रिजर्व बैंक ब्याज दर बढ़ाना बंद करे
रिजर्व बैंक ने १५ महीने में दसवीं बार रेपो रेट बढ़ाकर ईमानदारी से गृह,कार अथवा अन्य लोन चुकाने वालों को लूटने का जो रास्ता अपनाया है ,वह शर्मनाक है .ब्याज दर बढ़ने पर बैंक ग्राहक को कोई सूचना नहीं देते हैं ,वे तदनुरूप किश्त कि राशि भी नहीं बढ़ाते हैं जिससे किश्त का अधिकांश भाग ब्याज के रूप में बैंकों कि आय बढ़ाता जाता है .यदि कोई राशि १०% ब्याज दर पर १५ वर्षों कि किश्तों पर ली गई हो और ब्याज दर बढ़ती जाये आऔर किश्तें पूर्ववत ही चलती रहें तो उसे उतनी ही किश्ते अधिक समय तक देनी होंगी । उसका प्रभाव इस प्रकार पड़ेगा : (१०% पर १८०माह ),(१०.५ पर १९३माह),(११% पर २१०माह ),(११.५%पर २३३माह),(१२%पर २६८माह) , (१२.५% पर ३३८ माह),( १३%पर ४६८ माह ),( १३.५%पर ६५४माह अर्थात ५४ वर्ष ६ माह) अर्थात व्यक्ति और उसके बच्चे जिंदगी भर कर्जे ही चुकाते रहेंगे और बैंकों का पेट भरते रहेंगे जिसे नेता अपने वोट बैंक के लिए लूटते और लुटाते रहते हैं । गवर्नर साहब ईमानदार लोगों पर इतना जुल्म क्यों और किसके कहने पर ढहाना चाहते हैं ? युवा वर्ग इसकी चपेट में आ गया है क्योंकि उनके पास कोई अन्ना हजारे या बाबा रामदेव नहीं हैं जो उनकी आवाज उठा सकें . ब्याज दर बढ़ाने से उद्योगों को जो भारी क्षति हो रही है , रिजर्व बैंक के गवर्नर को उनसे भी कोई सहानुभूति नहीं है .ऐसा प्रतीत होता है की रिजर्व बैंक के गवर्नर उन विदेशी ताकतों के हाथ का खिलौना बन गए हैं जो देश से लूट कर अपना पैसा विदेशी बैंकों में जमा कर रहे हैं . देश की अर्थ व्यवस्था को बर्बाद करने के लिए यदि इन पापी भ्रष्ट नेताओं ,अफसरों और उद्योग पतियों ने विदेशियों से घूंस खाई हो तो कोई बड़ी बात नहीं होगी . हाई स्कूल में अर्थशास्त्र में यह पढ़ाया जाता है कि मांग अधिक होने से वस्तुओं के दाम बढ़ते हैं .लोगों के पास रुपये अधिक होंगे तो मांग बढ़ेगी अर्थात महंगाई बढ़ेगी . ब्याज दर बढ़ा दो तो लोग बैंक से कम धन उधार लेंगे , मांग कम हो जाएगी और मंहगाई भी कम हो जायगी . रिजर्व बैंक के गवर्नर को यह बताना होगा कि अनेक बार ब्याज दर बढ़ाने के बाद भी मंहगाई क्यों नहीं कम हो रही है और वे कहाँ तक ब्याज दरे बढ़ाते जांयगे ?. अर्थशास्त्र के अनेक सिद्धांत किताबों के बाहर भी बिखरे पड़े हैं . उन्हें भी समझने की कोशिश की जानी चाहिए .यह आश्चर्य की बात है कि रिजर्व बैंक के गवर्नर ने न तो कभी काले धन के विरुद्ध मुहिम चलाई , न भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाई । वायदा बाजार से भी खूब मंहगाई बढ़ी है , उसे बंद करने की बात कोई इसलिए नहीं सोचता है कि यह अमीर लोगों का वैधानिक सट्टा है और पूंजीवादी सरकार ने उन्हें इसका हक़ दिया है . यह मंहगाई नेता बढ़वा रहे हैं , गवर्नर साहब को उनके विरुद्ध कुछ भी कहने का साहस क्यों नहीं होता , यह भी एक रहस्य है .
हर दूसरे -तीसरे महीने में पेट्रोल के दाम बढ़ेंगे ही . तेल कम्पनियाँ अपने व्यय कम नहीं करतीं , कर्मचारियों की सुविधाएं बढ़ाती जाती हैं .केंद्र और राज्य सरकारें पेट्रोल ,डीजल पर टैक्स भी बढाती जाती हैं . उससे मंहगाई तो बढ़ेगी ही , गवर्नर साहब ब्याज दर बढ़ाते जांयगे , उन्हें कुछ नहीं कहेंगे . प्रत्येक वर्ष किसानों के नाम पर हजारों करोड़ रूपये बाँट दिए जाते हैं , यह बिना जाँच किये कि उसे आवश्यकता भी है या नहीं . दिल्ली के पास के एक शहर में कालोनी के बाहर ठेले पर सब्जी बेचने वाले एक व्यक्ति से उसकी आय के बारे में हमने पूंछा ,"तुम्हें कितनी आय हो जाती है ? जो सब्जी बचती है उसका क्या करते हो ? " उसने बताया की प्रातः सब्जी का ठेला एक कालोनी में घुमाता हूँ , अधिकांश राशि उससे निकल आती है , फिर इस कालोनी में बेच लेता हूँ , शेष बची सब्जी एक होटल वाला ले जाता है ." उसने बताया, " वे चार भाई हैं ,तीन यहीं पर सब्जी बेचते हैं , एक गाँव में खेती देखता है . पहले गाँव में २५ एकड़ जमीन थी ,अब ७५ एकड़ हो गई है .ऋण लेकर एक ट्रैक्टर ख़रीदा था , उसका बहुत सा बकाया किसानों की ऋण माफ़ी में माफ़ हो गया . " ये सारे बेचारे लोग गरीबी रेखा से नीचे वाले हैं .सरकार बाजार से बारह- तेरह रुपये किलो गेहूं खरीद कर इन्हें दो- तीन रुपये किलो में बाँटती है .मनरेगा के नाम पर लाखों करोड़ रुपये व्यव किये जा रहे हैं . एक इंजीनियर को मनरेगा के अंतर्गत गाँव में काम कराना था .सात - आठ मजदूरों से पूछा , कोई भी काम करने को तैयार नहीं हुआ .उन्होंने कहा ," हमें १०५ रुपये का ३५ किलो राशन मिल जाता है . सस्ता तेल मिल जाता है ,मकान - बिजली मुफ्त है . कुछ ऊपर का खर्च करके पांच - छः सौ में महीने भर काम चल जाता है पांच दिन मजदूरी करके सात-आठ सौ रूपये मिल जाते हैं . मैं मनरेगा में क्यों जाऊं ? " सरपंच ने उन्हें सलाह दी कि उसे ठेका दे दिया जाय . वह मशीन से काम करवा देगा और मजदूरों के रिकार्ड बनवा देगा .मनरेगा में मजदूर और सरपंच से लेकर ऊपर तक खिलाना पड़ता है , बीच में एक भी असंतुष्ट हुआ तो सब तरफ भ्रष्टाचार का हंगामा हो जाता है .इंजीनियर साहब ने तय किया कि इस तरह से काम नहीं करवाना है, काम हो चाहे न हो . तमिलनाडु में तो चुनाव के बाद हजारों करोड़ रुपये का सामन मुफ्त में बांटा जाता है .सरकार देश-विदेश से कर्ज लेकर तथा अपनी कम्पनियाँ बेच कर हजारों करोड़ रुपये प्राप्त कर रही है जिसका अधिकांश हिस्सा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाएगा . गवर्नर साहब रुपयों के इस प्रवाह को रोकने के लिए आप क्या कर रहे हैं ?आप देश में तो क्या सरकारी बैंकों में भी जाली नोटों के प्रचालन को नहीं रोक पा रहे हैं . यदि रिजर्व बैंक ब्याज दरें कम कर दे तो मंहगाई का दबाव सरकार पर पड़ेगा और वह रुपयों की बन्दर बाँट कम करके मंहगाई रोकने के लिए मजबूर होगी .
प्रो. ए. डी. खत्री
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