रजत पथ के वर्ष ४ अंक ३ ( दिस-जन २०१३ ) के अंक में डा. ए.डी .ने भारत के नौकर शाहों कि मानसिक प्रवृत्ति एवं क्षमता का विश्लेषण करते हुए यह निष्कर्ष निकाला था कि ये देश का निर्माण नहीं कर सकते हैं .
३५ से ४० वर्ष तक नौकरी करने के बाद वे पुनः नेताओं के सामने बेरोजगार बनकर खड़े होते है कि उन्हें पुनः कहीं पर शाही नौकर बना दिया जाय ताकि वे पद , मान और धन का जीवन भर आनंद उठाते रहें . वित्तीय वर्ष २०१२-१३ समाप्त होते -होते झारखंड में यह तथ्य पूरी तरह से सत्य सिद्ध हो गया . राज्य में वर्ष २०१२-१३ के लिए योजना आकार १६३०० करोड़ रुपये का था जिसमें से वे एक तिहाई राशि व्यय ही नहीं कर पाए.३१ मार्च , रविवार के दिन ही लगभग १५०० करोड़ रुपये का आहरण किया गया .यह भी कहा जा रहा है कि केंद्र ने योजना व्यय के लिए कम धन दिया जिससे लगभग ३००० करोड़ रुपये कम प्राप्त हुए . क्या यह आश्चर्य नहीं है कि जहां अन्य राज्य व्यय के लिए अधिक धन की मांग करते रहते हैं , झारखंड जैसा पिछड़ा राज्य स्वीकृत व्यय का एक तिहाई भाग खर्च ही नहीं कर पाता है. १८ जनवरी २०१३ से वहां पर राष्ट्रपति शासन है अर्थात सारा कार्य मुख्य सचिव , प्रमुख सचिव, आयुक्तों आदि को ही करना था . परन्तु चार्ट में देखिये सभी विभागों ने अपना निर्धारित व्यय नहीं किया . अर्थात प्रायः सभी नौकर शाह शाही ठाट बात से तो रहते रहे परन्तु उन्होंने गरीब जनता के धन का उपयोग नहीं किया . महिला कल्याण विभाग कि एक महिला कर्मचारी ने जब यह समाचार पढ़ा तो बहुत दुखी होते हुए कहा , ‘’आँगन बाड़ी में महिलायें –बच्चे आते थे परन्तु उनके लिए आहार के लिए पैसे न होने से बेचारे वैसे ही चले जाते थे और देखो ये इतना-इतना रुपया धरे बैठे रहे और अब वापस कर रहे हैं .”
झारखंड में रूपये खर्च न कर पाने कि पुरानी परंपरा रही है जो पिछले १० वर्षो में सरेंडर किये गए अरबों रुपयों से स्पष्ट होती है .इससे तीन बाते स्पष्ट हो जाती हैं – पहली ,अयोग्य अधिकारियों को योजना बनाना ही नहीं आता .वे ए सी कमरों में बैठ कर अललटप्पू ढंग से कुछ भी बजट बना देते हैं .दूसरी उन्हें राज्य में चलने वाली योजनाओं का कोई ज्ञान नहीं है , न ही उन्हें कुछ जानने की आवश्यकता है .इसलिए (तीसरी)राज्य में जो व्यय किये जायेंगे घपलों और भ्रष्टाचार से घिरे होंगे . इतने छोटे से राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा अरबों रुपयों के घोटाले के लिए विश्व में प्रसिद्द हो चुके हैं. यदि वर्तमान में कोई नेता या अधिकारी भ्रष्टाचार में नाम नहीं कमा रहा है तो यह अवस्था भ्रष्टाचार कि संभावना को समाप्त नहीं करती है . काश ये नौकर न होकर योग्य प्रशासक होते तो आज देश कि यह स्थिति न होती .
अंग्रेजों ने भारत को एक मजबूत प्रशासनिक व्यवस्था दी थी जिसके कारण देश का शासन चल रहा है .काश ये प्रशासक योग्य होते तो देश कि यह स्थिति न होती .भारत में लोकतंत्र कभी रहा ही नहीं . प्रजातंत्र (जिसमें ५ वर्षो में जनता अपना राजा चुनकर पुनः असहाय प्रजा बन जाती है ) था, तो अब यह सामंतवाद में परिवर्तित हो गया है जिसमें देश के कुछ चुने हुए सामंत, क्षत्रप देश को बांटकर मौज कर रहे हैं . जनता सबको टुकुर-टुकुर देख रही है जैसे कोई बड़ा तमाशा होने वाला हो .
३५ से ४० वर्ष तक नौकरी करने के बाद वे पुनः नेताओं के सामने बेरोजगार बनकर खड़े होते है कि उन्हें पुनः कहीं पर शाही नौकर बना दिया जाय ताकि वे पद , मान और धन का जीवन भर आनंद उठाते रहें . वित्तीय वर्ष २०१२-१३ समाप्त होते -होते झारखंड में यह तथ्य पूरी तरह से सत्य सिद्ध हो गया . राज्य में वर्ष २०१२-१३ के लिए योजना आकार १६३०० करोड़ रुपये का था जिसमें से वे एक तिहाई राशि व्यय ही नहीं कर पाए.३१ मार्च , रविवार के दिन ही लगभग १५०० करोड़ रुपये का आहरण किया गया .यह भी कहा जा रहा है कि केंद्र ने योजना व्यय के लिए कम धन दिया जिससे लगभग ३००० करोड़ रुपये कम प्राप्त हुए . क्या यह आश्चर्य नहीं है कि जहां अन्य राज्य व्यय के लिए अधिक धन की मांग करते रहते हैं , झारखंड जैसा पिछड़ा राज्य स्वीकृत व्यय का एक तिहाई भाग खर्च ही नहीं कर पाता है. १८ जनवरी २०१३ से वहां पर राष्ट्रपति शासन है अर्थात सारा कार्य मुख्य सचिव , प्रमुख सचिव, आयुक्तों आदि को ही करना था . परन्तु चार्ट में देखिये सभी विभागों ने अपना निर्धारित व्यय नहीं किया . अर्थात प्रायः सभी नौकर शाह शाही ठाट बात से तो रहते रहे परन्तु उन्होंने गरीब जनता के धन का उपयोग नहीं किया . महिला कल्याण विभाग कि एक महिला कर्मचारी ने जब यह समाचार पढ़ा तो बहुत दुखी होते हुए कहा , ‘’आँगन बाड़ी में महिलायें –बच्चे आते थे परन्तु उनके लिए आहार के लिए पैसे न होने से बेचारे वैसे ही चले जाते थे और देखो ये इतना-इतना रुपया धरे बैठे रहे और अब वापस कर रहे हैं .”
झारखंड में रूपये खर्च न कर पाने कि पुरानी परंपरा रही है जो पिछले १० वर्षो में सरेंडर किये गए अरबों रुपयों से स्पष्ट होती है .इससे तीन बाते स्पष्ट हो जाती हैं – पहली ,अयोग्य अधिकारियों को योजना बनाना ही नहीं आता .वे ए सी कमरों में बैठ कर अललटप्पू ढंग से कुछ भी बजट बना देते हैं .दूसरी उन्हें राज्य में चलने वाली योजनाओं का कोई ज्ञान नहीं है , न ही उन्हें कुछ जानने की आवश्यकता है .इसलिए (तीसरी)राज्य में जो व्यय किये जायेंगे घपलों और भ्रष्टाचार से घिरे होंगे . इतने छोटे से राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा अरबों रुपयों के घोटाले के लिए विश्व में प्रसिद्द हो चुके हैं. यदि वर्तमान में कोई नेता या अधिकारी भ्रष्टाचार में नाम नहीं कमा रहा है तो यह अवस्था भ्रष्टाचार कि संभावना को समाप्त नहीं करती है . काश ये नौकर न होकर योग्य प्रशासक होते तो आज देश कि यह स्थिति न होती .
अंग्रेजों ने भारत को एक मजबूत प्रशासनिक व्यवस्था दी थी जिसके कारण देश का शासन चल रहा है .काश ये प्रशासक योग्य होते तो देश कि यह स्थिति न होती .भारत में लोकतंत्र कभी रहा ही नहीं . प्रजातंत्र (जिसमें ५ वर्षो में जनता अपना राजा चुनकर पुनः असहाय प्रजा बन जाती है ) था, तो अब यह सामंतवाद में परिवर्तित हो गया है जिसमें देश के कुछ चुने हुए सामंत, क्षत्रप देश को बांटकर मौज कर रहे हैं . जनता सबको टुकुर-टुकुर देख रही है जैसे कोई बड़ा तमाशा होने वाला हो .
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