शुक्रवार, 7 सितंबर 2012

भूत होता है

                                                             भूत  होता  है  
   भूत को किसी ने देखा है या नहीं , नहीं मालूम, परन्तु भारत जैसे पुराने विचारों वाले देश में ही नहीं , समृद्ध और उन्नत अमरीका की भी बहुत बड़ी आबादी भूतों के अस्तित्व को मानती है .मैं भी कहता हूँ कि भूत होते हैं . और मैंने अनुभव किये हैं .इस सन्दर्भ में मैं अपने जीवन के बचपन , युवावस्था एवं प्रौढ़ावस्था की तीन अलग - अलग घटनाओं का वर्णन करूंगा . 
       बचपन  में हम कानपुर में एक सरकारी कालोनी में रहते थे . १९६० के पहले कि बात है . मैं तीसरी या चौथी में पढता था . हमारे  घर से ४ मकान आगे के मकान में रहने वाले मेरे मित्र के  पिता एक निजी कंपनी में में कार्य करते थे . उन्हें अक्सर बाहर जाना पड़ता था . शायद एक बार रिक्शे से गिर पड़े थे . उस समय उनकी आयु ५० वर्ष  रही होगी . वह बीमार रहने लगे थे . मेरे मित्र ने बताया कि उन पर भूत सवार रहता है . भूत भगाने के लिए कोई मौलवी साहब आते थे . मौलवी आकर क्या करता था , मुझे नहीं मालूम परन्तु उसने पहचान लिया था कि उन पर एक भूत सवार है .एक बार मैं कुतूहल वश  उनके घर जाकर भूत प्रक्रिया को देखने के लिए खड़ा हुआ तो मुझे समझाते हुए दरवाजे से दूर हटा दिया गया कि यदि भूत भागेगा तो रास्ते में खड़े आदमी अर्थात मुझे पकड़ लेगा . मेरा मित्र बताता  था कि मौलवी ने भूत को पकड़ कर बोतल में बंद कर दिया है और वह उस बोतल को कब्रिस्तान में दफ़न कर देगा . भूत को पकड़ने और दफ़नाने के लिए मौलवी ने क्या लिया मुझे नहीं मालूम , पर उनकी दिल में दर्द की बीमारी बढ़ गई . दोस्त का एक भाई दसवीं पास करके नौकरी करने लगा था . किसी की सलाह पर उसने पिताजी को ह्रदय रोग विशेषज्ञ   को दिखाया . धीरे - धीरे वे ठीक होते गए . बाद में उनको अपनी मूर्खता पर पश्चाताप भी हुआ और हंसी भी आई .
             १९७३  में मैं    एम्.एस-सी पास करने के बाद  मैं एक वर्ष की कालेज  व्याखाता  की नौकरी भी कर चुका . अवकाश में घर पर , वहीँ कानपुर में  था . एक दिन दोपहर में हल्ला होने लगा कि घर के सामने रहने वाले मेरे एक मित्र की युवा बहन पर भूत आ गया है . मैं भी दौड़ कर वहां पहुंचा .देख कर मुझे भी सिहरन हुई . वह लड़की पलंग पर लेटी हुई थी और चिल्ला रही थी कि तुमने मेरा संस्कार अच्छी प्रकार नहीं किया है . उसकी माता का कुछ समय पूर्व निधन हुआ था .लोग भी मानते थे कि उसके पिता ने विधान के अनुसार संस्कार , पिंड दान नहीं किये हैं .सिहरन पैदा करने वाली बात यह थी कि दीवार पर लटकी उसकी माँ कि फोटो को जब उसे दिया गया तो उसने फोटो सीने से लगा लिया और चुप हो गई . थोड़ी देर में वह निढाल हो गई . सबने कहा कि माँ आ गई है . तुरंत किसी झाडने वाले को बुलवा भेजा गया . सिहरन होने के बावजूद मैंने मित्र से पूछा कि उसे कोई अन्य बीमारी तो नहीं हुई थी . उसने बताया कि कुछ  दिन पूर्व उसे तीव्र ज्वर  हुआ था जिसे डाक्टर ने एक - दो दिन में ठीक कर दिया था . मैंने कहा कि संभव है किसी दवा की प्रतिक्रिया के कारण ऐसा हो रहा हो और उसके मस्तिष्क पर असर पड़  गया हो . मैंने सब कुछ देखने के बाद भी उसे सलाह दी कि इसे किसे अच्छे होमियो पैथ को दिखाना उचित होगा . मोहल्ले कि चाचियाँ   और मौसियाँ मेरी बात पर अप्रसन्न हो गईं कि सामने देखकर भी ऐसा कह रहे हैं . ये लड़के थोड़ा पढ़ क्या लेते हैं , अपनी मनमानी करते हैं जैसी बातें भी मुझे सुननी पड़ीं . मैं बड़ों का आदर करता रहा हूँ पर उस समय मैंने अपनी बात रखी और २२- २३ वर्ष के मित्र ने उसे मान भी लिया . उसे ले जाने के बाद शायद झाड़ने वाला आया था परन्तु उसके हाथ कुछ नहीं लगा . दवा देने के बाद उसे पुनः ज्वर हो गया जिसे वह होमियोपथ ठीक नहीं कर पा रहा था .शायद एक सप्ताह बाद उसे अन्य अच्छे इलोपैथ डाक्टर को दिखाया .वह शीघ्र ही ठीक हो गई . 
      तीसरी घटना  तीन  वर्ष पूर्व भोपाल की है . मेरे निकट सम्बन्धी की  ३७ वर्षीय बेटी , जो मोटी भी थी  , खाने और सोने के अलावा कुछ  समझती थी  तो यह कि अवसर मिलते ही माँ को कूटना है जो नित्य कर्म से लेकर सारी  देखभाल करती हैं . पिता डांट दें तो चुप हो जाती थी . हल्ला करना भी उसकी आदत में शुमार था . वह क्या बोलती थी कुछ समझ नहीं आता था ,  उसकी माँ समझती थी कि यह अपनी सास को कोस रही है और उसमें गालियाँ भी हैं जैसा सामान्यतः लोग बोलते नहीं हैं पर दूसरा उसे नहीं समझ सकता था . उसका तलाक हो चुका था . माता - पिता समझते हैं कि शादी के बाद उसके ससुराल में मारने - पीटने और सताने के कारण यह स्थिति पैदा हुई है और उन्होंने उसे कुछ झाड- फूंक कर  खिला दिया है . मेडिकल कालेज के प्रोफ़ेसर एवं मनोरोग विशेषज्ञ डा. साहू को भी दिखाया गया जिन्होंने उसके सामान्य होने पर संदेह व्यक्त किया . पर  मेरी  दृष्टि  में  उसे  यूं  ही  छोड़ना  उचित  नहीं  था . माता - पिता अशक्त हो जायेंगे या नहीं रहेंगे तो देखभाल कौन करेगा . मैंने कहा कि हमें सतत प्रयास करने चाहिए  इससे कम से कम माता - पिता का तनाव कुछ कम होगा कि शायद अब कुछ लाभ हो जाये .
         मैंने उसके हल्ला करने के आधार पर कुछ होमियो पैथिक दवाएं प्रारंभ कीं . एक दिन उन्हें लगे कि आज कम  हल्ला   किया है पर एकाध दिन बाद फिर वही स्थिति . न तो अधिक धन खर्च हो रहा था , न दूसरा कोई रास्ता था , अतः दवाएं चलती रहीं . ६ माह बाद हम गुजरात घूमने गए थे कि लड़की की माँ ने अप्रत्याशित फोन किया . लड़की ने कोई शब्द साफ़ साफ़ बोला था . वह बहुत प्रसन्न थीं जैसे किसी छोटे बच्चे के बोलने पर घर वाले होते हैं . हल्ले कि स्थित भी कुछ तो कम थी . कभी -कभी कोई काम को भी हाथ लगाने लगी थी जिससे आशा की  जा सकती थी कि वह ठीक हो सकती है .एक - दो दिन बाद उसने परेशान करना शुरू किया , उतनी दूर से मैं क्या कहता अतः वे किसी सस्ते और अच्छे होमियोपथिक ट्रस्ट से इलाज करवाने लगे . पर उनके मन से यह भाव कभी नहीं गया कि उसके ससुराल वालों ने उसपर  जादू टोना किया है .
          एक दिन उसकी माता को या मेरी पत्नी को किसी ने बताया कि सर्वधर्म कोलर रोड में किसी महिला पर देवी आती हैं . उस समय वह सही भविष्य वाणी  तो  करती  ही हैं  झाड़- फूंक कर रोग मुक्त भी कर देती हैं . अनेक लोग ठीक भी हो रहे हैं .मुझसे पूछा गया , शायद वहीँ से लड़की ठीक हो जाये , कम से कम माता - पिता के मन से यह भय तो निकल जायेगा , दूसरा कोई रास्ता भी नहीं था . मैंने कहा कि ले जाइए. पहली बार में लाभ लगा . सप्ताह में एक बार जाना पड़ता था . वहां तो खर्च नहीं था पर आटो से आने - जाने में २००  रूपये  तो लगते ही थे . लड़की ठीक नहीं हुई . फिर देवी ने कहा कि कि झाड़ - फूंक वाले एक और व्यक्ति हैं जो इसे पूरी तरह ठीक कर देंगे . उनके पास भी गए , देवीजी भी साथ गईं .उसकी माताजी ने मुझे बताया कि इसे नीचे लिटाकर नाभि पर कोई कटोरी या गिलास उल्टा रख दिया था . उसने मन्त्र पढ़े और कटोरी के नीचे से कुछ पदार्थ निकाल कर दिखाया कि यही उसके ससुराल वालों ने खिलाया था जो नाभि के रास्ते  निकाल दिया है . अब यह पूरी तरह ठीक हो जाएगी पर कुछ नहीं हुआ . उसका इलाज तो चल ही रहा था . उसे थाईरायड भी ज्ञात हुआ  . उसका इलाज भी चला . आज वह कहने से कुछ  काम  करने लगी है , बोलने भी लगी है जिसे ध्यान से सुनकर दूसरे भी समझ सकते हैं , हल्ला - गाली भी न के बराबर है , मोटाप भी घटा  है . पूरी ठीक होगी या नहीं, नहीं मालूम .पर उसका भूत उतर गया है , कम से कम घर के लोग तो ऐसा मान सकते हैं . 
         भूतों की दुनियां विचित्र है . यदि झाड़ने के लिए किसी मुस्लिम को लायेंगे तो वह मुस्लिम भूत कहेगा , हिन्दू को लायेंगे तो हिन्दू भूत चढ़ा हुआ मिलेगा . भूत बाहर हो या न हो लोगों के मन में तो था , है और रहेगा . भूतों की सबसे अच्छी कहानी है . एक व्यक्ति जा रहा था उसे सामने से आते हुए आदमी ने अचानक  पूछा ,' आपने कभी भूत देखा है ?' व्यक्ति उसकी ओर देख कर कुछ कहता , सामने वाला गायब हो चुका था .



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