गुरुवार, 18 अक्टूबर 2012

वफादार

पंडित राम नारायण एक सरकारी अधिकारी थे . बीस साल की अफसरी  हो गई थी . उनकी बड़ी इच्छा  थी कि एक अपना भी मकान हो. अब उन्हें किराये पर रहना अच्छा नहीं लगता था . कहने को सरकारी अफसर थे , परन्तु ईमानदारी का लबादा ओढ़े बैठे थे . इसलिए अभी तक एक मकान भी नहीं बनवा पाए थे . उनके लिपिकों के भी अच्छे खासे बंगले थे . विभाग के लोग उनसे सहानुभूति तो रखते थे , परन्तु  मकान बनाने में कोई क्या मदद करता . पंडित जी को इसका भी मलाल होता कि जो लोग दादागिरी करके सरकारी जमीन पर  कब्ज़ा कर लेते हैं , सरकार ने हाथ - पैर जोड़कर उन्हें मुफ्त के मकान  बांटे पर ईमानदार अफसर होने के कारण उनसे झूठ- मूठ में कोई पूछने तक नहीं आया . पर सब के दिन फिरते हैं , उनके भी फिरे . बैंक से लोन  मिल गया . उन्हें एक अच्छा सा बिल्डर भी मिल गया और  वह मकान मालिक हो गए . शुभ मुहूर्त देख कर गृह - प्रवेश किया . उनकी  धर्म पत्नी  की ख़ुशी का तो ठिकाना ही न था और ख़ुशी क्यों न होती . उन्होंने घर को अन्दर- बाहर  से खूब सजाया . घर के बाहर क्यारियां बनाईं . उनमें  सुन्दर  फूलों के पौधे लगाये , गमले सजाये . कोई भी देखता उनकी तारीफ करता .

फूल बड़े कोमल होते हैं . यदि बड़ी बाउंड्री वाल बनाकर उन्हें पापियों की नज़र से नहीं बचाया गया ,तो उनका जीवन असंभव सा हो जाता है . पापी लोग भगवान  को खुश करने के लिए , जहाँ से भी संभव हो  फूल प्राप्त करने में कोई संकोच नहीं करते हैं . कुछ लोग तो बाकायदा एक बड़ा प्लास्टिक का झोलानुमा लिफाफा लेकर चलते हैं  दूसरे   हाथ में लम्बी डंडी ले कर चलते हैं जिसके आगे मुड़ी हुई तार लगी रहती है . अगर कोई फूल शराफत से हाथ में न आये तो वे डंडी उचका कर तार  उस फूल की गर्दन में फंसाकर उसकी गर्दन मरोड़ने से भी नहीं चूकते हैं .देवी जी को चढ़ने वाले गुलहड़ के लाल   फूल की तो कली  को भी लोग नहीं छोड़ते हैं  . उनके पापों को धोने के लिए झउआ भर फूल भी पूरे नहीं पड़ते हैं . 

पंडिताइन जी मेहनत  करतीं , पानी देतीं , खाद डालतीं  , घास निकालती , पौधों की कांट - छांट  करवातीं , दो - चार फूल भगवान को भी अर्पित करतीं .  उनके फूलों को भी पापियों की  नज़र लग गई . सुबह छः बजे सोकर बाहर  आतीं तो देखती फूल नदारत हैं . रोज थोड़े- थोड़े फूल जाते ,थोडा - थोडा गुस्सा भी आता . गुस्सा आ तो रोज रहा था , पर निकल नहीं पा  रहा था . बेचारे  पंडित जी इतने सीधे कि डर के मारे कोई गड़बड़ ही न करते . रोब झाड़ने के लिए पंडिताइन उन्हें कभी - कभी डपट लेती थी पर प्यार की डपट से कही गुस्सा शांत होता है ?

एक दिन तो गजब हो गया . वे जब ऊपर से बगिया को निहार रहीं थीं, उनकी खासम - खास सहेली ही दिन दहाड़े साधिकार उनका फूल तोड़ ले गईं  , पूछना तो दूर , पूछने की जरूरत ही नहीं समझी . सहेली तो अपनी थी और अपनों पर भी गुस्सा निकाल लेने में कोई हर्ज नहीं है बशर्ते अगले ने कोई  अक्षम्य अपराध किया हो . वे गुस्से से नीचे उतरीं और सहेली के घर बिना पूछे घुस गईं  . जैसे उसने बिना पूछे फूल तोड़े थे ,उससे भी  बिना स्पष्टीकरण मांगे , बिना बचाव का अवसर दिए  पंडिताइन ने ताबड़तोड़ चिल्लाना शुरू कर  दिया . जब तक वह समझ पातीं की बात क्या है , पंडिताइन ने रोना - चिल्लाना शुरू कर दिया और झटपट बाहर को दौड़ीं  . बचाओ - बचाओ चिल्लाते अपने घर में जा घुसीं . जब पंडिताइन डपट रहीं थी तो पड़ोसन के वफादार कुत्ते ने सोचा कि आज वफ़ादारी का सुअवसर मिला है , चूक गए तो जिंदगी भर पछताना पड़ेगा कि मालिक की रोटी मुफ्त में तोड़ते रहे और उनके प्यार के बदले बेवफाई की .जब इन्सान ही पूछने की जरूरत नहीं समझता , वह तो है ही जानवर!सोफे के नीचे से निकलकर लपका और  उसने मालकिन की प्रिय सहेली को बिना पूछे ही पैर  चाब लिया .

वफादार कुत्ते  की मालकिन इस बात से भयभीत हो गईं कि  पंडिताइन बहुत गुस्से में है , कहीं पुलिस में रपट न कर दे  या उसे सहेली से बहुत सहानुभूति पैदा हो गयी या फिर सहेली की हरकत पर दया आ गयी , वह भी सारा काम - काज छोड़कर उसके पीछे - पीछे आ गई और समझाने लगी कि उनका कुत्ता पागल बिलकुल नहीं हैं , उसे सारे इंजेक्शन लगे हुए हैं . डरने की कोई बात नहीं है और इसके साथ ही बार- बार सॉरी भी बोलती जा रहीं थी . पंडिताइन तो अपना गुस्सा पहले ही निकाल आईं  थीं . रोनी हंसी के आलावा उनके पास अब कुछ नहीं बचा था . बेचारे पंडित जी ने गाड़ी निकाली और पंडिताइन को धैर्य बंधवाते , समझाते - बुझाते ,सुई लगवाने अस्पताल ले गए .

   फूलों ने गुल ऐसा खिलाया , बदनाम गुलशन हो गया .
    बागवान देखता रह गया   ,चमन  ही  दुश्मन  हो गया .

गुरुवार, 4 अक्टूबर 2012

चिड़ीमार अर्थ शास्त्री

                                          चिड़ीमार    अर्थ शास्त्री 
यह शब्द कुछ अटपटा सा लग सकता है . मैं आपसे ही पूछता हूँ  उनके लिए बेस्ट शब्द क्या हो सकता है ? हमारे देश में बहुत पहले  लोग धार्मिक हुआ करते थे जिन्हें अब सांप्रदायिक कहा जाता है . उस समय एक कहावत प्रचलित थी , ' एक पंथ , दो काज .' प्रायः दो काज में दोनों कामों का अर्थ अच्छे काम के सन्दर्भ में होता था . जब अंग्रेज आये तो बात वीरता के साथ चालाकी की होने लगी और उन्होंने कहावत प्रयोग की ,' टु किल टू  बर्ड्स विथ वन  स्टोन ',अर्थात एक पत्थर फेंक कर दो चिड़िया मारना . वे मांसाहारी होते थे इसलिए चिड़िया मारना उन्हें बहुत अच्छा लगता था . फिर वे लोगों को भी चिड़िया समझते थे . आज के अर्थ शास्त्री अंग्रेजीदां हैं . उन्हें हिंदी से तो नफरत है . इसलिए वे भी चिड़िया मार  मुहावरे को बहुत पसंद करते हैं . जब आज के सुधार कार्यक्रमों को देखते हैं तो आश्चर्य होता है कि वे तो एक साथ कई चिड़िया मार रहे हैं  . 
            पहला पत्थर मारा ,गैस के दाम बढ़ा दिए . कंपनी वाले खुश .जो  खुश होता है वह ईश्वर के नाम पर , नेता के नाम पर , धंधे- पानी के नाम पर कुछ तो प्रसाद चढ़ाएगा  ही . गैस मंहगी  होगी तो लोग माइक्रो वेव ओवेन खरीदेंगे , उनका व्यवसाय चमकेगा वे भी प्रसाद बाँटेंगे . गैस न मिली तो खाना किस पर बनायेंगे ? इससे पिजा -बर्गर का व्यवसाय बढेगा . लोग पिजा बर्गर खायेंगे , बीमार पड़ेंगे , डाक्टरों , अस्पतालों , दवाई बनाने वालों  की चाँदी होगी  . इसीलिए पहले  से ही अस्पताल को उद्योग का दर्जा दे दिया गया है जिससे यह उद्योग चरखे जैसा न चलकर आधुनिक आटोमेटिक फैक्टरी  सरीखा दौड़ेगा ,फिर इसका विस्तार चाय नाश्ता पंहुचाने वालों से लेकर  बिल्डर , लोहा -सीमेंट,  मिस्त्री - मजदूर और न जाने कहाँ - कहाँ तक फैलेगा . इस तरह एक ही वार से कितनी चिड़िया मार गिराईं , आप गिन भी नहीं सकते हैं . और यदि बात डीज़ल के दाम की करें तो वह तो खतरनाक एटम बम की श्रंखला अभिक्रिया सरीखा है , डीजल का नाम लेकर लोग रोते जांयगे और चालाकी से दूसरों को लूटते जांएगे . चिड़ी मार अर्थ शास्त्रियों , तुम्हारा बलिहारी हूँ .

सोमवार, 1 अक्टूबर 2012

नव ग्रह आराधना

    नव ग्रह  आराधना 
ब्रह्मा विष्णु शंकर प्रसन्न हों ,जीवन में उत्साह भरें .
सभी ग्रह हों अनुकूल प्रभुजी ,स्वस्थ रहें , धन-धान्य  बढ़ें ..

सूर्य देवता आत्म शक्ति दें ,जीवन विश्वास से हो भरपूर .
मैं हूँ कौन , कहाँ से आया , क्या करना संशय हो  दूर .
जीवन लक्ष्य सुनिश्चित हों , हमें दूरदृष्टि दें , मार्ग दिखाएँ .
साधन से संपन्न बनें हम ,उस पथ पर आगे बढ़ते जाएँ .

चन्द्र देव मनमंदिर में , आलोक करें और धैर्य बनाएं .
मन स्थिर हो , सक्रिय हो ,उत्साह रहे और लक्ष्य को पायें .

मंगल ग्रह दें शक्ति हमें , शरीर हमारा पुष्ट सबल हो .
रहें हम भय से मुक्त सदा ,गृह - भू की ,संपत्ति अटल हो .

बुद्ध , बुद्धि की वृद्धि करें , दें ज्ञान औ'  विद्या बढती जाए .
भाषा मधुर , तथ्यपूर्ण हो ,व्यक्तित्व हमारा सबको भाए .
गुरु विवेक दें , नई सोच हो , ज्ञान - विज्ञान के दीप जलें .
धन- संपत्ति- सुख बढ़ें हमारे, नव आशाओं के फूल खिलें .

शुक्र प्रेम दें , सुन्दर - शिव हो , वसुधा का परिवार हमारा .
वाहन सुख हो , कला - प्रेम हो , आनंद की बहती रहे धारा 

शनि प्रसन्न हों , कष्ट न होवें , जन- जन का कल्याण करें .
सबमें हो सहयोग परस्पर , श्रम- सुख का अभियान चले .

राहु रोगों से मुक्त करें , विकार रहित जीवन हो अपना .
जीवन में कोई शत्रु न हो , पद - मान मिले , पूरा हो सपना .

केतु की सब पर कृपा रहे , सब में धर्मों की वृद्धि हो .
 मोक्ष प्राप्त हो जीवन में ,सत्कर्मों  की  समृद्धि  हो .

ईश्वर दें सदबुद्धि , शांति , नव गृह दें , सुख - धन - समृद्धि 
सभी सुखी हों , सभी स्वस्थ हों , कुटुंब - चेतना में हो वृद्धि

लक्ष्मी - वंदना

लक्ष्मी - वंदना  
लक्ष्मी  माता  विश्व  विधाता  तेरी  जय हो,जय हो , जय हो .
धन - सुख देने वाली माता   तेरी  जय हो, जय हो , जय हो .
हम हैं  तेरी शरण में आये  , भक्तों का भाग्य बना दे माता ,
हमको इतनी शक्ति तू  दे  दे ,हमारा हो  सत्कर्म   से  नाता .
माँ हमको आशीष दो अपना , हम तन - मन से स्वस्थ रहें  ,
हम  जो भी  व्यवसाय करें   माँ , वृद्धि करें  और व्यस्त रहें 
उद्यमी तेरी कृपा को पाता ,लक्ष्मी  माता , विश्व  विधाता, तेरी  जय हो,जय हो , जय हो .
जो पद माँ ने हमें  दिया है , हमारे     काम  हो सबसे अच्छे  ,
दिन पर दिन हम बढ़ते  जाएँ  ,अभी हम  तेरे   छोटे   बच्चे  .
बुद्धि -विवेक लगन हम रखें , जीवन को उत्साह से  भर दो 
हम  नित श्रम से कार्य करें  माँ ,हमारी झोली धन से भर दो .
सच्चे भक्तों से  माँ का नाता , लक्ष्मी  माता  विश्व  विधाता  तेरी  जय हो,जय हो , जय हो .
सबसे   व्यवहार में नम्र रहें लक्ष्मी जी ऐसी दया करें 
हमारा कोष बढ़े दिन पर दिन, कुबेर देवता कृपा करें .
अच्छे कार्यों से धन वृद्धि हो , अच्छे कार्यों में खर्चे हों ,
भक्ति - प्रेम नित बढ़ता जाये , सुख - खुशियों के चर्चे हों .
माँ का स्नेह है आनन्द लाता , लक्ष्मी  माता , विश्व  विधाता, तेरी  जय हो,जय हो , जय हो .
देश  मेरा समृद्ध करो  माँ , नेताओं  को  सन्मार्ग दिखाओ ,
अधिकारी सभी सदाचारी हों , जन- कल्याण की वृद्धि कराओ .
लोग सभी धन -ज्ञान युक्त हों ,कोष कभी न होवे खाली ,
कृपा हो लक्ष्मी माँ की सब पर , घर -.घर में हो रोज दीवाली .
जय हो पद- सम्मान प्रदाता  , लक्ष्मी  माता  विश्व  विधाता  तेरी  जय हो,जय हो , जय हो ..

रविवार, 23 सितंबर 2012

सिकुलर भ्रष्टाचार , माया की माया , उलूक वाहन

सिकुलर भ्रष्टाचार 
सिकुलर -सांप्रदायिक हो गया , मंहगाई - भ्रष्टाचार ,
सपा पार्टी समझा रही , इन दोनों के व्यवहार .
पार्टी के काम हैं भिन्न , ये भी भिन्न रूप के होंगे ,
कांग्रेस - सपा के भ्रष्टाचार , पूर्णतयः सिकुलर होंगे .
भाजपा के भ्रष्टाचार को वे घोर साम्प्रदायिक कहते ,
सिकुलर भ्रष्टाचार भला , उसको ये  पूर्ण  समर्थन देते .
       माया की माया 
कांग्रेस को बसपा मानती , सांपनाथ का रूप ,
भाजपा को वह कह रही ,नागनाथ स्वरूप .
सांपनाथ स्वीकार  है , विष थोड़ा कम  होय ,
कांग्रेस का हाथ पकड़ कर , सपने रही संजोय .
केंद्र से  मिलता  लाभ , पकाओ कांग्रेस संग खिचड़ी ,
माया तो माया में डूबी , बसपा राजनीति में पिछड़ी .

            उलूक  वाहन
रहस्य मय दिन भर रहे , रात्रि करे निज काम .
अन्धकार में देख सके , लक्ष्मी रहे उसके धाम ..
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उलूक बनायें व्यक्ति को  , उस पर हो जांए सवार 
वह अपना धन दे जायगा , करिए उस पर अधिकार .
 करिए उस पर अधिकार  और लक्ष्मी पुत्र कहलाएं ,
उद्यमी , शासक , ऋषि राज , सभी से आदर पाएं  .
जो उलूकों को लेता  पाल , उन्हें चहुँ  ओर उड़ाता ,
पाता पद और मान ,        कुबेर नाथ बन जाता ..
  

रविवार, 9 सितंबर 2012

नादान लड़की

नादान लड़की 
सीधी -सादी लड़की है  इक थोड़ी सी  नादान है ,
कभी शरारत कर जाती है ,थोड़ी सी अनजान है .
खुले चमन में उड़ती है वह , देख रही सुन्दर सपने ,
चेहरा उसका बोल रहा है , हम सब उसके हैं अपने.
प्यारी गुड़िया जुग-जुग जियो , सारे सपने पूरे हों,
जो तुम चाहो  , जुट जाओ , काम न कोई अधूरे हों ..

भ्रमित अन्ना टीम

 भ्रमित अन्ना टीम
     अन्ना  जी  के  दल  में  किसी को यह नहीं मालूम कि उसे आगे क्या करना है . कभी कहना पार्टी बनाएंगे , कभी कहना कि अलग रहेंगे , लोगों को भी भ्रमित करता है .इनके सदस्यों को पुराना इतिहास नहीं मालूम . १९८० के चुनाव के पूर्व विद्यार्थी परिषद् ने ऐसा ही अभियान चलाया था कि चुनाव में ऐसे को वोट मत दो - वैसे को दो . सारी पार्टियाँ एक दूसरे की बुराइयां करती हैं  , अपनी तारीफ करती हैं , लोग कैसे तय करते  कि कौन अच्छा है - कौन ख़राब . नई -नई बनी भाजपा को भारी क्षति हुई . मैंने उन्हें भी समझाया था कि जिसे जिताना चाहते हो उसके पक्ष में प्रचार करो , पहेलियाँ न बुझाओ पर ऊपर से बड़े लोगों के आदेश थे . उनका समय और धन दोनों ख़राब हुए . आज केजरीवाल यह नहीं कहते कि जन लोकपाल  के आगे राष्ट्र कि समस्याओं का हल वे कैसे करेंगे . हमारा   समर्थन प्राप्त व्यक्ति यह नहीं करेगा , वह नहीं करेगा , गड़बड़ करेगा तो उसको कान पकड़ कर बाहर कर देंगे , पर इससे जनता को क्या लाभ होगा ?राजनीति में आना है तो खुलकर आइये , क्रन्तिकारी युद्ध में जीतते ही रहें हो ऐसा नहीं होता है , उनके बलिदान से भी समाज को दिशा मिलती है . अतः ऋणात्मक विचार पहले मन से निकाल दें , फिर आगे की  बात सोचें और सहायता लेनी हो तो  कुशल राजनीतिक विश्लेषक की सेवाएँ लें , उसे अपने साथ जोड़ें और धनात्मक प्रयास करें.