उच्च शिक्षा के लिए राज्य सरकारों की स्थिति बहुत स्पष्ट है . ऐसा पढाओ कि लोग लिख पढ़ भी न सकें ताकि उनके द्वारा किये जा रहे घपलों की व्यापकता वे समझ ही न पाएं . म. प्र. इसमें अग्रणी है . अप्रेल २००८ में प्राचार्यों की बैठक में जबरन सेमेस्टर सिस्टम लागू करने की नीति का विरोध करते हुए मैंने प्रमुख सचिव एवं आयुक्त उच्च शिक्षा से कहा था कि जिस तरह से वे सेमेस्टर सिस्टम लागू करना चाहते हैं उससे तो छात्रों का भविष्य ही चौपट हो जायगा . मेरी पहली आपत्ति थी कि एक परीक्षा करवाने में ३ माह से अधिक समय लगता है ऐसी ही दो सेमेस्टर और एक पुरानी परीक्षा करवाने में ही १० माह लग जायेंगे , पढाई कब होगी ? दूसरी आपत्ति यह रखी कि जब विश्विद्यालय १००० से भी कम छात्रों वाली पी.जी.डी.सी. ए. परीक्षा एक के स्थान पर दो साल में करवा पाता है तो हजारों छात्रों का परिणाम कितने समय में आयगा ? मेरी आपत्तियों को दर किनार करके सेमेस्टर लागू हो गए और सब देख रहे है कि लाखों छात्रों का साल बर्बाद हो गया . परीक्षा व्यवस्था और परीक्षक ऐसे बनाए कि बिना कक्षाएं लगे ही अधिकाँश छात्र अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हो गए . ये छात्र किस प्रतियोगिता में टिक पाएंगे ? कालेजो में निर्माण कार्य अधिकांशतः पी. डब्ल्यू. डी. या किसी अन्य सरकारी विभाग द्वारा किये जाते है जिनका काम प्राचार्य से पैसे झटक लेना होता है उसके बाद किसी की जिम्मेदारी नहीं होती है . कम्प्युटर जैसी मशीनरी क्रय करवाने के लिए भी सरकारी लोग या उनके एजेंट सक्रिय रहते हैं . मशीनरी के रखरखाव के लिए स्टाफ दिया नहीं जाता . अतः वह पड़ी-पड़ी खराब हो जाती है . बिचौलियों कि तो आय हो ही गई .पूर्व सरकार ने भी इसी लिए कर्ज लिया था , यह भी कुछ वैसा ही करेगी . क्योंकि जब पढाई ही नहीं होती , कक्षाएं ही नहीं लगती , मशीनें बेचारी क्या कर लेंगी ? सरकार अपनी ओर से तो बचे खुचे प्राध्यापकों को वेतन दे दे वही बहुत है .
अमेरिका के स्टैन फोर्ड निजी विश्विद्यालय के पास ८१८० हेक्टेअर भूमि है , वहां पर उसने वर्ष २००८ में ६८.८ करोड़ डालर केवल शोध कार्यों पर ही व्यय किये थे .वहां महज १५ हजार बच्चे पढ़ते हैं और १९१० का स्टाफ है .वे अमेरिका में ही लाखों रुपये देने वाले हजारों छात्रों को प्रवेश नहीं दे पाते हैं . कलिफ़ोर्निया विश्विद्यालय के १० शहरों में कैम्पस हैं . उसके पास बर्कले में ६६५१ तथा सैन डिएगो में २२०० हेक्टे अर भूमि है. २००८ में उसने शोध पर केवल सैन डिएगो में ही ८४.२ करोड़ डालर व्यय किये थे जब मंदी चल रही थी . क्या सरकार इतनी भूमि म.प्र. में भी उन्हें देगी और वहां के नोबेल पुरस्कार प्राप्त प्राध्यापकों से यहाँ पढ़ वाएगी या उन विश्विद्यालयों से पढ़ वाएगी जो वहां अवैध ढंग से काम कर रहें हैं और उनमे अनेक भारतीय बच्चे भी फंस चुके हैं .देश में शिक्षा के व्यापारिओं ने अपने विश्विद्यालयों तथा महाविद्यालयों को इसी लिए बर्बाद कर दिया है कि लोग इनसे घृणा करें और विदेशी यों की ओर दौड़ें .अपने विश्विद्यालय जहां सरकारों पर बोझ बन चुके हैं , विदेशी संस्थान पैसे देंगे .वे पैसे तभी देंगे जब वे यहाँ से कमाएंगे . सारी जनता देख रही है कि निजी संस्थान एक के बाद अनेक संस्थान खोल रहे हैं , उन्हें कमाई हो रही फिर शासन स्वयं अपने संस्थान क्यों नहीं खोलकर अपनी आय बढाते हैं ? एक ही बात है कि सारी व्यवस्था ही निकम्मी हो गई है और इस निकम्मी व्यवस्था से बर्बादी के अतिरिक्त कोई आशा करना व्यर्थ है .
यही स्थिति सारे प्रदेशों की है क्योंकि उन्हें केंद्र का समर्थन प्राप्त है .विदेशों में जो काला धन जमा किया जाता है वह प्रायः विदेशी सौदों से ही मिलता है . विदेशी विश्वविद्यालयों को अनुमति देना ऐसा सौदा है जिसमें कैग के आडिट में फंसने की भी कोई सम्भावना नहीं है .अतः कोई अडंगा न लगा सके , कोई विदेशी संस्थानों के विरुद्ध प्रदर्शन , आन्दोलन न कर सके , केंद्र सरकार ऐसे क़ानून बनाने के लिए प्रतिबद्ध है .इन निकम्मे नेताओं से कोई पूछे कि विदेशों से कुछ लाना ही था तो 'शिक्षा का स्तर 'लाते , अपने विश्विद्यालयों को विश्व स्तर का बनाने का प्रयास करते,नियमित प्राध्यापकों की नियुक्ति करते, उन्हें शोध की सुविधा और प्रेरणा देते .वर्तमान सरकार उदारीकरण (उधारीकरण) के नाम पर भ्रष्टाचार करने के लिए उदारता पूर्वक सब से कर्जे लेकर देश की भावी पीढ़ी को यूरोप के संकट ग्रस्त देशों के समान मुसीबत में डालने का जो कुत्सित प्रयास कर रही है वह घोर अपराध ही नहीं पाप भी है .देश के ठगों को तो ये सरकार पकड़ नहीं पाती ,कोई विदेशी लूट कर ले जाएगा तो रपट भी दर्ज नहीं होगी जैसे भोपाल गैस कांड में हजारों निर्दोष लोगों के हत्यारे एंडरसन के विरुद्ध आपराधिक मामला दर्ज करने के स्थान पर देश के तथाकथित रहनुमाओं ने उन्हें बाइज्जत , सुरक्षित उनके घर अमेरिका तक पहुंचवाया था .विदेशी विश्विद्यालय हिन्दुस्तान में फ्रेंचाइसी देकर शिक्षा -सेवा के नाम पर बिना कोई कर दिए खुला व्यापार करेंगे ताकि अपने और अपने देश के लिए धन कमा सके . अपनों को बर्बाद और परायों को आबाद करने का सरकारी सूत्र है ' परहित सरिस धरम नहीं भाई '. पराया जितना पराया होगा , जितनी दूर का होगा उतना ही पुण्य लाभ मिलेगा जो सीधा विदेशी खातों में जमा हो जाएगा .इसलिए ये लोग किसी की बात सुनने के लिए तैयार नहीं हैं .
डा. ए. डी खत्री , एडवोकेट एवं पत्रकार , भोपाल ( पूर्व प्राचार्य , च. शे. आ.शा. अग्रणी स्नातकोत्तर महाविद्यालय , सीहोर , म. प्र.)
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