मंगलवार, 22 मई 2012

क्या कालिदास , टैगोर और इलीयट बेकार हैं ?

                        क्या कालिदास , टैगोर और  इलीयट बेकार हैं ?
  
   भारतीय प्रेस परिषद् के अध्यक्ष जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने अपने एक वक्तव्य में   कालिदास , टैगोर और  इलीयट जैसे कवि और साहित्य कारों को बेकार बताया है . न्याया धीश और वह भी भारत के सुप्रीम कोर्ट के  , प्रत्येक प्रकरण में न्याय करने का न केवल अधिकार रखते हैं , बल्कि सक्षम भी हैं .यदि उन्होंने  'बेकार' कहा है तो ऐसा ही होगा . उसे कहीं भी चुनौती नहीं दी जा सकती है .
         अभी तक लोग कालिदास को विश्व के श्रेष्ठ कवि और साहित्यकारों में गिनते आ रहे थे . रवींद्र नाथ टैगोर को भी भारतीय ही नहीं विश्व के साहित्यकारों में गिना जाता है और बेचारे  टी एस इलीयट को तो सारे अंग्रेजी साहित्यकार बीसवीं सदी का श्रेष्ठ साहित्य कार मानते हैं . इसी धोखे में रवींद्र नाथ टैगोर और इलीयट को नोबेल पुरस्कार भी दे डाले . अब वे दोनों इस दुनियां में नहीं हैं . अतः नोबेल पुरस्कार तो उनसे वापस लिए नहीं जा सकते , हाँ , अन्य आवश्यक कार्यवाही कर सकते हैं जैसे उनका साहित्य जब्त करना और प्रति बंधित करना . उनपर आरोप यह है कि उन्होंने सिर्फ मनोरंजन के लिए लिखा , गरीबों की  कोई सेवा नहीं की. अपने को अच्छा सभी कहते हैं , उनके साथी भी कहते हैं और अगर चमचे हुए तो वे भी कहते हैं . उनके वकील भी उन्हें निर्दोष साबित करने की भरसक कोशिश करते हैं परन्तु अच्छा जज अपराधी को पकड़ ही लेता है अब सिर्फ  उक्त तीन कवि - साहित्यकार ही पकड में नहीं आए हैं उनके ' जैसे' और लोग भी बेकार की लिस्ट में हैं   . मुझे तो अल्प ज्ञान है और जहाँ तक मैं समझता हूँ सूरदास और मीराबाई भी गरीबों के लिए कुछ नहीं बोले , तुलसीदास भी अपने राम का गुणगान करते रहे . प्रसाद, महादेवी वर्मा , पन्त तो प्रकृति में ईश्वर ही ढूंढते रहे , गरीबों की  ओर उन्हों ने देखने कि झूठी कोशिश  भी नहीं की .बिहारी तो वैसे ही दरबारी कवि थे . यदि ' जैसे ' साहित्यकारों कि सूची जारी कर दी जाती   तो युवकों का पढाई का ढेर सारा बोझ हल्का हो जाता . स्कूली बच्चों से न सही , युवा छात्रों से ही सही,बसते का बोझ कुछ  कम करने का काम  तो प्रारम्भ हो .
    कालिदास के सम्बन्ध में गुरुदेव टैगोर ने लिखा है ,
''हे अमर कालिदास ! क्या तुम्हारे सुख- दुःख और आशा- नैराश्य हमारी तरह नहीं थे ?क्या तुम्हारे समय में राजनीतिक खडयंत्रों और गुप्त आघात- प्रतिघात का चक्र हर समय नहीं चलता रहता था ?क्या उन्हें कभी हम लोगों कि तरह अपमान , अनादर अविश्वास और अन्याय सहन नहीं करना पड़ा . क्या तुम यथार्थ   जीवन के कठोर  अभाव से पीड़ित नहीं रहे ?क्या तुम्हें उस पीड़ा के कारण निर्मम रातें नहीं बितानी पडीं ?''
    उक्त कथन  से प्रतीत होता है कि उनकी कृतियाँ शांत और प्रशांत युग की  देन हैं . वह युग उलझनों , समस्याओं और विषमताओं से दूर था , बेचारे कालिदास को क्या मालूम था कि कोई ऐसा युग भी आयगा कि न्याधीश गरीबों के शोषण को नहीं रोक  पायेंगे , उन्हें न्याय नहीं दे पायेंगे और यह काम भी साहित्यकारों को करना पड़ेगा . उन्हें क्या पता था कि अन्याय के कारण गरीबों की हालात कितनी शोचनीय होगी . जिसका ज्ञान ही नहीं था , उसके लिए वे क्या लिखते ? इसलिए न्यायमूर्ति महोदय , वे क्षमा किये जाने के योग्य हैं .
       रवींद्र नाथ टैगोर साहित्यकार से अधिक दार्शनिक थे . अब दार्शनिक के लिए गरीब क्या और अमीर क्या ? अब देखिये न सुनने में आया था कि देश के युवराज राहुल गाँधी कुछ दिन गरीब बस्ती में क्या चले गए   कि झट से उनका गरीबी का कार्ड बन गया . गरीब के घर तो सरकारी राशन से ही रोटी बनेगी न .राशन कार्ड नहीं होगा तो उसके लिए अनाज कहाँ से आयगा ? और वैसे भी स्वतन्त्र भारत में छोटे- बड़े , गरीब- अमीर सभी लोग संविधान कि नजर में समान हैं . अतः इसका भेद करना उचित प्रतीत नहीं होता .
   इलियट साहब के बारे में मैं कुछ जानता नहीं हूँ . विदेशियों से मुझे क्या लेना -देना .
    सच बात तो यह है कि इन साहित्य कारों को दीन- दुनिया का कुछ पता नहीं चलता . आप इन्हें कानून की अच्छी से अच्छी किताब पढ़ने के लिए देकर देखिये , ये उसे बेकार कहकर किनारे धर देंगे . वे जज तो हैं नहीं कि बेकार पुस्तक को पढ़ने में अपना वक्त बर्बाद कर दें और और बाद में कह दें ' बेकार है '.
          मुझे लगा कि इस वक्तव्य के बाद साहित्यकार कुछ बोलेंगे ,परन्तु सभी छुप कर बैठ गए कि कहीं उनका नाम भी ' जैसे ' वाली हिट लिस्ट में न आ जाय . वैसे भी जज साहब आज जो गरीब- साहित्य लिखेगा , उसे गरीब भी नहीं पढ़ेगा . आज तो डर्टी पिक्चर का बोलबाला है . घर में रोना , कहानी में रोना , पिक्चर में रोना कौन पसंद करेगा . आज  गरीबों के नेताओं  में  कोई-कोई डर्टी  क्लिप देख कर ही तसल्ली कर लेते हैं और कुछ बाकायदा अपनी क्लिप बनवा कर आनंद लेते हैं . कम से कम आप जैसा इन्सान गरीबों के बारे में सोच रहा है और गरीबों के वास्ते इतने बड़े साहित्यकारों को कोसने का साहस भी कर रहा है यह हमारे देश का सौभाग्य है . देश  धन्य हुआ .
          

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