पर क्रांतिकारियों ने देश भर में हिंसक प्रदर्शन भी किये थे . क्रांतिकारियों के प्रति कांग्रेस के नेताओं का क्या रवैया था उसके भी कुछ उदाहरण यहाँ दिए गए हैं . आश्चर्य है कि इतिहास के प्राध्यापकों ने कभी इस पर विचार और चर्चा नहीं की और वही पढ़ाते आ रहे  हैं जो इतिहास विदेशियों या उनके अनुयायियों ने लिखा है .
         










मनमोहन की बांसुरी , हम सरकार हैं , भ्रष्टाचारी , छोटन को उत्पात , बड़ों को संरक्षण , आनंद

मनमोहन की बांसुरी 
राजा मनमानी करे, चिदंबरम दे साथ ,
मनमोहन की बांसुरी ,सोनिया जी के हाथ .
सोनिया जी के हाथ नचाएँ सबके पुतले 
जबतक चलता खेल नेता सब मिलकर खेलें.
जनता है हैरान ,देखकर उनकी माया ,
मची लूट पर लूट कहीं कोई समझ न पाया .
      हम सरकार हैं 
सीना तान बढ़ा रहे मंहगाई , भ्रष्टाचार ,
कहते हम सरकार हैं जनता है लाचार .
जनता है लाचार ,वोट जब देने जाते 
जाति - धर्म को देख , बटन दबा कर आते .
नेता हैं चालाक , एक दिन खूब लुटाएं ,
एक बार गए जीत , जन्मों तक मौज मनाएँ.
          भ्रष्टाचारी 
हर भ्रष्टाचारी  चाहता  घूंस न खाए कोय , 
मुझको धन मिलता रहे , उस पर रोक न होय .
उस पर रोक न होय,ऐसा कानून बनाएं ,
दूसरा रुपये खाय , उसे जेल पहुंचाएं .
सबका एक विचार , कि जो ईमान बताएं, 
कर दो उनको दूर , कि टांग साथ ले जाएँ .
 छोटन को उत्पात 
क्षमा बड़न   को चाहिए , छोटन को उत्पात ,
कवि रहीम सिखला गए , नेताओं को यह बात .
 नेताओं को यह बात .,सेवक बने रहो प्रत्यक्ष ,
सारे उत्पात हों माफ़ , लूट खसोट में होगे दक्ष .
नेता -अफसर की जात दिखावटी करती सेवा,
जनता खड़ी निरीह , ये खाते जाते मेवा .
            बड़ों को संरक्षण 
छोटों को भ्रष्ट दिखाएँ ,इस शासन के वीर ,
मगरमच्छों को छोड़ दें ,उधर न चलते तीर .
उधर न चलते तीर, ऊपर से दें संरक्षण ,
छापेमारी के खेल में छोटों को आरक्षण .
एक हो बढाएं   वेतन , करें मिलकर  भ्रष्टाचार 
सुशासन का प्रचार कर रही  यह ढोंगी सरकार .
           आनंद 
घूंस ,गबन या लूट हो ,या चोरी का मॉल 
मॉल-ए- मुफ्त की ख़ुशी की मिलती नहीं मिसाल .
 मिलती नहीं मिसाल आनंद तुम्हें हो लेना , 
करते  रहो  ऐसे काम , सबको दुःख पड़े सहना .
चुगली ईर्ष्या की राह  , सरल सबसे है होती ,
एक बार जो चख ले स्वाद , इच्छा कभी तृप्त न होती .

शनिवार, 25 अगस्त 2012

कैसी आज़ादी

                                                                    कैसी आज़ादी 

असम  में हुए कुछ ऐसे दंगे  
लाखों लगे कैम्प पहुँचने .
दक्षिण से उत्तर आग लगी 
सोते लोग लगे झुलसने .१.

उनमें इतना भय व्याप्त हुआ 
 बुद्धि शून्य, वे लगे बिलखने.
छोटी बड़ी नौकरियां छोड़ीं 
असम प्रदेश को लगे लौटने २. 
हजारों परिवार उजड़ते देखो 
सतत काफिला चला जा रहा 
शासकों को नहीं इसकी चिंता 
सैंतालिस का मंजर याद आ रहा .३.
बच्चे , युवा , वृद्ध हैं घुसते 
खचाखच  भरी हुई ट्रेन में 
महिलाएं धक्के खाती जातीं
भय - आतंक से भरी ट्रेन में .४.
लम्बा सफ़र राह है मुश्किल 
खाने - पीने कि न कोई व्यवस्था 
सांस लेने को जगह नहीं हैं 
किस हाल  में पहुंची राज्य व्यवस्था .५.
बसे हुए परिवार उजड़ गए 
राष्ट्र भविष्य न कोई  जाने 
अंधकार में चले जा रहे 
अपने ही घर में हुए बेगाने  ..६.
देश में एक न ऐसा नेता 
जो उनमें कुछ आस जगाये 
जो भय से उनको मुक्त करे 
और उनमें यह विश्वास जगाये ..७.
कि अपने घर में वे है बैठे 
राष्ट्र उनके साथ खड़ा है 
अपने घर में भय है किसका 
भागने का क्यों भाव अड़ा  है .८.
महाराष्ट्र में दंगे होते 
पुलिस के लोग घायल हो जाते
 क्या देंगे ये लोक -  सुरक्षा 
प्रश्न ये मन में है उठ जाते .९.
आस्ट्रेलिया ,ब्रिटेन या अन्य कहीं पर 
एक भी भारतीय मारा जाता है
 देश एक हो साथ है देता 
जन - जन से सबका नाता है १०..
नेतृत्त्व शून्य देश यह लगता 
स्वार्थ आज हैं सब पर हावी 
नेता , अफसर की शक्ल  न देखो 
रूप बदल बनते मायावी .११.
विदेशी देश में घुस कर बैठे 
गद्दारों से संरक्षण पाते .
विभाजन के हालात लौटते 
मन में  है  भय  भरते जाते .१२.
कानून व्यवस्था लचर बनाई 
गहरे सोते मानवता वादी 
पैंसठ वर्ष बाद शर्म है आती 
देश में यह कैसी आज़ादी .१३.
भारत माँ के लाल हो रहे 
अजनबी अपने ही देश में 
ये कैसा माहौल बन गया 
मेरे भारत देश में .१४.
हँसते - खेलते लोग परेशां
आज अपने ही देश में 
घर- घर में भय व्याप्त हुआ
क्यों , पूर्वी - दक्षिणी प्रदेश में  .१५.
रूपये शांति नहीं ला सकते 
बिन विचार समाज नहीं बनता 
शक्ति बिना शासन नहीं होता 
बिन नेता कोई देश न बनता .16.
देश के युवकों अब तो जागो 
 धन ही सब कुछ नहीं है  होता 
यदि सुरक्षा नष्ट हो गयी 
सारा जीवन खतरे में पड़ता १७.
 मेरा कैरियर , मेरा कैरियर 
मोटे -मोटे पॅकेज हैं पाते 
देश कि जो  नहीं करते चिंता 
गहन अंधकार में है खो जाते .१८.




शुक्रवार, 24 अगस्त 2012

राक्षस राज रावण : १५.वेदवती

राक्षस राज रावण :
                                                              १५.वेदवती 

कुबेर को पराजित करके तथा उसका धन एवं पुष्पक विमान प्राप्त करके रावण बहुत प्रसन्न था .उसे लगने लगा कि वह अजेय है .अब देवताओं पर विजय प्राप्त करने की उसकी इक्षा बड़ी तीव्र होती जा रही थी . वह हिमालय की उपत्यकाओं  में विचरण करता हुआ प्रकृति का आनंद ले रहा था . वहां वन में उसने एक तपस्विनी कन्या को देखा .उस अद्भुत सौन्दर्य युक्त कन्या ने ऋषियों के समान जटाओं को बांध रखा था तथा काले हिरन के चर्म से बदन  डंक रखा था जिससे वह और भी खूबसूरत दिख रही थी . उसे देखकर रावण को बहुत आश्चर्य हुआ कि इतनी सुन्दर कन्या अकेले इस सघन वन में कैसे विचरण कर रही है  वह सोचने लगा कि कि यह कोई ऋषि कुमारी है या देवलोक की अप्सरा है  . उसके छरहरे बदन ,गौरवर्ण , लावण्यमय मुख और अप्रतिम सौन्दर्य को देखकर रावण बरबस उसकी ओर खिंचा चला जा रहा था . उस कन्या के निकट जाकर ,उसे तीव्र दृष्टि  से निहारते हुए रावण ने अति मधुर स्वर में  कहा ,"सुंदरी ! तुम कौन हो ? तुम्हारी सुन्दर देह , उस पर  तपस्वी रूप और          यह सघन वन देख कर मेरे मन  में अनेक प्रश्न उठ रहे हैं   भद्रे ! यह रूप तुमने क्यों धारण किया है ? तुम्हारे पिता एवं पति कौन हैं ? किस फल की प्राप्ति के लिए तुम यह कठोर टाप कर रही हो ? रावण के इस प्रकार पूछने पर उस यशस्वी तपस्विनी ने अपनी कोमल वाणी में रावण से कहा   ," राजन! देवगुरु बृहस्पति  के परम तेजस्वी पुत्र ब्रह्मर्षि कुशध्वज मेरे पिता जी थे . वे भी देव गुरु के समान बुद्धि एवं ज्ञान के पुंज थे . मेरा नाम वेदवती है . जब मैं युवास्था को प्राप्त हुई तो अनेक पराक्रमी वीर जिनमें देवता , यक्ष , गन्धर्व , राक्षस ,दैत्य असुर  नाग  आदि थे मेरे पिताजी से मेरे विवाह का आग्रह करने लगे परन्तु मेरे पिता ने उनमे से किसी को भी हाँ नहीं की . उन्होंने प्रारंभ से ही निश्चय कर लिया था कि वे मुझे देवेश्वर विष्णु को ही देंगे . विष्णु को दामाद के रूप में देखने की मेरे पिता जी की परम इच्छा  थी .एक दिन अपने घमंड में चूर दैत्य राज शम्भू ने मेरे पिता जी से कहा कि वे मेरा विवाह उससे कर दें परन्तु पिता जी ने उन्हें भी मना कर दिया. जब उसके बार- बार आग्रह करने पर भी मेरे पिता तैयार नहीं हुए तो एक दिन सोते समय उसने निर्ममता पूर्वक मेरे पिता जी की हत्या कर दी. मेरी माता जी इस दुःख को सहन नहीं कर पाईं और वे पिता जी के साथ चिता पर बैठ कर सटी हो गईं . मैं दैत्य राज के चंगुल में फंसने से बच गई . तब से मैंने यह प्रतिघ्या की है कि मैं पिताजी के मनोरथ को पूरा करूंगी चाहे जितना भी कठोर टाप करना पड़े , चाहे जितना  भी समय लग जाय  . रावण मन ही मन में कह रहा था कि दैत्य राज से तो तुम बच गई परन्तु मुझसे बच कर कहाँ जाओगी . वह कानों से तो उसकी बातें सुन रहा था परन्तु उसकी नजरें कन्या कि देह पर टिकी हुईं थीं . अपना प्रभाव ज़माने के लिए उसने वेदवती से गर्व पूर्वक कहा ," देवी ! तुम धन्य हो तुमसे मिलकर मैं बहुत आनंद  का अनुभव कर रहा हूँ .  सुंदरी ! मै लंकाधिपति राक्षस राज  रावण हूँ . " उसकी बात सुनते ही देव कन्या ने कहा , " पौलत्स्य नंदन ! मैंने आपको पहचान लिया है . मैं अपने तप से ब्रह्माण्ड कि सभी बातें जान लेती हूँ " रावण सोचने लगा कि तब तो इसे मेरे विचार का ज्ञान भी हो गया होगा . अब उस कन्या को  समर्पण करने के लिए रावण प्रेरित करने का प्रयत्न करने लगा . उसने कहा , "  देवी !तुम्हारा तप देखकर मैं अभिभूत हो गया हूँ . परन्तु  तुम्हारे इस कोमल शरीर पर यह कठिन व्रत शोभा नहीं देता है . तुम अपने साथ अन्याय कर रही हो . मैं तुम्हें इतना कष्ट सहते हुए नहीं देख  सकता . " उसकी बात पर वेदवती ने विनम्रता पूर्वक पुनः कहा कि वह विष्णु जी को प्राप्त करने तक तपस्या में तत्पर  रहेगी और उसे इसमें कुछ भी कष्ट प्रद नहीं लगता है . 
       रावण को आभास हो गया कि उसे प्रेम से नहीं समझाया जा सकता है .अब उसने अधिकार पूर्वक कहना प्रारंभ किया ," इतने कठोर तप से जिस पति के लिए तुम प्रयास कर रही हो , वह अब पूर्ण हुआ समझो . मैं तुम्हें अपनी महारानी बनाना छठा हूँ . मैंने अभी कुबेर का मान मर्दन किया है . अब मैं देव लोक पर अधिकार करने जा रहा हूँ  . और तुम जिस विष्णु के लिए परेशान  हो , वह शक्ति  और  वैभव  में मेरे सामने कहीं नहीं टिकता है . अतः तुम मेरी ह्रदय साम्राज्ञी बनकर मुझे कृतार्थ करो . तुम्हारे एक इशारे पर मेरे समस्त  दास- दासियाँ तुम्हारी सेवा में तत्पर होंगे .  अब तुम मेरे साथ स्वर्ण मयी लंका में चल कर अपने पुण्यों का आनद भोगो . प्रिये , मेरे निकट आओ . मुझसे अब और विरह सहन नहीं हो रहा है "  
    वेदवती परिस्थितियों को पहले से ही समझ रही थी . उसने सोचा   कि वह शक्ति में तो उसे परास्त  कर नहीं सकती है और यदि श्राप देती है तो उसकी तपस्या नष्ट हो जाएगी . अत अनुनय करती हुई वह उससे दया मांगने लगी . रावण पर  इससे कोई प्रभाव पड़ने वाला नहीं था . उसने आगे बढ़ कर वेदवती को पकड़ना चाहा परन्तु वह पीछे हट गई . रावण सुन्दर कन्या के लिए सदैव तैयार रहता था . वहां पर तो अत्यंत सुन्दर रमणी उसके सामने थी , एकांत वन था , खुला आकाश था प्रकृति अपना अनद चारों ओर बिखेर रही थी , मंद - मंद सुमधुर वायु उसके तन  को और अधिक संतप्त कर रहा था . उसका धैर्य जाता रहा . उसने क्रोधित होते हुए कहा , " लंकाधिपति महाबली रावण तुझसे विनय कर रहा है और तू उसकी निरंतर उपेक्षा करके उसका अपमान  करती जा रही है . यह अछम्य  है . लंकेश  तुम्हारी 'न' सुनने  के लिए प्रणय - निवेदन नहीं कर रहा है . " इतना कहते हुए उस महाकाय रक्षस  ने  क्रूरता पूर्वक वेदवती के बाल पकड़ लिए . वह उसे घसीट  कर नीचे पटकता इससे पूर्व ही वेदवती ने बड़ी चपलता से अपने बलों में एक हाथ मारा , उसके केश ऐसे कट  गए जैसे किसी ने उन पर तलवार चला दी हो  और कुछ पीछे हट गई . उसने रावण से कहा ," अभिमानी राक्षस , तू सर्व शक्तिमान नहीं है , तू मेरी तपस्या को नष्ट नहीं कर पायेगा  . भगवान विष्णु मेरी रक्षा करेंगे . मैं पुनर्जन्म लेकर तेरी मृत्यु का कारण बनूंगी " इतना कह कर उस तपस्वी देव कन्या ने अपने योगबल से वहां पर अग्नि प्रगट कर दी और उसमें समां  गई .रावण अवाक देखता रह गया , उसे अपनी ऐसी हार की कल्पना भी नहीं की थी . वह कुंठित मन से अपने शिविर कि ओर लौटने लगा .  कुछ ही क्षणों में आसमान में काली घटाएं छाने लगें . वायु क्रोधित हो उठी . तेज आंधी -तूफ़ान आ गया . मेघ कर्कश  ध्वनि  कर-कर के गरजने लगे मनो वे रावण को युद्ध की चुनौती दे रहे हों . मूसलाधार वर्षा होने लगी . वृक्ष टूट कर धराशायी होने लगे और बाढ़ में बहने लगे . रावण की  सेना के शिविर भी उड़ गए . वर सैनिक भी उद्विग्न हो उठे . रावण के मन  में भी धीरे - धीरे भय का प्रवेश होने लगा . 
        वेदवती ने पुनः एक सुन्दर कन्या के रूप में जन्म लिया . जब वह युवती हुई , वह भी रावण के चंगुल में फंस गई .रावण उसे लेकर लंका गया तो सदैव की भांति उसे अपने पुरोहित को दिखाया . उसे देखते ही पुरोहित ने कहा , राजन , यह कन्या लंका और लंकेश दोनों के लिए घातक है . रावण ने उसे तुरंत मारकर समुद्र में फेंकने का आदेश दिया . उसके अगले जन्म में वह राजा जनक की  पुत्री सीता के रूप में उत्पन्न हुई ..सीता का जन्म लेकर अपने पूर्व जन्मों के तप के प्रभाव से उसने भगवान राम ( विष्णु ) को पति के रूप में प्राप्त  किया  और रावण के काल का कारण बनी .