शुक्रवार, 18 अप्रैल 2014

चुनाव सुधार (1): स्वतन्त्र मतदान

                            चुनाव सुधार (1): स्वतन्त्र मतदान 
लोकतंत्र वह व्यवस्था है जो  नागरिकों की सामान्य इच्छा (. इसमें इस्लामिक देशों में लोगों की इस्लाम के अनुसार शासन चलाने की इच्छा और कम्युनिस्ट या अन्य तानाशाहों द्वारा जबरन थोपी गई सामान्य इच्छा सम्मिलित नहीं हैं ) के अनुसार जनता द्वारा  स्थापित , संचालित एवं नियंत्रित होती है . धर्म एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र का अनिवार्य तत्व है . लोक तंत्र में सबसे पहला काम शासन व्यवस्था स्थापित करना है . कार्यपालिका के अधिकारीयों –कर्मचारियों की नियुक्ति तो विभिन्न लोक सेवा आयोगों के माध्यम से होती है परन्तु कार्यपालिका प्रमुख अर्थात राष्ट्रपति या प्रधान मंत्री या कोई अन्य पदाधिकारी का निर्वाचन लोगों द्वारा होता है या इन चुने हुए सदस्यों द्वरा होता है . जितने भी पदों पर निर्वाचन होता है वहां मतदान करने तथा चुनाव लड़ने की स्वतंत्रता होनी चाहिए .
   निर्वाचन का प्रथम पद उमीदवारों का चयन है . अधिकांश स्थितियों में यह कार्य राजनीतिक दल के प्रमुख सामन्त , सुप्रीमो या हाई कमान कहे जाने वाले लोग या लोगों द्वारा होता है . भारत जैसे अनेक देशों में चुनाव लड़ने का टिकट वंशवाद, निकट सम्बन्ध, जाति, धर्म, धन ( घूंस, सामंत को धन देना ), बाहु-बल या खास वफादार चमचों को ही दिया जाता है . समस्याओं को समझने की योग्यता कोई मापदंड नहीं होता है . परिणाम स्वरूप अपने दल में तो सामंत की मनमानी तानाशाही चलती ही है, वह अपनी पार्टी के चुने हुए सदस्यों अर्थात उन सदस्यों की संख्या के आधार पर देश की राजनीति में भी अपने हिस्से की मांग करता है और देश को लूटता रहता है  जिसे सामान्य भाषा में जन साधारण भ्रष्टाचार कहते हैं . शेष सारी समस्याएं इसी कारण  बढ़ती जाती हैं . यदि चुने गए सदस्य योग्य होंगे तो काम करेंगे अन्यथा सदन में हो-हल्ला और उत्पात करेंगे जैसा वर्तमान में होता है . इसलिए निर्वाचन में ये सुधार करने होंगे –
१.     सदन में चुने जाने वाले सदस्यों का चयन दल के सक्रिय सदस्यों के द्वारा होना चाहिए (न कि उसके सामंत या हाई कमान द्वारा) जैसा कि अमेरिका में होता है . इसलिए वहां के चुने गए प्रतिनिधि व्यक्ति, समाज एवं देश की समस्याओं को समझते हैं और उनके समाधान निकालने में तत्पर रहते हैं .
२.     किसी व्यक्ति को दो पदों पर एक साथ चुनाव लड़ने का अधिकार नहीं दिया जाना चाहिए . यदि इसे नहीं रोका जा सकता तो दो स्थानों से चुना गया व्यक्ति जिस निर्वाचन क्षेत्र से त्यागपत्र देता है , वहां पर द्वितीय स्थान पर रहने वाले उम्मीदवार को , वह जो भी हो उस रिक्त स्थान का प्रतिनिधि बना देना चाहिए . इसी प्रकार कोई विधायक रहते हुए सांसद का चुनाव लड़ता है या सांसद रहते हुए विधायक का , उसका पद रिक्त होते ही पूर्व चुनाव में दूसरे स्थान पर रहे व्यक्ति को उस क्षेत्र का प्रतिनिधि बना देना चाहिए .
३.     किसी अस्सी वर्ष से ऊपर आयु के अथवा अस्वस्थ रहने वाले व्यक्ति को चुना जाता है और बीमारी या आकस्मिक रूप से उसका निधन हो जाता है तो भी दूसरे स्थान पर रहने वाले व्यक्ति को सदस्य चुन लेना चाहिए . यहाँ यह देखना न्यायलय का कार्य होगा कि कहीं उसका मृत्यु किसी षड्यंत्र के द्वारा तो नहीं हुई है .
४.     यथा संभव चुनाव एक साथ होने चाहिए . म. प्र. के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बुदनी और विदिशा से चुनाव जीते हैं . वे एक सीट छोड़ेंगे . उस पर अभी संसद के चुनाव के साथ चुनाव करवाया जाना चाहिए था . इससे जनता धन की सामन्ती बर्बादी कम होगी .
५.     चुनाव के पूर्व किसी व्यक्ति को प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री घोषित करना संविधान के विरुद्ध है क्योंकि उसमें लिखा है कि लोकसभा या विधानसभा में बहुमत प्राप्त नेता प्रधान मंत्री या मुख्य मंत्री होगा . नाम घोषित होने पर  वह अपनी पसंद के लोगों को ही टिकट देगा और जनता को उनके चमचों को चुनना पड़ेगा . इससे चुनाव के बाद उसकी तानाशाही होना स्वाभाविक है . यूपीए की नेता सोनिया गाँधी ने लोकसभा के बाहर से लाकर डा. मनमोहन सिंह को प्रधान मंत्री बनाया , यह प्रत्यक्ष सामंती तानाशाही थी .
६.     सदन के नेता चुनने में या मंत्रिमंडल बचाने के लिए मतदान के समय व्हिप जारी करना लोकतंत्र का क्रूर मजाक है . दल बदल रोकने के नाम पर लोकतंत्र का गला घोंटा गया और न्यायलय चुप रहे . जो लोग इसके द्वारा सदस्यों की गद्दारी रोकने की बात करते हैं , वे ऐसे सिद्धान्हीन, मक्कारों और दुष्टों को घूंस लेकर टिकट देने के स्थान पर योग्यता के आधार पर टिकट देंगे तो ऐसी स्थितियां नहीं पैदा होंगी .
७.     इसी प्रकार राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति या सदन के अध्यक्ष पद के चुनाव में भी व्हिप जारी करना  लोकतंत्र पर कलंक है . यह उन लाखों लोगों के प्रतिनिधित्व पर डाका है जिनके प्रतिनिधियों को जबरन वोट देने, न देने या बहिष्कार करने का अपने सामंत का आदेश जबरन मानना पड़ता है . हमारे देश के अंधे कानून में एक व्यक्ति को मतदान देने से रोकने वाले के लिए तो सज़ा का प्रावधान है परन्तु सामंतों द्वारा थोक के भाव से वोट लूटने या वोट डालने से रोकने के लिए कोई कानून नहीं है क्योंकि न्यायालय इन सामंतों को राजा तुल्य मानते हैं और उनके मनमानी करने का अधिकार को स्वीकार करते हैं .
८.     राज्य सभा का सदस्य दूसरे राज्य से लाकर नहीं थोपा जाना चाहिए और न ही किसी लुटे-पिटे नेता  को बनाया जाना चाहिए . इसमें उद्योग, व्यवसाय, कृषि, शिक्षा , कला, साहित्य, फिल्म, खेल, सुरक्षा, प्रशासन, विभिन्न सेवाओं जैसे डाक्टर, वकील, चार्टर्ड एकाउंटेंट आदि विभिन्न क्षेत्रों  के योग्य लोगों को चुना जाना चाहिए ताकि वे देश की प्रगति का मार्ग निर्धारित कर सकें .   
लोकतंत्र के लिए प्रत्येक स्तर पर मतदान करने की स्वतंत्रता सुनिश्चित होनी चाहिए. यदि दलों के तानाशाह यह कार्य नहीं करते हैं तो न्यायालयों का दायित्व है कि वे प्रत्येक स्तर पर लोकतंत्र विरोधी कानूनों को समाप्त करें और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तथा मतदान के मौलिक अधिकार को पुनर्स्थापित करें .       

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें