शुक्रवार, 20 अप्रैल 2012

गुस्सा

                                                                 गुस्सा 

आज रवि का परीक्षा फल निकलना है . उसकी मम्मी ने उसे छः बजे ही उठा दिया था . स्कूल बस तो आठ बजे आएगी . अतः इतनी जल्दी उसका उठने का मन नहीं हो रहा था . पर मम्मी - पापा के बार- बार उठाने पर उसे उठना ही पड़ा रवि के मम्मी -पापा को पूरा भरोसा था कि इस बार उनका बेटा कक्षा  में अव्वल आयगा . वह पिछली मई से बहुत अच्छे ट्यूटरों  के पास कोचिंग  पढ़ने जा रहा था . था तो वह नवीं क्लास में पर पढने तीन अलग- अलग  जगह जाता था . रोहित सर से वह मैथ्स  पढता था , अल्फ्रेड सर  के यहाँ वह साइंस पढ़ने जाता था और इंग्लिश पढने उसे नितिन सर के पास जाना पड़ता था . ये तीनो ही टीचर  वास्तव में बहुत अच्छे  पढ़ाते  थे . सभी छात्रों में उनका     बहुत  नाम  था .वे छात्रों को एक -एक सवाल करवा देते .सभी प्रश्नों के उत्तर लिखवा देते .  नितिन सर ग्रामर के लिए बहुत प्रसिद्द थे . सप्ताह में ३-३ दिन ही  वह पढ़ने जाता था . तीनों जगह उसे हजार - हजार रूपये फीस के देने पड़ते थे . मम्मी तो  उसका बहुत ख्याल रखती थीं . वह जो चीज कहता , झट बना लातीं . हफ्ते में एक बार वह मम्मी ,पापा और बहन  के साथ माल      घूमने भी जाते तथा कभी, पिज्जा, कभी बर्गर . कभी छोले टिक्की आदि,   जो भी उसे पसंद होता  , खाते . पापा को लगता था कि पढ़ाई के साथ बच्चों को खुश भी रहना चाहिए ताकि उन्हें तनाव न हो . अतः वह उनकी हर फरमाइश पूरी करने का प्रयत्न करते . उनके पापा को यह दुःख हमेशा रहता था कि पैसों की कमी के कारण वे ट्यूशन नहीं जा पाते थे और इसलिए उतने नंबर नहीं ला पाते थे , जितना वे सोचते थे . अनेक छात्र -छात्राएं उनसे आगे निकाल जाते . टॉप तो रवि भी नहीं करता  था पर पहले १० बच्चों में उसकी गिनती होती थी .वे इतने से भी संतुष्ट थे .
          ' बेटा !जल्दी तैयार हो जाओ . आज रिजल्ट निकलना है . नहा कर मंदिर भी चले जाना . वहां पर मत्था टेक कर भगवान का आशीर्वाद ले लेना . भगवान की कृपा से सब अच्छा होता है . ' मम्मी रोज मंदिर जातीं , भगवान से दुआ मांगतीं कि बेटा अव्वल आये . रवि भी कभी- कभी मंदिर जाता रहता था . उसका स्वभाव भी अच्छा था . मम्मी- पापा की बात पर न नहीं करता था . रवि मन्दिर गया तो उस दिन उसे बहुत आनंद  आया . उस दिन मंदिर में पंडित जी भजन गा रहे थे ,
प्रभु जी मेरे ,मैं तो बालक तेरा ,
 तू ही है इक अन्तर्यामी . तू ही जीवन मेरा . प्रभु जी मेरे ...
सांस- सांस है तेरी दया से , कुछ भी नहीं है मेरा ,प्रभु जी मेरे ...
इस सेवक की  विनती सुन लो , प्यार से मेरी झोली भर दो ,
महके नित नया सवेरा ,प्रभु जी मेरे ....
रवि का मन भी गा उठा , 
आज परीक्षाफल है आना , प्रभुजी मेरे , मेरा मान बढ़ाना ,
परीक्षा में मैं  अव्वल आऊँ , घर में , रहे ख़ुशी का डेरा ,प्रभु जी मेरे ...
 मंदिर से लौटकर रवि का मन बहु प्रसन्न था . उसने नाश्ता किया और ख़ुशी- ख़ुशी बस में सवार होकर स्कूल गया . रिजल्ट घोषित हुआ . उसे ८५% अंक मिले थे , १४ बच्चों के अंक उससे ज्यादा थे . रवि को थोड़ा अटपटा तो लगा परन्तु उसके मित्र खुश हो रहे थे , भले ही उनके अंक और भी कम थे , रवि भी उनके साथ हँसता रहा , बातें करता रहा . मीनू को उससे कुछ अधिक ही लगाव था . मीनू के अंक उससे अधिक थे , वह चाहती थी कि रवि के अंक भी और छात्रों से अधिक होते , परन्तु अब तो जो था वह सबके सामने था . 
     रवि घर लौटा . परीक्षा फल सुनकर मम्मी ने धीरे से कहा अच्छा है . उन्हें डर लग रहा था कि पापा क्या सोच रहे थे और क्या हो गया .पापा का फोन आया . नंबर सुन कर वे बडबडाने लगे . रवि मम्मी का चेहरा देख रहा था . फिर मम्मी ने फोन रख दिया . शाम को पापा आफिस से लौटे . घर में घुसते ही तूफ़ान खड़ा हो गया . वे किसी की  बात सुनने को ही तैयार नहीं थे . उन्होंने रवि पर हाथ तो नहीं उठाया ,पर मानसिक कष्ट देने में कोई कमी भी नहीं की . उनके गुस्से का सबसे बड़ा कारण कारण आफिस में राम चंदर के द्वारा बांटी गई मिठाई थी . वे कहे जा रहे थे , ' राम चंदर  हमारे आफिस में एक छोटा सा क्लर्क है . उसकी हैसियत क्या है ? सबको मिठाई बाँट रहा था कि उसकी बेटी मीनू कक्षा में ९०% अंक लाई है . सबके सामने मुझे भी उसकी मिठाई खानी पड़ी और खुश होकर बधाई देनी पड़ी . इतना ही नहीं ऊपर से लोग मुझसे पूछने लगे कि साहब आपके रवि का रिजल्ट  क्या रहा . मैं अपने मित्रों से जब भी बात करता रवि की तारीफ़ करता कि पढ़ने में बहुत अच्छा है . यह सबको मालूम था . मैंने उल्टा सीधा बहाना तो बना दिया . पर मेरे चेहरे को देखकर उनमें खुसर- पुसर हो रही थी . अब कल मैं  क्या मुंह दिखाऊंगा ?.हमें रवि से कितनी उम्मीदें थी , सब पर पानी फिर गया .'
   रवि को रात को नींद नहीं आई . वह करवटें बदलता रहा . भोर होने वाली थी . वह चुपचाप उठा और धीरे से दरवाजा खोलकर बाहर निकल गया . उसे लगा कि अब पापा उसका विश्वास नहीं करेंगे , उसे जिन्दगी भर ऐसे ही डांट खानी पड़ेगी . इस जिंदगी से तो मर जाना ही अच्छा है . वह चल पड़ा , कहाँ जाना है , उसे मालूम नहीं था . उसके घर से लगभग पांच किलोमीटर दूर एक नदी बहती थी . . वह नदी की ओर चल पड़ा . वहां जाकर देखता है कि उसमें तो पानी ही सूख गया है ,डूबे कैसे ? उसे यह भी भय लग रहा था कि कहीं उठते ही  उसे न देख कर पापा ढूढ़ते हुए उसे पकड़ न ले जाँय ., कहीं और कोई न देख ले . यदि घर जाना ही पड़ा तो वह किस कमरे में , कैसे फांसी लगाएगा , यही बातें उसे उद्वेलित कर रही थीं . सुबह हो गई थी . वह धीरे-धीरे  बढ़ रहा था कि उसके कानो में मंदिर के घंटे कि आवाज सुनाई दी . वह थक तो रहा ही था , उसने सोचा थोड़ी देर इस मंदिर में बैठकर आराम कर लूं और सारी योजना बना लूं जो फेल न हो . 
 मंदिर में घंटे, आरती, भजन  का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा था क्योंकि  वह किसी और धुन में था . परन्तु थोड़ी देर सुस्ताने के बाद उसके दिमाग में कई क़िस्से दौड़ने लगे . उसके पिता उसके लिए महापुरुषो की  कहानियों की किताबें भी लाते थे और खुद भी सुनाते रहते थे . कभी उसे भगत सिंह की फांसी का ध्यान आता , कभी चंद्रशेखर आजाद का साहस और वीरता का ध्यान आता . कभी रानी लक्ष्मी बाई की वीरता आँखों के सामने से घूम  जाती . अचानक गान्धी जी का ध्यान आते ही वह सोचने लगा कि वह तो पढ़ने में बहुत होशियार भी नहीं थे परन्तु धैर्य पूर्वक साहस के साथ काम करते हुए उन्होंने कैसे अंग्रेजों से देश को आजाद करा दिया . इसी प्रकार अनेक विचारों में रवि गोते लगाता जा रहा था . रवि ! तुम यहाँ क्या कर रहे हो ? उसके पिता की आवाज उसके कानों में गूँज गई . उसने पलट कर देखा तो पापा उसके पास खड़े थे और उनका प्यार भरा हाथ उसके सिर पर था . रवि  पिता जी से लिपटकर रोने लगा . पिता के आंसू भी झर- झर बह रहे थे .
            घर   में सब सामान्य लग रहा था . सबके  दुःख पश्चाताप के आंसुओं में बह चुके थे . रवि अखबार पढ़ रहा था . एक खबर थी,'' छात्र परीक्षा में फेल होने के कारण फांसी पर झूला''. अगले पृष्ठ पर एक महात्मा जी का गीता पर प्रवचन छपा था ,''कर्म पर तुम्हारा अधिकार है , उसके फल पर नहीं . किसी भी काम को करने के लिए मनुष्य को अपनी पूरी कोशिश करनी  चाहिए , असफल होने पर निराश नहीं होना चाहिए , और अधिक श्रम से पुनः प्रयास करते रहना चाहिए जब तक सफलता न मिल जाये .जैसे गांधी जी ने अंग्रेजों के विरुद्ध अनेक बार आन्दोलन किये . वे असफलताओं से निराश नहीं हुए . क्रोध को नियंत्रण में रखते हुए  वे धैर्य पूर्वक पुनः पुनः प्रयास करते गए और अंत में देश स्वतन्त्र हो गया .''


 

     
   

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