रविवार, 11 जनवरी 2015

लोहड़ी गीत

     लोहड़ी गीत
आया लोहड़ी का त्यौहार,
हो आया लोहड़ी का त्यौहार
खुशियाँ खूब मनाओ यार,
नाचो-गाओ, बांटो प्यार,
मंगलमय हो यह त्यौहार,
कि आया लोहड़ी का त्यौहार,
हो आया लोहड़ी का त्यौहार.

बेटा दुल्हन ब्याह के लाया,
अच्छी बहू को लेकर आया,
घर में सब के मन को भाया,
सुखी रहे उनका संसार,
खुशियाँ खूब मनाओ यार,
नाचो-गाओ,  बांटो प्यार,
मंगलमय हो यह त्यौहार,
कि आया लोहड़ी का त्यौहार, हो आया लोहड़ी का त्यौहार.

बेटी ने सुन्दर दूल्हा पाया,
सीधा-सच्चा साथी पाया,
प्यार का मिलकर कदम बढ़ाया,
उमंगें छाएँ उनके द्वार,
मंगलमय हो यह त्यौहार,
कि आया लोहड़ी का त्यौहार, हो आया लोहड़ी का त्यौहार.

दोनों जीवन सुखी बिताएं,
उन्नति करें और बढ़ते जाएँ,
जल्दी सुन्दर बेटा आए,
जल्दी प्यारी बेटी आए,
छाए खुशियों की बहार,
मंगलमय हो यह त्यौहार,
कि आया लोहड़ी का त्यौहार, हो आया लोहड़ी का त्यौहार.

घर में सुन्दर बालक आया,
उसने सबका मन भरमाया,
आनंद-मंगल घर में छाया,
( घर में प्यारी बेटी आई,
कन्या सबके मन को भाई,
आनंद-खुशियाँ घर में छाईं,)
जगमग रौशन है घर-द्वार,
मंगलमय हो यह त्यौहार,
कि आया लोहड़ी का त्यौहार, हो आया लोहड़ी का त्यौहार.

माता-पिता को बहुत बधाई,
दादी-दादा को अनंत बधाई,
नानी-नाना को कोटि बधाई,
बढ़ें खुशियाँ लाख-हजार,
मंगलमय हो यह त्यौहार,
कि आया लोहड़ी का त्यौहार, हो आया लोहड़ी का त्यौहार.

भाई-बहनों को बधाई,
भैया-भाभी को बधाई,
बुआ-फूफा को बधाई,
चाचा-चाची को बधाई,
मामा-मामी को बधाई,
मौसी-मौसा को बधाई,
सारे रिश्तों को बधाई,
डाक्टर खत्री की बधाई,
बच्चों को देओ आशीर्वाद,
सारी जिन्दगी रहें आबाद,
खुशियों होवें अपरम्पार,
मंगलमय हो यह त्यौहार,
कि आया लोहड़ी का त्यौहार, हो आया लोहड़ी का त्यौहार.

सारे मिलकर भंगड़ा पाओ,
हंसो-गाओ धूम मचाओ,
गज़क-रेवड़ी खाते जाओ,
मूंगफली-मक्के साथ चबाओ,
खुशियों भरा है यह त्यौहार,
मंगलमय हो यह त्यौहार,
कि आया लोहड़ी का त्यौहार, हो आया लोहड़ी का त्यौहार.
डा. ए.डी.खत्री, भोपाल, म.प्र. (भारत)
विशेष: लोहड़ी खुशियों और बधाई का त्यौहार है. यह गीत पूरे समाज के लिए लिखा गया है. इसलिए इसमें बेटे की शादी, बेटी की शादी, पुत्र का होना और कन्या का होना, सभी को सम्मिलित किया गया है. घरेलू स्तर पर गाते समय उन खण्डों को छोड़ सकते हैं जो अप्रासंगिक हों.



मंगलवार, 4 नवंबर 2014

सामंती संघर्ष


                       सामंती संघर्ष
   भारत में लोकतंत्र नहीं है, प्रजातंत्र है जिसमें प्रजा ५ वर्षों बाद अपने राजा का चुनाव करके पुनः प्रजा बन जाती है और अगले चुनाव तक शासन पर काबिज सामंतों का अच्छा या बुरा शासन सहने के लिए बाध्य होती है. जबकि लोकतंत्र वह व्यवस्था है जिसकी स्थापना, संचालन एवं नियंत्रण जनता द्वारा होता है . वर्तमान व्यवस्था में सत्तासीन सामंत जनता को तरह-तरह के कष्ट देकर अपना मनोरंजन करते हैं, आनंद उठाते हैं. जैसे नगर निगम आपसे जबरन कर तो लेगी परन्तु सेवा दे या न दे, उसकी इच्छा. सड़क बनवाए न बनवाए उसकी मर्जी. सड़क घटिया बनवाये या बनवाते ही तोड़ दे, आपके घर के रास्ते बंद कर दे, कीचड़ मचा दे, उसकी इच्छा. आप चिल्लाते रहिए , वे आनंदित होते रहेंगे. आप ने आन्दोलन किया तो पकड़ कर मुकदमा कर देंगे. पुराने राजाओं-सामंतों की भांति आज भी क़ानून उनका है, न्याय उनका है.
    आदिकाल से सामंत परस्पर मित्रता और संघर्ष करके अपनी शक्ति बढ़ाते रहे हैं. आज भी वही कर रहे हैं. वर्तमान में मीडिया जिसे गठबंधन कहता है, वह गठबंधन नहीं, सामन्ती व्यवस्था है. पहले जब महाराजा या सम्राट कमजोर हो जाते थे तो उनके दूर राज्यों में बैठे राज्यपाल, गवर्नर स्वयं को स्वतन्त्र राजा घोषित कर देते थे. स्वतन्त्र हो गए तो राजा अन्यथा वे सामंत रहते थे भले ही उन्हें राजा की उपाधि दे दी गई हो. प्राचीन काल में राजा अपने सामंतों के परस्पर मिलने को बड़ी संदेह की दृष्टि से देखते थे . आज भी कोई दो-तीन नेता एक साथ बैठ जाएं तो मीडिया में उन्हीं की चर्चा होने लगती है, उनके मिलने के निहितार्थ ढूढ़े जाते हैं कि वे क्या गुल खिलाने वाले हैं. यदि वर्तमान राजनीतिक घटनाओं को सामंतवाद के सन्दर्भ में देखा जायगा तो अनेक अर्थ स्वयं ही स्पष्ट हो जायेंगे.
    वर्तमान में सर्वाधिक चर्चा भाजपा-शिवसेना के सन्दर्भ में हो रही है. शिवसेना के सर्वेसर्वा उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के स्थापित सामंत हैं. चुनाव के पूर्व वे अपनी शक्ति बढ़ाने के प्रयास में भाजपा को अधिक सीटें नहीं देना चाहते थे. उधर भाजपा (इसके सामंत स्वतन्त्र नहीं हैं.संघ के बिना वे अस्तित्वहीन हैं) अपनी शक्ति बढ़ाना चाहती थी. मित्रता को लांघते हुए दोनों ने अलग-अलग चुनाव लड़े ताकि वे अपनी वास्तविक शक्ति दिखा सकें. भाजपा भारी पड़ गई. अब वह शिव सेना की हेकड़ी समाप्त करना चाह  रही है ताकि वे जैसा कहें वैसा शासन चले. यदि शिव सेना को शामिल किया और वह भाजपा से इतर अपनी योजनाएं लागू करके अपनी प्रतिष्ठा और शक्ति बढ़ाने लगी, तो भाजपा का प्रभाव कम हो जायगा. शतरंज के खेल की भांति उनमें शह और मात का खेल मित्रता पूर्वक चल रहा है. परन्तु खेल में हारा व्यक्ति भी स्वयं को हारा हुआ तो मानता ही है. इस खेल के संघर्ष में भाजपा की क्षति भी हो सकती है . भविष्य में विपक्षी सामंत एक होकर उसे पीछे धकेल सकते हैं जैसे लोक सभा के बाद वाले उपचुनावों में हुआ था.
    महाराष्ट्र के चुनाव से  पूर्व कांग्रेस ( सोनिया गाँधी-राहुल ) और राष्ट्रवादी कांग्रेस (शरद पवार ) के सामंत एक साथ देश के शासन का सुख भोग रहे थे. लोकसभा की करारी हार के बाद पवार ने सोचा कि अलग होने से वे अधिक सीटें पा लेंगे जिससे मुख्यमंत्री उनके दल का बनेगा. परन्तु कांग्रेस और पवार दोनों के दल पिछड़ गए. सत्ता हाथ से चली गई. कहावत है भागते भूत की लंगोटी ही सही. कांग्रेस ने दिल्ली में हारने के बाद बिना शर्त नए सामंत केजरीवाल का समर्थन कर दिया था और स्वयं शून्य प्राय होते हुए भी केजरीवाल का मुंह कांग्रेस के भ्रष्टाचार से दूर भाजपा की ओर मोड़ दिया. उसी तर्ज पर पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस ने भी महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए भाजपा को बिना शर्त समर्थन दे दिया. इससे भाजपा को शक्ति मिल गई और वह शिवसेना से अधिक शक्ति के साथ मोल-तोल करने की स्थिति में आ गई. इससे इतना लाभ तो पवार कांग्रेस को मिलेगा ही कि भाजपा उनके नेताओं के विरुद्ध कार्यवाही से बचेगी. उनकी सामन्ती कड़क कम भले ही हो गई हो, कुछ तो बनी रहेगी.
   सामंतों का कुल सिद्धांत और उद्देश्य सत्ता में भागीदारी प्राप्त करना और प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष लाभ लूटना होता है, वह कहीं से भी मिले, कैसे भी मिले. लोकसभा चुनाव के पूर्व भाजपा द्वारा प्रधान मंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी के नाम की घोषणा के बाद बिहार के जनता दल (यू) के सामंत नितीश कुमार परेशान हो गए कि इससे भाजपा का स्तर बहुत बढ़ जायेगा. अतः वे उस भाजपा से अलग हो गए जिसके साथ मिलकर वे बिहार का चुनाव जीते थे और मिलकर सरकार चला रहे थे. बाद में उन्हें लगा कि उनकी शक्ति बहुत कम है. उन्होंने उस लालू और कांग्रेस को अपना साथी बना लिया जिन्हें कोस-कोस कर वे बिहार के मुख्यमंत्री बने थे. ये आज भाजपा के साथ  होते तो नितीश और शरद यादव की प्रतिष्ठा बहुत अधिक होती परन्तु बिना समझ के संघर्ष करने से दोनों की सामन्ती शक्ति घट गई. जबकि भाजपा के साथ जाकर राम बिलास पासवान ने अपनी खोई हुई सामन्ती पहचान को पुनः प्राप्त कर लिया.
  सामंतों का यह संघर्ष दो दलों के मध्य ही नहीं चलता है, एक दल के अन्दर भी चलता रहता है जहाँ एक नेता अपनी सामन्ती शक्ति बढ़ाने अपने दल के सर्वशक्तिमान सामंत को खुश करता रहता है , दूसरे सामंत की बुराई करता रहता है. भाजपा में नरेंद्र मोदी के उभरने की कहानी सबके सामने है . वे अपने दल के बड़े सामंतों लालकृष्ण अडवाणी, सुषमा स्वराज आदि को पीछे छोड़ते हुए किस प्रकार आगे बढ़े हैं और स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध किया है, यह सबने देखा है.

     

सोमवार, 3 नवंबर 2014

धारा ३७६ की नई व्याख्या


                        धारा ३७६ की नई व्याख्या
  समाचार पत्र से ज्ञात हुआ कि दिल्ली उच्च न्यायालय के जस्टिस प्रदीप नंद्रा जोग और जस्टिस मुक्ता गुप्ता ने ६५-७० वर्ष की एक महिला से हुए बलात्कार मामले में भारतीय दंड संहिता की नई व्याख्या प्रस्तुत करते हुए कहा है कि महिला की आयु ६५-७० वर्ष है. वह रजो निवृत्त हो चुकी है. रजोनिवृत्त महिला से सम्बन्ध बनाना जबरन बनाए गए सम्बन्ध ( फोर्सिबुल) की श्रेणी में नहीं आता है ,यह सम्बन्ध उग्र प्रकार का ( फोर्सफुल ) हो सकता है. अतः उस पर धारा ३७६ अर्थात बलात्कार का आरोप नहीं बनता है. बलात्कार के आरोप में निचली अदालत ने आरोपी को १० वर्ष के कठोर कारावास की सज़ा दी थी जिसे उन्होंने बरी कर दिया . इस पर कुछ महिला वकील एवं महिला संगठनों ने आपत्ति की है .
     भारत में तो वही न्याय है जिसे जन साधारण नहीं केवल जज ही समझते हैं. यदि जज अपराधी को दोष मुक्त कर रहे हैं तो उन्हें सज़ा कौन और कैसे दे सकता है . फ़िल्मी स्टाइल में कोई पेड हीरो तो यहाँ होता नहीं है जो पुलिस- न्यायालय को लांघता हुआ अपराधी को स्वयं दंड दे दे  या मार डाले. यदि किसी को लगता है कि निर्णय गलत है तो सर्वोच्च न्यायालय जा सकता है . इन्हीं टेढ़े - मेढ़े निर्णयों के कारण अंग्रेजी काल से यह क़ानून बना हुआ है कि  न्यायालय के निर्णय की आलोचना नहीं की जा सकती है भले ही वह कितना भी गलत हो . यदि कोई आलोचना करता है तो वह न्यायाधीश की नहीं, माननीय न्यायालय की अवमानना का दोषी होगा और उसे वही जज इच्छानुसार दंड दे सकते हैं . इसलिए हम तो नहीं कह सकते कि निर्णय गलत है. निर्णय देने वाले दो जजों में एक आदमी है, दूसरी औरत है. वही कह रही है कि बलात्कार नहीं हुआ तो दूसरा, तीसरा या स्वयं भुक्त भोगी कैसे कह सकती है कि बलात्कार हुआ.
    आपराधिक निर्णय सामान्य रूप से राज्य का विषय होते हैं . राज्य ही आरोपी को सज़ा दिलवाने के लिए अपना सरकारी वकील करते हैं जब कि आरोपी धन-बल के दम पर बड़ा से बड़ा वकील रखता है ताकि वह बच जाए. क्या इस प्रकरण में दिल्ली राज्य की सरकार सर्वोच्च न्यायालय जायेगी ? यदि वह नहीं जाती है तो कम से कम दिल्ली राज्य के लिए तो यह लागू हो ही जायगा कि रजो निवृत्त महिला से, जिसकी आयु ५० वर्ष या अधिक हो सकती है कोई भी पड़ोसी, रिश्तेदार या अपिरिचित व्यक्ति स्वेच्छानुसार फोर्सफुल सम्बन्ध बना सकेगा और पुलिस में उसकी रिपोर्ट भी दर्ज नहीं होगी क्योंकि इसे बलात्कार न मानकर हलके-फुल्के धक्का देने या चांटा मारने जैसा प्रकरण माना जायगा . कार्यालय या सेवा स्थान में अधीनस्थों क्या, महिला अधिकारीयों से कोई मुंह जबानी छेड़छाड़ करेगा तो उस पर प्रकरण दर्ज होगा परन्तु यदि वह फोर्सफुल सम्बन्ध बनाता है तो उसका कोई कुछ नहीं कर पायेगा. घर के अन्दर काम करने वाली महिलाओं का तो हाल और भी बद्तर हो जायेगा . वे बेचारी किससे शिकायत करेंगी और इस निर्णय के आगे उनकी बात कौन सुनेगा ? उतना ही भय तथा कथित बड़े घर की महिलाओं को भी रहेगा जो घर में नौकरों से काम करवाती है. कड़े क़ानून की परवाह न करते हुए जब लोग २-३ वर्ष की कन्याओं को नहीं छोड़ते हैं तो महिलाओं की बात कौन करे जहाँ क़ानून अपराधी के साथ होगा.
     कुछ माह पूर्व मीडिया के एक चैनेल में दिखाया गया था कि विदेशी लोग विशेषकर अफ्रीकी खुले आम सौदा कर रहे हैं कि किस प्रकार की कितनी लड़कियां कहाँ चाहिए. पुलिस को तो ये सब धंधे शुरू होने के पहले ही पता चल जाते हैं. यदि पुलिस का सहयोग न हो तो ऐसे धंधों में संलिप्त शरीफों की शराफ़त कब तक टिक सकती है ? आम पार्टी के समय क़ानून मंत्री सोमनाथ भारती को कुछ लड़कियों के पत्र प्राप्त हुए कि वे विदेशी चकलेबाज़ों के चंगुल में फंस गई हैं , उन्हें मुक्त कराया जाय. नए-नए बने क़ानून मंत्री भारती ने अति उत्साह दिखाते हुए ऐसे ही एक स्थान पर छापा मार दिया . परिणाम यह निकला कि धंधेबाज़ तो धंधे में मस्त हैं , भारती के विरुद्ध विदेशी महिला के घर में जबरन घुसने और परेशान  करने का प्रकरण दिल्ली पुलिस ने दायर कर दिया है.
   कुल मिलाकर स्थिति यह है कि पहले पुलिस अकेले दम पर जिन अनैतिक कार्यों को प्रोत्साहन दे रही थी, अब कानून भी उनके साथ आ गया है. अब देखना है कि भारतीय संस्कृति और गौरव की दुहाई देने वाले प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी इस प्रकरण को कितनी गंभीरता से लेते हैं . वे स्वयं पहल करते हुए धारा ३७६ की पुनर्व्याख्या संसद में करवाएंगे या इसको देश के और भी बड़े जजों की दया पर छोड़ देंगे. इस निर्णय ने तो समलैंगिकता से भी बहुत बड़ी छलांग लगा दी है जिसके नीचे महिलाएं ही नहीं पूरा देश और समाज आ गए है. स्वयं स्त्री और पुरुष जज भी आ गए हैं क्योंकि अपवाद छोड़कर पुरुष जजों के घर में भी प्रौढ़ एवं वृद्ध स्त्रियाँ होती है, नहीं हैं तो भविष्य में होंगी.  

सिमेस्टर प्रणाली का अंत

   म. प्र. के विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में स्नातक स्तर पर अंततः सिमेस्टर प्रणाली समाप्त करने की घोषणा कर दी गई है. सिमेस्टर प्रणाली २००८ में प्रारंभ करने के साथ ही विवादों में थी. अब जब उसने सम्पूर्ण शिक्षा व्यवस्र्था को आत्मसात कर लिया था, अचानक उसे समाप्त कर दिया गया. दो माह पूर्व कहा गया था कि छात्रों के मध्य मतदान करवाया जायगा कि इसे समाप्त करें या जारी रखें. फिर शासन ने स्वयं  ही निर्णय ले लिया. यदि मतदान करवाया जाता तो छात्र सिमेस्टर प्रणाली के पक्ष में ही मत देते . इसलिए नहीं कि यह अच्छी प्रणाली है अपितु इसलिए कि कुछ सुस्थापित महाविद्यालयों को छोड़कर अधिकांश महाविद्यालयों में छात्रों को मुफ्त के अंक मिल रहे थे. निजी महाविद्यालयों में तो अंक देना महाविद्यालयों और वहां कार्यरत शिक्षकों की मजबूरी थी अन्यथा वहां पढ़ेगा कौन ?
      सिमेस्टर प्रणाली को समाप्त क्यों करना पड़ा ? परीक्षा लेने और समय पर परिणाम देने में विश्वविद्यालयों के कुलसचिवों ने असमर्थता व्यक्त कर दी है . सरकार को चाहिए था कि इसे जारी रखती परन्तु उसने आगामी सत्र से इसे बंद करने की घोषणा कर दी. दरअसल जब से व्यापमं की परीक्षाओं के घोटाले सामने आये हैं जिसमें पूर्व उच्च शिक्षा मंत्री से लेकर अनेक अधिकारी जेल में पड़े हैं, परीक्षा घोटालों से कुलपति और कुलसचिव भयभीत होने लगे हैं. दूसरे, सिमेस्टर प्रणाली से उच्च शिक्षा की जो दुर्गति हुई है वह सर्व विदित है. केंद्र में कांग्रेस सरकार थी तो यह दुर्गति राज्य के लिए वरदान थी क्योंकि कांग्रेस पहले से ही शिक्षा व्यवस्था चौपट करने और उसका व्यवसायीकरण करने में रूचि ले रही थी. परन्तु मोदी सरकार आने से संदेह की स्थिति बनने लगी. वे सदैव योग्य और कुशल छात्रों के निर्माण की बात कर रहे हैं. संभव है कि राज्य सरकार को लगा हो कि पहले ही स्थिति सुधार ली जाए.
   २००८ में मैं शासकीय स्नातकोत्तर महविद्यालय सीहोर में प्राचार्य था. अप्रेल माह में बरकतुल्लाह विश्विद्यालय में प्राचार्यों और कुलसचिवों की सभा का आयोजन उच्च शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव एवं आयुक्त के द्वारा किया गया था. मैंने असुविधाओं के मध्य इसे प्रारम्भ करने का विरोध किया था जबकि अधिकांश महाविद्यालयों के प्राचार्यों ने आयुक्त के भय के कारण इसकी प्रशंसा की. वे प्राचार्य जानते ही नहीं थे कि इसमें क्या समस्याएँ आयेंगी . मैंने कहा कि वार्षिक परीक्षा करवाने में प्रायोगिक कार्यों के साथ तीन माह से अधिक समय लगता है . यदि उतनी ही बड़ी दो परीक्षाएं करवाई जाएँगी तो सात माह तो परीक्षा में ही लग जाएंगे. तीज-त्यौहार के और ग्रीष्मावकाश में भी एक माह तो लगेगा ही . दोनों सिमेस्टर में  छात्रों को प्रवेश देने में भी  में भी एक-एक माह का समय लगेगा. शिक्षक कुछ निजी अवकाश भी लेंगे. तो वर्ष में पढ़ने के दिन ही कितने मिलेंगे जब कि सरकार चाहती है कि न्यूनतम १८० दिनों की पढ़ाई कक्षाओं में होनी चाहिए. यह कैसे संभव होगा ? बाद में विश्विद्यालयों में सिमेस्टर के साथ वार्षिक परीक्षाएं भी करवाईं गईं अर्थात वर्ष भर परीक्षाएं ही होती रहीं. शासन ने आदेश दिए कि सतत परीक्षाओं के बावजूद सभी कक्षाएं भी नियमित रूप से लगनी चाहिए तो सरकारी फर्जीवाड़े की भांति सारी नियमित कक्षाएं भी होती रहीं. चार माह में प्रत्येक विषय के टेस्ट और मूल्यांकन भी हुए. सरकार अनेक छात्रवृत्तियां बांटती है . अतः अनेक छात्र छात्रवृत्तियों के लिए प्रवेश ले लेते हैं . सबका टेस्ट में सम्मिलित होना ही संभव नहीं होता था और यदि कोई फेल हो गया तो उसका दुबारा तब तक टेस्ट लेना होता था जब तक वह अच्छे अंकों में पास न हो जाए . जो एक टेस्ट में आ नहीं रहा है उसे अनेक टेस्टों में बुलाना , कई बार बुलाना कैसे संभव था. तत्कालीन उच्च शिक्षा आयुक्त ने वर्षों से पढ़ा रहे प्राध्यापकों को छात्रों की उपस्थिति लेना, टेस्ट लेना, नम्बर देना आदि सब कुछ सिखा दिया कि फर्जी रिकार्ड कैसे बनाने हैं . सिमेस्टर दौड़ने लगे , बिना परेशानी के छात्र घर बैठे पास होने लगे . विज्ञान विषयों के छात्रों के उन महाविद्यालयों में भी  भी नियमित टेस्ट होते रहे जहाँ उन विषयों के एक भी नियमित शिक्षक नहीं थे. प्रोजेक्ट वर्क के लिए प्रदेश भर में दुकानें खुल गईं . ले दे कर छात्रों ने तीन महीने का प्रशिक्षण भी प्राप्त कर लिया. उसके अंक भी बटोर लिए. छात्र खुश ही खुश . सरकार की योजना सफल .
  उक्त बैठक में मैंने दूसरी समस्या रखी कि इतनी सारी परीक्षाओं का परीक्षाफल समय पर कैसे निकलेगा. उस समय बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय में एक वर्षीय पीजीडीसीए पाठ्यक्रम  में सिमेस्टर प्रणाली लागू थी जिसमें एक-डेढ़ हजार छात्र पढ़ते थे . उसका परीक्षाफल दो वर्ष के पूर्व नहीं आ पाता था. मैंने आयुक्त से कहा कि जब इतने कम छात्रों के परीक्षाफल में एक के स्थान पर दो वर्ष लगते हैं तो  सिमेस्टर प्रणाली में हज़ारों छात्रों का परीक्षाफल समय पर कैसे निकलेगा ? आयुक्त ने बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय के कुलसचिव संजय तिवारी से पूछा कि परीक्षा की क्या स्थिति होगी . आयुक्त का भयंकर भय था . कुलसचिव ने बिना कुछ सोचे समझे कह  दिया कि वे सब सिमेस्टर परीक्षाएं एक माह में करा लेंगे . मेरी आपत्तियां दरकिनार करते हुए जुलाई २००८ में  सिमेस्टर प्रणाली लागू कर दी गई.  उस समय मेरे महाविद्यालय में बॉटनी विभाग में मात्र एक प्राध्यापिका थी . बी.एस-सी. प्रथम वर्ष से लेकर एम.एस-सी. तक ४०० छात्र थे. एक पद  और था जिस पर नियुक्ति निश्चित नहीं रहती थी. मैं उस प्राध्यापिका से सभी कक्षाएं लेने, उनमे नियमित टेस्ट करवाने, अंक देने , पढ़ाने, प्रायोगिक कार्य करवाने के लिए कैसे कह सकता था जो पूर्णतः असंभव है ? मेरे न रहने पर सब कार्य वहां ही नहीं पूरे प्रदेश में सुचारू रूप से चुपचाप होते रहे.  
   प्रदेश में अगले तीन वर्षों तक बिना पढ़ाई के परीक्षाएं होती रहीं . परीक्षाफल एक वर्ष विलम्ब से आते रहे. उसके बाद सिमेस्टर प्रणाली में एक विषय का एक प्रश्न पत्र किया गया जैसा मैंने प्रारम्भ में कहा था. परन्तु तब भी परीक्षाफल बहुत विलम्ब से निकलते रहे. कभी-कभी तो ऐसा भी हुआ कि एक सिमेस्टर के  परीक्षा फल निकलने के एक माह की अंदर ही अगले  सिमेस्टर की परीक्षाएं प्रारम्भ हो गईं. बिना पढ़े छात्र पास भी होते गए. सिमेस्टर प्रणाली से यह तो सिद्ध हो गया है विद्यार्थी के भविष्य निर्माण में शिक्षक की आवश्यकता नहीं है. सबको एकलव्य बना दिया.
  सिमेस्टर प्रणाली भोपाल के उच्च शिक्षा उत्कृष्टता संस्थान , शासकीय सरोजिनी नायडू स्नातकोत्तर महाविद्यालय और शासकीय महारानी लक्ष्मी बाई स्नातकोत्तर महविद्यालयों में अनेक वर्षों से सफलता पूर्वक चल रही है क्योंकि वहां प्राध्यापकों की संख्या पर्याप्त है . प्रदेश के अन्य  महाविद्यालयों में भी शिक्षक : छात्र का अनुपात १:३० किया जाता तथा महविद्यालय स्वायत्त बनाए जाते जिससे वे अपने महविद्यालयों की परीक्षाओं के लिए विश्वविद्यालय पर निर्भर न रहते तो छात्रों का भला होता तथा सिमेस्टर प्रणाली से राज्य का शिक्षा स्तर उठता . यदि वर्तमान में म.प्र. शासन का उद्देश्य पुनः शिक्षा व्यवस्था को सुधारना है तो सिमेस्टर प्रणाली की समाप्ति के निर्णय का स्वागत किया जाना चाहिए.

                                   


बुधवार, 29 अक्टूबर 2014

व्यक्तित्व के तत्व

                                  व्यक्तित्व  के तत्व
    किसी व्यक्ति का व्यक्तित्व उस व्यक्ति के गुणों, उसके व्यवहार एवं उसे प्राप्त अवसरों का फलन ( सामूहिक अभिव्यक्ति ) होता है जो परिस्थितियों के अनुसार उसकी क्षमता के रूप में प्रगट होता है तथा लोगों को प्रभावित करता है.  व्यक्ति जितने अधिक लोगों को जितना अधिक प्रभावित करता है, उसका व्यक्तित्व उतना ही प्रभावशाली माना जाता है. सामान्य रूप से व्यक्तित्व का विकास आयु बढ़ने के साथ धीरे-धीरे प्रौढ़ावस्था तक  होता रहता है परन्तु विशेष अवसर प्राप्त होने पर, चुनौतियों का सफलता पूर्वक सामना करने पर  व्यक्ति का व्यक्तित्व अचानक अप्रत्याशित रूप से कई गुना बढ़ जाता है.
 जहाँ तक व्यक्ति के व्यवहार का प्रश्न है तो धीरे-धीरे प्रत्येक व्यक्ति का व्यवहार एक निश्चित पैटर्न धारण कर लेता है . जैसे एक गृहणी का कार्य प्रातः उठकर बच्चों को उठाना, तैयार करना, उनका नाश्ता-भोजन बनाना आदि रहता है . जब वह किसी से मिलती है तो उसकी बातों का दायरा भी प्रायः निश्चित रहता है , अपने ससुराल और मायके वालों से उसका व्यवहार भी निश्चित सा होता है . उसका खाना -पीना, पहनावा आदि भी विशिष्ट होते हैं और ये सब मिलकर उसका व्यक्तित्व निर्धारित करते हैं . सामान्य रूप से प्रत्येक व्यक्ति की प्रकृति और  व्यवहार एक निश्चित पैटर्न का बन जाता है, उसमें संगतता पाई जाती है अर्थात वह प्रायः एक सामान व्यवहार करता है  और वही उस व्यक्ति की विशिष्टता है , उसकी पहचान है , उसका व्यक्तित्व है . यद्यपि व्यक्ति का व्यक्तित्व प्रायः निश्चित होता है परन्तु भिन्न-भिन्न संबंधों के कारण उसका व्यवहार कुछ लोगों से अलग प्रकार का हो सकता है जिससे वे व्यक्ति भी उसके व्यक्तित्व को भिन्न-भिन्न रूपों में देखते हैं . जया ललिता को भ्रष्टाचार के आरोप में सज़ा एवं अर्थदंड दिया गया . न्यायालय एवं दूर के लोगों के लिए वह दोषी हो सकती है परन्तु उसके लाखों अनुयायी उसे आज भी अपनी अराध्य देवी मानते हैं . उसे जेल भेजने पर अनेक लोगों ने प्रदर्शन किए तथा कुछ लोगों ने दुःख के कारण आत्महत्या तक कर ली. अतः व्यक्ति के व्यक्तित्व के विभिन्न आयाम या पक्ष होते हैं . एक व्यक्ति कलेक्टर है. मंत्री के लिए वह एक महत्वपूर्ण अधिकारी है, कर्मचारियों के लिए बहुत शक्तिशाली अधिकारी है, पत्नी के लिए पति है, बच्चों का पिता है, मित्रों का मित्र है. जिस व्यक्ति के प्रति उसका व्यवहार जैसा होता है वह उसका वैसा ही व्यक्तित्व देखता और समझता है. ठग को धन देते समय व्यक्ति उसे अच्छा एवं हितैषी मानकर ही देता है परन्तु उसके धन लेकर भाग जाने पर ही उसे उसका वास्तविक व्यक्तित्व समझ में आता है . इसके लिए तुलसी दस ने ठीक ही लिखा है , “जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी  तिन तैसी .”
  व्यक्तित्व को संक्षेप में निम्नानुसार व्यक्त कर सकते हैं :
 ( यहाँ पर दर्शक के दृष्टिकोण को f एक फलन ( फंक्शन ) के रूप में व्यक्त किया गया है अर्थात अन्य व्यक्ति निम्नलिखित कोष्ठकों  में दिए गए किसी व्यक्तित्व के तत्वों (गुणों) को समूहिक रूप से किस प्रकार देखते हैं . व्यक्तित्व, व्यक्ति, व्यवहार और अवसर उनके सामने f के आगे कोष्ठक में दिए गए तत्वों के संयोजन पर निर्भर करते हैं. 
व्यक्तित्व =     f ( व्यक्ति, व्यवहार, अवसर एवं चुनौतियाँ )
जहाँ पर,
व्यक्ति  =      f ( आत्मशक्ति, भाग्य, अनुवांशिकता, पद, कार्य, धन-संपत्ति, आदर्श, विचार,
                   अंतर्मुखी-बहिर्मुखी प्रकृति,  व्यक्ति के सभी शारीरिक-मानसिक गुण )
व्यवहार   =    f ( चरित्र (आचरण), परिस्थितियां, शारीरिक- मानसिक अनुक्रियाएं , गत्यात्मकता, संगतता  ) 
अवसर    =    f (अवसर, चुनौतियाँ )  
    जब किसी व्यक्ति के सम्बन्ध में विचार किया जाता है तो उसका नाम ध्यान में आते ही उसके रूप, रंग, डील-डौल, उसके गुण, उसका पद, उसके कार्य, परिवार, आदि अनेक तत्वों का मिला-जुला रूप मन में उभर आता है . व्यक्तित्व को समझने के लिए व्यक्ति, व्यवहार एवं अवसरों के लिए उक्त कोष्ठकों में दिए गए सभी तत्वों पर पृथक-पृथक विचार करना होगा .
                                  व्यक्ति के तत्व
आत्मशक्ति : आत्मशक्ति मनुष्य की सबसे बड़ी विशेषता है . इसी से वह प्रबल इच्छा शक्ति रखता है और उसे पूरी करने की क्षमता रखता है. आत्मशक्ति विहीन व्यक्ति केवल भाग्य के भरोसे उसी प्रकार रहते हैं जैसे पशु रहते हैं. ज्ञान-विज्ञान, तकनीकी, उद्योग, व्यवसाय, साहित्य, कला, धर्म, संस्कृति, दर्शन,  इतिहास, राजनीति, खेल, युद्ध, मीडिया आदि सभी क्षेत्रों में अप्रत्याशित परिवर्तन और विकास उन्हीं  लोगों ने किए हैं जिनमें प्रबल आत्म शक्ति थी. उन्होंने विचार किए, लक्ष्य निर्धारित किए और बिना कोई संदेह किए, किन्तु-परन्तु या कोई शर्त लगाए, उन्हें पूरा करने में जुट गए . उन्होंने अपने लक्ष्य पूरे किए और जो लोग पूरे नहीं कर पाए,  वे आने वालों के लिए निश्चित मार्ग बना गए.   
भाग्य : व्यक्तित्व निर्माण में कभी-कभी भाग्य का प्रभाव भी  बहुत अधिक होता है . मलाला यूसुफजई का उदाहरण इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है . आतंकवादी लोगों को सामूहिक रूप से धमकी देते रहते हैं और जो उनका कहना नहीं मानते, उन्हें धमकाते हैं, उनकी हत्याएं तक कर देते हैं. आतंकवादियों ने मलाला को कोई अलग से धमकी नहीं  दी थी और न ही मलाला ने उनके फ़तवे के विरोध में शिक्षा का कोई अभियान चलाया था . आतंकवादियों की गोली से अनेक लोग मरते रहते हैं . दो अन्य छात्राओं  के साथ उसे भी गोली लगी और वह इतनी चर्चा में आ गई कि उसे विश्वस्तरीय समर्थन प्राप्त हो गया. उसे ब्रिटेन जाने, वहां रहने के साथ में चिकित्सा सुविधाएँ भी मिल गईं . उसे लड़कियों की शिक्षा का अग्रदूत मान लिया गया और १७ वर्ष की आयु  में नोबेल पुरस्कार भी मिल गया जब कि अनेक लोग जीवन भर सामाजिक कार्य करते रहते हैं और अपने क्षेत्र में भी प्रसिद्धि प्राप्त नहीं कर पाते हैं. कैलाश सत्यार्थी विगत ३४ वर्षों से बच्चों का बचपन संवारने का काम कर रहे हैं तथा  हज़ारों बच्चों का जीवन संवार चुके हैं . उन्होंने अनेक बार माफियाओं और गुंडों के घातक हमले सहे हैं, अनेक बार गंभीर रूप से घायल हुए हैं. उन्हें अब नोबेल पुरस्कार मिला है . उन्हें देश में ही कितने लोग जानते थे ? मलाला के पुरस्कार की व्याख्या उसके भाग्य के अतिरिक्त किसी तत्व से नहीं की जा सकती है . डा. भीमराव अम्बेडकर ने भारत में करोड़ों दलितों का उद्धार किया परन्तु नोबेल पुरस्कार के लिए उनके नाम की चर्चा तक नहीं की गई. ऐसे अनेक व्यक्ति हैं जिन्होंने अपने भाग्य के कारण पद, धन एवं सम्मान पाए हैं परन्तु भाग्य से ही सब काम होते हों, ऐसा नहीं  है. अनेक लोगों ने अपने कार्यों और परिश्रम के द्वारा प्रसिद्धि पाई है. प्रसिद्धि से व्यक्तित्व स्वयमेव प्रगट होने लगता है और अनेक लोग उसका अनुकरण करने लगते हैं .
अनुवांशिकता : व्यक्ति के जीवन में उसके परिवार का बहुत बड़ा योगदान होता है . राजवंश के लोगों का व्यक्तित्व सबसे अलग रहा है . पहले तो राजा या राजकुमार के दर्शन मात्र से ही लोग गद्गद हो जाते थे . फ़्रांस की क्रांति में राजा लुईस सोलहवें तथा उनकी महारानी के साथ ही अनेक सामंतों की हत्या कर दी गई थी . उसके २६ वर्ष बाद जब नेपोलियन अंतिम रूप से हार गया, फ़्रांस के राजा के दूर के भाई लुईस अठारहवें को ढूंढ कर फ़्रांस की सत्ता सौंपी गई . भारत में स्वतंत्रता संग्राम में संघर्ष के कारण नेहरु जी की बहुत प्रतिष्ठा थी . भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में उन्हें बहुत सम्मान मिला . उनके बाद उनके वंशजों, इंदिरा गाँधी, राजीव गाँधी और सोनिया गाँधी को अपनी पारिवारिक पृष्ठ भूमि के कारण सत्ता मिलती रही . उनके व्यक्तित्व का प्रभाव जन सामान्य पर बहुत अधिक पड़ा.  परिवार के आधार पर ही मजदूर के बेटे का व्यक्तित्व भी मजदूर जैसा ही माना जाता है कि वह भी बड़ा होकर ऐसे ही मजदूरी करता रहेगा . परन्तु सभी क्षेत्रों में अनेक लोग ऐसे हैं जिन्होंने गरीबी में रहते हुए भी अपने परिश्रम और शिक्षा से  उच्च स्थान प्राप्त किए और अपना व्यक्तित्व अनुकरणीय बनाया.
पद : बड़े पद से भी व्यक्ति का व्यक्तित्व प्रभावशाली हो जाता है. बड़े प्रशासनिक अधिकारी का अपने पूरे विभाग में दबदबा रहता है. बड़े एवं नामी चिकित्सालयों में पदस्थ चिकित्सकों का व्यक्तिव उनके पद से ही स्वीकार कर लिया जाता है. भारत में तो पुलिस विभाग में पदस्थ अधिकारीयों का विशेष रुतबा उनके पदों के कारण  ही होता है . पद से प्राप्त व्यक्तित्व के कारण मूर्ख एवं धूर्त अधिकारी भी सम्मान पाते रहते हैं.
धन-संपत्ति : जिनके पास धन एवं संपत्ति अधिक होती है उनका व्यक्तित्व भी अपना विशेष प्रभाव रखता है .
कार्य : कार्य व्यक्तित्व का सबसे प्रभावशाली तत्व है. अच्छे कार्यों से अर्जित व्यक्तित्व से सम्मान तथा बुरे कार्यों से अर्जित व्यक्तित्व से बदनामी मिलती है. कार्य ऐसा तत्व है जिसे व्यक्ति अपने श्रम एवं बुद्धि से संपन्न कर सकता है . जो व्यक्ति किसी रोजगार में लगा हुआ है , किसी सेवा या व्यवसाय में लगा हुआ है , समाज में उसका व्यक्तित्व उस व्यक्ति की तुलना में बहुत अच्छा माना जाता है जो बेरोजगार है, अपने जीवन -यापन के लिए पराश्रित है . कार्य से अर्जित धन की मात्रा अधिक होने पर व्यक्ति का सम्मान अधिक होता है . परन्तु अनेक कार्य ऐसे होते हैं जहाँ पद एवं धन नहीं , कार्य ही व्यक्तित्व को ऊंचाइयां प्रदान करता है और उसे अत्यंत लोकप्रिय बनाता है. खिलाड़ी, अभिनेता, धर्मगुरु, योद्धा, वैज्ञानिक, साहित्यकार, गायक, गीतकार संगीतकार, फिल्म निर्माता, उद्यमी, मीडिया के प्रभावशाली पत्रकार, शिक्षक जिनके छात्र अच्छे पद प्राप्त करते रहते हों, शासक  और अनेक नेता आदि भी अपने अच्छे प्रदर्शनों से जन-जन के दिल में समा जाते हैं . तमिलनाडु की पूर्व मुख्य मंत्री जया ललिता यद्यपि न्यायलय द्वारा अपराधी घोषित हो गई हैं, परन्तु अपने कार्यों के कारण उनका जो व्यक्तित्व निर्मित हुआ है उससे उनके लाखों अनुयायी आज भी उनके भक्त हैं और वे उनकी आराध्य देवी हैं . कार्य व्यक्ति के मानसिक विचारों और शारीरिक अनुक्रियाओं की अभिव्यक्ति होते हैं . अतः व्यक्ति के छोटे- बड़े सभी कार्य उसके व्यक्तित्व निर्माण में योगदान देते हैं . यदि एक धनवान व्यक्ति बहुत कंजूस हो तो उसका  व्यक्तित्व उसकी कंजूसी से प्रभावित माना जायगा .      
आदर्श एवं विचार : व्यक्ति के व्यक्तित्व पर उसके जीवन के आदर्शों और विचारों का भी बहुत प्रभाव पड़ता है . चन्द्र शेखर आज़ाद ने बाल्यावस्था में ही जज के सामने जितने साहस के साथ उत्तर दिए थे और कोड़े खाते हुए भी ‘भारत माता की जय’ के नारे लगाते रहे, उनका व्यक्तित्व उसी दिन से लोगों के मस्तिष्क पर छा गया था. अपने आदर्श एवं विचारों के कारण गांधीजी सबके लिए सम्मानित रहे, आज भी हैं और आने वाले समय में भी रहेंगे. विचारों एवं कार्यों के कारण ही बाबा साहेब अम्बेडकर भारत में करोड़ों लोगो के पूज्य हैं . जिसके अपने कोई आदर्श या विचार नहीं होते हैं , उसका व्यक्तित्व अति सामान्य होता है तथा उस पर कोई ध्यान नहीं देता है . अपने आदर्श एवं विचारों के अनुसार लोग विभिन्न क्षेत्रों में अपना भविष्य बनाते हैं .
शारीरिक एवं मानसिक गुण : व्यक्तित्व का प्रथम प्रभाव व्यक्ति के शरीर, रूप, रंग, वेशभूषा और शरीर एवं मुख की अभिव्यक्ति ( बॉडी लैंग्वेज) का पड़ता है . उसके पश्चात प्रभाव उसकी भाषा का, सम्प्रेष्ण का होता है . विचारों की अभिव्यक्ति, भाषा तथा  सम्प्रेषण का प्रभाव भी विभिन्न प्रकार से पड़ता है . मधुर वाणी, श्रोता की रूचि के विचार, तर्क सम्मत विचार,  ज्ञान युक्त वाणी  आदि का प्रभाव व्यक्तित्व को विशेष स्तर प्रदान करता है. जिनकी अभिव्यक्ति एवं सम्प्रेषण क्षमता अच्छी होती है उनका व्यक्तित्व प्रभावशाली हो जाता है . वे अपने विचारों से दूसरों को बहुत प्रभावित कर देते हैं तथा लोकप्रिय होते हैं. ऐसे व्यक्ति अच्छे व्यवसायी, नेता, प्रवाचक, वकील, उद्घोषक आदि होते हैं.
   व्यक्ति में सामान्य रूप से  जैविक गुणों (अपनी चिंता करना), मानवीय गुणों (सहयोग की भावना, दूरदृष्टि) अथवा आसुरी गुणों ( दूसरों को कष्ट देना) का जितना प्रभाव होता है, उसका व्यक्तित्व उसी के अनुरूप निर्मित हो जाता है .
   व्यक्ति के शारीरिक-मानसिक  गुणों में उसके स्वास्थ्य, मस्तिष्क की संरचना, बुद्धि, मेधा, स्मृति, विद्या, ज्ञान, कौशल, विवेक आदि तथा उसके संवेगों, भावनाओं, अभिप्रेरणाओं आदि  का उसके व्यक्तित्व पर विशेष प्रभाव पड़ता है.
                          व्यवहार के तत्व
चरित्र : व्यक्ति के चरित्र एवं आचरण का व्यक्तित्व पर विशेष प्रभाव पड़ता है . अनेक गुण होते हुए भी चरित्रहीन एवं आचरण विहीन व्यक्ति को लोग पसंद नहीं करते हैं .
शारीरिक-मानसिक अनुक्रियाएं : व्यक्ति के चलने, उठने-बैठने, खाने-पीने, कपड़े पहनने  आदि शारीरिक गुण तथा, काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, साहस, कायरता, वीरता, ढुलमुल व्यवहार, कामचोर, कार्य में तत्पर, ईमानदार, बेईमान, लापरवाह आदि अनेक गुण व्यक्ति के व्यवहार के प्रमुख तत्व हैं तथा उसे पृथक विशिष्टता प्रदान करते हैं .
परिस्थितियां : व्यक्ति स्वयं को परिस्थितियों के कितना अनुकूल बना सकता है, परिस्थितियों के अनुसार व्यक्ति कैसा व्यवहार करता है, अन्य लोगों से सहयोग करता है या नहीं, यह उसके व्यक्तित्व की प्रमुख विशेषता मानी जाती है .                 
गत्यात्मकता : व्यक्ति के गुण और व्यवहारों में कोई निश्चित क्रम या सम्बन्ध नहीं पाया जाता है और वे किसी भी रूप में प्रगट हो सकते हैं . कोई भी अच्छा या बुरा गुण किसी दूसरे गुण से परिस्थितियों एवं अवसरों के अनुसार जुड़-घट सकता है. एक व्यक्ति बहुत ज्ञानी होने के साथ लालची, झगड़ालू या चरित्रहीन भी हो सकता है. सगे सम्बन्धियों में बहुत प्रेम होता है परन्तु किसी विवाद में वे एक-दूसरे की कब हत्या कर दें, कहा नहीं जा सकता . कर्मचारी संघों के नेता कर्मचारियों के सामने शासन या अधिकारियों के विरुद्ध अनेक बातें करते हैं परन्तु अनेक नेता अधिकारियों के सामने जाकर कर्मचारी हित के स्थान पर अपने व्यक्तिगत हित की बात करते हैं . सम्राट अशोक ने कलिंग विजय प्राप्त की और प्रसन्न होने के स्थान पर इतना दुखी हुए कि बौद्ध हो गए, पूरी तरह अहिंसक हो गए, धर्म प्रचार में लग गए. अरविन्द घोष को उनके पिता ने प्रारम्भ से ऐसे वातावरण में रखा कि उन पर भारतीय विचारों की छाया भी न पड़ सके और वे पूर्णतयः अंग्रेजी सभ्यता में रंग जाएं . इंग्लैण्ड में शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् वे भारत लौटे तो अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध क्रांतिकारियों से जुड़ गए तथा कुछ समय पश्चात योगी हो गए, तपस्या में लीन हो गए. मनुष्य के व्यवहार में यह अप्रत्याशित परिवर्तन गुणों एवं उसकी अनुक्रियाओं में गत्यात्मकता के कारण होता है .
संगतता या पैटर्न : गत्यात्मकता के कारण व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन संभव है परन्तु सामान्य रूप से व्यक्ति का व्यवहार एक सा रहता है अर्थात वह जैसे आज काम कर रहा है, कल और आने वाले दिनों में भी वैसा ही करेगा. इसी तथ्य को उसके काम या व्यवहार का निश्चित पैटर्न कहा जाता है. व्यवहार की एकरूपता ही व्यवहारों की संगतता है . जब किसी व्यक्ति का ध्यान आता है तो उसके कार्य करने के ढंग, उसके व्यवहार, उसकी अभिव्यक्तियाँ आदि सभी एक साथ मस्तिष्क में उभर आती हैं क्योंकि उनमें संगतता होती है.     
                                     अवसर
अवसर एवं चुनौतियों का भी व्यक्तिव निर्माण में बहुत प्रभाव पड़ता है. बल्ब से लेकर फिल्मों तक ११०० से अधिक अविष्कार करने वाले महान वैज्ञानिक एडिसन ने कहा है कि प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में अवसर आते हैं . आवश्यकता है उन्हें पहचानने और पूरा करने का प्रयास करने की. अवसर प्राप्त करना और उपस्थित चुनौतियों का सामना करने से व्यक्तित्व का अपूर्व विकास होता है . भारत स्वतन्त्र हुआ . गांधीजी से निकटता के कारण जवाहर लाल नेहरू देश के प्रधान मंत्री बनने का अवसर मिला . पिछड़े हुए देश को आगे बढ़ने की चुनौती उनके सामने थी . उन्होंने कुछ सार्थक प्रयास भी किये जिससे उनका नाम देशवासियों के लिए आदरणीय हो गया, वे जन नायक बन गए. इंदिरागांधी को प्रधान मंत्री बनने का अवसर नहीं मिला उन्होंने अपनी आत्मशक्ति से अवसर उत्पन्न किया और विरोधियों को मात देकर प्रधान मंत्री बनीं. १९७५ में जब  भ्रष्टाचार के कारण इलाहबाद उच्च न्यायालय ने उन्हें सांसद पद के अयोग्य ठहरा दिया तो उन्होंने अपनी शासक वृत्ति की प्रबल आत्मशक्ति से न्यायालय को दबा दिया और आपातकाल लगाकर सभी विरोधियों को जेल में ठूंस दिया और तानाशाह बन कर देश का शासन किया . डा. मनमोहन सिंह को १९९१ में वित्तमंत्री और २००४ में प्रधान मंत्री बनने का अप्रत्याशित अवसर भाग्य से मिला . वे दस वर्ष तक प्रधानमंत्री रहे परन्तु उनमे आत्मशक्ति न होने के कारण देश-विदेश के लोग उनकी कार्य प्रणाली का उपहास उड़ाते रहे. भारत के संविधान का उपहास उड़ाते हुए उन्होंने अनेक बार कहा कि राहुल गाँधी जब कहें वे उनके लिए पद छोड़ने को तैयार हैं जैसे प्रधान मंत्री का पद कोई पारिवारिक या व्यक्तिगत संपत्ति हो. इतने उच्च पद पर रहते हुए भी  उन्होंने अनुभवहीन युवराज राहुल गाँधी के नेतृत्व  में काम करने की इच्छा  व्यक्त की . देश के सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी के बाद कि अपराधी लोगों को मंत्री एवं सांसद पद  के लिए अयोग्य माना जाए,  डा सिंह ने अपने मंत्रिमंडल से प्रस्ताव पारित करवाया कि न्यायलय का उक्त आदेश लागू नहीं किया जायगा . जब डा. सिंह अमेरिका दौरे पर थे और वहां महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा कर रहे थे, भारत में राहुल गाँधी ने मंत्रिमंडल के उक्त निर्णय को नॉन सेन्स कहा और कहा कि ऐसे निर्णय को कचरे में फेंक देना चाहिए और उसे कचरे में फेंक दिया गया. आत्मशक्ति के अभाव में डा सिंह उसका विरोध न कर सके . इस प्रकार के कार्यों से भाग्य के कारण प्राप्त उच्च पद से निर्मित हुए उनके व्यक्तित्व पर बहुत बड़ा धब्बा लग गया जिसमें  विद्वता से निर्मित उनका व्यक्तित्व भी तिरोहित हो गया .
 प्रबल आत्मशक्ति के लोग स्वयं नए-नए अवसर उत्पन्न करते हैं और सम्मुख आई चुनौतियों का सामना करते हैं जिससे वे इतिहास में प्रसिद्द हो जाते हैं . बाबर, हुमायूं, अकबर, विदेशी थे परन्तु अपनी प्रबल आत्मशक्ति के कारण उन्होंने अवसर उत्पन्न किए, चुनौतियाँ स्वीकार कीं और भारत में राज्य स्थापित किया. महाराणा प्रताप के सामने अकबर ने चुनौती खड़ी की जिसे उन्होंने स्वीकार किया और अंततः अपना स्वतन्त्र राज्य बचाने में सफल रहे . राजस्थान में अनेक राज-महाराजा हो गए हैं परन्तु महाराणा प्रताप के व्यक्तित्व का प्रभाव आज भी है और सदियों तक रहेगा. शिवाजी और छत्रसाल ने स्वयं अवसर उत्पन्न किए और अपने स्वतन्त्र राज्य स्थापित किए . उनका व्यक्तित्व भी अद्भुत था और सदैव याद किया जाता रहेगा.
   भारत में उद्योग के क्षेत्र में धीरुभाई अम्बानी ने, सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नारायण मूर्ती ने अवसर उत्पन्न करके चुनौतियाँ स्वीकार कीं और विश्व विख्यात सफलता प्राप्त की. विज्ञान के क्षेत्र में स्वतंत्रता के पूर्व डा. सी वी रमन ने जिस आत्मशक्ति से भौतिकशास्त्र में न्यूनतम साधनों में उत्कृष्ट शोध कार्य किए और नोबेल पुरस्कार प्राप्त किया, उससे उनका ही नहीं देश का नाम भी ऊंचा हुआ . हिन्दू धर्म को विश्व के लोग उपेक्षनीय  और उपहास का विषय मानते थे . परतंत्र भारत में साधन विहीन स्वामी विवेकानंद ने अपने धर्म के सम्मुख उपस्थित चुनौती को जितनी शान से स्वीकार किया और अपनी अद्भुत आत्मशक्ति से जिस प्रकार विश्व मंच पर प्रस्तुत किया, उससे उनका व्यक्तित्व और हिन्दू धर्म दोनों सर्वत्र छा गए. वे सर्वमान्य आदर्श के दैदीप्यमान पुंज बन गए है . उनके ज्ञान प्रकाश से मानवता सदियों तक आलोकित होती रहेगी.
                 मनोवैज्ञानिकों द्वारा दी गई परिभाषाएँ              
आइजेंक (१९५२) : “व्यक्तित्व व्यक्ति के चरित्र, चित्त प्रकृति, ज्ञानशक्ति तथा शरीर संगठन का लगभग एक स्थाई एवं टिकाऊ संगठन है जो वातावरण में उसके विशिष्ट व्यवहार एवं विचारों को निर्धारित करता है .”
आलपोर्ट (१९६१) : व्यक्तित्व व्यक्ति  के अन्दर उन मनोशारीरिक तंत्रों का गत्यात्मक संगठन है . जो वातावरण में उसके अपूर्व समायोजन का निर्धारण करता है.”
चाइल्ड (१९६८) : “व्यक्तित्व से अभिप्राय लगभग स्थाई आंतरिक कारकों से होता है जो व्यक्ति के व्यवहार को एक से दूसरे समय में संगत बनाता है तथा समतुल्य परिस्थितियों में अन्य लोगों के व्यवहार से भिन्नता प्रदर्शित करता है .”
वाल्टर मिस्केल (१९८१) : व्यक्तित्व से तात्पर्य प्रायः ( विचार एवं भावनाओं को सम्मिलित करते हुए ) उस विशिष्ट पैटर्न से होता है जो प्रत्येक व्यक्ति के जीवन  की परिस्थितियों के साथ होने वाले संयोजन का निर्धारण करता है .”
मैक्कार्डी (१९८५) : “व्यक्तित्व प्रतिमानों ( पैटर्न, रुचियों ) का एक संगठन है जो प्राणी के व्यवहार को विशिष्ट वैयक्तिक दिशा प्रदान करता है .”  
बेरोन  ( १९९३) : “व्यक्तियों के संवेगों, चिंताओं, तथा व्यवहारों के अपूर्व एवं सापेक्ष रूप से स्थिर पैटर्न के रूप में परिभाषित किया जाता है .”






















                         








        




      

मंगलवार, 20 मई 2014

दक्ष को जन्मदिन की शुभकामनाएं

दक्ष को जन्मदिन की शुभकामनाएं

चाँद-सितारे आसमान पर, घर-आँगन में दक्ष हमारा
कमल सरीखा दक्ष खिला है, वत्सल की बहती रहे धारा .
चंदा खेले आँख मिचौली, तारे झिलमिल-झिलमिल करते
दक्ष भी दिन भर करतब करता, सब उस पर हैं मोहित होते.
गदा उठा हनुमान दहाड़े, मोरपंख से कृष्ण बने
धनुष बाण हाथ में लेकर, रावण का संहार करे .
घर-परिवार की बगिया प्यारी, दक्ष पुष्प सबसे सुन्दर
हँसता-खिलता चेहरा उसका, हृदय प्रसन्न करे मनहर .
जन्म दिवस की बहुत बधाई, खेले-हँसे, बढ़े वह ऐसे
सब जन को सुख देता जाए, सुमधुर आम के वृक्ष के जैसे .
ईश्वर सदा सहायक होवें, विद्या-ज्ञान हो उसकी पूजा
खूब पढ़े वह, खूब बढ़े वह, देश समाज का नाम हो ऊंचा .
सुखी रहे और स्वस्थ रहे, मात-पिता की आँख का तारा
दादा-दादी का शुभाशीष, नाना-नानी का राजदुलारा .


२०१४ में सेकुलर वादियों की हार

                    २०१४ में सेकुलर वादियों की हार
  भारत में २०१४ के संसदीय चुनावों में सेकुलर वादियों को करारी हार का सामना करना पड़ा . भिन्न-भिन्न सेकुलर वादियों ने इस हार को अपने-अपने ढंग से समझा है और लोगों को समझाया है .
  कांग्रेस नेत्री रेणुका चौधरी ने भी एक सच कहा कि कुछ नेताओं ने सोनिया गाँधी को गुमराह किया. इटली में अति सामान्य परिवार में जन्मी और संघर्ष करके भारत की बेताज मल्लिका बनी सोनिया जी को भी कोई गुमराह कर सकता है , यह सुनकर अत्यंत विस्मय हो रहा है . सोनिया जी जो भारतीय नेताओं को हाथ की उँगलियों से नहीं, अपने इशारों से कठपुतलियों की तरह नचाती रहीं. पार्टी नेताओं, राज्यपालों और मंत्रियों की तो बात छोड़िए, जिन्होंने जिसे चाहा प्रधानमंत्री बनाया, जिसे चाहा
राष्ट्रपति बनाया और देश की सर्वाधिक शक्तिशाली सामंत होने के नाते जो चाहा किया . कांग्रेस में इतने अधिक शातिर नेता भी हैं जो ऐसी चतुर कूटनीतिज्ञ को भी गुमराह कर गए . रेणुका जी, उन शातिर नेताओं के नाम, भले ही वे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता हों,  निसंकोच बताने का साहस करें ताकि कांग्रेस ही नहीं देश भी उनकी खुरापाती हरकतों से सतर्क हो जाय .
हार का सेकुलर वादी फार्मूला : सोनिया गाँधी, मुलायम सिंह, नितीशकुमार , मायावती, लालू जैसे सभी सेकुलरवादियों ने यह शोध किया है कि उनकी हार का कारण सेकुलरवादी वोटों का विभाजन होना है .इस निष्कर्ष को समझने के लिए सेकुलरवादी वोटों को भी समझना होगा . यूपीए की अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने दिल्ली की जामा मस्जिद के इमाम अब्दुल्ला बुखारी से मिलकर यह अनुरोध किया था कि सेकुलरवादी वोट बंटने न पाएं . शाही इमाम के पास मुस्लिम वोटों के अतिरिक्त और कौन से वोट हो सकते हैं? अर्थात सोनिया जी बुखारी जी से कह रही थीं कि मुस्लिम वोट बाँटने  न क्योंकि ये सेकुलर वोट हैं. मुलायम सिंह तो मुस्लिम वोटों के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं . उन्होंने उ.प्र. में सपा की सत्ता आते ही ढेरों दंगे करवाए या दंगे होते गए और उन्होंने होने दिए या दंगे हुए और वे इतने कमजोर हैं कि दंगे रोक नहीं पाए, कारण कोई भी हो हज़ारों मुस्लिम दंगों की चपेट में आ गए और ठिठुरती सर्दी में उनके बच्चे मरते रहे. वे समझते थे कि तम्बुओं में फंसे दीन -दुखियों की सरकारी सेवा करने का मेवा उन्हें ही खाने को मिलेगा.  उनके महाराष्ट्र के नेता अबू आज़मी ने तो सेकुलरवाद से आगे जाकर साफ-साफ कह दिया कि जो मुसलमान सपा को वोट नाहीं देगा, वह मुस्लिम हो ही नहीं सकता और इसे उनके डीएनए टेस्ट करके देखा जा सकता है . आश्चर्य की बात है कि किसी मुस्लिम नेता या धर्म गुरु ने आज़मी के वक्तव्य ने कोई आपत्ति नहीं की . मायावती दलित- मुस्लिम-ब्राह्मण की तिकड़ी बना कर बैठी थीं. नितीश कुमार ने उन्हीं सेकुलर वादी मुस्लिम वोटों की खातिर भावी प्रधानमंत्री मोदी से पंगा लिया. कम्युनिस्ट और लालू पहले ही कह चुके थे कि सांप्रदायिक ताकतों से सावधान रहो. वे यही समझते रहे कि सेकुलरवादी मुस्लिम वोटों के असली हक़दार वही हैं . इसी बीच सेकुलरवाद का राग केजरीवाल भी अलापने लगे. अब बताइये बेचारे सेकुलरवादी मुसलमान किस-किस नेता की पार्टी को खुश करते ?
  इन सेकुलरवादियों ने एक मानक निर्धारित कर दिया कि जैसे ही कोई कहे कि वह हिन्दू है, उसे महा सांप्रदायिक कहते जाना है. वे यह समझते रहे कि वर्षों से वे चुनाव के समय सेकुलर-सांप्रदायिक का चक्रव्यूह रचकर सीधे-सादे मतदाताओं को भ्रमित कर देते थे और साम्प्रदायिकता के लेबल से बचने के लिए गैर सेकुलरवादी भी उन्हें वोट दे देते थे . इस बार समस्या यह खड़ी हो गई कि सेकुलरवादियों के हज़ारों-लाखों सांप्रदायिक आरोपों को वे अकेले ही झेल गए और निर्विकार भाव से कहते रहे कि कोई वोट दे या न दे, वे हिन्दू- मुस्लिम या अन्य को अलग नहीं करेंगे और सबको एक सामान मानेंगे, सबके विकास के लिए काम करेंगे. उन्होंने मुस्लिमों को सेकुलरवादी नहीं धार्मिक माना और सूत्र दिया कि मुसलमानों के एक हाथ में कुरान हो और दूसरे में कम्प्युटर .ताकि वे भी अच्छा पढ़े और आगे बढ़े . अनेक सेकुलरवादियों से वर्षों से ठगे जा रहे मतदाताओं ने धार्मिक मोदी के पक्ष में वोट दे दिए. सेकुलरवादी अभी भी मानते हैं कि वोटिंग साम्प्रदायिकता के आधार पर हुई है, उनकी दृष्टि में उन्हें वोट न देने वाली देश की अधिकांश आबादी सांप्रदायिक हो गई है और अब वे कभी सर नहीं उठा सकेंगे. यही उनका रोना है.
सेकुलरवादियों की लामबंदी : करारी हार के बाद सेकुलरवादियों ने लामबंदी शुरू करदी है. पहला कदम उन्होंने यह उठाया है कि मोदी को जीत की, प्रधान मंत्री बनने की बधाई न देना है. सोनिया गाँधी , राहुल गाँधी, नितीश कुमार जैसे अनेक सेकुलरवादियों ने उन्हें बधाई नहीं दी. लालू ने तो घोषणा कर दी कि वे मोदी को बधाई नहीं देंगे. लालू का व्यक्तित्व अपूर्व है. कहते हैं कि वे जानवरों का चारा चट कर गए थे और पचा भी गए. ‘अक्ल बड़ी या भैंस’ की कहावत उन पर सटीक बैठती है. परन्तु अन्य नेताओं ने प्रजातंत्र की भावना का जितना भद्दा मजाक उड़ाया है वह विश्व में दुर्लभ है . हम इतना ही कह सकते हैं कि लोगों में (नेताओं में नहीं) प्रजातंत्र की जड़ें मजबूत हुई हैं कि उन्होंने शांति पूर्वक देश में सत्ता परिवर्तन ही नहीं किया स्थिर सरकार भी दे दी. देश को अस्थिर करने वाले सेकुलरवादी छटपटाते रह गए.
संस्कृति वाले नेता : देश में भारतीय संस्कृतियों की दुहाई देने वाले अनेक नेता भी हैं. एक बार भावावेश में वरुण गाँधी ने कुछ कह दिया था जिसे सेकुलरवार्दियों ने घोर सांप्रदायिक करार देकर उन्हें जेल भेज दिया और मुकदमा चला दिया . वे निर्दोष सिद्ध हुए. यह तो छोटी बात है . उस समय प्रियंका गाँधी वरुण को गाँधी के वचनों और गीता का उपदेश देकर भारतीय संस्कृति समझा रही थी. चुनावों में सरकारी दूरदर्शन ने मोदी जी का साक्षात्कार लिया और कुछ अंश काट कर प्रसारित कर दिया. दूरदर्शन वालों ने उस कटे हुए अंश को किसी सेकुलरवादी विद्वान् को दे दिया और खबर उड़ा दी कि मोदी ने प्रियंका को बेटी जैसा कहा है. मुद्दों से चुनाव को दूर ले जाने में माहिर मीडिया वालों ने प्रियंका को कहा कि मोदी आपको बेटी जैसा कह रहे हैं. बस प्रियंका भड़क गईं कि उनके पिता केवल राजीव गाँधी ही हैं और कोई नहीं हो सकता. काश प्रियंका भारतीय संस्कृति का एबीसी जानती तो ऐसा न कहती, कम से कम चुप तो रहती. सोनिया-राहुल के अथक सेकुलरवादी प्रयासों के बावजूद भी कांग्रेस का सफाया हो गया. अब कांग्रेसी सोचते हैं कि राहुल से नहीं प्रियंका से कांग्रेस आगे बढ़ पाएगी.