मंगलवार, 27 अप्रैल 2010

महिला आरक्षण विधेयक व्यावहारिक हो

भारत में महिला आरक्षण विधेयक राज्य सभा में पारित हो चुका है। विधेयक को बनाने वालों, प्रारूप को स्वीकार करने वालों, सदन में प्रस्तुत करने वालों, उसे पारित करने वालों में से किसी ने भी इस बात का विचार नहीं किया कि इसे लागू करने में क्या समस्याएं आएँगी । यदि यह विधेयक इसी रूप में पारित हो जाता है तो इससे अनेक समस्याएं उत्पन्न होंगी जिनमे से एक तानाशाही भी है। विधेयक के अनुसार यह आरक्षण १५ वर्षों के लिए लागू होगा जिनमे से ५-५ वर्षों के लिए ३ ब्लाकों में क्रमशः एक तिहाई सीटें आरक्षित की जायंगी। प्रथम ब्लाक में एक तिहाही सीटें आरक्षित करके सांसद चुने जाते हैं और दो वर्षों के बाद किन्हीं कारणों से संसद भंग करनी पड़ती है तो क्या किया जायगा;
(अ)आरक्षित सीट पर चुनाव जीतने वाली महिला सांसद ५ वर्षों तक सांसद बनी रहेगी ? , या
(आ) सब के साथ उसकी सदस्यता भी समाप्त हो जाएगी ? इस स्थिति में ,
(१)क्या वह सीट अगले चुनाव में ३ वर्षों के लिए पुनः आरक्षित की जायगी अथवा,
(२)अगले चुनाव में अनारक्षित हो जाएगी ?
यदि वह सीट अनारक्षित की जाएगी तो वह महिला सांसद न्यायालय जा सकती है कि उसका चुनाव ५ वर्षों के लिए किया गया है । उसकी सदस्यता २ वर्षों में समाप्त नहीं की जा सकती है.यदि सीट पुनः ३ वर्षों के लिए आरक्षित की जाती है तो उसे ५ वर्षों से पहले नहीं हटा सकते क्योंकि सांसद का कार्यकाल ५ वर्षो के लिए होता है। यदि हटा भी दें तो क्या ३ वर्षों के बाद वहां पुनः चुनाव करवाएंगे तथा अगले ब्लाक में आरक्षण करेंगे । जो सदस्य वहां से चुनकर सांसद बना है , क्या उसे ३ साल बाद हटा पाएंगे? क्या वह कोर्ट नहीं जायेगा?
इस प्रकार ऐसी अनेक स्थितियां उत्पन्न होंगी कि मुक़दमे दायर होंगे जिनके निर्णय नहीं हो सकेंगे क्योंकि विधेयक में ऐसे प्रावधान नहीं किये गए हैं। निर्णय नहीं होंगे तो यथा स्थिति बनी रहेगी और निर्णय न आने तक चुनाव नहीं हो सकेंगे। ऐसी स्थिति में जो लोग केंद्रीय मंत्रिमंडल में होंगे वे अपनी हुकूमत चलाते रहेंगे । परिणाम स्वरुप उनकी तानाशाही चलने लगेगी तथा आज जो चुनाव हो रहे हैं , वह भी नहीं हो पाएंगे। इसलिए विधेयक में उक्त प्रावधान स्पष्ट होने चाहिए।

डा ए डी खत्री ,भोपाल, मध्य प्रदेश , भारत .Bold

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