अन्ना हजारे , लोकतंत्र और मीडिया
पद्मभूषण अन्ना हजारे वर्तमान में सर्वधिक चर्चित व्यक्ति हैं . उनका व्यक्तित्व व्यापक तो है ही ,परन्तु उन्हें यह लोकप्रियता मीडिया के सहयोग से ही प्राप्त हुई है . अन्ना हजारे ने लोकतंत्र के जिस प्रमुख विन्दु को उठाने का प्रयास किया , मीडिया ने उस पर ध्यान नहीं दिया . अन्ना हजारे ने कहा कि लोकतंत्र में जनता राजा है . संविधान की प्रस्तावना , ''हम भारत के लोग .....''से प्रारंभ होती है . संविधान , किसी नेता ने नहीं ,भारत के लोगों ने स्वीकृत किया है , अतः जनता सर्वोपरि है और उसकी आवाज सरकार को माननी ही होगी . इस विचार की प्रारंभ से ही उपेक्षा की गई है इसलिए नेता मनमानी करने लगते हैं .. इस सम्बन्ध में प्रधान मंत्री डा. मनमोहन सिंह का बयान भी बहुत विचित्र था . अन्ना के अनशन की समाप्ति पर उनका वक्तव्य ,' पार्लियामेंट की इच्छा ही लोगों की इच्छा है ',पूर्णतयः लोकतंत्र विरोधी है . इसका अर्थ हुआ कि यदि संसद में मंहगाई पर चर्चा के समय अधिकांश सदस्य संसद से गायब थे क्योंकि उनकी दृष्टि में मंहगाई कोई मुद्दा ही नहीं है , का अर्थ हुआ जनता के लिए भी मंहगाई कोई मुद्दा नहीं है . कुछ पत्रों ने उनके वक्तव्य की प्रशंसा भी की . एक अन्य वक्तव्य जिसे मीडिया ने बहुत तूल दिया ,राहुल गाँधी का था कि लोकपाल को संविधान में सम्मिलित किया जाना चाहिए . यह एक सामान्य वक्तव्य है , परन्तु इस पर न्याय मूर्ती संतोष हेगड़े का वक्तव्य भी विचित्र था कि वे राहुल गाँधी से सहमत हैं . आश्चर्य इस बात का है कि न्यायमूर्ति हेगड़े क्या यह बात पहले नहीं जानते थे कि संविधान में न्यायालयों को जो अधिकार दिए गए हैं , यदि किसी संस्था को उसके कार्य क्षेत्र में हस्तक्षेप करने या उससे भी अधिक अधिकार दिए जाते हैं तो यह अधिकार संविधान संशोधन करके ही दिए जा सकते हैं अन्यथा सुप्रीम कोर्ट उस क़ानून को , उस संस्था को अमान्य कर देगा .यदि वे यह सब पहले जानते थे तो उन्होंने अन्ना हजारे को इसके लिए मानसिक रूप से पहले ही क्यों नहीं तैयार किया ? इससे यह स्पष्ट होता है कि मीडिया ने कभी भी लोकतंत्र - संविधान के मुद्दों को गंभीरता से नहीं लिया . इससे ऐसा भी प्रतीत होता है कि मीडिया का कार्य उन सनसनी खेज समाचारों को छापना या दूरदर्शन के चैनलों से प्रसारित करना है जिनसे उन्हें अधिक से अधिक लोकप्रियता मिले .
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