प्रलय और फ़रिश्ते
चार धाम यात्रा को आए
देश के कई भागों से भक्त ,
स्त्री,पुरुष,शिशु,युवा वृद्ध
कई दुर्बल थे ,कई सशक्त.१.
मौसम था अत्यंत सुहाना
भक्तों में थी भरी उमंग,
जय हर-हर,जय बद्रीश्वर
जय यमनोत्री-गंगोत्री की तरंग.२.
ध्यान-अर्चना भक्त कर रहे
सघन मेघों ने चाल चली,
चुपके-चुपके सबको घेरा
व्यूह रचना कुछ ऐसी की.३.
प्रलय मचे कोई भाग न पाए
छोटे–बड़े का न कोई भेद,
पल भर भी कोई सोच न पाए
वह गोरा हो या हो श्वेत.४.
नभ में तीव्र गर्जना करके
क्षण भर में यूं मेघ फटे,
परमाणु बम हाथों में लेकर
जैसे हों यमराज डेट.५.
नभ में भारी विस्फोट हुआ
फटे मेघ सब एक ही साथ,
तिनके से सब बहने लग गए
किसी के कुछ आया न हाथ.६.
हिमालय के श्रृंग टूट-टूट कर
लुढ़के जलधारा के संग,
रास्ते में जो कुछ भी आया
बहा ले गए अपने संग.७.
प्रलय ने रूप धरा विकराल
उफनती धारा में था आक्रोश,
नदी-नाले सब रौद्र हुए
विनाश का उरमें ले कर जोश.८.
पर्वत मालाएं टूट रही थीं
भवन गिरे मिट्टी की भांति,
क्षण भर में वीरान हुआ सब
विलुप्त हुई मंदिर की कांति.९.
स्त्री-पुरुष,बड़े और छोटे
जल-विप्लव में लीन हुए,
हाहाकार मचाते थे स्वर
केदार घाटी में विलीन हुए.१०.
कारें बहीं, मोटरें बह गईं
बड़े-बड़े घर -हाट बहे
उनमें जो जन-माल निहित था
तांडव में सब अदृश्य हुए.११.
जीवित जो जन शेष रहे
विकराल काल के मुंह में थे,
पत्थर थे किसी को कुचल रहे
कोई उफनती नदीमें बहते थे.१२.
जिनमें साहस था भरा हुआ, बुद्धि भी जिनकी सक्रिय थी,
वे ऊंचाई पर जा पहुंचे
जीव की आस असीमित थी.१३.
वे जल-विप्लव को देख रहे
असहाय थे बंधु बचाने को,
उनके प्रिय सामने बिछुड़ रहे
जीवन था मृत्यु में जाने को.१४.
मेघों का तांडव शांत हुआ
लोगों की साँसे चलती थीं,
सड़कें टूटीं, खाई बन गईं
उस दृश्यसे आत्मा डरती थी.१५.
सामान बह गया नदियों में
भोजन पानी भी पास न था,
पत्थरों की राह अजनबी थी,
जीवित बचनेका मार्ग न था.१६.
कुछ यहाँ, कुछ वहां पड़े हुए
जीवन की घड़ियाँ गिनते थे,
हे ईश्वर! अब तो दया करो
कर वद्ध प्रार्थना करते थे.१७.
लोगों की जान बचाने को
भारतीय जवान बढ़े आगे,
कोई धरती पर कोई आसमाँ में
जन-जन को बचाने को भागे.१८.
कोई नदी पर पुल थे बाँध रहे,
कोई रस्सी से मार्ग बनाते थे,
असहाय और रोगी लोगों को
कोई
कन्धों पर ले जाते थे.१९.
उनके पास जो भोजन था
उसको भी थे वे बाँट रहे,
बस एक ही जज़्बा दिल में था
सही सलामत सब निकलें.२०.
हेलीकाप्टर आपरेशन कर
दूर फंसे हुए लोग निकाले,
जितना भी संभव हो सकता
जी-जान से जुटे थे मतवाले.२१.
हज़ारों को जीवन दान दिया
निज घर पहुंचे आबाद हुए,
सब एक ही बात रहे कहते
फ़रिश्ते वहां साकार हुए.२२.
श्रम और साहस से कार्य किया
सेना ने हार नहीं मानी,
जनता की सेवा करने में
दे दी अपनी भी क़ुरबानी.२३.
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