गुरुवार, 23 जून 2011

डायन

डायन

मैं एक झील के किनारे सैर कर रहा था . पानी के खूब सूरत किनारे पर खड़ा होकर मैं दृश्य देख रहा था .अमीर लोग यहाँ घूमने आते थे .अचानक मुझे एक भयानक स्त्री और उसकी डरावनी कहानी याद आ गयी . एक महिला , सुन्दर ,सुघड़, संभ्रांत ,जिसे पेरिस में सभी जानते और चाहते थे . याद आ रही कहानी वर्षों पुरानी है , परन्तु अनेक ऐसी घटनाएं होती हैं जो भुलाए नहीं भूलती .
अपने एक मित्र के आमंत्रण पर मै उसके गाँव गया . अत्यंत प्रेम और सम्मान के साथ उसने मुझे पूरा गाँव घुमाया . हमने गाँव के अनेक सुन्दर दृश्य देखे . हमने बड़े-बड़े भव्य भवन , सुन्दर नक्काशी के दरवाजों युक्त चर्च , असामान्य रूप से विशाल वृक्ष , सेंट एंड्रीयुस का ओक और राक वाइड्स , यू आदि . मैंने पूरे उत्साह और उमंग के साथ वहां के सभी आकर्षणों को देखा . मेरे मित्र ने भी इसे अनुभव किया . उसके बाद अचानक उसने उच्च स्वर में कहा , '' इसके बाद यहाँ देखने योग्य एक और विचित्र वस्तु रह गई है . यहाँ एक राक्षसों कि मां , डायन रहती है . '' मैंने आश्चर्य और अविश्वास के साथ पूछा , ''डायन? '' उसने उत्तर दिया , हाँ , डायन !एक भयानक औरत ! एक पूर्ण शैतान ! एक ऐसा जीव जो जानबूझ कर ह़र साल विकलांग , कुरूप , भयानक शक्ल वाले , जिन्हें एक शब्द में राक्षस कह सकते हैं , पैदा करती है . वह इन बच्चों को सर्कस , नुमाइश वालों को बेच देती है . जिससे वह बहुत अमीर हो गई है . इस घृणित काम में लगे लोग समय - समय पर उसके पास आते हैं और पूछते हैं कि क्या उसके पास कोई नया अपंग बच्चा है ? यदि उन्हें वह माल अच्छा लगता है तो वे उसे खरीद लेते हैं .अब तक वह ऐसे ११ बच्चे पैदा कर चुकी है . वह बहुत अमीर है . तुम इसे मजाक समझ सकते हो परन्तु मेरे दोस्त न तो इसमें कोई अतिश्योक्ति है न तुम्हें बुद्धू बना रहा हूँ . यह सचमुच कड़वा , शुद्ध सत्य है . आओ ,पहले उस महिला को देखो . बाद में मैं तुम्हें बताऊंगा कि वह ऐसे विकलांग , अपूर्ण , डरावने बच्चों को पैदा करने वाली मशीन कैसे बन गई .
वह मुझे गाँव से बाहर ले गया . वहां सड़क के किनारे एक अच्छा सा बहुत सुन्दर मकान था . उसे अच्छे ढंग से सजाया गया था . उसका बगीचा ताजे फूलों से महक रहा था. ऐसा लगता था जैसे वह किसी बड़े वकील का घर हो . जैसे ही हम वहां पहुंचे,एक नौकर ने हमें एक छोटे से ड्राइंग रूम में बैठा दिया . थोड़ी देर में वह डरावनी औरत सामने आई . वह चालीस वर्ष की होगी . लम्बी ,तेज नाक -नक्श और सुघड़ शरीर ,गाँव की अन्य महिलाओं कि तरह .वह धूर्त और अमीर थी .नारी और पशु का मिला - जुला सम्मिश्रण . वह गाँव के लोगों में अपने प्रति उपजे तिरस्कार से परिचित थी , शायद इसलिए हम लोगों से बड़े बेमन और उपेक्षा के भाव से मिली .
उसने पूछा ," इन महाशय को क्या चाहिए ? " मेरे मित्र ने कहा कि ,"हम लोगों को बताया गया है कि आपकी आखिरी संतान अन्य बच्चों कि तरह स्वाभाविक रूप से पूर्ण है और वह अपने अन्य भाइयों कि तरह नहीं है . क्या यह सच है ? हम इसकी पुष्टि करना चाहते हैं .
उसने गुस्से से हम लोगों को देखा और कहने लगी , ओह , नहीं ! वह औरों की अपेक्षा अधिक कुरूप और बेढंगा है . मेरे करम फूट गए हैं , मैं अभागिन हूँ . वह सब एक जैसे हैं . यह वास्तव में क्रूरता है . कैसे वह सर्वशक्तिमान , सारी दुनिया में अकेली पड़ गई एक गरीब महिला के प्रति इतना निर्दई हो सकता है !"अपनी निगाहें नीची किये वह एक डरे हुए पशु के समान बोल रही थी , वह अपनी तीखी आवाज में कुछ नरमी लाई .वह एक मजबूत हड्डी कि लम्बी महिला थी , जिसमें काम करने और भेड़ियों की तरह गुर्राने कि पूरी ताकत थी . उसके मुहं से आंसुओं से भीगी तेज आवाज सुनने में एक अनोखा मजा आ रहा था .
"हम आपके बच्चे को देखना चाहेंगे ." मेरे मित्र ने अनुरोध किया . लगा कि वह अचानक शर्मा गई , संभवतः मुझे कुछ धोखा हो गया था . थोड़ी चुप्पी के बाद उसने तेज स्वर में कहा ," आपको इससे क्या लाभ होगा ? उसने अपना सर ऊपर उठाया और एक तेज रोषपूर्ण दृष्टि हम लोगों पर डाली .
'' आप अपने बच्चे को हमें क्यों नहीं दिखाना चाहती हैं ?" यहाँ और भी बहुत लोग आते हैं जिनको आप अपना बच्चा दिखलाती हैं । आप जानती हैं कि मेरा अभिप्राय किन लोगों से है ?"
अचानक तेजी से खड़े होते हुए पूरे गुस्से के साथ वह चीख कर बोली ," तो इसलिए आप लोग यहाँ आये हैं मेरा मजाक उड़ाने के लिए ?क्योंकि मेरे बच्चे जानवरों कि तरह हैं .नहीं, आप लोग उसे नहीं देख सकते . आप लोगों को उसे देखना भी नहीं चाहिए . निकल जाओ यहाँ से . मैं आप लोगों को अच्छी प्रकार जानती हूँ , सबको खूब पहचानती हूँ , जो मुझे सिर्फ मूर्ख समझते हैं ". अपने भारी कूल्हों पर हाथ रख कर वह हमारी ओर बढ़ी . उसकी क्रूर वाणी के आदेश पर एक पागल सा दिखने वाला आदमी गुर्राता हुआ बगल के कमरे से निकला . मैं बुरी तरह डर गया .हम पीछे हट गए . मेरे मित्र ने तेज आवाज से उस चेतावनी दी--"डायन, राक्षसी !'' जैसा कि लोग उसे इसी नाम से पुकारते थे --,''ध्यान रखना . एक दिन यही तुम्हारा सत्य नाश कर देगा . तुम्हारे लिए दुर्भाग्य लायेगा .'' वह प्रतिशोध में गुस्से से खौल उठी.अपने हाथ पटकते हुए गुस्से से चीखी ,''तुम जंगली लोग!यहाँ से निकल जाओ . ऐसा लगा कि वह हम पर झपट पड़ी है .हम भागे. हमारा दिल भय से धक् - धक् करने लगा .
जब हम घर से बाहर आ गए तो मेरे मित्र ने पूछा ,''खैर, तुमने उसे देख लिया है उसके बारे में तुम्हारी क्या राय है ?''मैंने कहा,'' मुझे उस क्रूर औरत का इतिहास बताओ . '' और जब हम सफ़ेद ऊंची सड़क पर जिसके दोनों ओर पके अनाज के पौधे , ठंडी मधुर हवाओं के झोंकों से , आह्लादित सागर कि भांति लहलहा रहे थे ,चलते हुए मेरे मित्र ने उसके बारे में कुछ इस प्रकार बताया ,
''यह लड़की पहले एक खेत पर काम करती थी .एक अच्छी मजदूरिन ,बहुत परिश्रमी,सार्थक, व्यवहारकुशल,और सावधान थी . किसी को मालूम नहीं था कि उसका कोई प्रेमी भी है , न ही उसके चरित्र पर किसी को शक था . कटाई के समय जैसे सब पड़ जाते हैं , वह भी एक रात तूफ़ान में आकाश के नीचे धान के ढेर पर गिर पड़ी ---जब भारी हवाएं भट्टी की आग के जैसे तप रही थीं और लड़के -लड़कियों के यौवन से भरे शरीर पसीने से तर - बतर हो रहे थे .
कुछ समय बाद उसे लगा की वह माँ बनने वाली है .लोकलाज और बदनामी के भय से वह काँप उठी . वह ह़र कीमत पर अपना यह गुनाह छिपाना चाहती थी . उसने बांस की खपच्चियों और रस्सियों से से एक भोथरा सा औजार बनाया और उससे अपने पेट पर जोर डालने लगी. जैसे-जैसे बच्चा बढ़ता गया , वह पेट पर और दबाव बढ़ाती गयी . अपने इस असहनीय दर्द और मानसिक संताप को सहते भी वह हंसती रहती . प्रसन्न चित्त दिखती और काम करती रहती. ताकि कोई उसे देखे नहीं और कोई शक भी न करे . उसने अपने बच्चे के भ्रूण को तोड़ दिया था , वह विकृत हो गया था और राक्षस जैसा बन गया था . एक दिन बसंत ऋतु में ,एक खुले खेत में उसने एक विकृत बच्चे को जन्म दिया . खेत पर काम करने वाली महिलाएं दौड़ कर उस की सहायता करने आईं.बच्चे का सर चपटा था और लम्बा हो गया था उसकी दोनों आँखें बाहर निकल आई थीं, हाथ अनुपातहीन लम्बे हो गए थे हाथ- पैर की उँगलियाँ मकड़ी के पैरों जैसे पतली और मुड़ी हुई थीं .फिर भी वह सुपारी की तरह गोल व् छोटा रहा . उस भयानक बच्चे को देखकर वे महिलाएं डरकर राक्षस- राक्षस चिल्लाती हुई भाग गयीं . पूरे गाँव में यह कहानी फ़ैल गई की उसने एक दानव बचे को जन्म दिया है . उसी समय से उसका नाम पड़ गया --डायन , दैत्यों की माँ. उसकी नौकरी चली गयी . वह दूसरों की दया या शायद गुप्त प्रेम के सहारे जीवित रही क्योंकि वह देखने में खूबसुन्दर थी , दिलकश और जवान थी और सभी आदमी नरक से नहीं डरते हैं .''
''वह अपने बच्चे से पूरी तरह घृणा करती थी परन्तु बच्चा तो पालना ही पड़ा . वह शायद उस बच्चे का गला घोंट देती लेकिन वह क़ानून और सजा से डर कर रह गयी.एक दिन वहां से कार्निवाल कंपनी के लोग गुजर रहे थे . उन्होंने उस अद्भुत बच्चे के बारे में सुना और उस बच्चे को देखना चाह कि यदि पसंद आ गया तो साथ ले जांयगे . उन्होंने बच्चे को देखा ,पसंद किया और तुरंत उसके मूल्य के रूप में उसकी माँ को पांच सौ फ्रैंक दिए . शुरू में तो ग्लानि से भारी होने के कारण वह नहीं चाहती थी की कोई बच्चे को देखे परन्तु जब उसे ज्ञात हो गया की सौदा आय का जरिया है और ये लोग उस बच्चे को चाहते हैं तो तो उसने बच्चे का मोल भाव करना शुरू कर दिया . अपने बच्चे की विकृतियों वाले किससे वह चटखारे ले-ले कर सुनाने लगी और उनको उकसाकर ग्रामीण प्रवृत्ति के अनुसार भाव बढ़ाने लगी . इस व्यवसाय में उसे कोई घाटा या धोखा न हो , इसके लिए उसने उन लोगों से एक लिखित अनुबंध भी कर लिया जिसके अनुसार वे उसे प्रतिवर्ष चार सौ फ्रैंक नियमित रूप से देते रहने के लिए भी तैयार हो गए तथा उन्होंने बच्चे को अपनी नियमित सेवा में भी रख लिया .''
धन,वैभव, सौभाग्य की आशा से पूरी तरह टूटी हुई , सब कुछ पाने की आशा से उस महिला को पागल सा कर दिया . उसके बाद उसने विचित्र , विकृत , रौद्र , वीभत्स बच्चों को जन्म देने की लालसा को मरने नहीं दिया ताकि उसे भी और रईसों के समान निश्चित आय मिलती रहे . वह काफी उर्वरक थी . वह अपनी महत्वाकान्क्षाओं में विजयी रही . वह अपनी गर्भावस्था में विभिन्न प्रकार के दबावों से कुरूप आकर वाले बच्चे पैदा करने में माहिर हो गयी . उसने लम्बे बड़े , छोटे छिपकली के आकर के बच्चे पैदा किये . बहुत से मर भी गए जिसका उसे बहुत दुःख हुआ.
कानून ने उसे घेरने के प्रयास तो किये परन्तु कुछ सिद्ध नहीं कर पाए . अब वह शांति से इस घिनौने काम को करने के लिए स्वतन्त्र थी .अब तक उसके ग्यारह बच्चे जिन्दा हैं जिनसे उसे पाँच- छः हजार फ्रैंक की वार्षिक आय होती है . वह आखिरी बच्चा अभी तक बिका नहीं था , जिसे हम देखने गए और उसने दिखने से स्पष्ट मना कर दिया था .परन्तु अब वह ऐसा अधिक समय तक जारी नहीं रख सकेगी क्योंकि अब सभी सर्कस के मालिक उसे जानने लगे थे . वे सब समय - समय पर उसके पास यह जानने के लिए आते हैं कि उसके पास बेचने के लिए नया कुछ तो नहीं है. यदि उसका बच्चा बिकने लायक होता तो बहुत से खरीदारों के बीच उसे नीलम भी करवाती थी. मेरा दोस्त चुप था . मेरे ह्रदय में एक अजीब वितृष्णा पैदा हुई . एक भयानक आक्रोश , एक लाचारी . मुझे दुःख हुआ कि जब वह मेरे पास आई थी तो मैंने उसका गला क्यों नहीं घोट दिया.
" पर इन बच्चों का बाप कौन है ?'' , मैंने पूछा.
'कोई नहीं जानता .'' उसने उत्तर दिया . " वे सब या तो अपने आप में एक शालीनता लिए हुए हैं या वे सब अनाम -बेनाम हैं . शायद वे सब भी इस पाप के भागीदार हैं .
मैंने कल तक इस अजीब रोमांच के बारे में नहीं सोचा था . जब मैंने उस झील के किनारे एक सुन्दर , आकर्षक महिला को देखा जिसमें त्रिया चरित्र के सभी गुण कूट-कूट कर भरे हुए थे . वह काफी लोगों से घिरी हुई थी और सबकी नजरों में उसके लिए बहुत सम्मान था .
मैं अपने डाक्टर मित्र कि बाहों में बाहें डाल कर उसके सामने आकर खड़ा हो गया . दस मिनट बाद मैंने ध्यान दिया कि उसकी आया तीन बच्चों का विशेष ध्यान दे रही है जो पास ही पड़ी बालू पर उछल- कूद रहे थे .दुखदायी बैसाखियों का जोड़ा धरती पर पड़ा हुआ था . फिर मैंने देखा कि तीनों बच्चे कुरूप, बेढंगे, लंगड़े ,कुबड़े और घृणा के पात्र थे . डाक्टर मित्र ने बताया कि तीनों बच्चे उस बला कि सुन्दर आकर्षक महिला के हैं जिससे तुम अभी मिले हो . मुझे उस महिला और उसके तीनों बच्चों कि अपंगता पर बहुत दया आई . बेचारी अभागिन माँ , इतने पर भी वह कैसे हंस सकती है ! मेरे दोस्त ने कहा,'' इस औरत पर तरस मत खाओ .ये बच्चे जिन पर तुम्हें सचमुच दया आनी चाहिए , यह आखिर तक अपने शरीर को लावण्य-
मय बनाए रखने का दुष्परिणाम है. वे विकलांग कुरूप बच्चे इसी सुन्दर सी बला ने बनाए हैं , पैदा किये हैं .
'' वह अच्छी प्रकार जानती है कि वह इस खतरनाक खेल में अपना जीवन दांव पर लगा चुकी है . जब तक वह जवान ,आकर्षक और लुभावनी है , तबतक वह किसी कि परवाह नहीं करती .''
मुझे वह डायन याद आ गयी जो ऐसे बच्चों को बेचा करती थी .


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