बुधवार, 15 जून 2011

लोकतान्त्रिक राज्य के तत्व

राज्य के मुख्य एवं आवश्यक तत्व


श्री अटल बिहारी बाजपेई के कार्य काल में भारत - पाक सीमा पर दस माह तक दोनों देशों की फौजें आमने -सामने डटी रहीं . मीडिया ऐसे समाचार देता था की बस युद्ध होने ही वाला है . बिलासपुर ,छत्तीसगढ़ से मेरे मित्र प्रो खान ने एक दिन फ़ोन पर मुझसे पूछा कि युद्ध की क्या सम्भावना है .उसका भतीजा वायु सेना में अधिकारी है और उस समय उसकी पोस्टिंग सीमा पर ही थी . मैंने तत्काल उत्तर दिया ,''शून्य''. उसने आश्चर्य से पूछा ,''कैसे ?'' मैंने उसे समझाया,'' पाकिस्तान के महान मित्र अमेरिका के वायु यान पाकिस्तान के हवाई अड्डों पर खड़े हैं जो अफगानिस्तान के युद्ध के समय आये थे . भारत अमेरिका के हवाई जहाजों पर हमले करने का जोखिम नहीं उठा सकता है .१९७१ के युद्ध में भारत ने रूस के साथ युद्ध संधि कर ली थी की यदि हमारा किसी देश से युद्ध हुआ और शत्रु की ओर से कोई देश युद्ध में कूदेगा तो रूस उस पर आक्रमण कर देगा . उस समय अमेरिका ने बहुत हाथ -पैर मारे ,हिंद महासागर में अपना परमाणु -पोत भी ले आया था , परन्तु कुछ नहीं कर पाया . संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत के विरुद्ध उनके प्रस्तावों को रूस ने वीटो से ख़ारिज कर दिया था. " उसे मेरी बात से संतोष हुआ और कुछ समय बाद दोनों देशों कि सेनाएं शांति पूर्वक वापस लौट गईं. आज की सारी समस्याएं राजनीतिशास्त्र के प्रारम्भिक सिद्धांतों को न समझने के कारण ही उत्पन्न हो रही हैं. राजनीति के भारतीय सिद्धांत के अनुसार राज्य का एक तत्व 'मित्र ' भी है . पाकिस्तान इसे समझता है ,इसलिए उसने अमेरिका और चीन जैसे दो शक्तिशाली मित्र बना रखे हैं , जबकि दुनिया में भारत का कोई भी पक्का मित्र नहीं है . हमें उस कमजोरी का खामिआजा आए दिन उठाना पड़ रहा है . मुझे उन लोगों की बुद्धिहीनता पर तरस आता है जो अमेरिका के भारत और पाकिस्तान के प्रति किये गए गए व्यवहारों की तुलना करते हैं तथा आलोचना भी करते हैं और ऊपर से कहते हैं कि अमेरिका गलत कर रहा है ! आप जैसा व्यवहार अपने प्रिय मित्र के साथ करते हैं क्या वैसा ही अन्य सब लोगों के साथ भी करते हैं ?
पाश्चात्य राजनीतिशास्त्री गार्नर एवं गैटल ने राज्य के चार तत्व निरूपित किये हैं : १. मनुष्यों का समुदाय (जनता ) , २. एक प्रदेश ,जिसमें वे स्थाई रूप से रहते हों ( भूभाग ) , ३ .एक राजनीतिक संगठन (अर्थात सरकार ) ,जिसके द्वारा लोगों की इच्छा अभिव्यक्त हो सके तथा उसे कार्य रूप में परिणित भी किया जा सके तथा ४. आंतरिक संप्रभुता और बाहरी नियंत्रण से स्वतंत्रता .राजनीतिशास्त्र में देश को ही राज्य कहा जाता है . अतः राज्य के ४ अंग हुए :जनता , भूभाग या प्रदेश , सरकार और संप्रभुता .स्वतंत्रता के पूर्व भारत संप्रभु नहीं था , यहाँ के सारे निर्णय इंग्लैंड में लिए जाते थे अतः भारत एक राज्य नहीं था . स्वतंत्रता के बाद भारत और पाकिस्तान दो राज्य हो गए . जब बंगलादेश बना तो वह तीसरा राज्य हो गया . राज्य की इस अवधारणा के अनुसार राजनीतिशास्त्री को राज्य की स्थिरता या विस्तार से कोई लेना-देना नहीं है , उसका काम केवल उक्त चार तत्व गिनना है . उनके पूरे होते ही नया राज्य बन जाता है और वे उसका पृथक अध्ययन करने लगते हैं .रूस के २४ टुकड़े हो गए तो वे २४ राज्यों का अध्ययन करने लगेंगे . देश क्यों टूटा , ये चार मुख्य तत्व इसकी व्याख्या नहीं कर सकते हैं .
प्राचीन भारतीय राजनीतिशास्त्र के सिद्धांत के अनुसार देश या राज्य को मनुष्य के शरीर के तुल्य मानते हुए उसके सात तत्व कहे गए हैं :१ राजा (मस्तिष्क) ,२. अमात्य अर्थात मंत्रिपरिषद् (आँखे) , ३.जनपद (भूभाग या प्रदेश तथा लोग ) (पैर) ,४.दुर्ग (हाथ) ,५.कोष (मुंह) ,६. बल या सेना (मन) ,तथा ७. मित्र (कान). देश के अंग भी शरीर के अंगों की भांति जीवंत माने गए है . ये कोई निर्जीव तत्व नहीं हैं . इसलिए एक भी अंग शिथिल होने पर देश भी शरीर की भांति रोगी होने लगता है .यदि आप इन अंगों को भली भांति समझ लेते हैं तो आपको वर्तमान अनेक समस्याओं के कारण और उनके निवारण के मार्ग स्वतः मिल जायेंगे .पाश्चात्य सिद्धांत से तुलना करने पर जनपद दो तत्वों -- भूभाग तथा जनता को निरूपित करता है , राजा एवं अमात्य सरकार के तुल्य हैं और किसी को राजा तभी माना जाता था जब वह स्वतन्त्र होता था अर्थात राजा संप्रभु होता था . उसमें बाद के चार तत्वों के तुल्य कोई विचार नहीं रखा गया है .परन्तु ये सभी आवश्यक तत्व हैं जैसा आपने भारत - पाक के संबंधों के बारे में प्रारम्भ में ही देख लिया . कुवैत का उदाहरण भी इन तत्वों के महत्त्व की पुष्टि करता है. कुवैत के पास बहुत धन (कोष) है , साथ ही उसने अमेरिका को अपना अच्छा मित्र भी बना रखा है . इराक ने कुवैत पर कब्ज़ा कर लिया था परन्तु अमेरिका से मित्रता तथा अच्छा कोष होने के कारण ही वह आज स्वतन्त्र देश है अन्यथा उसका अस्तित्व ही समाप्त हो जाता और इनके अभाव के कारण इराक स्वयं गर्त में चला गया .
भारतीय राजनीतिक चिंतन का विषद वर्णन शुक्र नीतिसार , महाभारत , कौटिल्य के अर्थशास्त्र आदि ग्रंथों में किया गया है . उन्होंने उक्त प्रत्येक अंग की विशेषताओं की भी व्याख्या की है . राज्य का प्रथा अंग राजा है . राजा राज्य का स्वामी तथा दण्ड का धरनकर्ता होता था. राजा नीतिशास्त्र के अनुसार कार्य करने वाला , सत्यप्रिय, बुद्धिमान ,पवित्र तथा लोगों की भलाई करने वाला होना चाहिए . राजा राज्य के तुल्य या उससे बड़ा नहीं हो सकता . जैसे फ़्रांस का राज लुई xiv कहता था ,''मैं ही राज्य हूँ ''. भारत में आपातकाल के समय कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष देवकांत बरुआ ने प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की स्तुति करते हुए कहा था ,''indira is india & india is indira '' अर्थात '' इंदिरा ही भारत है और भारत ही इंदिरा है ''
जिसका अर्थ था कि यदि इंदिरा नहीं तो भारत भी नहीं . इस प्रकार के चापलूस जनता के बारे में सपने में भी नहीं सोच सकते . राजा को निश्चित मर्यादाओं तथा नियंत्रण में रहकर ही शासन करना होता था. वह भी दण्ड के नियंत्रण रहता था . दण्ड से अभिप्राय उस मर्यादा से है जो मनुष्य में अव्यवस्था के निवारण और अर्थ के सरक्षण के लिए स्थापित कि गई है .समाज में कर्तव्य- अकर्तव्य , गम्य-अगम्य ,धर्म -अधर्म कि जो मर्यादा है , जिसके द्वारा मनुष्यों कि स्वेच्छाचारिता नियंत्रित होती है , उसी को दण्ड कहते हैं. जनसाधारण कि तरह राजा, उसके मंत्री एवं समस्त अधिकारी भी उसी दण्ड के अधीन होते थे .दण्ड को राज्य कि रीढ़ मन जाता था .चाणक्य ने कहा है ,''यथा राजा तथा प्रजा '' अतः सबसे पहले राजा एवं मंत्रियों को मर्यादा का पालन करना होगा तभी लोग उसका अनुसरण करेंगे . जो राजा दण्ड कि मर्यादा का पालन न करे , उसे पदच्युत कर देना चाहिए . गार्नर ने भी कहा है कि सरकार को सीमाओं में रहकर लोगों कि इच्छाओं के अनुरूप कार्य करने चाहिए .पश्चिम एशिया के मुस्लिम तानाशाहों ने इस्लाम धर्म के अनुसार लोगो कि इच्छानुसार शासन तो किया परन्तु लोकहितों की उपेक्षा की , धर्म के अलावा भी उनकी कुछ इच्छाएँ और आवश्यकताएं हैं , उनपर कोई ध्यान नहीं दिया , परिणाम स्वरूप लोग संघर्ष के लिए बाध्य हो गए . उन देशों में अराजकता फ़ैल गई है .जो लोग चुपचाप अपना कम करने में व्यस्त थे , वे भी जिंदगी - मौत के बीच में फंस गए है और ये तानाशाह लोगों के गुस्से की कब बलि चढ़ जायेंगे , अभी कुछ नहीं कहा जा सकता . यदि ये शासक मर्यादाओं में रहकर कार्य कर रहे होते तो ऐसी स्थिति ही न उत्पन्न होती .
कौटिल्य अर्थशास्त्र में अमात्यों का वर्णन विस्तार से किया गया है . जिन्हें मंत्री नियुक्त किया जाना है उनमे उत्कृष्ट प्रज्ञा ,बुद्धि , स्मृति एवं बल होना चाहिए .वे अपने क्षेत्रों में निपुण , दूरदर्शी ,देश ,काल और अवसरों का अच्छी प्रकार प्रयोग करने में समर्थ,सम्मान और रहस्य को कायम रखते हुए परिहास करने की योग्यता से परिपूर्ण, आवश्यकतानुसार मधुर तथा कठोर संभाषण में सक्षम, लज्जायुक्त, व्यसनमुक्त, काम,क्रोध ,लोभ, जिद्द, चपलता तथा जल्द बाजी से रहित ,आत्मसंयमी तथा नीतिशास्त्र का पालन करने वाले हों . राजा उन्ही से पूछ कर कार्य करता है ,अतः राज्य की सम्पूर्ण व्यवस्था तथा विकास मंत्रियों पर ही निर्भर करता है . उनके गुणों को अच्छी प्रकार परख कर ही उनकी नियुक्ति की जानी चाहिए. जहाँ पर मंत्री उक्त गुणों से रहित मिलेंगे देश अराजकता की ओर बढ़ता जायगा .
राज्य के तीसरे तत्व जनपद के अंतर्गत राज्य के लोग तथा उसकी भौगोलिक सीमाओं से से घिरा भू भाग आते हैं .राज्य के भू भाग का विस्तार इतना होनाचाहिए की वह जनता का पालन करने में समर्थ हो . विपत्ति के समय विदेशी भी उसका आश्रय ले सकें . उसमें शत्रुओं से रक्षा करने के सब साधन हों ,उसकी जलवायु उत्तम तथा प्रदूषण रहित हो .उसमें खेत, चराहगाह ,जंगल, सिंचाई के लिए नहरें , कुँए आदि हों , खदानें हों थल तथा जल मार्ग हों ( उस समय वायु मार्ग नहीं थे ).जनता के नाम पर लोगों की भीड़ या संख्या ही पर्याप्त नहीं है .किसानों तथा कारीगरों में क्रियाशीलता ,लोगों में बुद्धि का होना (शिक्षित होना ), राज्य के प्रति प्रेम एवं भक्ति , और उनके आचरण में पवित्रता होनी चाहिए .
दुर्ग के नाम पर यद्यपि आज प्राचीन काल जैसे किले नहीं होते हैं , परन्तु सीमा पर बंकर एवं चौकियां बनाकर शत्रु की सतत रूप से निगरानी की जानी चाहिए छठे तत्व सेना से तात्पर्य सैनिकों की शारीरिक, मानसिक क्षमताओं के साथ-साथ आधुनिक युद्ध तकनीकों से भी है .शक्ति शाली सेना एवं चुस्त पुलिस से ही बाह्य एवं आंतरिक शांति स्थापित तथा स्थिर रह सकती है .
राज्य का पांचवां तत्व 'कोष' है . धन से ही सब कार्य होते हैं .अतः कोष का संवर्धन यत्न पूर्वक करना चाहिए .राज्य के कोष को इतना अधिक होना चाहिए की विदेशी आक्रमण , दुर्भिक्ष, भूकंप , बाढ़ , तूफ़ान ,महामारियों आदि के समय भी काम न पड़े . प्रशासन द्वारा विधि सम्मत ढंग से अर्थात जैसे भोंरा बिना क्षति पहुंचाए फूलों से रस गृहण करता है , उसी प्रकार लोगों से कर गृहण करे . लोगों द्वारा कर स्वेच्छा से दिया जाना चाहिए . राज्य का सातवाँ तत्व 'मित्र ' भी बहुत महत्त्व पूर्ण है जैसा पूर्व में कहा जा चुका है .
राज्य के तत्वों के सम्बन्ध में पाश्चात्य सिद्धांत के आधार पर निर्जीव राज्य का अध्ययन कर सकते हैं परन्तु भारतीय सप्तांग सिद्धांत के आधार पर उनकी व्यवस्था एवं स्थिरता की व्याख्या भी की जा सकती है . जैसे जनपद के अंतर्गत भूभाग तत्व का एक गुण 'उत्तम जलवायु 'कहा गया है . आज प्रदूषण तथा पर्यावरण का महत्त्व समझ में आ रहा है .प्रदूषण के कारण लोगों , जानवरों , वनस्पतियों का स्वास्थ्य कैसे अच्छा रह सकता है ? उत्तम जलवायु का विचार न करने के कारण दिल्ली में पहले अनेक उद्योगों को लगने दिया गया , बाद में उन्हें तत्काल बंद करने के आदेश दिए गए . वह मंदी का समय था ,उन्हें धन की कमी , विद्युत् संकट ,विदेशी सस्ते माल की चुनौती के कारण दूर स्थानों में पुनः लगाना आसान नहीं था .परिणाम स्वरूप हजारों लोग बेरोजगार हो गए या अर्थ संकट में फंस गए . जनपद के दूसरे अंग जनता का मुख्य गुण राज्य प्रेम एवं पवित्रता कहा गया है . जिनके घर उजाड़ गए हों उनसे किस देश प्रेम की आशा करेंगे ? पहले अधिकारी घूंस खाकर मकान बनवाते हैं , फिर अवैध करार दिए जाते है , उनके मकान तोड़े जाते हैं , लोगों को बेदखल किया जाता है . ये किससे प्रेम रखेंगे ? गंगा नदी में प्रदूषण होने दिया गया . अब सात हजार करोड़ रुपये लगाकर उसकी सफाई करने की योजना बनाई गई है जबकि पूर्व में भी अरबों रूपये व्यय किये जा चुके हैं . क्या देश ने पूर्व में इससे इतनी अधिक कमाई कर ली है किसात हजार करोड़ रूपये कि उधारी और उस पर ब्याज का भुगतान किया जा सके ? यदि प्रारंभ से ही उत्तम जलवायु और लोगों में राष्ट्र प्रेम का ध्यान रखा गया होता तो ये हालात पैदा न होते . मंत्रियों के नीति विरुद्ध आचरण एवं योग्यता के कारण देश में ऐसे हालात पैदा हो गए हैं जनता शासन को शत्रुवत मान ने लगी है और स्वेच्छा से कोई कर देने के लिए तैयार नहीं है . जनता में इस प्रकार धीरे- धीरे शासन के प्रति रोष बढ़ते जाने से बड़े प्रदेशों का विघटन होने लगता है , लोग बागी होने लगते हैं जिससे आने वाले समय में देश के विघटन कि स्थित भी उत्पन्न हो जाती है अथवा लोग विदेशी शत्रुओं से मिलकर भी राष्ट्र संकट उत्पन्न कर सकते हैं .
राज्य की भारतीय अवधारणा में दुर्ग एवं सेना दो पृथक तत्व रखे गए हैं . इसका अभिप्राय है कि देश कि रक्षा के लिए शक्तिशाली सेना के साथ दुर्ग या व्यूह रचना भी अच्छी होनी चाहिए .भारत के पास भारी-भरकम सैन्य शक्ति होने के बावजूद पाकिस्तानी सैनिकों ने कारगिल पर कब्ज़ा करलिया और इन्हें पता ही नहीं चला . बाद में घुस पैठिओं को निकलने के लिए भारत के सैकड़ों सैनिक शहीद हुए तथा अरबों रूपये युद्ध में व्यय हो गए , तनाव अलग से बना रहा . अतः सीमा पर मजबूत चौकसी होनी चाहिए .आज विश्व के देशों में जो भ्रष्टाचार , आतंकवाद जैसी समस्याएँ बढती जा रही हैं . सप्तांग राज्य के प्रथम दो तत्वों , राजा और मंत्रियों के वांछित गुणों कि तुलना वर्तमान सरकारों के मंत्रियों से करके देखे ,उनके कारण स्वतः स्पष्ट होने लगेंगे .
डा.ए. डी. खत्री
लोकतांत्रिक राज्य के अंग

राज्य के पाश्चात्य सिद्धांत के अनुसार राज्य के चार तत्वों से कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है जबकि भारतीय सप्तांग राष्ट्र के सिद्धांत से अनेक घटनाओं की व्याख्या की जा सकती है .परन्तु वर्तमान में विश्व के अनेक देशों में लोकतान्त्रिक व्यवस्था है जिसमें भ्रष्टाचार के साथ-साथ अनेक अराजकताओं को वहां के शासक स्वयं फैला रहे हैं . इन समस्याओं का मुख्य कारण राज्य के सिद्धांतों का स्पष्ट न होना है . चुनाव के बाद बनने वाली मंत्री परिषद् स्वयं को सरकार कहने और मानने लगती है , लोग भी वैसा ही समझने लगते हैं और गड़बड़ियाँ शुरू हो जाती हैं .लोकतान्त्रिक राज्य के बारह अंग होते हैं जो राज्य को मानव शरीर के तुल्य मानने पर इस प्रकार व्यक्त किये जा सकते हैं :
१. राजा (संप्रभु) (सम्पूर्ण शारीर ) : लोकतान्त्रिक राज्य में जनता सामूहिक रूप से राज्य की स्वामी होती है . देश की संप्रभुता सामूहिक रूप से जनता में निहित होती है . बिना राजा के कोई राज्य नहीं हो सकता . राजा न होने पर चारों ओर अराजकता फैलने लगती है जैसा आज भारत जैसे देश में हो रहा है . क्योंकि यहाँ पर जनता को मालूम ही नहीं कि सरकार में घुसे लोग उसका धन तो लूट ही रहे हैं , आने वाली पीढ़ियों पर भारी ऋण भी चढाते जा रहें .
२. संविधान (नाड़ी-तंत्र) : राज्य का एक निश्चित संविधान होना चाहिए जिसके आधार पर शासन कार्य करेगा .
३.व्यवस्थापिका या विधायिका (आँखें) : जनता के चुने हुए प्रतिनिधि जो क़ानून बनाते हैं तथा दिशा निर्धारित करते हैं कि किस दिशा में चलना है . इसमें उन सभाओं के अध्यक्ष भी आयेंगे .
४. कार्यकारिणी (चेहरा) : राज्य के छोटे से बड़े ,सभी कार्य कार्यकारिणी द्वारा संपन्न होते हैं . इसमें सम्मिलत हैं ---(अ) . राज्याध्यक्ष एवं मंत्री परिषद्
,(ब) . प्रशासक ( सचिव ,आयुक्त , कलेक्टर या समकक्ष अधिकारी ) , स . नियंत्रक ( चुनाव आयोग , लोक सेवा आयोग , रिजर्व बैंक का गवर्नर , महानियंत्रक आडिट , सांख्यिकी आदि एवं तुल्य पदाधिकारी ) तथा (द) राज्य के समस्त अधिकारी एवं कर्मचारी
५.न्यायपालिका (मस्तिष्क) : इसमें सम्पूर्ण न्याय व्यवस्था सम्मिलित है . लोकपाल एवं सभी जाँच एजेंसियां जैसे अन्वेषण ब्यूरो , सतर्कता आयुक्त आदि भी इसी के अंतर्गत होने चाहिए ताकि वे राजनीतिक दबाव से मुक्त रहकर कार्य कर सकें .
६.जनता (आत्मा) :व्यक्तिगत रूप से लोग इसके अंतर्गत आते हैं . राज्य रुपी शरीर की जान देश के लोगों में ही निहित होती है .
७. भू-भाग (पैर) : क्योंकि इसी पर शरीर खड़ा रहता है .
८. कोष (उदर) : जिस प्रकार उदर में भोजन जाने पर शरीर को कार्य करने की शक्ति मिलती है ,उसी प्रकार कोष में धन होने पर राज्य को गति प्राप्त होती है .एक बार भोजन करने के कुछ समय बाद जिस प्रकार उदर को पुनः भोजन की आवश्यकता होती है उसी प्रकार कोष में भी सतत रूप से धन प्रवाह होते रहना चाहिए .
९ . बल (छाती एवं हाथ ) : सेना , पुलिस आदि .
10. दुर्ग (त्वचा) : प्राचीन कल में दुर्ग राज्य के रक्षा कवच होते थे .अतः यह शरीर की त्वचा को प्रगट करता है . जिस प्रकार त्वचा के संपर्क में आने पर व्यक्ति उसके मृदु, कठोर , ठन्डे, गर्म आदि प्रभावों को समझ लेता है , उसी प्रकार दुर्ग से भी ज्ञात होना चाहिए . इसके अंतर्गत सीमा पर बंकर तथा चौकिय होंगी तथा राज्य के अंतर्गत आर्थिक नियंत्रक , राजनीतिक नियंत्रक तथा सामाजिक नियंत्रक नियुक्त होंगे . सामाजिक नियंत्रक समाज . शिक्षा , स्वास्थ्य ,मनोविज्ञान आदि विभिन्न क्षेत्रों में सतत निगरानी रखेंगे . इसी प्रकार आर्थिक एवं राजनीतिक क्षेत्र में भी निगरानी राखी जायगी ताकि नैतिक मूल्यों एवं व्यवस्थाओं में थोड़ी सी भी विकृति आने पर उसे समझा एवं सुधारा जा सके .
11. मित्र (कान ) : इसका महत्त्व पूर्व में दिया जा चुका है .
१२. गुप्तचर (मन) : राज्य की गुप्तचर व्यवस्था अत्यंत सुदृढ़ होनी चाहिए . समस्त लोगों को यह भय होना चाहिए कि उनके कार्य कि सतत रूप से निगरानी हो रही है तो कोई भी गलत कार्य करने का साहस नहीं करेगा .भारत में गुप्तचर व्यवस्था नगण्य होने के कारण संसद पर विदेशी हमला हुआ , मुंबई में लम्बे समय तक तैयारी करके दुश्मन ने मार-कट मचाई , कारगिल पर कब्ज़ा किया . गुप्तचरों की सूचनाओं का समन्वय मन की तीव्र गति से होना चाहिए .

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