बुधवार, 26 जून 2013

प्रलय और फ़रिश्ते

प्रलय और फ़रिश्ते
चार धाम यात्रा को आए
देश के कई भागों से भक्त ,
स्त्री,पुरुष,शिशु,युवा वृद्ध
कई दुर्बल थे ,कई सशक्त.१.
मौसम था अत्यंत सुहाना
भक्तों में थी भरी उमंग,
जय हर-हर,जय बद्रीश्वर
जय यमनोत्री-गंगोत्री की तरंग.२.
ध्यान-अर्चना भक्त कर रहे
सघन मेघों ने चाल चली, 
चुपके-चुपके सबको घेरा
व्यूह रचना कुछ ऐसी की.३.
प्रलय मचे कोई भाग न पाए
छोटे–बड़े का न कोई भेद,
पल भर भी कोई सोच न पाए
वह गोरा हो या हो श्वेत.४.
नभ में तीव्र गर्जना करके
क्षण भर में यूं मेघ फटे,
परमाणु बम हाथों में लेकर
जैसे हों यमराज डेट.५.
नभ में भारी विस्फोट हुआ
फटे मेघ सब एक ही साथ,
तिनके से सब बहने लग गए
किसी के कुछ आया न हाथ.६.
हिमालय के श्रृंग टूट-टूट कर
लुढ़के जलधारा के संग,
रास्ते में जो कुछ भी आया
बहा ले गए अपने संग.७.
प्रलय ने रूप धरा विकराल
उफनती धारा में था आक्रोश,
नदी-नाले सब रौद्र हुए
विनाश का उरमें ले कर जोश.८.    
पर्वत मालाएं टूट रही थीं
भवन गिरे मिट्टी की भांति,
क्षण भर में वीरान हुआ सब
विलुप्त हुई मंदिर की कांति.९.
स्त्री-पुरुष,बड़े और छोटे
जल-विप्लव में लीन हुए,
हाहाकार मचाते थे स्वर
केदार घाटी में विलीन हुए.१०.
कारें बहीं, मोटरें बह गईं
बड़े-बड़े घर -हाट बहे
उनमें जो जन-माल निहित था       
तांडव में सब अदृश्य हुए.११.
जीवित जो जन शेष रहे
विकराल काल के मुंह में थे,
पत्थर थे किसी को कुचल रहे
कोई उफनती नदीमें बहते थे.१२.
जिनमें साहस था भरा हुआ,  बुद्धि भी जिनकी सक्रिय थी,
वे ऊंचाई पर जा पहुंचे
जीव की आस असीमित थी.१३.
वे जल-विप्लव को देख रहे
असहाय थे बंधु  बचाने को,     
उनके प्रिय सामने बिछुड़ रहे
जीवन था मृत्यु में जाने को.१४.
मेघों का तांडव शांत हुआ
लोगों की साँसे चलती थीं,
सड़कें टूटीं, खाई बन गईं
उस दृश्यसे आत्मा डरती थी.१५.
सामान बह गया नदियों में
भोजन पानी भी पास न था,
पत्थरों की राह अजनबी थी,
जीवित बचनेका मार्ग न था.१६.   
कुछ यहाँ, कुछ वहां पड़े हुए
जीवन की घड़ियाँ गिनते थे,
हे ईश्वर! अब तो दया करो
कर वद्ध प्रार्थना करते थे.१७.
लोगों की जान बचाने को      
भारतीय जवान बढ़े आगे,
कोई धरती पर कोई आसमाँ में 
जन-जन को बचाने को भागे.१८.
कोई नदी पर पुल थे बाँध रहे,
कोई रस्सी से मार्ग बनाते थे,
असहाय और रोगी लोगों को
कोई  कन्धों पर ले जाते थे.१९.
उनके पास जो भोजन था
उसको भी थे वे बाँट रहे,
बस एक ही जज़्बा दिल में था 
सही सलामत सब निकलें.२०.
हेलीकाप्टर आपरेशन कर
दूर फंसे हुए  लोग निकाले,
जितना भी संभव हो सकता
जी-जान से जुटे थे मतवाले.२१.
हज़ारों को जीवन दान दिया
निज घर पहुंचे आबाद हुए,
सब एक ही बात रहे कहते
फ़रिश्ते वहां  साकार हुए.२२.
श्रम और साहस से कार्य किया
सेना ने हार नहीं मानी,
जनता की सेवा करने में
दे दी अपनी भी क़ुरबानी.२३.      



     

शनिवार, 22 जून 2013

राष्ट्र ,राष्ट्र-संपत्ति ,राष्ट्र की शक्ति


राष्ट्र
एक धर्म और एक हो संस्कृति ,      
प्रेम का उनमें हो विस्तार .
धर्म और संस्कृति भिन्न-भिन्न हों
पर उनके हों एक विचार .
प्राकृतिक सम्पदा राष्ट्र की समझें
राष्ट्र भाषा सशक्त  विकसित हो
लोगों में हो सहयोग परस्पर
किसी को द्वेष की नहीं अनुमति हो .
हीनता-श्रेष्ठता भाव का जिसमें
कोई बीज नहीं बोता  है
शोषण मुक्त समाज जहां हो
राष्ट्र वही स्थिर होता है

राष्ट्र –संपत्ति
लोग,चरित्र,श्रम और मेधा,
संस्कृति,भाषा ,शिक्षा,विज्ञान .
भूमि,कृषि, उद्योग-व्यवसाय ,
जल,पर्वत, वन,धन और खान.
राष्ट्र सपत्ति के ये हैं अवयव  
इनमें हो सही सामंजस्य,
कुशल प्रशासन ,न्याय त्वरित हो
अच्छे राष्ट्र का यही रहस्य .

राष्ट्र की शक्ति
धन नहीं करता  राष्ट्र समृद्ध
लोग होते हैं उसकी शक्ति
लोग वाही जो हों निःस्वार्थ
राष्ट्र के प्रति रखते हो भक्ति.
जो राष्ट्र के लिए समर्पित हों
मेधा, विवेक से हों भरपूर  
ज्ञान-विज्ञान ,श्रम,स्वाभिमान हो
लालच,ईर्ष्या से रहते दूर .
शौर्य,साहस, उत्साह प्रबल हो
जीवन बलिदान को तत्पर हों
कैसी भी परिस्थितियां हो
वे राष्ट्र कार्य में स्थिर हों .
मानव शक्ति रहे कमजोर
धन - संपदा के हों भण्डार
सर्वस्व विदेशी हर लेते हैं
राष्ट्र का होता बंटाढार .
आज जो उन्नत राष्ट्र हैं दीखते
उनके लोग समर्पित थे
निजी स्वार्थ था उनमें गौण
वे राष्ट्र - समृद्धि को अर्पित थे
शौर्य, विवेक, विज्ञान –तकनीकें
दूरदृष्टि उनकी अविचल थी
विद्वानों के प्रति अगाध श्रद्धा
उनकी राष्ट्र-भक्ति अचल थी.
कभी भारत था धन की खान
समृद्धि राष्ट्र की थी पहचान  
लूट लिया लुटेरों ने धन
अनेकों लोग हुए कुर्बान .
अफगानिस्तान ने लूट के भारत
अपने थे भण्डार भरे
आज भी वे निर्धन तो हैं ही
अविवेक के कारण  स्वयं मारें .
अमरीका में लोग थे रहते
प्राकृतिक सम्पदा विपुल भरी थी
मेधा,विवेक विज्ञान नहीं थी
 राष्ट्र भावना नहीं बढ़ी थी .
लोग थे निर्धन और असहाय
प्राकृतिक जीवन जीते थे
यूरोपियों की ताकत के आगे
वे कुछ भी नहीं कर सकते थे .
वही अमरीका, वही सम्पदा
श्रम-ज्ञान से सिंचित हो गए
बना समृद्ध और उन्नत देश
वे विकास का अर्थ बन गए



प्रलय क्यों ?


प्रलय क्यों ?
इंद्र देव क्यों कुपित हो गए ,
आसमान क्यों फटते जाते ?
ईश्वर , हमसे भूल हुई क्या
मेघ क्यों तांडव करते जाते ?

प्रलयंकारी जल की धारा
आसमान से क्यों बहती है ?
जान-माल की क्षति  है होती
सभ्यता क्यों नष्ट होती है ?

मचल- मचल कर पानी बहता
नदियाँ उफन-उफन कर चलतीं.
रास्ते में जो भी मिल जाए
कहीं दया का भाव न रखतीं.

पर्वत मालाएं टूट रही हैं
बड़ी-बड़ी चट्टानें गिरतीं
मार्ग सभी अवरुद्ध हो गए
संकट में कई जानें अटकीं.

भवन हैं गिरते, वृक्ष हैं गिरते
व्यक्ति-पशु सब बहते जाते
जीवन कितना क्षण भंगुर है
इसी तथ्य की याद दिलाते.

प्रलयकाल में सभी बराबर
न कोइ बूढ़ा, न कोई बच्चा
प्रकृति कोप से बचे न कोई
वह हो झूठा या हो सच्चा.

मानव कितना समृद्ध हो गया
प्रकृति पर है अधिकार जताता
अनेकों कार्य स्वयं हो जाते
मनुष्य दूर से बटन दबाता.

 प्रकृति के अनेक रहस्य हैं खोले
अन्तरिक्ष में भी है कदम बढ़ाता 
जीवन रहस्य का भेद खोलने
मनुज है आगे बढ़ता जाता .

ये प्राकृतिक आपाद घटनाएं
कितनी प्रबल क्रूर होती हैं
क्षण भर में विनाश कर देतीं
मानवता रोती रहती है .

हे  ईश्वर !हम शरण में तेरी
आत्मा में एक ज्योति जलाओ
जीवन क्या और मृत्यु है क्या
इसका कुछ रहस्य समझाओ .

क्या है मेरा, क्या है तेरा
इसको कोई समझ न पाता
जब कह दे वह ‘तेरा- तेरा’
वह ईश्वर का है हो जाता .




  



   

दक्ष तो कृष्णा कन्हैया है


                दक्ष तो कृष्णा कन्हैया है
दक्ष मेरा फूलों सा कोमल
तितली सी चंचलता पाई
फुदक-फुदक कर इत -उत डोले
जैसे सोन  चिरैया है
दक्ष तो कृष्णा कन्हैया है
सबका कृष्णा कन्हैया है.

बातें प्यारी-प्यारी करता
जो सुन ले उसका दिल हरता
मुस्काकर बरबस मन मोहे
यह तो भूल भुलैया है
दक्ष तो कृष्णा कन्हैया है, सबका कृष्ण ......

मन में दुःख भरा हो कोई
तन कष्टों ने घेरा हो
प्यारी नजर पड़े नटवर की
सबसे मुक्त करैया है
दक्ष तो कृष्णा कन्हैया है , सबका कृष्ण ....

छोटे-छोटे पैर दक्ष के
गोप- गोपियों के संग खेले
इसके आगे, उसके पीछे
कहता दीदी-भैया है
दक्ष तो कृष्णा कन्हैया है , सबका कृष्ण ....

दादा-दादी का मन मोहे
पिता को आनंद देता जाए
अपने नटखट कामों से
सबका नाच नचैया है
दक्ष तो कृष्णा कन्हैया है , सबका कृष्ण ....

दक्ष जहां हो धूम मचाए
उछले-कूदे , हँसे - हँसाए
सदा हँसे यह इसी तरह से
माँ ले रही बलिया है
दक्ष तो कृष्णा कन्हैया है , सबका कृष्ण ....

       आशीर्वचन  
चाँद-सितारों से है प्यारा
नन्हा-मुन्ना दक्ष हमारा
मात-पिता की आँख का तारा
सुन्दर,नटखट सबसे न्यारा . 

ईश्वर कि हो कृपा दक्ष पर
बुद्धि,विवेक,मेधा विकसित हो
शरीर हो पुष्ट,सबल,सुन्दर
सद्गुण की न कोई कमी हो .

दो वर्षों का दक्ष हुआ है
बहुत बधाई जन्म दिवस कि
नित सबको आनंद यह देवे
जैसे हो फुहार पावस की .









सोमवार, 15 अप्रैल 2013

बोधगया


यात्रा संस्मरण :
                               बोधगया
हमने अप्रेल २०१३ में बिहार की यात्रा की जिसका विवरण आगामी अंकों में प्रकाशित किया जायगा . इस अंक में हम केवल बोधगया की चर्चा करेंगे .गया पटना के दक्षिण में १०० किमी दूरी पर कोलकाता – दिल्ली मार्ग पर जी टी रोड पर फाल्गू नदी के तट पर स्थित है. फाल्गू नदी के तट पर ही गया से १५ किमी दूर बोधगया है . यह वह स्थान है जहां २५०० वर्ष पूर्व शाक्य राजकुमार सिद्धार्थ को वर्षों की तपस्या के पश्चात ज्ञान प्राप्त हुआ था और वे बुद्ध बन गए थे .अतः यह बौद्ध मतावलंबियों के लिए पवित्रतम तीर्थ स्थान है जहां विश्व के  अनेक देशों से बौद्ध एवं अन्य लोग शान्ति प्राप्त करने आते हैं .
  जिस पीपल के वृक्ष के नीचे भगवान् बुद्ध को जीवन के सत्य के दर्शन हुए थे , वर्तमान पीपल का विशाल वृक्ष  उसकी पांचवीं पीढ़ी का  माना जाता है . वृक्ष के नीचे पूर्व कि ओर मुंह करके बुद्ध समाधिस्थ हुए थे , सम्राट अशोक ने ईसा से तीसरी शती पूर्व ,वहां पर एक स्तूप बनवा दिया था . लगभग ३०० वर्षों बाद कुषाण काल में उसका पुनुरुद्धार करवाया गया  .पांचवीं शती में कुमारगुप्त के काल में इसका जीर्णोद्धार श्रीलंका के राजा ने करवाया था . कालान्तर में यह विस्मृत सा हो गया. इसकी  वर्तमान खोज  १८८३ में सर अलेक्जेंडर कनिंघम ने की थी .उसने आसपास के क्षेत्र की खुदाई करवाकर इसकी पुनः प्रतिष्ठा स्थापित की.
  उसी पुराने स्थान पर वर्तमान में बोधिगया का भव्य मंदिर स्थित है . उसके पीछे विशाल पीपल का वृक्ष ,जो  बोधिवृक्ष के नाम से विख्यात है , आज भी आकर्षण का प्रबल केंद्र है . मंदिर का आधार ४८ वर्ग फीट तथा कुल ऊंचाई १७० फीट है .मंदिर के अन्दर काले पत्थर की बुद्ध भगवान् की विशाल प्रतिमा शोभायमान हो रही है . इस परिसर में अनेक स्तूप भी बने हुए हैं . मंदिर बाहर से भी कलापूर्ण एवं सुन्दर है .कहा जाता है कि मंदिर के अन्दर लगी हुई रेलिंग ईसापूर्व प्रथम सदी की है की  है.
    बोधगया एक धर्म ग्राम है  जहां आकर मन श्रद्धा से भर उठता है तथा शान्ति का अनुभव करता है . यहाँ पर अनेक बौद्ध देशों के मंदिर हैं जो अपनी भव्य वास्तु शैली एवं मूर्तिकला से श्रद्धालुओं के मन को आनंद से भर देते हैं .यहाँ पर चीन , जापान , भूटान . तिब्बत .थाईलैंड आल इण्डिया भिक्षु समाज , दायजोकियो आदि मंदिर आकर्षण के प्रबल केंद्र हैं . बुद्ध कि खुली विशाल प्रस्तर प्रतिमाएं देखकर ऐसा लगता है कि आप साक्षात भगवान् के सम्मुख खड़े हों .
    बोधिमंदिर के परिसर में आदि शंकराचार्य कि समाधि भी है. जानकारी के अभाव एवं यात्रा में विलम्ब के कारण हमारे पास समय कम था . हमने गया से एक ऑटो कर लिया था . शाम के ६ बज चुके थे अतः हम विभिन्न मंदिरों में बैठकर ध्यान नहीं कर सके परन्तु हमने दर्शन अधिकाँश मंदिरों में  कर लिए थे .बौद्धगया में कम से कम एक पूरा दिन तो भ्रमण करना ही चाहिए ताकि विभिन्न देशों द्वारा निर्मित मंदिरों के कला सौन्दर्य को अच्छी प्रकार देख सकें तथा भगवान् बुद्ध का सानिद्ध्य प्राप्त कर सकें .         
                                             सुप्रीत खत्री

रविवार, 14 अप्रैल 2013

नौकर देश का निर्माण नहीं कर सकते

रजत पथ के वर्ष ४ अंक ३ ( दिस-जन २०१३ ) के अंक में डा. ए.डी .ने भारत के नौकर शाहों कि मानसिक प्रवृत्ति एवं क्षमता का विश्लेषण करते हुए यह निष्कर्ष निकाला था कि ये देश का निर्माण नहीं कर सकते हैं .

३५ से ४० वर्ष तक नौकरी करने के बाद वे पुनः नेताओं के सामने बेरोजगार बनकर खड़े होते है कि उन्हें पुनः कहीं पर शाही नौकर बना दिया जाय ताकि वे पद , मान और धन का जीवन भर आनंद उठाते रहें . वित्तीय वर्ष २०१२-१३ समाप्त होते -होते झारखंड में यह तथ्य पूरी तरह से सत्य सिद्ध हो गया . राज्य में वर्ष २०१२-१३ के लिए योजना आकार १६३०० करोड़ रुपये का था जिसमें से वे एक तिहाई राशि व्यय ही नहीं कर पाए.३१ मार्च , रविवार के दिन ही लगभग १५०० करोड़ रुपये का आहरण किया गया .यह भी कहा जा रहा है कि केंद्र ने योजना व्यय के लिए कम धन दिया जिससे लगभग ३००० करोड़ रुपये कम प्राप्त हुए . क्या यह आश्चर्य नहीं है कि जहां अन्य राज्य व्यय के लिए अधिक धन की मांग करते रहते हैं , झारखंड जैसा पिछड़ा राज्य स्वीकृत व्यय का एक तिहाई भाग खर्च ही नहीं कर पाता है. १८ जनवरी २०१३ से वहां पर राष्ट्रपति शासन है अर्थात सारा कार्य मुख्य सचिव , प्रमुख सचिव, आयुक्तों आदि को ही करना था . परन्तु चार्ट में देखिये सभी विभागों ने अपना निर्धारित व्यय नहीं किया . अर्थात प्रायः सभी नौकर शाह शाही ठाट बात से तो रहते रहे परन्तु उन्होंने गरीब जनता के धन का उपयोग नहीं किया . महिला कल्याण विभाग कि एक महिला कर्मचारी ने जब यह समाचार पढ़ा तो बहुत दुखी होते हुए कहा , ‘’आँगन बाड़ी में महिलायें –बच्चे आते थे परन्तु उनके लिए आहार के लिए पैसे न होने से बेचारे वैसे ही चले जाते थे और देखो ये इतना-इतना रुपया धरे बैठे रहे और अब वापस कर रहे हैं .”

झारखंड में रूपये खर्च न कर पाने कि पुरानी परंपरा रही है जो पिछले १० वर्षो में सरेंडर किये गए अरबों रुपयों से स्पष्ट होती है .इससे तीन बाते स्पष्ट हो जाती हैं – पहली ,अयोग्य अधिकारियों को योजना बनाना ही नहीं आता .वे ए सी कमरों में बैठ कर अललटप्पू ढंग से कुछ भी बजट बना देते हैं .दूसरी उन्हें राज्य में चलने वाली योजनाओं का कोई ज्ञान नहीं है , न ही उन्हें कुछ जानने की आवश्यकता है .इसलिए (तीसरी)राज्य में जो व्यय किये जायेंगे घपलों और भ्रष्टाचार से घिरे होंगे . इतने छोटे से राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा अरबों रुपयों के घोटाले के लिए विश्व में प्रसिद्द हो चुके हैं. यदि वर्तमान में कोई नेता या अधिकारी भ्रष्टाचार में नाम नहीं कमा रहा है तो यह अवस्था भ्रष्टाचार कि संभावना को समाप्त नहीं करती है . काश ये नौकर न होकर योग्य प्रशासक होते तो आज देश कि यह स्थिति न होती .

अंग्रेजों ने भारत को एक मजबूत प्रशासनिक व्यवस्था दी थी जिसके कारण देश का शासन चल रहा है .काश ये प्रशासक योग्य होते तो देश कि यह स्थिति न होती .भारत में लोकतंत्र कभी रहा ही नहीं . प्रजातंत्र (जिसमें ५ वर्षो में जनता अपना राजा चुनकर पुनः असहाय प्रजा बन जाती है ) था, तो अब यह सामंतवाद में परिवर्तित हो गया है जिसमें देश के कुछ चुने हुए सामंत, क्षत्रप देश को बांटकर मौज कर रहे हैं . जनता सबको टुकुर-टुकुर देख रही है जैसे कोई बड़ा तमाशा होने वाला हो .

सोमवार, 8 अप्रैल 2013

बिल्ली और बन्दर

बिल्ली और बन्दर 
दो बिल्लियाँ साथ थीं रहती 
साथ खेलतीं , साथ दौड़तीं 
खाने  का जब अवसर आता
 आपस में वे खूब झगड़तीं  .

एक बिल्ली ने रोटी पाई
 रोटी लेकर घर को आई 
दूसरी को भी भूख लगी थी 
दोनों में छिड़ गई लड़ाई .

लड़ते-लड़ते थक गईं दोनों 
भूखी बैठ लगी सुस्ताने 
बन्दर मामा उधर से निकले 
लगे उनका झगडा सुलझाने .

बन्दर एक तराजू लाया 
दो टुकड़े कर लगा तौलने 
जो टुकड़ा भारी पड़  जाता 
काट उसे लगता  खुद खाने .

रोटी तोड़ वह खाता जाता 
भूखी बिल्लियाँ देखती जाएँ 
 बन्दर की चालाकी समझीं 
अपने लड़ने पर अब पछ्ताएं। 
.
बिल्ली बोली बन्दर मामा से 
तुम जाओ हम बाँट के खाएं 
बन्दर बोल म्हणत मेरी 
क्यों हम रोटी छोड़ के जाए ?

बची रोटी को मुंह में डाल 
बन्दर ने अपनी भूख मिटाई 
बिल्लियों की तरह ठगे जाते हैं 
 जो आपस में करें लड़ाई .