लैंगसटन ह्युगिस
प्रख्यात अफ्रीकी अमेरिकी कवि जेम्स लैंगसटन ह्युगिस १ फरवरी १९०२ को जलीं मिसौरी,अमेरिका में हुआ था .जब वह छोटा था , उसके पिता उसकी माँ को तलाक देकर मैक्सिको चले गए .उसकी माँ को काम के लिए इधर -उधर जाना पड़ता था ,अतः उसका लालन-पालन उसकी नानी ने किया जो उसे नीग्रो लोगों कि कहानियाँ सुनती रहती थी .उसकी प्राम्भिक शिक्षा उन्हीं के पास हुई . उसके बाद वह अपनी माता तथा उसके पति के पास लिंकन , इलिनाय चले गए . वे बाद में ओहियो जाकर रहने लगे .हाई स्कूल ग्रजुएट होने बाद उन्होंने आजीविका के लिए रसोइये,धोबी तथा बस क्लीनर के काम किये उसके बाद जलपोत श्रमिक के रूप में काम करते हुए अफ़्रीकी यूरोप देशों के यात्राएं भी कीं . इस मध्य वे अपने पिता के पास मक्सिको भी गए तथा पढ़ने के लिए सहायता मांगी . पिता कविता लिए नहीं , केवल इंजीनियरिंग पढ़ने हेतु धन देने के लिए तैयार हुए . वे कोलंबिया विश्वविद्यालय में इंजीनियरिंग पढ़ने लगे परन्तु सहायता बंद होने से उसे छोड़कर बाद मेंपेंसिलवानिया से बी.ए. पास किया . उन्हें एक इतिहासकार के पास सहायक की नौकरी मिली परन्तु कविता के लिए समय न मिलने से उसे छोड़ दिया .१९६७ में कैंसर से उनका निधन हो गया .
लैंगसटन ह्युगिस बचपन से ही कविता करने लगे थे जो पत्र -पत्रिकाओं में छपती रहती थीं .उन्होंने अंग्रेजी साहित्य के विविध पक्षों पर अपनी स्थायी छोड़ी है .उन्होंने १५ उपन्यास, कहानी संग्रह, लेख -संग्रह ,११ नाटक , १४ काव्य , ४ अनूदित रचनाएं , तथा पत्र-पत्रिकाओं के सम्पादन , रेडियो वार्ताएं आदि लिखी हैं .
वे काले लोगों के विभिन्न आंदोलनों से जुड़े रहे . उनके कष्टों के साथ-साथ उनके संगीत , खुशियाँ तथा संस्कृति के विभिन्न आयामों का उन्होंने प्रभाव पूर्ण चित्रण किया है . वे जाज संगीत से प्राम्भ से जुड़े रहे .जीवन में उन्हें अनेक सम्मान मिले . अपनी बात को सरलतम सब्दों में व्यक्त करने में वे सिद्ध हस्त हैं .
मेरे लोग लोकतंत्र
रात्रि खूबसूरत है , लोकतंत्र नहीं आएगा ,
और विसे ही हैं मेरे लोगों के चेहरे . आज, इस वर्ष
सितारे खूबसूरत है , और न कभी
और वैसे ही हैं मेरे लोगों की आँखें . भय और समझौतों से .
खूबसूरत सूर्य भी है , मुझे भी उतना ही अधिकार है ,
खूबसूरत है मेरे लोगों की आत्माएं . जैसे दूसरों को है ,
मैं भी अमरीका गता हूँ . खड़े रहने का ,
मैं एक काला भाई हूँ , अपने ही पैरों पर ,
जब कंपनी आई , तथा भूमि लेने का .
उन्होंने मुझे किचेन में भेज दिया . मेरे कान पाक गए हैं .
परन्तु , मैं हंसा , लोगों से सुनते-सुनते ,
मैंने खूब खाया काम स्वाभाविक रूपसे हो रहे हैं .
और शक्ति शाली हो गया . कल दूसरा दिन है ,
कल, मरने पर मुझे आजादी नहीं चाहिए
जब, कंपनी आएगी , मैं कल की रोटी पर नहीं जी सकता .
मैं मेज पर रहूँगा . स्वतंत्रता ,
मुझे यह कहने का साहस एक दृढ बीज है ,
कोई भी नहीं करेगा - जिसे लगाया गया है , बहुत आवश्यकताओं के समय .
किचेन मेंजाकर खाओ . मैं भी यहाँ रहता हूँ ,
तब, मुझे भी आजादी चाहिए
वे देखेंगे, मैं कितना खूबसूरत हूँ. तुम्हारी तरह .
साथ ही , प्रस्तुति ; डा. ए. डी. खत्री
वे होंगे शर्मिंदा ,
मैं, भी, अमरीका गाता हूँ .
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