मंगलवार, 20 मई 2014

२०१४ में सेकुलर वादियों की हार

                    २०१४ में सेकुलर वादियों की हार
  भारत में २०१४ के संसदीय चुनावों में सेकुलर वादियों को करारी हार का सामना करना पड़ा . भिन्न-भिन्न सेकुलर वादियों ने इस हार को अपने-अपने ढंग से समझा है और लोगों को समझाया है .
  कांग्रेस नेत्री रेणुका चौधरी ने भी एक सच कहा कि कुछ नेताओं ने सोनिया गाँधी को गुमराह किया. इटली में अति सामान्य परिवार में जन्मी और संघर्ष करके भारत की बेताज मल्लिका बनी सोनिया जी को भी कोई गुमराह कर सकता है , यह सुनकर अत्यंत विस्मय हो रहा है . सोनिया जी जो भारतीय नेताओं को हाथ की उँगलियों से नहीं, अपने इशारों से कठपुतलियों की तरह नचाती रहीं. पार्टी नेताओं, राज्यपालों और मंत्रियों की तो बात छोड़िए, जिन्होंने जिसे चाहा प्रधानमंत्री बनाया, जिसे चाहा
राष्ट्रपति बनाया और देश की सर्वाधिक शक्तिशाली सामंत होने के नाते जो चाहा किया . कांग्रेस में इतने अधिक शातिर नेता भी हैं जो ऐसी चतुर कूटनीतिज्ञ को भी गुमराह कर गए . रेणुका जी, उन शातिर नेताओं के नाम, भले ही वे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता हों,  निसंकोच बताने का साहस करें ताकि कांग्रेस ही नहीं देश भी उनकी खुरापाती हरकतों से सतर्क हो जाय .
हार का सेकुलर वादी फार्मूला : सोनिया गाँधी, मुलायम सिंह, नितीशकुमार , मायावती, लालू जैसे सभी सेकुलरवादियों ने यह शोध किया है कि उनकी हार का कारण सेकुलरवादी वोटों का विभाजन होना है .इस निष्कर्ष को समझने के लिए सेकुलरवादी वोटों को भी समझना होगा . यूपीए की अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने दिल्ली की जामा मस्जिद के इमाम अब्दुल्ला बुखारी से मिलकर यह अनुरोध किया था कि सेकुलरवादी वोट बंटने न पाएं . शाही इमाम के पास मुस्लिम वोटों के अतिरिक्त और कौन से वोट हो सकते हैं? अर्थात सोनिया जी बुखारी जी से कह रही थीं कि मुस्लिम वोट बाँटने  न क्योंकि ये सेकुलर वोट हैं. मुलायम सिंह तो मुस्लिम वोटों के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं . उन्होंने उ.प्र. में सपा की सत्ता आते ही ढेरों दंगे करवाए या दंगे होते गए और उन्होंने होने दिए या दंगे हुए और वे इतने कमजोर हैं कि दंगे रोक नहीं पाए, कारण कोई भी हो हज़ारों मुस्लिम दंगों की चपेट में आ गए और ठिठुरती सर्दी में उनके बच्चे मरते रहे. वे समझते थे कि तम्बुओं में फंसे दीन -दुखियों की सरकारी सेवा करने का मेवा उन्हें ही खाने को मिलेगा.  उनके महाराष्ट्र के नेता अबू आज़मी ने तो सेकुलरवाद से आगे जाकर साफ-साफ कह दिया कि जो मुसलमान सपा को वोट नाहीं देगा, वह मुस्लिम हो ही नहीं सकता और इसे उनके डीएनए टेस्ट करके देखा जा सकता है . आश्चर्य की बात है कि किसी मुस्लिम नेता या धर्म गुरु ने आज़मी के वक्तव्य ने कोई आपत्ति नहीं की . मायावती दलित- मुस्लिम-ब्राह्मण की तिकड़ी बना कर बैठी थीं. नितीश कुमार ने उन्हीं सेकुलर वादी मुस्लिम वोटों की खातिर भावी प्रधानमंत्री मोदी से पंगा लिया. कम्युनिस्ट और लालू पहले ही कह चुके थे कि सांप्रदायिक ताकतों से सावधान रहो. वे यही समझते रहे कि सेकुलरवादी मुस्लिम वोटों के असली हक़दार वही हैं . इसी बीच सेकुलरवाद का राग केजरीवाल भी अलापने लगे. अब बताइये बेचारे सेकुलरवादी मुसलमान किस-किस नेता की पार्टी को खुश करते ?
  इन सेकुलरवादियों ने एक मानक निर्धारित कर दिया कि जैसे ही कोई कहे कि वह हिन्दू है, उसे महा सांप्रदायिक कहते जाना है. वे यह समझते रहे कि वर्षों से वे चुनाव के समय सेकुलर-सांप्रदायिक का चक्रव्यूह रचकर सीधे-सादे मतदाताओं को भ्रमित कर देते थे और साम्प्रदायिकता के लेबल से बचने के लिए गैर सेकुलरवादी भी उन्हें वोट दे देते थे . इस बार समस्या यह खड़ी हो गई कि सेकुलरवादियों के हज़ारों-लाखों सांप्रदायिक आरोपों को वे अकेले ही झेल गए और निर्विकार भाव से कहते रहे कि कोई वोट दे या न दे, वे हिन्दू- मुस्लिम या अन्य को अलग नहीं करेंगे और सबको एक सामान मानेंगे, सबके विकास के लिए काम करेंगे. उन्होंने मुस्लिमों को सेकुलरवादी नहीं धार्मिक माना और सूत्र दिया कि मुसलमानों के एक हाथ में कुरान हो और दूसरे में कम्प्युटर .ताकि वे भी अच्छा पढ़े और आगे बढ़े . अनेक सेकुलरवादियों से वर्षों से ठगे जा रहे मतदाताओं ने धार्मिक मोदी के पक्ष में वोट दे दिए. सेकुलरवादी अभी भी मानते हैं कि वोटिंग साम्प्रदायिकता के आधार पर हुई है, उनकी दृष्टि में उन्हें वोट न देने वाली देश की अधिकांश आबादी सांप्रदायिक हो गई है और अब वे कभी सर नहीं उठा सकेंगे. यही उनका रोना है.
सेकुलरवादियों की लामबंदी : करारी हार के बाद सेकुलरवादियों ने लामबंदी शुरू करदी है. पहला कदम उन्होंने यह उठाया है कि मोदी को जीत की, प्रधान मंत्री बनने की बधाई न देना है. सोनिया गाँधी , राहुल गाँधी, नितीश कुमार जैसे अनेक सेकुलरवादियों ने उन्हें बधाई नहीं दी. लालू ने तो घोषणा कर दी कि वे मोदी को बधाई नहीं देंगे. लालू का व्यक्तित्व अपूर्व है. कहते हैं कि वे जानवरों का चारा चट कर गए थे और पचा भी गए. ‘अक्ल बड़ी या भैंस’ की कहावत उन पर सटीक बैठती है. परन्तु अन्य नेताओं ने प्रजातंत्र की भावना का जितना भद्दा मजाक उड़ाया है वह विश्व में दुर्लभ है . हम इतना ही कह सकते हैं कि लोगों में (नेताओं में नहीं) प्रजातंत्र की जड़ें मजबूत हुई हैं कि उन्होंने शांति पूर्वक देश में सत्ता परिवर्तन ही नहीं किया स्थिर सरकार भी दे दी. देश को अस्थिर करने वाले सेकुलरवादी छटपटाते रह गए.
संस्कृति वाले नेता : देश में भारतीय संस्कृतियों की दुहाई देने वाले अनेक नेता भी हैं. एक बार भावावेश में वरुण गाँधी ने कुछ कह दिया था जिसे सेकुलरवार्दियों ने घोर सांप्रदायिक करार देकर उन्हें जेल भेज दिया और मुकदमा चला दिया . वे निर्दोष सिद्ध हुए. यह तो छोटी बात है . उस समय प्रियंका गाँधी वरुण को गाँधी के वचनों और गीता का उपदेश देकर भारतीय संस्कृति समझा रही थी. चुनावों में सरकारी दूरदर्शन ने मोदी जी का साक्षात्कार लिया और कुछ अंश काट कर प्रसारित कर दिया. दूरदर्शन वालों ने उस कटे हुए अंश को किसी सेकुलरवादी विद्वान् को दे दिया और खबर उड़ा दी कि मोदी ने प्रियंका को बेटी जैसा कहा है. मुद्दों से चुनाव को दूर ले जाने में माहिर मीडिया वालों ने प्रियंका को कहा कि मोदी आपको बेटी जैसा कह रहे हैं. बस प्रियंका भड़क गईं कि उनके पिता केवल राजीव गाँधी ही हैं और कोई नहीं हो सकता. काश प्रियंका भारतीय संस्कृति का एबीसी जानती तो ऐसा न कहती, कम से कम चुप तो रहती. सोनिया-राहुल के अथक सेकुलरवादी प्रयासों के बावजूद भी कांग्रेस का सफाया हो गया. अब कांग्रेसी सोचते हैं कि राहुल से नहीं प्रियंका से कांग्रेस आगे बढ़ पाएगी.         

               

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