रविवार, 26 अगस्त 2012

क्रांतिकारियों के साथ छल ?

                                                       क्रांतिकारियों के साथ छल ?
भारतीय इतिहास लेखन में क्रांतिकारियों के साथ भारी छल किया गया है .जिन क्रांति वीरों ने देश की आजादी के लिए अपने प्राणों को न्योछावर किया , इतिहास में उन्हें आतकवादी , जुरमी कहा गया , षड्यंत्रकारी कहा गया , जो भूमिगत होकर कार्य करते, उन्हें भगोड़ा माना गया और स्वतंत्रता का ऐसा इतिहास इंदिरा गाँधी से लेकर राजीव गाँधी तक की  कांग्रेस सरकार ने जनता के पैसों से लिखवाया या प्रकाशित करवाया है  . इन्ही किताबों को पढ़कर लोग आई.ए. एस. , आई. पी. एस बनते रहे जिससे अधिकारियों और नेताओं में राष्ट्र प्रेम जैसी भावनाएं तो दूर , देश को अधिकतम लूटने और निजी स्वार्थ कि भावनाएं प्रबल हो गईं .इसी से भ्रष्टाचार और अराजकता बढ़ती जा रही है .
                      इन इतिहासकारों ने स्वतंत्रता सेनानिनियों के संघर्ष और क्रांति -कार्यों को विद्रोह कहा क्योंकि इनका मानना है कि अंग्रेजों की सरकार एक वैधानिक सरकार थी और वैधानिक सरकार के विरुद्ध संघर्ष विद्रोह होता है .जो विद्रोही है , आतंकवादी है , आतंक वादी जुर्म कर रहा है उसे फांसी नहीं मिलेगी तो और क्या मिलेगा ?और उनके आतंकवादी जुर्म क्या थे --भारतीयों पर जुर्म करने वाले अफसरों तथा उनके भारतीय सहयोगियों को मारना . जिसे अंग्रेजों ने आतंक वादी कहा ,जुरमी कहा, इन्होने भी उनको वैसा ही कहा और देश के युवकों को पढ़ाया . कांग्रेस को इसका लाभ यह मिला कि वह लोगों को यह रटवाने   में सफल हो गई कि आजादी का सारा काम उन्होंने किया है इसलिए केवल उन्हें ही सत्ता में रहने का अधिकार है .यहाँ  पर  उन पुस्तकों से उद्धृत करके कुछ पंक्तियाँ दी जा रही हैं .
१.स्वतंत्रता का इतिहास  लेखक --बिपन चन्द्र ,अमलेश त्रिपाठी , बरुण दे (१९७२), हिंदी अनुवाद , नॅशनल बुक ट्रस्ट ऑफ़ इण्डिया 
 (पृष्ठ ७२)...  उग्रपंथी गुट के नेता तिलक ने बहुत पहले ( बंग भंग आन्दोलन से भी पहले ) अपने युवक अनुयायियों के मन को इतना उत्तेजित कर दिया था जो उनसे निजी तौर पर आतंकवादी कार्य करवाने के लिए काफी था ..
१८९७ में पूना के दामोदर और बालकृष्ण चिपलूणकर बंधुओं ने दो बदनाम अंग्रेज अफसरों की हत्या कर दी  थी .  
(पृष्ठ ७३).... उन्होंने आयरी आतंकवादियों और रूसी निषेध वादियों के चरण चिन्हों पर चलना और उन अधिकारियों की हत्या करना बेहतर समझा जो अपने भारत विरोधी रवैये  या अपने दमनकारी कामों की वजह से काफी बदनाम हो गए थे .
  .....विचार यह था कि शासकों के दिल में आतंक पैदा कर  दिया जाय , जनता को राजनीतिक दृष्टि से उभारा  जाय और अंततः  अंग्रेजों को भारत से खदेड़ दिया जाय .
.....क्रांति कारी आतंकवाद कि तरफ़ जनता का ध्यान गंभीरतापूर्वक तब गया जब खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी  नामक दो युवकों ने मुजफ्फरपुर के जिला जज की हत्या का प्रयत्न किया . बहरहाल  बम से दो निर्दोष महिलाओं की जानें  गई . 
   .... अलीपुर में अरविन्द घोष  , उनके भाई बारीन घोष तथा अन्य लोगों पर षड्यंत्र के आरोप में मुकदमा चला . लेकिन जेल के अहाते में ही क्रांतिकारी आतंकवादियों द्वारा मुखबिर की हत्या कर कर दिए जाने से मुकदमें की सुनवाई में बाधा पैदा हो गई . खुदीराम को फांसी दी गई . मुखबिर के हत्या करने वाले सत्येन  बसु और कन्हाई   दत्त को फांसी के तख्ते पर लटका दिया गया .
(पृष्ठ ८८ ) ...बहुत से षड्यंत्रकारियों को या तो फांसी पर लटका दिया गया कालापानी की सजा देकर अंडमान भेज  दिया गया.
........रासबिहारी बोस जापान भाग गए .
(पृष्ठ १२३  )  स्वतंत्रता आन्दोलन चलाने के लिए सुभाष चन्द्र बोस  तथा अन्य नेताओं ने छोटे - छोटे गिरोहों की स्थापना की.
(पृष्ठ १३6 )  २९ मार्च १९३१ को करांची में कांग्रेस अधिवेशन में भगत सिंह की शहादत के सम्बन्ध में प्रस्ताव था . गाँधी जी ने बहुत मुश्किल से यह प्रस्ताव स्वीकार किया , "किसी भी तरह की राजनीतिक हिंसा से अपने को अलग रखते हुए और उसे अमान्य करते हुए , कांग्रेस उनकी वीरता और बलिदान के प्रति अपनी प्रशंसा को लिखित  ढंग से व्यक्त कर रही  है . ''
   इस पुस्तक में तिलक को आतंकवादी कार्यों के लिए उकसाने वाला कहा गया है , क्रांतिकारियों को षड्यंत्रकारी कहा  है, सुभाष चन्द्र बोस जैसे नेताओं के संगठन को 'गिरोह बनाना कहा है ' .
   २. आधुनिक भारत का इतिहास , हिंदी माध्यम कार्यान्वयन निदेशालय , दिल्ली विश्वविद्यालय (१९८७)संशोधित संस्करण (१९९८) .( हिंदी अनुवाद ) राजीव गाँधी के शासन कल में लिखवाई गई पुस्तक .
(पृष्ठ 528 ) ...१९०७--१९०९ के बीच बंगाली क्रांतिकारियों ने काफी आतंकपूर्ण जुर्म किये . १६ दिसंबर १९०७ को मिदना-   पुर के पास लेफ्टिनेंट गवर्नर की  गाड़ियों  को बम से उड़ाने की कोशिश की गई . इसी तरह ढाका के पहले मजिस्ट्रेट एलन को भी क़त्ल करने का प्रयत्न किया गया जो असफल रहा . क्रांतिकारियों ने इसके बाद प्रेसिडेंसी मजिस्ट्रेट किंग फोर्ड को मरने का फैसला किया जिन्होंने कई युवकों को छोटे--छोटे अपराधों के लिए कोड़े लगवाये थे .खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी  ने ३० अप्रेल १९०८ को मुजफ्फरपुर में उनकी गाड़ी से मिलतीजुलती  गाडी पर बम फेंका , मगर उस गाड़ी में  दो महिलाएं , श्रीमती केनेडी और उनकी पुत्री थीं , जो मारी  गईं . जब क्रांति कारी प्रफुल्ल को कैद किया गया तो उन्होंने गोली मारकर आत्महत्या कर ली . खुदीराम बोस  पर मुकदमा चलाकर  उन्हें फांसी पर लटका दिया . खुदीराम बोस  शहीद  हुए  और बंगाल के युवकों  की नजर में वे एक बहादुर वीर थे . उनके चित्र घर- घर में लगाये गए और युवकों ने अपनी धोतियों और पोषक के बार्डर  पर खुदीराम बोस  का नाम छपवाया .
 भारत  सरकार अंग्रेज अफसरों की जान पर प्रहार से बहुत भयभीत हो गयी थी और उसने इन आतंक वादी संस्थाओं को ख़त्म करने की ठान ली . मुजफ्फरपुर के हत्याकांड के कुछ दिन  बाद   मानिकतला में क्रांति कारियों के निवासस्थान मुरारी पुकुर पर पुलिस ने छापा मारा और वहां से बम , बारूद इत्यादि चीजें बरामद कीं . अरविन्द घोष और उनके भाई बारीन्द्र घोष सहित ३४ लोग गिरफ्तार कर लिए गए . मगर जब मुकदमा चाल रहा था तो कचहरी में गोली मारकर सरकारी वकील और पुलिस के डिप्टी सुपरिंटेंडेंट  की हत्या कर दी गई . १५ आतंकवादियों को सजा हुई और उनमें से कुछ ( जिनमे  बारीन्द्र घोष भी शामिल थे ) को आजीवन कारावास देकर काला पानी भेज दिया गया . अरविन्द घोष को रिहा कर दिया गया . नरेंद्र   गोसाईं की , जो सरकारी गवाह बन गए थे , कन्हाई लाल दत्त और सात्येंद्र बोसे ने गोली मारकर हत्या कर दी . दोनों पर मुकदमा चलाया गया और उन्हें फांसी की सजा हुई . मगर बंगाली युवकों  की दृष्टि  में ये वीर शहीद हुए थे  और हजारों लोगों ने उनके शव के जुलूस में हिस्सा लिया .
 इन क्रांतिकारियों के लिए सारे देश में सहानुभूति थी. उनके त्याग और मौत से जूझने के साहस ने भारत के युवकों को देश प्रेम की भावनाओं से उत्साहित किया . आर सी मजूमदार ने लिखा है "यद्यपि बारीन्द्र घोष को कोई स्पष्ट सफलता नहीं मिल सकी , पर बंगाल में क्रांतिकारी आन्दोलन की एक सुदृढ़ नींव डालने और और उसको एक निश्चित रूप तथा  दिशा  प्रदान करने का श्रेय उन्हीं को है . आन्दोलन का यह रूप और दिशा अंत तक कायम रहे  ." 
( पृष्ठ ५३२ )   ....  अमृतसर से आए इंजीनियरिंग के एक विद्यार्थी श्री मदन लाल धींगरा ने १ जुलाई १९०९ को उसे ( कर्जन विली ) अपनी गोली से मार गिराया .......१७ अगस्त १९०९ को धींगरा का अंतिम संस्कार कर दिया गया ( यह अंग्रेजों  ने चुपके से कर दिया था ) . भारत के कई नेताओं ----बीसी पाल , सुरेन्द्र नाथ बनर्जी , गोखले इत्यादि ने शहीद मदन लाल धींगरा की कड़े शब्दों में निंदा की , मगर कई  अंग्रेज राजनीतिज्ञों ने उनकी प्रशंसा की और आयरलैंड के अखबारों ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए लिखा , " मदन लाल धींगरा को , जिन्होंने अपने देश की खातिर अपना जीवन न्योछावर कर दिया , आयरलैंड अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है . " 
 इसमें कहा  गया है " बंगाली क्रांतिकारियों ने 'काफी आतंकवादी जुर्म किये ",जैसा अंग्रेजों ने लिखा इन्होने उसकी नक़ल करके लिखा कि वे बंगाल युवकों की नज़र में एक बहादुर देश भक्त थे और अंग्रेजों ने आतंकवादी संस्थाओं को ख़त्म करने की थान ली परन्तु सरकारी इतिहास लेखक स्वयं उन्हें ऐसा नहीं समझते जबकि अंग्रेज लेखकों ने भी उनके बलिदान की प्रशंसा की है .
३. आधुनिक भारत का इतिहास , विद्याधर महाजन ,(२००४ )
  पृष्ठ (५४५) : १९ सवीं  सदी के अंत और बीसवीं सदी के के शुरू में भारत में आतंकवादी आन्दोलन चला . आतंकवाद उग्र राष्ट्रवाद की  एक अवस्था थी पर यह तिलक पक्षीय राजनैतिक उग्र वाद से बिलकुल भिन्न थी .क्रन्तिकारी लोग अपीलों प्रेरणाओं  और शांति पूर्ण संघर्षों को नहीं मानते थे . उन्हें यह निश्चय था  कि पशुबल से स्थापित किये गए साम्राज्यवाद  को  हिंसा के बिना  उखाड़ फेंकना संभव  नहीं . वे अपने आन्दोलन को चलाने के लिए सशस्त्र हमले करने और डकैतियां डालने को कोई बुरी बात नहीं मानते  थे . स पुस्तक में 
 १८९९ में जनता की घृणा के पात्र श्री रैंड  और रिहर्स्ट की हत्या की गई . प्रतीत होता है कि श्याम कृष्ण वर्मा का रैंड  की हत्या से  कुछ सम्बन्ध था  पर वह भाग कर लन्दन पहुंचा . वह १९०५ तक चुपचाप रहा और इसके बाद उसने लन्दन की इंडियन होम रुल सोसायटी को जन्म दिया . उसने इन्डियन सोशिओलोजिस्ट  नाम का एक मासिक पत्र भी शुरू किया . पेरिस के एस आर राणा की मदद से एक हजार रुपये की छ: लेक्चररशिप और दो हजार रूपये  प्रत्येक की  तीन घूमने - फिरने की छात्रवृत्तियां भारतीय छात्रों के लिए पेश की गईं .जिनसे वे बाहर जाकर राष्ट्र सेवा के कार्य  में अपने आप को शिक्षित करें . इस प्रकार लन्दन पहुंचे विद्यार्थियों में एक विनायक दामोदर सावरकर भी थे . श्याम जी कृष्ण  वर्मा के   लन्दन से बच भागने के बाद विनायक सावरकर इण्डिया हाउस में क्रन्तिकारी दल के नेता  हो गए . 
(पृष्ठ ५४७) : खुदीराम बोस  के शहीद होने पर शिरोल ने लिखा है ," बंगाल के राष्ट्रवादियों के लिए वह शहीद और अनुकरणीय हो गया. विद्यार्थियों ने और अन्य बहुत से लोगों ने उसके लिए शोक मनाया और उसकी स्मृति में स्कूल दो-तीन दिन बंद रहे . उसके चित्र बहुत  अधिक बिके और धीरे - धीरे नौजवान लोग ऐसी धोतियाँ पहनने लगे ,जिनकी किनारी में खुदीराम बोस  का नाम खुदा  होता था ."
(पृष्ठ 548) : ...बंगाल के आतंकवादियों ने पुलिस अफसरों , मजिस्ट्रेटों , सरकारी वकीलों, विरोधी गवाहों , गद्दारों , देश द्रोहियों ,इकबाली गवाहों ---किसी को भी नहीं छोड़ा . एक-एक करके सबको गोली से उड़ा दिया गया . आतंवादियों के लिए इसका परिणाम महत्वहीन था . 
(पृष्ठ 549) : उच्च मध्य वर्ग के नेता इस आन्दोलन से सहानुभूति नहीं रखते थे . सर आशुतोष मुखर्जी और एस एन बनर्जी जैसे नेताओं ने सरकार से आतंकवादियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही   करने के लिए कहा . भारतीय राष्ट्रवादी आन्दोलन का नेतृत्व गांधीजी के हाथ में आने पर क्रांतिकारी आन्दोलन धीरे- धीरे ख़त्म हो गया  .......  आतंकवादियों ने १९४२ के विद्रोह , भारतीय नौसैनिक विद्रोह और सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिंद फ़ौज में भी काम किया . 
  . विद्याधर महाजन ने भी लिखा कि भारत में आतंकवादी आन्दोलन चला . महान क्रन्तिकारी जिन्होंने इंग्लॅण्ड और अन्य देशों में जाकर क्रांतिका बिगुल बजने वाले श्याम कृष्ण वर्मा के लिए लिखा कि वह भागकर लन्दन पहुंचा तथा " लन्दन से बच भागने के बाद ..."अर्थात वे कायर थे भगोड़े थे .
आतंकवादियों ने १९४२ के विद्रोह में भारतीय नौसेना के विद्रोह में और सुभाषचंद्र बोस की आजाद हिंद फ़ौज में भी काम किया .अर्थात आजाद हिंद  फ़ौज आतंकवादी थी .
    ये यह भी लिखते हैं कि भारतीय राष्ट्रवादी आन्दोलन का नेतृत्त्व गाँधी जी के हाथ में आने पर क्रन्तिकारी आन्दोलन धीरे- धीरे ख़त्म हो गया . गाँधी जी के हाथ में नेतृत्त्व १९२०-२१ में आ गया था .इसका अर्थ हुआ कि भगत सिंह , सुखदेव , राजगुरु , चंद्रशेखर आजाद , राम प्रसाद बिस्मिल और अश्फाकुला खान   जैसे क्रांतिकारियों के बलिदान और नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के कार्य कुछ थे ही नहीं . १९४२ के भारत छोड़ो आन्दोलन में भी  कांग्रेसी नेताओं और गांधीजी के गिरफ्तार होने पर क्रांतिकारियों ने देश भर में हिंसक प्रदर्शन भी किये थे . क्रांतिकारियों के प्रति कांग्रेस के नेताओं का क्या रवैया था उसके भी कुछ उदाहरण यहाँ दिए गए हैं . आश्चर्य है कि इतिहास के प्राध्यापकों ने कभी इस पर विचार और चर्चा नहीं की और वही पढ़ाते आ रहे  हैं जो इतिहास विदेशियों या उनके अनुयायियों ने लिखा है .
         










मनमोहन की बांसुरी , हम सरकार हैं , भ्रष्टाचारी , छोटन को उत्पात , बड़ों को संरक्षण , आनंद

मनमोहन की बांसुरी 
राजा मनमानी करे, चिदंबरम दे साथ ,
मनमोहन की बांसुरी ,सोनिया जी के हाथ .
सोनिया जी के हाथ नचाएँ सबके पुतले 
जबतक चलता खेल नेता सब मिलकर खेलें.
जनता है हैरान ,देखकर उनकी माया ,
मची लूट पर लूट कहीं कोई समझ न पाया .
      हम सरकार हैं 
सीना तान बढ़ा रहे मंहगाई , भ्रष्टाचार ,
कहते हम सरकार हैं जनता है लाचार .
जनता है लाचार ,वोट जब देने जाते 
जाति - धर्म को देख , बटन दबा कर आते .
नेता हैं चालाक , एक दिन खूब लुटाएं ,
एक बार गए जीत , जन्मों तक मौज मनाएँ.
          भ्रष्टाचारी 
हर भ्रष्टाचारी  चाहता  घूंस न खाए कोय , 
मुझको धन मिलता रहे , उस पर रोक न होय .
उस पर रोक न होय,ऐसा कानून बनाएं ,
दूसरा रुपये खाय , उसे जेल पहुंचाएं .
सबका एक विचार , कि जो ईमान बताएं, 
कर दो उनको दूर , कि टांग साथ ले जाएँ .
 छोटन को उत्पात 
क्षमा बड़न   को चाहिए , छोटन को उत्पात ,
कवि रहीम सिखला गए , नेताओं को यह बात .
 नेताओं को यह बात .,सेवक बने रहो प्रत्यक्ष ,
सारे उत्पात हों माफ़ , लूट खसोट में होगे दक्ष .
नेता -अफसर की जात दिखावटी करती सेवा,
जनता खड़ी निरीह , ये खाते जाते मेवा .
            बड़ों को संरक्षण 
छोटों को भ्रष्ट दिखाएँ ,इस शासन के वीर ,
मगरमच्छों को छोड़ दें ,उधर न चलते तीर .
उधर न चलते तीर, ऊपर से दें संरक्षण ,
छापेमारी के खेल में छोटों को आरक्षण .
एक हो बढाएं   वेतन , करें मिलकर  भ्रष्टाचार 
सुशासन का प्रचार कर रही  यह ढोंगी सरकार .
           आनंद 
घूंस ,गबन या लूट हो ,या चोरी का मॉल 
मॉल-ए- मुफ्त की ख़ुशी की मिलती नहीं मिसाल .
 मिलती नहीं मिसाल आनंद तुम्हें हो लेना , 
करते  रहो  ऐसे काम , सबको दुःख पड़े सहना .
चुगली ईर्ष्या की राह  , सरल सबसे है होती ,
एक बार जो चख ले स्वाद , इच्छा कभी तृप्त न होती .

शनिवार, 25 अगस्त 2012

कैसी आज़ादी

                                                                    कैसी आज़ादी 

असम  में हुए कुछ ऐसे दंगे  
लाखों लगे कैम्प पहुँचने .
दक्षिण से उत्तर आग लगी 
सोते लोग लगे झुलसने .१.

उनमें इतना भय व्याप्त हुआ 
 बुद्धि शून्य, वे लगे बिलखने.
छोटी बड़ी नौकरियां छोड़ीं 
असम प्रदेश को लगे लौटने २. 
हजारों परिवार उजड़ते देखो 
सतत काफिला चला जा रहा 
शासकों को नहीं इसकी चिंता 
सैंतालिस का मंजर याद आ रहा .३.
बच्चे , युवा , वृद्ध हैं घुसते 
खचाखच  भरी हुई ट्रेन में 
महिलाएं धक्के खाती जातीं
भय - आतंक से भरी ट्रेन में .४.
लम्बा सफ़र राह है मुश्किल 
खाने - पीने कि न कोई व्यवस्था 
सांस लेने को जगह नहीं हैं 
किस हाल  में पहुंची राज्य व्यवस्था .५.
बसे हुए परिवार उजड़ गए 
राष्ट्र भविष्य न कोई  जाने 
अंधकार में चले जा रहे 
अपने ही घर में हुए बेगाने  ..६.
देश में एक न ऐसा नेता 
जो उनमें कुछ आस जगाये 
जो भय से उनको मुक्त करे 
और उनमें यह विश्वास जगाये ..७.
कि अपने घर में वे है बैठे 
राष्ट्र उनके साथ खड़ा है 
अपने घर में भय है किसका 
भागने का क्यों भाव अड़ा  है .८.
महाराष्ट्र में दंगे होते 
पुलिस के लोग घायल हो जाते
 क्या देंगे ये लोक -  सुरक्षा 
प्रश्न ये मन में है उठ जाते .९.
आस्ट्रेलिया ,ब्रिटेन या अन्य कहीं पर 
एक भी भारतीय मारा जाता है
 देश एक हो साथ है देता 
जन - जन से सबका नाता है १०..
नेतृत्त्व शून्य देश यह लगता 
स्वार्थ आज हैं सब पर हावी 
नेता , अफसर की शक्ल  न देखो 
रूप बदल बनते मायावी .११.
विदेशी देश में घुस कर बैठे 
गद्दारों से संरक्षण पाते .
विभाजन के हालात लौटते 
मन में  है  भय  भरते जाते .१२.
कानून व्यवस्था लचर बनाई 
गहरे सोते मानवता वादी 
पैंसठ वर्ष बाद शर्म है आती 
देश में यह कैसी आज़ादी .१३.
भारत माँ के लाल हो रहे 
अजनबी अपने ही देश में 
ये कैसा माहौल बन गया 
मेरे भारत देश में .१४.
हँसते - खेलते लोग परेशां
आज अपने ही देश में 
घर- घर में भय व्याप्त हुआ
क्यों , पूर्वी - दक्षिणी प्रदेश में  .१५.
रूपये शांति नहीं ला सकते 
बिन विचार समाज नहीं बनता 
शक्ति बिना शासन नहीं होता 
बिन नेता कोई देश न बनता .16.
देश के युवकों अब तो जागो 
 धन ही सब कुछ नहीं है  होता 
यदि सुरक्षा नष्ट हो गयी 
सारा जीवन खतरे में पड़ता १७.
 मेरा कैरियर , मेरा कैरियर 
मोटे -मोटे पॅकेज हैं पाते 
देश कि जो  नहीं करते चिंता 
गहन अंधकार में है खो जाते .१८.




शुक्रवार, 24 अगस्त 2012

राक्षस राज रावण : १५.वेदवती

राक्षस राज रावण :
                                                              १५.वेदवती 

कुबेर को पराजित करके तथा उसका धन एवं पुष्पक विमान प्राप्त करके रावण बहुत प्रसन्न था .उसे लगने लगा कि वह अजेय है .अब देवताओं पर विजय प्राप्त करने की उसकी इक्षा बड़ी तीव्र होती जा रही थी . वह हिमालय की उपत्यकाओं  में विचरण करता हुआ प्रकृति का आनंद ले रहा था . वहां वन में उसने एक तपस्विनी कन्या को देखा .उस अद्भुत सौन्दर्य युक्त कन्या ने ऋषियों के समान जटाओं को बांध रखा था तथा काले हिरन के चर्म से बदन  डंक रखा था जिससे वह और भी खूबसूरत दिख रही थी . उसे देखकर रावण को बहुत आश्चर्य हुआ कि इतनी सुन्दर कन्या अकेले इस सघन वन में कैसे विचरण कर रही है  वह सोचने लगा कि कि यह कोई ऋषि कुमारी है या देवलोक की अप्सरा है  . उसके छरहरे बदन ,गौरवर्ण , लावण्यमय मुख और अप्रतिम सौन्दर्य को देखकर रावण बरबस उसकी ओर खिंचा चला जा रहा था . उस कन्या के निकट जाकर ,उसे तीव्र दृष्टि  से निहारते हुए रावण ने अति मधुर स्वर में  कहा ,"सुंदरी ! तुम कौन हो ? तुम्हारी सुन्दर देह , उस पर  तपस्वी रूप और          यह सघन वन देख कर मेरे मन  में अनेक प्रश्न उठ रहे हैं   भद्रे ! यह रूप तुमने क्यों धारण किया है ? तुम्हारे पिता एवं पति कौन हैं ? किस फल की प्राप्ति के लिए तुम यह कठोर टाप कर रही हो ? रावण के इस प्रकार पूछने पर उस यशस्वी तपस्विनी ने अपनी कोमल वाणी में रावण से कहा   ," राजन! देवगुरु बृहस्पति  के परम तेजस्वी पुत्र ब्रह्मर्षि कुशध्वज मेरे पिता जी थे . वे भी देव गुरु के समान बुद्धि एवं ज्ञान के पुंज थे . मेरा नाम वेदवती है . जब मैं युवास्था को प्राप्त हुई तो अनेक पराक्रमी वीर जिनमें देवता , यक्ष , गन्धर्व , राक्षस ,दैत्य असुर  नाग  आदि थे मेरे पिताजी से मेरे विवाह का आग्रह करने लगे परन्तु मेरे पिता ने उनमे से किसी को भी हाँ नहीं की . उन्होंने प्रारंभ से ही निश्चय कर लिया था कि वे मुझे देवेश्वर विष्णु को ही देंगे . विष्णु को दामाद के रूप में देखने की मेरे पिता जी की परम इच्छा  थी .एक दिन अपने घमंड में चूर दैत्य राज शम्भू ने मेरे पिता जी से कहा कि वे मेरा विवाह उससे कर दें परन्तु पिता जी ने उन्हें भी मना कर दिया. जब उसके बार- बार आग्रह करने पर भी मेरे पिता तैयार नहीं हुए तो एक दिन सोते समय उसने निर्ममता पूर्वक मेरे पिता जी की हत्या कर दी. मेरी माता जी इस दुःख को सहन नहीं कर पाईं और वे पिता जी के साथ चिता पर बैठ कर सटी हो गईं . मैं दैत्य राज के चंगुल में फंसने से बच गई . तब से मैंने यह प्रतिघ्या की है कि मैं पिताजी के मनोरथ को पूरा करूंगी चाहे जितना भी कठोर टाप करना पड़े , चाहे जितना  भी समय लग जाय  . रावण मन ही मन में कह रहा था कि दैत्य राज से तो तुम बच गई परन्तु मुझसे बच कर कहाँ जाओगी . वह कानों से तो उसकी बातें सुन रहा था परन्तु उसकी नजरें कन्या कि देह पर टिकी हुईं थीं . अपना प्रभाव ज़माने के लिए उसने वेदवती से गर्व पूर्वक कहा ," देवी ! तुम धन्य हो तुमसे मिलकर मैं बहुत आनंद  का अनुभव कर रहा हूँ .  सुंदरी ! मै लंकाधिपति राक्षस राज  रावण हूँ . " उसकी बात सुनते ही देव कन्या ने कहा , " पौलत्स्य नंदन ! मैंने आपको पहचान लिया है . मैं अपने तप से ब्रह्माण्ड कि सभी बातें जान लेती हूँ " रावण सोचने लगा कि तब तो इसे मेरे विचार का ज्ञान भी हो गया होगा . अब उस कन्या को  समर्पण करने के लिए रावण प्रेरित करने का प्रयत्न करने लगा . उसने कहा , "  देवी !तुम्हारा तप देखकर मैं अभिभूत हो गया हूँ . परन्तु  तुम्हारे इस कोमल शरीर पर यह कठिन व्रत शोभा नहीं देता है . तुम अपने साथ अन्याय कर रही हो . मैं तुम्हें इतना कष्ट सहते हुए नहीं देख  सकता . " उसकी बात पर वेदवती ने विनम्रता पूर्वक पुनः कहा कि वह विष्णु जी को प्राप्त करने तक तपस्या में तत्पर  रहेगी और उसे इसमें कुछ भी कष्ट प्रद नहीं लगता है . 
       रावण को आभास हो गया कि उसे प्रेम से नहीं समझाया जा सकता है .अब उसने अधिकार पूर्वक कहना प्रारंभ किया ," इतने कठोर तप से जिस पति के लिए तुम प्रयास कर रही हो , वह अब पूर्ण हुआ समझो . मैं तुम्हें अपनी महारानी बनाना छठा हूँ . मैंने अभी कुबेर का मान मर्दन किया है . अब मैं देव लोक पर अधिकार करने जा रहा हूँ  . और तुम जिस विष्णु के लिए परेशान  हो , वह शक्ति  और  वैभव  में मेरे सामने कहीं नहीं टिकता है . अतः तुम मेरी ह्रदय साम्राज्ञी बनकर मुझे कृतार्थ करो . तुम्हारे एक इशारे पर मेरे समस्त  दास- दासियाँ तुम्हारी सेवा में तत्पर होंगे .  अब तुम मेरे साथ स्वर्ण मयी लंका में चल कर अपने पुण्यों का आनद भोगो . प्रिये , मेरे निकट आओ . मुझसे अब और विरह सहन नहीं हो रहा है "  
    वेदवती परिस्थितियों को पहले से ही समझ रही थी . उसने सोचा   कि वह शक्ति में तो उसे परास्त  कर नहीं सकती है और यदि श्राप देती है तो उसकी तपस्या नष्ट हो जाएगी . अत अनुनय करती हुई वह उससे दया मांगने लगी . रावण पर  इससे कोई प्रभाव पड़ने वाला नहीं था . उसने आगे बढ़ कर वेदवती को पकड़ना चाहा परन्तु वह पीछे हट गई . रावण सुन्दर कन्या के लिए सदैव तैयार रहता था . वहां पर तो अत्यंत सुन्दर रमणी उसके सामने थी , एकांत वन था , खुला आकाश था प्रकृति अपना अनद चारों ओर बिखेर रही थी , मंद - मंद सुमधुर वायु उसके तन  को और अधिक संतप्त कर रहा था . उसका धैर्य जाता रहा . उसने क्रोधित होते हुए कहा , " लंकाधिपति महाबली रावण तुझसे विनय कर रहा है और तू उसकी निरंतर उपेक्षा करके उसका अपमान  करती जा रही है . यह अछम्य  है . लंकेश  तुम्हारी 'न' सुनने  के लिए प्रणय - निवेदन नहीं कर रहा है . " इतना कहते हुए उस महाकाय रक्षस  ने  क्रूरता पूर्वक वेदवती के बाल पकड़ लिए . वह उसे घसीट  कर नीचे पटकता इससे पूर्व ही वेदवती ने बड़ी चपलता से अपने बलों में एक हाथ मारा , उसके केश ऐसे कट  गए जैसे किसी ने उन पर तलवार चला दी हो  और कुछ पीछे हट गई . उसने रावण से कहा ," अभिमानी राक्षस , तू सर्व शक्तिमान नहीं है , तू मेरी तपस्या को नष्ट नहीं कर पायेगा  . भगवान विष्णु मेरी रक्षा करेंगे . मैं पुनर्जन्म लेकर तेरी मृत्यु का कारण बनूंगी " इतना कह कर उस तपस्वी देव कन्या ने अपने योगबल से वहां पर अग्नि प्रगट कर दी और उसमें समां  गई .रावण अवाक देखता रह गया , उसे अपनी ऐसी हार की कल्पना भी नहीं की थी . वह कुंठित मन से अपने शिविर कि ओर लौटने लगा .  कुछ ही क्षणों में आसमान में काली घटाएं छाने लगें . वायु क्रोधित हो उठी . तेज आंधी -तूफ़ान आ गया . मेघ कर्कश  ध्वनि  कर-कर के गरजने लगे मनो वे रावण को युद्ध की चुनौती दे रहे हों . मूसलाधार वर्षा होने लगी . वृक्ष टूट कर धराशायी होने लगे और बाढ़ में बहने लगे . रावण की  सेना के शिविर भी उड़ गए . वर सैनिक भी उद्विग्न हो उठे . रावण के मन  में भी धीरे - धीरे भय का प्रवेश होने लगा . 
        वेदवती ने पुनः एक सुन्दर कन्या के रूप में जन्म लिया . जब वह युवती हुई , वह भी रावण के चंगुल में फंस गई .रावण उसे लेकर लंका गया तो सदैव की भांति उसे अपने पुरोहित को दिखाया . उसे देखते ही पुरोहित ने कहा , राजन , यह कन्या लंका और लंकेश दोनों के लिए घातक है . रावण ने उसे तुरंत मारकर समुद्र में फेंकने का आदेश दिया . उसके अगले जन्म में वह राजा जनक की  पुत्री सीता के रूप में उत्पन्न हुई ..सीता का जन्म लेकर अपने पूर्व जन्मों के तप के प्रभाव से उसने भगवान राम ( विष्णु ) को पति के रूप में प्राप्त  किया  और रावण के काल का कारण बनी .
                                                                                                                           






















गुरुवार, 23 अगस्त 2012

मुहम्मद इकबाल (अलामा इकबाल )

मुहम्मद इकबाल (अलामा इकबाल )
   सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा , हम बुलबुले हैं इसकी , यह गुलिस्ताँ हमारा , जैसे कालजयी शेर के शायर मुहम्मद इकबाल हिंदुस्तान,पाकिस्तान की सीमाओं से भी पार ईरान , ईराक , अरब देशों के लोगों के भी दिलों  के बेताज बादशाह थे और आज भी हैं .पाकिस्तान ने उन्हें अपना राष्ट्रीय कवि माना और उनके जन्म दिन (९ नवम्बर १८७७ ) ९ नवम्बर को आज भी वहां राष्ट्रीय अवकाश रहता है  . ये वह शक्सियत हैं जिन्होंने हिन्दू - मुस्लिम द्विराष्ट्र का सिद्धांत दिया था , मुस्लिम लीग के द्वारा उसे परवान चढ़ाया  और जो उनकी मृत्यु(१९३८) के ९ वर्ष बाद पाकिस्तान के रूप में साकार हुआ .
इकबाल के पूर्वज सप्रो गोत्र के कश्मीरी ब्रह्मण थे जो जम्मू से पंजाब के स्यालकोट नगर में आकर बस गए थे और उन्होंने लगभग २५० वर्ष पूर्व इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था . उनके पिता शेख नूर मुहम्मद दर्जी थे . उनके माता- पिता धार्मिक और नेक इन्सान थे .उनकी प्रारंभिक शिक्षा स्यालकोट में हुई थी . वे ४ वर्ष की आयु में घर पर अरबी सीखने लगे वे बचपन से ही कुशाग्र बुद्धिके थे और पथ को शीघ्र याद कर लेते थे . उन्होंने १८९३ में १०वी ,१८९५ में १२वी , तथा उसके बाद शासकीय महाविद्यालय लाहौर  से  १८९७ में बी.ए.( दर्शन शास्त्र , अंग्रेजी और अरबी साहित्य ) और १८९९ में एम्.ए.( दर्शन शास्त्र )  पास कर लिया जिसमें उन्हें पंजाब विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ था .
   शासकीय महाविद्यालय लाहौर में उन्हें अरबी - फारसी के विद्वान् प्राध्यापक आर्नाल्ड का विशेष स्नेह प्राप्त हुआ तथा उनकी प्रेरणा से उनमें साहित्य के प्रति विशेष रूचि उत्पन्न हुई . लाहौर में उन दिनों मुशायरे की भे धूम रहती थी . इकबाल ने भी उन में शामिल होकर अपने कलाम सुनाना प्रारंभ किया और शोहरत की बुलंदियों को छूने लगे . ग़ज़ल लिखना तो उन्होंने स्कूल से ही शुर कर दिया था . उस समय के प्रसिद्द शायर उस्ताद दाग के पास डाक से वे अपनी रचनाएं भेजते थे . दो - चार ग़ज़लें देखकर उन्होंने कहा कि उनमें सुधार जैसा कुछ भी संभव नहीं है . उनकी ग़ज़लें पूर्ण थीं , बहुत अच्छी थीं . इससे इकबाल का आत्म विश्वास बहुत बढ़ गया और वे जीवन भर लिखते रहे . 
१८९५ में उनका पहला विवाह करीम बीबी से हुआ था .दूसरा सरदार बेगम से और १९१४ में तीसरा विवाह मुख़्तार बेगम से किया था .१८९९ में एम्. ए. पास करते ही वे ओरिएंटल कालेज  में दर्शन -- अरबी के प्रवक्ता नियुक्त्त  हो गए थे . शीघ्र ही वे जूनियर प्रोफेस्सर के पद पर शासकीय महाविद्यालय लाहौर में दर्शन--अंग्रेजी पढाने लगे . अपने दार्शनिक ज्ञान तथा शायराना अंदाज के कारण वे कालेज में तथा बाहर भी लोक्प्रिता प्राप्त करते जा रहे थे .   १९०५ में वे छात्रवृत्ति लेकर अध्ययन करने इंग्लॅण्ड चले गए . वहां उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के ट्रिनिटी कालेज में प्रवेश लिया . वहां   पर उन्होंने १९०६ में बी. ए. , १९०७ में लिंकन इन से बारिस्टर तथा १९०८ में जर्मनी जाकर ' प्रशा में तत्वमीमांसा का विकास '  पर पी-एच.डी .प्राप्त कर ली . उनका शोध प्रबंध शीघ्र  ही प्रकाशित हो गया था लन्दन में उन्होंने ६ माह तक अरबी का अध्यापन भी किया .भारत लौटकर वे अध्यापन के साथ जिला अदालत लाहोर में १९३४ तक वकालत भी करते रहे .  
      दार्शनिक होने के कारण वे चाहते थे कि विश्व एक  इस्लामिक झंडे के नीचे आ जाय अन्य मुस्लिम विद्वानों की भांति वे भी धर्म-समाज- राजनीति को एक ही इस्लामिक दर्शन के विभिन्न पक्ष मानते थे जिन्हें एक - दूसरे से पृथक नहीं किया जा सकता है . उन्होंने ईरान , ईराक , अरब देशों में जाकर अनेक भाषण दिए . मुस्लिम देशों में पृथक सीमाएं उन्हें पसंद नहीं थीं .परन्तु धर्म के नाम पर राजा अपना अधिकार छोड़कर किसी एक महाराजा के आधीन हो  जायेंगे जैसी असंभव राजनीतिक कल्पना देखकर लगता है कि उन्हें राजनीति का ज्ञान नहीं था . अलग देश की सीमाएं तो छोडिये , भारत से जो मुस्लमान वीसा और अनुमति प्राप्त करके  २-४ दिन के लिए पाकिस्तान घूमने भी जाते हैं तो इकबाल के पाकिस्तान में प्रवेश से लेकर लौटने तक पाक जासूस घेरे रहते हैं और उसे कहीं  जेल में बंद न  कर दें ,  पूरे समय उन्हें यह भय बना रहता है .
      भारत में उन्होंने मुस्लिम लीग के सक्रिय सदस्य बनकर राजनीति में प्रवेश किया . १९२० में जब मुस्लिम लीग के नेता आपस में लड़ पड़े और लीग समाप्त प्राय हो गयी तो उन्हें बहुत बड़ा झटका लगा .जिन्ना तो राजनीति से दूर हो गए थे . परन्तु इकबाल ने  जिन्ना को बार- बार पत्र लिख कर प्रेरित किया कि भारत में मुसलमानों के हितों और अधिकारों की रक्षा वही कर सकते हैं . अपने भाषणों में इकबाल भय व्यक्त करते थे कि भारत में बहु संख्यक हिन्दुओं का राज होइने पर मुस्लिम धरोहर , संस्कृति , धर्म सब संकट में फंस सकते हैं . वे जिन्ना की भांति कांग्रेस को हिन्दू पार्टी मानते थे . सिकुलर अर्थात धर्म निरपेक्ष विचार के वे धुर विरोधी थे .क्योंकि वे विश्व में केवल इस्लाम ही चाहते थे .मुस्लिम लीग पुनः प्रारंभ होने पर १९३० में वे उसके अध्यक्ष बने तो इलाहबाद में अपने अध्यक्षीय भाषण में उन्होंने भारत के उत्तर - पश्चिम भाग तथा बंगाल को मुस्लिम राज्य बनाने का विचार प्रथम बार रखा था . जिन्ना जैसा व्यक्ति, जिसने खिलाफत आन्दोलन का समर्थन  इसलिए नहीं किया था कि यह केवल धार्मिक उन्माद के कारण हो रहा है ( जबकि गाँधी जी ने प्रबल समर्थन दिया था )तथा मुस्लिम कट्टर पंथियों से दूर रहता था , इकबाल के कारण कट्टरपंथी हो गया तथा देश का बंटवारा करवाकर ही दम लिया .. इकबाल एक बार लाहौर से मुस्लिम सीट पर पंजाब विधान सभा के लिए चुने गए थे . 
  'संस्कृति  के   चार  अध्याय ' पुस्तक  में  राष्ट्र  कवि  दिनकर  ने  भी  इकबाल  के  लिए  कहा  है ,"इकबाल  की  कविताओं  से  , आरम्भ  में , भारत की सामासिक संस्कृति को बाल मिला था , किन्तु, आगे चलकर उन्होंने बहुत सी ऐसी चीजें भी लिखीं जिनसे हमारी एकता को व्याघात पहुंचा ." 
        पर शायरी में तो उनका कोई मुकाबला ही नहीं था . इकबाल कि शायरी का जब अंग्रेजी में अनुवाद हुआ तो उनकी ख्याति इंग्लॅण्ड तक फ़ैल गई जिससे प्रभावित होकर जार्ज पंचम ने उन्हें 'सर' की उपाधि दी.
बाद में उनकी कविताओं का अनुवाद यूरोप की अन्य भाषाओं में भी हुआ . अरब देशों के लोग भी उनकी शायरी समझें ,इसलिए उन्होंने अधिकांश शायरी फारसी में की है . कुछ पुस्तकें उर्दू में भी हैं . १९३८ में वे स्पेन से लौटे तो गले में कोई असाध्य रोग हो गया जो ठीक नहीं हो सका . लाहौर में दिनांक २१ अप्रेल १९३८ को उनका निधन हो गया . भोपाल के नवाब ने उनके लिए पेंशन स्वीकृत की थी . पाकिस्तान में उनके नाम पर अनेक संस्थाएं हैं . वे पाक ही नहीं ,भारत के लोगों के दिलों में आज भी हैं . उन्हें प्राप्त उपाधियाँ हैं --'शायर -ए- मुशरिफ '( पूर्व के कवि), मुफाकिए - ए- पाकिस्तान(पाकिस्तान के प्रस्तोता ) , हाकिम - उल- उम्मत ,तथा पाकिस्तान के राष्ट्रीय  कवि .
साहित्य सृजन :उन्होंने अधिकांश शायरी फारसी में की है . फारसी की रचनाएँ है --असरारे -खुदी ,रामूजे बेखुदी , पयामे मशरिक , जावेद नामा आदि . उर्दू में - बाल- जिब्रील(पीड़ित जनता ) तथा बांग- ए-दरा(देश भक्त) प्रमुख हैं . गद्य में उनके भाषण समाहित हैं .
   इकबाल की जुबान ही शायरी है . जो कहा ,शेर हो गया . उन्होंने रामुर नानक पर लिखा , धार्मिक सौहार्द्र के लिए शिवाला  जैसी रचनाएँ लिखीं  आजादी और राष्ट्रीयता से ओतप्रोत कविताएँ लिखीं , गरीबों से सहानुभूति  और बच्चों को प्रेरित करने के लिए रचनाएँ प्रस्तुत कीं और कट्टरता तथा आधुनिक शिक्षा के विरोध में भी स्वर मुखरित किये . यहाँ उनकी शायरी के  कुछ बंद   प्रस्तुत हैं  :
.बच्चों के लिए ( गुलामी का दर्द )
("परिंदे की फ़रियाद " )
आता है याद मुझको गुजरा हुआ जमाना
वह बाग की बहारें , वह सबका चहचहाना .
आजादियाँ कहाँ वे अब अपने घोंसले  की ,
अपनी ख़ुशी से आना , अपनी ख़ुशी से जाना .
२.पहाड़ को गिलाहरी का उत्तर ( समानता, स्वाभिमान )
("एक पहाड़ और एक गिलहरी " से )
कदम उठाने की ताकत ,जरा नहीं है तुझमें
निरी बड़ाई है , खूबी और क्या है तुझमे  ,
जो तू बड़ा है , तो हुनर दिखा मुझको
यह छालियाँ ही तोड़ कर दिखा मुझको .
३.  भारत का गौरव 
(हिन्दुस्तानी बच्चों का कौमी गीत )
चिश्ती ने जिस जमी पर पैगामे हक सुनाया ,
नानक ने जिस चमन में वहदत का गीत गया.
तातारियों ने जिसको अपना वतन बनाया ,
मेरा वतन वही है , मेरा वतन वही है .
४. धार्मिक एक्य ( नया शिवाला )
आ गैरियत  के के परदे इक बार फिर उठा दें ,
बिछड़ों को फिर मिला दें ,नक़्शे दुई मिटा दें .
सूनी पै हुई है मुद्दत से दिल कि बस्ती ,
आ इक नया शिवाल इस देश में बना दें .
५. राष्ट्रीय एकता ( तराना - ए हिंदी )
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा ,
 हम बुलबुले हैं इसकी , यह गुलिस्ताँ हमारा
मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर करना
हिंदी हैं हम ,वतन है हिन्दोस्तां  हमारा .
.धार्मिक कट्टरता (तराना -ए- मिल्ली )
चीनो अरब हमारा , हिन्दोस्तां हमारा
मुस्लिम हैं हम वतन के , सारा जहाँ हमारा .
तोहीद की अमानत , सीनों में है हमारे  ,
आसां नहीं मितान , नामों - निशान हमारा .
७. अन्य धर्मों का भी आदर ( राम)
इस देश में हुए हैं हजारों मलक - सरिश्त(१)१. देवता -स्वभाव
मशहूर जिनके दम से है दुनिया में नामे हिंद .
है राम के वजूद पे हिन्दोस्तान को नाज ,
अहले नज़र समझते हैं उसको इमामे हिंद .
.परोपकार भावना (साक़ी)
नशा पिलाके गिरना तो सबको आता है
मज़ा तो जब है कि गिरतों को थम ले साक़ी.
जो बदकाश थे पुराने , वह उठते जाते हैं ,
कहीं से आबे - बक़ा-ए-दवाम ला साक़ी.
कटी है रात तो हंगामा-गुस्तरी में तिरी ,
सहर करीब है अल्लाह का नाम ले साक़ी .
९. दकियानूसी - शिक्षा से नास्तिकता का भय 
( तालीम और उसके नताइज़ )
खुश तो हम भी हैं जवानों की तरक्क़ी  से मगर ,
लबे - खदां (1) से  निकल जाती है फरियाद भी साथ.
हम समझता थे कि फरागत, तालीम ,
क्या ख़बर थी कि चला आएगा इल्हाद (२) भी साथ .
घर में परवेज के शीरीं  तो हुई जलवा नुमा
लेके आई  मगर तेष- ए- फ़रहाद  भी  साथ .
तुख्में- दीगर बकफ़ आरएम व बकारेम जनौ
के आंचे कश्तेम जख्जलत नातवां क़र्द दरौ(३)
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१. स्मित होंठ २. नास्तिकता ३. जब दूसरों का बीज लेकर बोते हैं
 तो उससे लज्जा के अतिरिक्त और कुछ नहीं उग सकता .
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१०. आत्मबल बढ़ाना 
 ख़ुदी को कर बुलंद इतना ,कि हर तक़दीर से पहले ,
ख़ुदा बन्दे से ख़ुद पूछे , बता तेरी रज़ा क्या है .
टीप: ये अंतिम पंक्तियाँ  मनुष्य को आत्मबल-स्वप्रयास से भाग्य बनाने की प्रेरणा देती हैं . इस पर हिन्दू दर्शन का पूरा असर है जिसमें व्यक्ति ख़ुदा के सामने है और ख़ुदा व्यक्ति से पूछ कर उसका  भाग्य लिखने की बात कहता है  . जबकि इस्लाम में ख़ुदा सर्वत्र उपस्थित एक अदृश्य शक्ति है और उसने  लोगों को जो भी सन्देश दिया है  , वह पैगम्बर के माध्यम से दिया है जो कि व्यक्ति के रूप में पृथ्वी पर आये थे . 


























          
      

शुक्रवार, 17 अगस्त 2012

अरविन्द का दर्शन

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                                                    अरविन्द का दर्शन
महर्षि अरविन्द घोष ने युवावस्था तक इंग्लॅण्ड में रहकर पाश्चात्य साहित्य तथा दर्शन का गंभीर अध्ययन किया था .भारत आकर उन्होंने संस्कृत सीखी और वेद ,   उपनिषद गीता , सांख्य योग आदि ग्रंथों का विषद  अध्ययन एवं चिंतन किया .वह भारतीय संत - महात्माओं की इस बात से सहमत नहीं थे कि माया दुःख देने वाली   है और मनुष्य समस्त माया का त्याग करके केवल आत्म चिंतन करे , ब्रह्म चिंतन करे ,तप करे और मोक्ष प्राप्त हेतु निरंतर तत्पर रहे . वे पश्चिम के भौतिक वाद को भी अपूर्ण मानते थे .अपने चिंतन में उन्होंने पूर्व और पश्चिम की विचारधाराओं का अपूर्व समन्वय किया है .
     वेदांत के दो सूत्रों ---एकम सत-नेह नानास्ति किंचन (सत्य एक है , दूसरा नहीं ) तथा सर्व खल्विदं ब्रह्म (यह सब कुछ ब्रह्म है ) की पुनर्व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि ब्रह्म एक है तथा यह सब कुछ( माया ,प्रकृति ,भौतिक वस्तुएं  भी) ब्रह्म ही  हैं .यह सब उस ब्रह्म का विस्तार ही है . भौतिकता से दूर भागना उचित नहीं है .आवश्यकता है कि  अध्यात्म और भौतिकता का उचित समन्वय किया जाय . ये दोनों एक ही हैं तथा एक से अनेक और अनेक से एक तत्व की अद्भुत अभिव्यक्ति है . इनको समझ कर ही परम तत्वव की ओर मनुष्य बढ़ता जाये .
अरविन्द पुनर्जन्म के सम्बन्ध में भारतीय दृष्टिकोण   को स्वीकार करते हैं कि कर्म फल के अनुसार पुनर्जन्म होता है . वे सृष्टि के सभी तत्वों में परम ब्रह्म की सत्ता एवं चेतना का निवास मानते हैं . वे अवतार में विश्वास करते हैं . वे कहते हैं कि परम सत्ता लीलाएं करती है और यह सृष्टि उसकी लीलाएं ही हैं .
    अरविन्द ने योग को व्यक्ति की अन्तर्निहित एवं छुपी हुई शक्तियों को विकसित करने का मध्यम कहा है उनके अनुसार समस्त मानव जीवन ही योग है .मनुष्य और विश्व दोनों सत्य हैं एवं वास्तविक हैं .योग व्यक्ति को भौतिकता से ऊपर उठाता है जिससे वह अपना लक्ष्य पूरा करते हुए उत्तम पुरुष बन जाता है .योग साधना द्वारा बाह्य जीवन को संयमित एवं नियंत्रित करके मनुष्य को सर्व प्रथम परम सत्ता की अनुभूति प्राप्त करनी चाहिए .फिर साधना  द्वारा आत्मा को शुद्ध करते हुए ऊपर उठाना होता है . इस हेतु  आत्म्सपर्पण , चेतना , विवेक , प्रेम , भक्ति ,कर्म आदि आवश्यक हैं .
  व्यक्ति अपने व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन में चाहे-अनचाहे पाप-पुण्य करता रहता है .वे संसार को पापमय न मानकर पुण्य का साम्राज्य मानते हैं .संसार में पाप भी है परन्तु विषय वासनाओं को दूर करके सदवृत्तियों को अपनाकर , योग  पद्धति के मार्ग से , उस परम तत्व में पूर्ण विश्वास  रखते हुए , मनुष्य पाप से मुक्त हो जाता है .   गीता में जिसे पुरुषोत्तम कहा गया है , अरविन्द उसे अत्युत्तम  मानव ( सुपर मैन ) कहते हैं .उसमें एक अत्युत्तम मन एवं अत्युत्तम चेतना होती है इस अत्युत्तम मानव के एश्वर्य  की  अभिव्यक्ति ही यह संसार है .इस अत्युत्तम मानव में सत,चित  , आनंद --तीनों एकीभूत रूप में होते हैं .इसकी शाश्वत शक्ति से ही संसार की समस्त शक्तिया उत्पन्न होती हैं .  इसी से ब्रह्माण्ड की सभी क्रियाएं नियंत्रित होती हैं . मानव का उद्देश्य इस उत्तम मानव तक पहुंचना है . जब मनुष्य प्राण , मन , आत्मा देह के एकाकार रूप को समझ लेता है , उसे सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त हो जाता है तो वह सत-चित-आनंद ( सच्चिदानंद ) के अत्युत्तम स्तर को प्राप्त कर लेता है अर्थात ब्रह्ममय हो जाता है . यही मोक्ष है .
संसार में अनेक मनुष्य हैं जिनमें अमर आत्माएं स्थित हैं . ये आत्माएं उस अत्युत्तम आत्मा से सम्बंधित हैं . इससे अपनी आत्मा का एकात्म प्राप्त करना ही मनुष्य के जीवन का अंतिम लक्ष्य है . सांख्य योग दर्शन के अनुसार इस उत्तम आत्मा को हम तर्क द्वारा जान सकते हैं परन्तु अरविन्द आत्मसमर्पण को इसकी प्रथम शर्त मानते हैं .
अरविन्द सती सावित्री की शक्ति से बहुत प्रभावित थे . उसने अपनी शक्ति से अपने मृत पति सत्यवान को जीवित कर दिया था . सावित्री को अवतार नहीं माना जाता है .अतः अरविन्द का दृढ विचार था कि मनुष्य साधना द्वारा उस  शक्ति को प्राप्त कर सकता है जिससे व्यक्ति जन्म - मरण से परे,  अमर हो जाये . अरविन्द जीवन पर्यंत उसी अमरत्व की खोज में लगे रहे . वे अमरत्व तो नहीं प्राप्त कर सके परन्तु मृत्यु के चार दिन बाद तक उनके चेहरे पर कांति विद्यमान थी .उसके बाद ही उनका अंतिम संस्कार किया गया था .
 मनुष्य का जीवन स्तर उठाने के लिए उन्होंने अपने आश्रम पांडिचेरी में एक शिक्षा संस्थान प्रारंभ किया . उसमें उनके दर्शन के अनुसार अध्यात्म , योग एवं आधुनिक भौतिक विषयों की शिक्षा दी जाती है . बचपन में अंग्रेजियत में रंगे अरविन्द , युवावस्था  में  क्रन्तिकारी और बाद में एक सिद्ध पुरुष बन गए थे .








गुरुवार, 16 अगस्त 2012

हिंदी भाषा

                    हिंदी भाषा
नेता जी समझा गए , अंग्रेजी का मोल,
अंग्रेजी महान है , तू   अंग्रेजी ही बोल
अंग्रेजी में बात करेगा , तेरा सब पर रोब जमेगा ,
हिंदुस्तान की  धरती पर , अंग्रेजी में राज चलेगा .
देशी भाषा बढ़ न पायें  , भाषा को   विवाद  बनाया
परस्पर लड़ , सब कांतिहीन हुईं ,ऐसा माया जाल बिछाया .
अनेकों नेता ऐसे हैं जो अंग्रेजी में राज हैं करते ,
वोट मांगने जाते हैं जब, दो-चार वाक्य हिंदी में पढ़ते .
बालीवुड के सब अभिनेता , हिंदी फिल्मों से धन हैं पाते ,
उनसे कोई प्रश्न करे तो , अंग्रेजी में रोब जमाते .
राजनीति इनकी सब देखो ,एक दिवस हिंदी का डाला ,
तीन सौ चौंसठ दिन रहता है , अंग्रेजी का बोलबाला .
दुनियां में भारत ही ऐसा , बिन निज भाषा आगे बढ़ता ,
निज भाषा की घोर उपेक्षा ,विश्व का कोई देश न करता .
जिसकी स्व भाषा नहीं , क्या उसका आधार .
मुट्ठी भर पढ़ जायेंगे , रहेंगे शेष बेकार ..
अंग्रेजी आती नहीं , न निज भाषा का ज्ञान .
ऐसी भीड़ को ढो रहा , भारत देश महान ..
विदेशी भाषा में जो सोचें , देश के कारोबार .
समाधान क्या होएंगे , जिनका नहीं आधार .
अक्षम नेता हैं कर रहे , विदेशी धन की आस .
क्यों होगी हमसे हमदर्दी , होंगे सभी निराश ..
उठो देश के युवकों जागो , अपना भाग्य है तुम्हें बनाना .
निज  भाषा को विकसित कर दो , तुमको यदि आगे है जाना ..

मनुर्भव , आजादी का सपना

                          मनुर्भव
ईश्वर ने तुमको मनुज बनाया ,तुम ऐसे इन्सान बनो ,
अपने और पराये में तुम , कोई भेद नहीं समझो .
व्यवहार तुम्हारा ऐसा हो , जैसा तू न्य से चाहते हो .
स्वयं जियो और जीने दो का, सिद्धांत अटल तुम मानते हो .
पशु और मनुष्य में भेद प्रमुख , पशु सोच और बोल नहीं सकता .
पशु खा सकता है ,पी सकता है , सृजन नहीं कोई कर सकता .
निद्रा , वंश-वृद्धि ,और उदरपूर्ति ,पशु ,मानव में समान है होती .
पशु तुल्य जिनका जीवन होता , उनकी किस्मत है सोती रहती .
तुम मानव हो निर्माण करो ,सर्व जन हिताय कुछ काम करो .
अपनी आत्म शक्ति पहचानो , आदर्श कार्य निष्काम करो .
जीवन के क्षेत्र अनेकों हैं , जिनमें यश , धन और मान मिलेगा .
लगन से आगे बढ़ते जाओ, ईश्वर ख़ुद मार्ग प्रशस्त करेगा  ..
                  आजादी का सपना
श्रम ,मेधा ,मौलिक चिंतन से जन-जन का तुम जीवन भर दो .
हर नागरिक हो जाये शिक्षित , सच्चा नेक काम यह कर दो .
सब हों सुखी ,नीरोग सभी हों ,ऐसा तुम यह राष्ट्र बनाओ .
सर्व समाज को अपना समझे ,मानवता की अलख जगाओ.
लालच ,भ्रष्टाचार रहित हों , सब समझें  यह देश है अपना .
सब मिलकर रहें , एक हो जाएँ ,सच्चा हो आजादी का सपना .
न दरिद्र हों ,न हों अशिक्षित ,ईर्ष्या ,द्वेष ,विकार  न होवें ,
ढाई अक्षर प्रेम का समझें , देश में सबकी गरिमा होवे ..

राजनीति (kavita)

                   राजनीति
फूट डालो और राज करो , अंग्रेजों का सिद्धांत .
ऐसा सबको समझा रही ,नेताओं की जात   ..१..
भारत का इतिहास है इसका प्रत्यक्ष प्रमाण .
ईर्षा , द्वेष और शत्रुता , राजाओं की थी शान .२.
दो बिल्ली जैसे लड़ा करें ,देश के खेवनहार  .
बन्दर जैसे अंग्रेज थे , लूट  लिए भण्डार.३.
मीरजाफर और सिराजुद्दौला का ,है प्रसिद्द इतिहास .
कैसे मैं सत्ता हथियाऊं , अंग्रेजों से थी आस .४.
युद्ध में मीरजाफरबने , गद्दारों के सरदार .
सिराजुद्दौला को मरवा दिया ,कर गए बंटाढार .५.
अंग्रेजों की कठपुतली बने ,बंगाल के नए नवाब .
यह अनुभव उन्हें सिखा  गया , राजा बनने का ख़्वाब .६.
अंग्रेजों ने जब गौर से देखा देश का हाल .
चारों तरफ़ ही फूट थी , भारत था बेहाल .७.
१८५७ के संग्राम में अंग्रेजों का देकर साथ .
गद्दारों की कौम ने , मजबूत किये उनके हाथ .८.
आँख खोलकर देखिये , नवाब-राजाओं की नीति .
शोषण तक सीमित रही , गद्दारों की राजनीति .९.
अपने महल बना लिए , ऐय्याशी के चलते जाम .
जनशिक्षा और कल्याण के ,किये नहीं कोई काम .१०.
उनका सिद्धांत तो एक था , लोगों में रहे अज्ञान .
जितने वे निर्धन रहें ,उतनी राजा की शान .११.
रेल सड़क के नाम पर , उनके थे एक विचार ,.
ज्ञान -समृद्धि की वृद्धि से ,जनता होगी होशियार .१२.
जागरूक इन्सान तो , रखेगा तर्क की बात .
तर्क से नष्ट हो जाएगी , हम सामंतों की जात .13.
नव सामंतों ने इतिहास से , निकाला  यह निष्कर्ष .
लोगों में जितनी फूट हो , उतना बढेगा हर्ष .१४.
ये कूप -मंडूक बने रहें ,अज्ञान का हो विस्तार .
नेताओं की उतनी जीत है , जनता की जितनी हार .१५.
जाति -धर्म के नाम पर , बांटा  राष्ट्र -समाज .
अमीर - गरीब अलग रहें , ऐसे उनके काज .१६.
अमीर से धन लेते रहें , गरीब  के वोट चुराएं .
मीठ- मीठा बोलकर , पग-पग पर भेद बढाएं .१७.
चारों तरफ़ निहारिये , किसका रहा विश्वास .
बहुरूपिये भ्रष्टाचार ने , सबको किया निराश .१८.
अंग्रेजों इन नेताओं में , दो  ही मुख्य हैं भेद .
वे थे राजा के रूप में . ये हैं सेवकों के  भेष .१९.
अंग्रेजों ने धन लूटकर , समृद्ध किये अपने देश .
नेताओं ने धन लूटकर , समृद्ध किये परदेश.२०.