शनिवार, 22 जून 2013

प्रलय क्यों ?


प्रलय क्यों ?
इंद्र देव क्यों कुपित हो गए ,
आसमान क्यों फटते जाते ?
ईश्वर , हमसे भूल हुई क्या
मेघ क्यों तांडव करते जाते ?

प्रलयंकारी जल की धारा
आसमान से क्यों बहती है ?
जान-माल की क्षति  है होती
सभ्यता क्यों नष्ट होती है ?

मचल- मचल कर पानी बहता
नदियाँ उफन-उफन कर चलतीं.
रास्ते में जो भी मिल जाए
कहीं दया का भाव न रखतीं.

पर्वत मालाएं टूट रही हैं
बड़ी-बड़ी चट्टानें गिरतीं
मार्ग सभी अवरुद्ध हो गए
संकट में कई जानें अटकीं.

भवन हैं गिरते, वृक्ष हैं गिरते
व्यक्ति-पशु सब बहते जाते
जीवन कितना क्षण भंगुर है
इसी तथ्य की याद दिलाते.

प्रलयकाल में सभी बराबर
न कोइ बूढ़ा, न कोई बच्चा
प्रकृति कोप से बचे न कोई
वह हो झूठा या हो सच्चा.

मानव कितना समृद्ध हो गया
प्रकृति पर है अधिकार जताता
अनेकों कार्य स्वयं हो जाते
मनुष्य दूर से बटन दबाता.

 प्रकृति के अनेक रहस्य हैं खोले
अन्तरिक्ष में भी है कदम बढ़ाता 
जीवन रहस्य का भेद खोलने
मनुज है आगे बढ़ता जाता .

ये प्राकृतिक आपाद घटनाएं
कितनी प्रबल क्रूर होती हैं
क्षण भर में विनाश कर देतीं
मानवता रोती रहती है .

हे  ईश्वर !हम शरण में तेरी
आत्मा में एक ज्योति जलाओ
जीवन क्या और मृत्यु है क्या
इसका कुछ रहस्य समझाओ .

क्या है मेरा, क्या है तेरा
इसको कोई समझ न पाता
जब कह दे वह ‘तेरा- तेरा’
वह ईश्वर का है हो जाता .




  



   

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