अंधेर नगरी चौपट राजा
एक गुरु था ,एक था चेला . चेला उनसे करबद्ध बोला .
मैं हूँ बालक, मैं अज्ञानी , धन अर्जित करने न जाऊं अकेला .
मुझे आप का साथ चाहिए , सदा ही आशीर्वाद चाहिए .
चलते गए वे दोनों ज्ञानी , पसंद न आता कहीं का पानी .
अंत में पहुचे ऐसे देश , नहीं था जिसका कोई भेष .
बकरी - घोड़े थे एक ही मोल , टके सेर भाजी और मेवे तोल.
चेले को भाया वह स्थान ,अब आगे नहीं करें प्रस्थान.
अंधेर नगरी चौपट राजा , टके सेर भाजी ,टके सेर खाजा .
गुरु ने चेले को खूब समझाया, पर कुछ भी उसकी समझ न आया .
इस राजा का विश्वास न करना , बिन कारण ही पड़ेगा मरना .
गुरु जी बात कुछ अच्छी बोलो , अशुभ अशुभ शब्द मत घोलो .
कितना अच्छा देश है देखो ,टके सेर काजू तुम ले लो .
कितना अच्छा यहाँ का राजा ,टके सेर भाजी ,टके सेर खाजा .
मैं तो रहूँगा इस धरती पर ,मेवा फल खाऊंगा जी भर .
रोज बजाऊँगा मैं बाजा ,टके सेर भाजी ,टके सेर खाजा
गुरु की बात न चेला माने , रहने लगे नगर अनजाने
एक दिवस इक चोर पकड़ाया, सीपाहि उसे दरबार में लाया.
राजा ने मृत्यु दण्ड सुनाया , उसके लिए फंदा बनवाया .
फंदा बड़ा बना कुछ ऐसा ,गर्दन हो भैंसे के जैसा .
चोर की गर्दन सुकडी - पतली , निकल गयी झट बिना ही अकड़ी .
न्याय प्रिय था वहां का राजा ,टके सेर भाजी ,टके सेर खाजा
राजा ने देखा जब फंदा , बोले लाओ मोटा बंदा .
मोटी ताज़ी गर्दन हो जिसकी ,फंदे में फंस जाये उसकी .
उसको ही फांसी लटकाओ ,शीघ्र मेरा आदेश बजाओ .
कितना अच्छा था वहां का राजा , टके सेर भाजी टके सेर खाजा .
सिपाही चारों ओर दौड़ते , मोटी गर्दन का व्यक्ति ढूढ़ते .
मोटा ताजा चेला जब पाया ,पकड़ उसे दरबार में लाया .
गुरु जी बोले काजू खा जा,कितना अच्छा है यह राजा.
टके सेर भाजी ,टके सेर खाजा .
चेला बोला ,'मैं चोर नहीं हूँ ,विनती सुन लो मेरे राजा ,
मैंने सिर्फ किया यह काम , खाया खूब टके सेर खाजा .
चेला सोचे कितना मूरख ,कैसा अन्यायी यहाँ का राजा
टके सेर भाजी ,टके सेर खाजा .
जो मेवा टके सेर न होता , क्यों मैं इतना खाता जाता ,
गुरु की बात न समझी उस दिन , समझ न पाया कैसा राजा .
चोर को छोड़ पकड़ा है मुझ को , कैसा मूर्ख यहाँ का राजा .
टके सेर भाजी ,टके सेर खाजा .
गुरु जी मेरी जान बचाओ . चरण पडूं मैं हूँ अज्ञानी ,
अब लालच मैं कभी करूँ न , कान पकड़ कर गलती मानी .
थोड़ी दया गुरु को आई , कान में जा इक बात बताई .
चेला बोला राजा से हंस कर , शीघ्र मुझे लटकाओ ऊपर ,
राजा चौंका यह देख नजारा , चेले को उसने शीघ्र पुकारा .
गुरु ने क्या उपदेश दिया है , जिसने तुम्हें प्रसन्न किया है .?
चेला बोला जल्दी लटकाओ , इसमें न कोई देर लगाओ .
पर राजा ने जिद थी ठानी , बोला,पहले बोलो गुरु बाणी .
चेले ने रहस्य यह खोला , राजा के कान में धीरे से बोला ,
यह क्षण जीवन का अमर काल है , मुझको मरना तत्काल है ,
जो इस क्षण में मृत्यु पायेगा , वह स-शरीर स्वर्ग जायेगा
राजा ने समझा समय का मूल्य , स्वयं गया फंदे पर झूल ,
तुरंत अकड़ गई गर्दन उसकी , सब बोले जयकार गुरु की
कितना मूर्ख था यहाँ का राजा ,टके सेर भाजी ,टके सेर खाजा .
धन्य गुरु यह देश बचाया , सबने समझी ईश्वर की माया .
मूर्ख लोग राजा को प्यारे ,योग्य मंत्री समझा के हारे
गुरु ने अच्छा देश बसाया , भले -बुरे का भेद बताया .
लोगों में विश्वास जगाया , सुन्दर सा एक देश बनाया .
( भारतेंदु हरीशचंद्र जी के प्रति पूर्ण सम्मान सहित )
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