सोमवार, 19 सितंबर 2011

अन्ना हजारे , लोकतंत्र और मीडिया

अन्ना हजारे , लोकतंत्र और मीडिया

पद्मभूषण अन्ना हजारे वर्तमान में सर्वधिक चर्चित व्यक्ति हैं . उनका व्यक्तित्व व्यापक तो है ही ,परन्तु उन्हें यह लोकप्रियता मीडिया के सहयोग से ही प्राप्त हुई है . अन्ना हजारे ने लोकतंत्र के जिस प्रमुख विन्दु को उठाने का प्रयास किया , मीडिया ने उस पर ध्यान नहीं दिया . अन्ना हजारे ने कहा कि लोकतंत्र में जनता राजा है . संविधान की प्रस्तावना , ''हम भारत के लोग .....''से प्रारंभ होती है . संविधान , किसी नेता ने नहीं ,भारत के लोगों ने स्वीकृत किया है , अतः जनता सर्वोपरि है और उसकी आवाज सरकार को माननी ही होगी . इस विचार की प्रारंभ से ही उपेक्षा की गई है इसलिए नेता मनमानी करने लगते हैं .. इस सम्बन्ध में प्रधान मंत्री डा. मनमोहन सिंह का बयान भी बहुत विचित्र था . अन्ना के अनशन की समाप्ति पर उनका वक्तव्य ,' पार्लियामेंट की इच्छा ही लोगों की इच्छा है ',पूर्णतयः लोकतंत्र विरोधी है . इसका अर्थ हुआ कि यदि संसद में मंहगाई पर चर्चा के समय अधिकांश सदस्य संसद से गायब थे क्योंकि उनकी दृष्टि में मंहगाई कोई मुद्दा ही नहीं है , का अर्थ हुआ जनता के लिए भी मंहगाई कोई मुद्दा नहीं है . कुछ पत्रों ने उनके वक्तव्य की प्रशंसा भी की . एक अन्य वक्तव्य जिसे मीडिया ने बहुत तूल दिया ,राहुल गाँधी का था कि लोकपाल को संविधान में सम्मिलित किया जाना चाहिए . यह एक सामान्य वक्तव्य है , परन्तु इस पर न्याय मूर्ती संतोष हेगड़े का वक्तव्य भी विचित्र था कि वे राहुल गाँधी से सहमत हैं . आश्चर्य इस बात का है कि न्यायमूर्ति हेगड़े क्या यह बात पहले नहीं जानते थे कि संविधान में न्यायालयों को जो अधिकार दिए गए हैं , यदि किसी संस्था को उसके कार्य क्षेत्र में हस्तक्षेप करने या उससे भी अधिक अधिकार दिए जाते हैं तो यह अधिकार संविधान संशोधन करके ही दिए जा सकते हैं अन्यथा सुप्रीम कोर्ट उस क़ानून को , उस संस्था को अमान्य कर देगा .यदि वे यह सब पहले जानते थे तो उन्होंने अन्ना हजारे को इसके लिए मानसिक रूप से पहले ही क्यों नहीं तैयार किया ? इससे यह स्पष्ट होता है कि मीडिया ने कभी भी लोकतंत्र - संविधान के मुद्दों को गंभीरता से नहीं लिया . इससे ऐसा भी प्रतीत होता है कि मीडिया का कार्य उन सनसनी खेज समाचारों को छापना या दूरदर्शन के चैनलों से प्रसारित करना है जिनसे उन्हें अधिक से अधिक लोकप्रियता मिले .

रविवार, 18 सितंबर 2011

मीडिया और लोकतंत्र

लोकतंत्र और मीडिया
मीडिया स्वयं को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहता है . इसलिए उसे अपना स्वरूप दिखाई ही नहीं पड़ता है .जबकि मीडिया कोई खम्भा नहीं है , वह तो समाज का स्वरूप है और अपने रूप को संवारने का दायित्व भी उसी का है . वास्तविकता यह है कि समाज के सामने लोकतंत्र कि भावना ही स्पष्ट नहीं है . यदि यह हमारी व्यवस्था है तो हम हड़तालें किसके विरुद्ध करते हैं ? यदि यह वास्तव में लोकतंत्र है तो मीडिया किसी नेता पुत्र जैसे राहुल,प्रियंका को देश के एक योग्य नेता के स्थान पर , एक राजकुमार या राजकुमारी और भावी शासक के रूप में किस आधार पर प्रस्तुत करता है ? हमारे पूर्व प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री और अटल बिहारी बाजपेई सामान्य परिवार से थे और आज के अनेक मुख्यमंत्री जैसे शिवराज सिंह चौहान , नरेन्द्र मोदी , मायावती , ममता बनर्जी आदि भी सामान्य परिवारों से हैं . अतः सर्वप्रथम लोकतंत्र की अवधारणा और प्रजातंत्र से उसके अंतर को भी को स्पष्ट रूप से समझना आवश्यक है जो अभी तक केवल 'रजतपथ' पत्रिका में ही दिया गया है .
प्राचीन काल में राजा तलवार की नोक पर बनते थे ,मध्य काल में तोपों और बंदूकों से बनने लगे और प्रजातंत्र में , अब लोगों के वोटों से बन रहे हैं . इसलिए जैसे उन कालों में राजा जनता से प्राप्त टैक्स को अपना समझते थे ,आज भी समझते हैं और उसे बिना किसी शर्म के अपने देशी-विदेशी खातों में जमा कर रहे हैं . फिर इसे भ्रष्टाचार क्यों कहना चाहिए ?
लोकतंत्र के परीक्षण का प्रमुख विन्दु है कि राज्य के कितने लोग देश हित में कार्य कर रहे हैं . एक शिक्षक यदि भावी नागरिक का निर्माण कर रहा है तो वह देश को समर्पित है , यदि वह उदरपूर्ति के लिए अध्यापन कर रहा है तो वह देश को अपना नहीं मानता है .जबकि दोनों स्थितियों में उसे वेतन उतना ही मिल रहा है . यदि भारत में १% लोकतंत्र माने तो क्या देश में १२ करोड़ लोग देश के लिए समर्पित हैं ?क्या ०.१% अर्थात १२ लाख लोग भी देश के लिए समर्पण भाव से कार्य कर रहे हैं ?
लोकतंत्र में मंत्री ,अधिकारी-कर्मचारी तथा जनता एक पंखे के तीन पंखों के सामान होते हैं ,जो कानून रुपी मोटर से जुड़े हों और व्यवस्थापिका रुपी विद्युत् से चल रहे हों .जिस प्रकार पंखे के तीव्र गति से चलने पर तीनों पंख ,मोटर तथा उसमें प्रवाहित होने वाली विद्युत् एकाकार हो जाते हैं , उसी प्रकार जब व्यवस्थापिका,कार्य पालिका और न्याय व्यवस्था का जनता के साथ पूर्ण रूपेण सामंजस्य हो जाये , जब शासन जनता कि इच्छा के अनुसार चले और उन्हें लगे कि सरकार उनकी और उनकी अपनी ही सरकार है , तब उसे लोकतंत्र कहा जायगा .

बुधवार, 14 सितंबर 2011

लिव-इन सम्बन्ध

लिव इन सम्बन्ध : दोषी कौन ?
भोपाल के अमित गुप्ता - अंजली गुप्ता प्रकरण को अत्यंत गंभीरता से लेना चाहिए . भविष्य में इस प्रकार के अन्य प्रकरण न हों ,इसके लिए न्यायालय को बहुत सोच समझ कर निर्णय देना होगा . अमित गुप्ता वायु सेना में ग्रुप कैप्टन है और विवाहित है . अंजली गुप्ता पहले फ्लाईट लेफ्टिनेंट थी और दोनों एक साथ पदस्थ थे . दोनों में लिव इन सम्बन्ध थे . अंजली गुप्ता ने अपने सेवा काल में अपने वरिष्ठ अधिकारियों पर सेक्स शोषण के आरोप लगाए थे . उसका कोर्ट मार्शल हुआ और उसकी सेवा समाप्त कर दी गयी . परन्तु उसके अमित गुप्ता से सम्बन्ध बने रहे . अमित गुप्ता भोपाल निवासी है , उसके लड़के की सगाई थी . इसी समय अंजली भोपाल उसके पास आई . अमित ने उसे पृथक मकान में रुकवा दिया और स्वयं बेटे की सगाई में बाहर चला गया . पीछे अंजली ने फांसी लगाकर आत्म हत्या कर ली . अमित को अंजली को आत्म हत्या के लिए उकसाने के आरोप में जेल में बंद कर दिया गया है . अंजली के घर वालों का आरोप है कि अमित ने अपनी पत्नी से तलाक लेकर उससे शादी का वायदा किया था और धोखा दिया जिससे दुखी होकर अंजली ने आत्म हत्या कर ली .
अंजली के घर वालों ने यह रहस्योद्घाटन भी किया है कि अमित के कहने से अंजली ने वरिष्ठ अधिकारियों के विरुद्ध आरोप लगाये थे . यदि आरोप झूठे थे तो सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी का यह कृत्य अत्यंत आपत्तिजनक एवं निंदनीय है . यदि आरोप सही थे और अमित के कहने पर लगाये गाये थे ,अपनी इच्छा से नहीं तो इसका अर्थ हुआ अंजली को संबंधों में कोई आपत्ति नहीं थी और उसने अमित को खुश करने के लिए ऐसा किया . कुछ भी हो अंजली ने एक बड़ा अपराध किया था जिससे उसकी नौकरी चली गई . जहाँ तक अमित - अंजली के विवाह का प्रश्न है तो अमित विवाहित है , हिन्दू है . हिन्दू विवाह अधिनियम के अनुसार न तो वह दूसरी शादी कर सकता है और न आसानी से उसे तलाक मिल सकता है . क्या अंजली के घर के लोग यह नहीं जानते ? स्त्री हो या पुरुष , किसी के परिवार को तोड़ना , पति को पत्नी के विरुद्ध भड़काना एक गंभीर अपराध है क्योंकि इससे व्यक्ति पत्नी से छुटकारा पाने के लिए उसे मारने -पीटने से लेकर उसकी हत्या तक कर सकता है अथवा धर्म बदल कर पारिवारिक कलह उत्पन्न कर सकता है जैसा हरयाणा के पूर्व उप मुख्यमंत्री चन्द्र मोहन ने किया था . क्या हमारा कानून इसकी इजाजत देता है ?अंजली- अमित वयस्क होने के कारण लिव इन संबंधों के लिए स्वेच्छा से तैयार थे . अतः विवाह का वायदा होना या न होना क्या अर्थ रखता है ?
संसद और न्यायालय लिव इन संबंधों के लिए स्पष्ट कानून बनायें . यदि यह स्वच्छंदता और मस्ती है तो इसमें दोनों समान भागीदार हैं . कोई लेनदार - देनदार नहीं है . यदि यह विवाह के तुल्य मान्य है तो हिन्दू क़ानून में विवाहित स्त्री- पुरुष के सम्बन्ध में इसे किस रूप में लागू किया जायगा -- स्त्री या पुरुष को एक से अधिक विवाह करने की सुविधा होगी या प्रेमी- प्रेमिका से विवाह केलिए उसे तत्काल तलाक मिल जायगा या दोनों को अवैध सम्बन्ध बनाने का दोषी मानकर दण्डित किया जायगा ? यदि लम्बे समय तक कोई बिना विवाह के रहता है तो संतान का भार किस पर होगा ,
एक का निधन होने पर उसकी संपत्ति का हक़दार उसका लिव इन साथी होगा या स्त्री- पुरुष के परिवार के लोग होंगे ? यदि लिव इन वाले स्त्री-पुरुष अन्यत्र सम्बन्ध बनाते हैं तो उन्हें पूरी छूट होगी अथवा उन्हें कोई सजा मिलेगी ?
दूसरा यह प्रश्न भी महत्त्व पूर्ण है कि यदि सेना में स्त्री अपने देश के सैनिकों के मध्य असुरक्षित है तो विदेशियों के हाथ पड़ने कि स्थिति में उसकी क्या दशा होगी ? इसलिए स्त्रियाँ किस सीमा तक और किन कार्यों के लिए सेना में भरती हों ,इसपर भी समुचित विचार- विमर्श होना चाहिए . प्रत्येक मामले में स्त्री -अधिकारों कि बात करना ही पर्याप्त नहीं है .


बुधवार, 7 सितंबर 2011

इ -पत्रिका 'हस्तक्षेप' के संपादक का अन्ना को सांप्रदायिक मानना

प्रिय अमलेंदु जी,
अन्ना हजारे पर आपके विचार समझे . आपके अनुसार कांग्रेस को भ्रष्टाचार का पूरा अधिकार है क्योंकि उसे आप जैसे लोगों का भरपूर समर्थन प्राप्त है . आर.एस.एस. सांप्रदायिक है , उसे तो मुंह खोलने का अधिकार भी नहीं है , कांग्रेस का भ्रष्टाचार रोकने वाले वे कौन होते हैं ? जो भी कांग्रेस के भ्रष्टाचार को रोकने का प्रयास करेगा उसे साम्प्रदायिक कहा जायेगा . काश ! आपने अन्ना हजारे को यह बात पहले समझा दी होती तो वे सांप्रदायिक होने से बच जाते . अब तो आपने उन्हें सांप्रदायिक होने का प्रमाण पत्र दे ही दिया है , वे पीछे हटेंगे तो भी आप और आप जैसे भ्रष्टाचार समर्थ कांग्रेसी उनके पीछे पड़े ही रहेंगे . आपने तो अन्ना जी के सामने कोई विकल्प ही नहीं छोड़ा .अच्छा होगा आप दिल्ली में एक तम्बू लगाकर भ्रष्टाचार के समर्थन में खा-पीकर आन्दोलन करें . आपकी महफ़िल में में इतने सारे भ्रष्टाचारी ,अपने दल-बल और धन दौलत के साथ आ जायेंगे की लोग अन्ना का नाम ही भूल जायेंगे .