शनिवार, 22 जून 2013

राष्ट्र ,राष्ट्र-संपत्ति ,राष्ट्र की शक्ति


राष्ट्र
एक धर्म और एक हो संस्कृति ,      
प्रेम का उनमें हो विस्तार .
धर्म और संस्कृति भिन्न-भिन्न हों
पर उनके हों एक विचार .
प्राकृतिक सम्पदा राष्ट्र की समझें
राष्ट्र भाषा सशक्त  विकसित हो
लोगों में हो सहयोग परस्पर
किसी को द्वेष की नहीं अनुमति हो .
हीनता-श्रेष्ठता भाव का जिसमें
कोई बीज नहीं बोता  है
शोषण मुक्त समाज जहां हो
राष्ट्र वही स्थिर होता है

राष्ट्र –संपत्ति
लोग,चरित्र,श्रम और मेधा,
संस्कृति,भाषा ,शिक्षा,विज्ञान .
भूमि,कृषि, उद्योग-व्यवसाय ,
जल,पर्वत, वन,धन और खान.
राष्ट्र सपत्ति के ये हैं अवयव  
इनमें हो सही सामंजस्य,
कुशल प्रशासन ,न्याय त्वरित हो
अच्छे राष्ट्र का यही रहस्य .

राष्ट्र की शक्ति
धन नहीं करता  राष्ट्र समृद्ध
लोग होते हैं उसकी शक्ति
लोग वाही जो हों निःस्वार्थ
राष्ट्र के प्रति रखते हो भक्ति.
जो राष्ट्र के लिए समर्पित हों
मेधा, विवेक से हों भरपूर  
ज्ञान-विज्ञान ,श्रम,स्वाभिमान हो
लालच,ईर्ष्या से रहते दूर .
शौर्य,साहस, उत्साह प्रबल हो
जीवन बलिदान को तत्पर हों
कैसी भी परिस्थितियां हो
वे राष्ट्र कार्य में स्थिर हों .
मानव शक्ति रहे कमजोर
धन - संपदा के हों भण्डार
सर्वस्व विदेशी हर लेते हैं
राष्ट्र का होता बंटाढार .
आज जो उन्नत राष्ट्र हैं दीखते
उनके लोग समर्पित थे
निजी स्वार्थ था उनमें गौण
वे राष्ट्र - समृद्धि को अर्पित थे
शौर्य, विवेक, विज्ञान –तकनीकें
दूरदृष्टि उनकी अविचल थी
विद्वानों के प्रति अगाध श्रद्धा
उनकी राष्ट्र-भक्ति अचल थी.
कभी भारत था धन की खान
समृद्धि राष्ट्र की थी पहचान  
लूट लिया लुटेरों ने धन
अनेकों लोग हुए कुर्बान .
अफगानिस्तान ने लूट के भारत
अपने थे भण्डार भरे
आज भी वे निर्धन तो हैं ही
अविवेक के कारण  स्वयं मारें .
अमरीका में लोग थे रहते
प्राकृतिक सम्पदा विपुल भरी थी
मेधा,विवेक विज्ञान नहीं थी
 राष्ट्र भावना नहीं बढ़ी थी .
लोग थे निर्धन और असहाय
प्राकृतिक जीवन जीते थे
यूरोपियों की ताकत के आगे
वे कुछ भी नहीं कर सकते थे .
वही अमरीका, वही सम्पदा
श्रम-ज्ञान से सिंचित हो गए
बना समृद्ध और उन्नत देश
वे विकास का अर्थ बन गए



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