बुधवार, 8 जून 2011

अपने डेथ- वारंट पर हस्ताक्षर कौन करेगा !

अपने डेथ- वारंट पर हस्ताक्षर कौन करेगा !
मेरा प्रश्न अजीब लग सकता है परन्तु इसका उत्तर ढूंढना ही होगा . आजकल आन्दोलनों का बाजार गर्म है . बाबा रामदेव और अन्ना हजारे के आंदोलनों से देश आंदोलित हो रहा है . अन्ना जी चाहते हैं ऐसा लोकपाल बिल जो भ्रष्टाचार करने पर पटवारी से लेकर कैबिनेट सचिव तक और पंच से लेकर प्रधानमंत्री तथा उच्चतम न्यायालयों के जजों को फांसी पर लटका सके अथवा आजीवन कारावास की सजा दे सके . यदि गणितीय प्रमेय के आधार पर व्याख्या करें , तो यह मांग इसलिए उठाई गई है कि नीचे से ऊपर तक सब भ्रष्टाचार में लिप्त हैं .सारे सांसद भी लिप्त हैं , मंत्री भी लिप्त हैं . मान लिया सचमुच में सारे मंत्री लिप्त हैं . यदि ये बिल पास करवाएंगे तो सबसे पहले फंदे में लटकने का सौभाग्य भी इन्हीं को मिल सकता है . यदि ये अपना प्रायश्चित करने के लिए लटकने को तैयार भी हो जाएँ तो क्या बाकी मंत्री भी तैयार हो जायेंगे ? और अनेक भ्रष्टाचारी सांसद जिन्हें इस बिल को पास करना है, भी अपने डेथ -वारंट को स्वीकार कर लेंगे ? सभी कहेंगे कि यह शत प्रतिशत असंभव है . तो फिर अन्ना हजारे के लोकपाल बिल का क्या होगा ! यदि वे समझते हैं कि वे पटाकर , बहलाकर , फुसलाकर , धमकाकर मंत्रियों से अपनी बात मनवा लेंगे और वे इसमें सफल भी हो गए तो
क्या लोकपाल का जन्म हो जायगा !उसको जन्म देने वाले सांसद पहले ही भ्रूण हत्या कर देंगे और अभी जो कूद- कूद कर उनका समर्थन कर रहें हैं सबसे पहले इसके विरोध में खड़े हो जायेंगे .
बाबा रामदेव काले धन , विदेशों में जमा अवैध धन और भ्रष्टाचार के लिए आमरण अनशन पर हैं . जो कानून बनाने वाले हैं और जो बनवाने वाले हैं , उन्ही का पैसा विदेशों में जमा है . वे उसे राष्ट्रीय संपत्ति मानते , तो धन विदेशों में ही क्यों ले जाते ? पता नहीं किस -किस के हिस्से का धन बड़ी मेहनत से लूट कर उन्होंने अकूत संपत्ति बनाई होगी . वे कानून बना कर या बनने दे कर कंगाल होना चाहेंगे या फांसी पर लटकना चाहेंगे ? समाज में खोमचे वालों तथा परचून वालों से लेकर महान व्यवसायी, उद्योगपति तक नंबर दो का पैसा कमाने और उसे सहेज कर रखने में व्यस्त हैं . इसलिए ऐसी मांग रखना जो कभी पूरी ही न हो सके और उसके लिए आमरण अनशन करना सर्वथा आधारहीन एवं अनुचित है . जैसे किसी डाकू से सामना हो जाये , वह हमला कर देता है, किसी चोर को भागने का मौका न दें तो वह हमला कर देता है , किसी गुंडे- लुटेरे को लूटने से मना करें तो वह हमला कर देता है , किसी डान के क्षेत्र में कोई दूसरा वसूली करने लगे तो वह जान लेवा हो जाता है , वैसे ही बाबा के तम्बू में आधी रात में सोते हुए लोगों पर पुलिसिया लूट संपन्न हुई . बाबा को इसे भली भांति समझना चाहिए और ऐसी मांग नहीं करनी चाहिए जो संभव न हो या उन लोगों से नहीं करनी चाहिए जो इसके लिए सक्षम न हों . बाबा जी के विचार उत्तम हैं , राष्ट्र हित के प्रयास भी प्रशंसनीय हैं , परन्तु उनके क्रियान्वयन का ढंग सही नहीं है . मेरी बात समक्ष रख कर बाबा जी और अन्ना हजारे लोगों से पूँछें कि उसमें कितने प्रतिशत गलत है . यदि सभी लोग इसे सत्य माने तो वे उतना ही दबाव बनाएं जितना सामने वाला सह सके तथा व्यावहारिक रूप से कोई क़ानून बन सके . गांधीजी ने भी आन्दोलन किये परन्तु कभी ऐसी जिद नहीं की . वे अंग्रेजों को थोड़ा - थोड़ा कर के मनाते गए .गाँधी जी क्रमिक परिवर्तन की दिशा में बढ़ते गए . सन १९४२ के 'भारत छोड़ो ' आन्दोलन में भी उन्होंने सहजता का परिचय दिया . उसके ५ वर्ष बाद देश आजाद हुआ . राष्ट्रीय आंदोलनों में उन्होंने कभी अहम् को नहीं आने दिया . असफलता के पश्चात वे पुनः चिंतन करते और नवीन पथ खोजकर आगे बढ़ते गए . क्या बाबा रामदेव और अन्ना हजारे ऐसा नहीं कर सकते ? यदि उनके ये आन्दोलन उनकी जिद्द के कारण बिना किसी परिणाम के समाप्त हो गए तो इससे समाज की अपूरणीय क्षति होगी और आर्थिक अपराध सीना तान कर होने लगेंगे .
प्रो ए. डी. खत्री , चिन्तक, पत्रकार ,भोपाल



गुरुवार, 26 मई 2011

सेमेस्टर व्यवस्था में सुधार

सेमेस्टर व्यवस्था में सुधार
तीन वर्षों तक म.प्र. के युवाओं का भविष्य चौपट करने के बाद सरकार को लग रहा है की सेमेस्टर व्यवस्था में सुधार करना चाहिए . अप्रेल २००८ में बरकतुल्लाह विश्विद्यालय में सेमस्टर व्यवस्था पर चर्चा करने के लिए प्राचार्यों की बैठक की गई थी . उसमें मैं भी सम्मिलित था . मैंने कहा की जिस प्रकार ढेर सारे पेपर रख कर सेमेस्टर शुरू किये जा रहें हैं, इसमें तो साल भर परीक्षाएं होती रहेंगी , पढाई कब होगी ? मैंने कहा की विश्वविद्यालय छोटी -छोटी पी.जी. डी. सी.ए. जैसी परीक्षाओं के परीक्षा फल समय से नहीं दे सकता है तो इतने सारे परीक्षा परिणाम समय से कैसे देगा ? म. प्र. के उच्च शिक्षा आयुक्त आशीष उपाध्याय तथा प्रमुख सचिव श्रीमती स्नेहलता श्रीवास्तव , जो इस योजना को लागू करवाने के लिए कटिबद्ध थे , ने कुलसचिव से जब इसके बारे में पूछा कि कितने समय में परीक्षा करवा लेंगे तो उन्होंने कहा कि एक महीने में .सब देख रहें हैं कि प्रदेश के लाखों छात्रों का एक साल बर्बाद हो गया है . सरकार को चाहिए की छात्रों को न्यूनतम १००००रुपये प्रतिमाह के हिसाब से बर्बाद किये गए समय के लिए क्षतिपूर्ति करे क्योंकि यह सारा खेल शासन ने जानबूझ कर खेला है . अभी तक पांचवें सेमेस्टर के परीक्षा फल आये नहीं हैं , छात्रों ने विधिवत रूपसे छठवें सेमेस्टर में प्रवेश भी नहीं लिया है उनकी पढ़ाई कब होगी? बिना समुचित पढ़ाई के छठवें सेमेस्टर की परीक्षाओं की घोषणा भी कर दी गई है और यह भी तय है की सरकारी योजना के तहत अधिकांश छात्र बिना पढ़े अच्छे अंकों से पास भी हो जायेंगे परन्तु वर्तमान समस्या तो स्नातकोत्तर कक्षाओं में प्रवेश की है । विश्विद्यालय जिन्होंने छात्रों को सरकार के आदेश पर चक्रव्यूह में फंसाया है ,नवीन सत्र में प्रवेश तिथियों की घोषणाएं ऐसे कर रहे हैं जैसे उन्हें परीक्षा होने ,न होने या छात्रों के उपलब्ध न होने से उन्हें कोई वास्ता ही नहीं है । आश्चर्य की बात तो यह है प्रदेश के महामहिम राज्यपाल को विश्विद्यालयों का कुलाधिपति बने रहने का शौक तो है , परन्तु छात्रों की समस्याओं से उन्हें कोई मतलब नहीं है । उनका कार्य केवल विश्विद्यालयों में सजे -सजाए मंच पर विराज मान होकर उनके कार्यक्रम को गौरव प्रदान करना है । यदि वे प्रदेश की उच्च शिक्षा के प्रति अपना थोड़ा सा भी दायित्व समझते हैं तो वे वर्ष बर्बाद करने के लिए सम्बंधित अधिकारियों को छात्रों की क्षति पूर्ति का आदेश दें तथा विश्विद्यालय के कुलपतियों एवं महाविद्यालयों के प्राचार्यों को को क्लर्कों के चंगुल से मुक्त करें।
म.प्र. में शिक्षा का नियंत्रण क्लर्कों के हाथों में है . पाठ्यक्रम तैयार करवाने के लिए विभिन्न विश्विद्यालयों के प्राध्यापकों को भोपाल बुलाकर एक कमरे में बैठा कर उसी दिन काम पूरा करने के आदेश दिए जाते हैं जैसे वे टाईपिस्ट हों .न विचार न विमर्श . कम से कम इतना तो सोचना चाहिए की निर्धारित पाठ्यक्रम व्यावहारिक है या नहीं .अभी भी यदि प्रश्न पत्र कम करने के लिए वर्तमान में लागू दो प्रश्न पत्रों को एक किया जायगा तो पेपर बनाने में असुविधा आएगी . जहाँ तक कापी जांचने की बात है तो विश्विद्यालय उर्दू के शिक्षक से फिजिक्स , मैथ्स की कापी भी जंचवा लेगा .क्योंकि पढ़ कर कापी जांचने का समय अब नहीं रहा . जो शिक्षक बिना कापी खोले ऊपर नंबर भर देते हैं , विश्विद्यालय में उन्हें पसंद किया जाता है . परन्तु प्रश्नपत्र बनाने के लिए विषय का कुछ तो ज्ञान होना चाहिए . विज्ञान विषयों के साथ यह समस्या अधिक होती है . अतः पाठ्यक्रम इस प्रकार निर्धारित किये जाएं की परीक्षक पेपर आसानी से बना सकें . उदहारण के लिए आधार पाठ्यक्रम में तीन भाग होते हैं - १. सामान्य अध्ययन , २. हिंदी भाषा ३. अंग्रेजी भाषा . एक प्राध्यापक इस पेपर को कैसे बनाएगा ? पूर्व में इसके लिए तीन अलग-अलग पेपर दिए जाते थे . तीन पेपर देना और छात्रों से तीन अलग- अलग कापियां लेना असुविधाजनक होता है .इसमें यह सम्भावना बनी रहती है की हिंदी के बण्डल में कुछ कापियां अंग्रेजी या सामान्य ज्ञान की हो और इनके बण्डल में हिंदी की हों तो मूल्यांकन के समय प्राध्यापक यह कभी नहीं बताते और समझ आये या न आये कापी जाँच कर उसी विषय जैसे हिंदी में ही वे नंबर चढ़ा देते हैं .अतः इस बात का ध्यान रखना होगा की सेमेस्टर में एक विषय का पाठ्यक्रम एक ही पेपर में समाहित हो तथा एक विषय का एक सेमेस्टर में एक पेपर ही रखा जाय .वार्षिक परीक्षाएं प्रथक से न रखी जाएँ . जिन छात्रों को ए टी के टी देनी हो , उन्हें भी नए पाठ्यक्रम के पेपर ही दें ताकि किसी भी कक्षा में प्रश्न पत्रों की संख्या कम से कम रहे और समय पर परीक्षा परिणाम आ सकें . पूर्व में परीक्षा शुल्क के नाम पर छात्रों से भारी शुल्क वसूल किये गए हैं . अब पेपर कम होने से उनकी परीक्षा शुल्क भी कम की जानी चाहिए. छात्रों को लूटने और बर्बाद करने की नीति समाप्त की जाय और उनसे अपने बच्चों जैसा व्यव्हार किया जाय. पढने-पढ़ाने कि सुविधाएं दी जाएँ.
दिल्ली विश्वविद्यालय में पिछले वर्ष से सेमेस्टर सिस्टम की कवायद चल रही है . वहां व्यवस्था क्लर्कों के हाथ में न होकर प्राध्यापकों के हाथों में है . उन्होंने पर्याप्त सुविधाएँ तथा स्टाफ दिए बिना इसे लागू करने में असमर्थता व्यक्त की है . वहां आनर्स पाठ्य क्रम में प्रत्येक सेमेस्टर में ४ प्रश्न पत्र रखे गए हैं , म.प्र. जैसे ९ नहीं रखे गए . आतंरिक मूल्यांकन भी केवल एक होगा . वे इस बात का पूरा ध्यान रख रहें हैं की म. प्र. जैसे वहां पढाई चौपट न हो तथा परीक्षाफल विलम्ब से न आयें . वहां प्राध्यापक पाठ्य क्रम निर्धारित करने के लिए परस्पर चर्चा करते हैं क्योंकि वहां उन्हें आदेश देने के लिए कोई क्लर्क या कमिश्नर सोच भी नहीं सकता .
म.प्र.के उच्च शिक्षा विभाग में एक नए आयुक्त आये । कुछ कालेजों का दौरा कर आये । जो प्राचार्य , प्राध्यापक या कर्मचारी नहीं आये , उन्हें निलंबित करदिया या वेतन वृद्धि रोक दीं । चलो मान लिया यह तो अच्छा काम किया । परन्तु क्या उन्हें महाविद्यालयों कोई कमियां नजर नहीं आईं ? क्या वे स्टाफ की कमी को भी शीघ्र पूरा करेंगे ? क्या वे लैब, आफिस , भवन , फर्नीचर , पुस्तकालय की कमियों को भी पूरा करेंगे या अपने पूर्वगामी आयुक्तों की तरह आतंक का साम्राज्य फैला कर राज्य सड़क परिवहन निगम के समान उच्च शिक्षा व्यवस्था को भी और चौपट कर जायेंगे ? सत्र २००७-०८ तक झंडे से झंडे तक (१५ अगस्त से २६ जनवरी तक )कुछ पढ़ाई तो होती थी , अधिकांश परीक्षाएं समय पर होती थीं और परीक्षा फल भी लगभग समय पर आ जाते थे । अब अधिकांश जगह पढ़ाई तो है ही नहीं , परीक्षाएं जब मर्जी होती है करवा ली जाती हैं और परीक्षा परिणाम से तो किसी को कुछ लेना देना है ही नहीं ,इसलिए छात्रों का वर्ष ख़राब हो गया है । इसलिए उच्च शिक्षा के नए आयुक्त तथा प्रमुख सचिव यदि व्यवस्था सुधारने का संकल्प लेकर कार्य करेंगे , तोछात्रों का बहुत उपकार होगा ।







बुधवार, 18 मई 2011

कांग्रेस नीति

कानून के मछंदर

कर-नाटक भेजी रपट, गवर्नर तीरंदाज,
येदुरप्पा को हटा दें ,राष्ट्रपति महाराज .
राष्ट्रपति महाराज बनाएं ऐसे गवर्नर ,
राजनीति में तेज , कानून के महा मछंदर.
सोनियाजी खुश रहें ,ऐसे कुछ काम हैं करते,
प्रजातंत्र का गला , घोंटने में नहीं डरते .
राजनीति
राहुल गाँधी सीख रहे , राजनीति-कानून,
झूठ को सच साबित करें, गढ़ते ऐसे मजबून.
गढ़ते ऐसे मजबून,उपलों को चिता बताते,
मारे गए अनेक , हैं दुनिया को समझाते .
यह युवराज बनेगा , कल को जिसका नेता,
धुनेगा अपना शीश , जीवन में रहेगा रोता .
डा.ए.डी.खत्री , भोपाल

बाबा रामदेव का अनशन

बाबा रामदेव आमरण अनशन न करें

बाबा रामदेव ४ जून से दिल्ली में आमरण अनशन करने की घोषणा कर चुके हैं . मेरा आग्रह है की ऐसा करना उनके लिए व्यक्तिगत रूपसे तो क्षतिकारक होगा ही , समाज और देश के लिए विपरीत प्रभाव उत्पन्न करने वाला होगा . कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने भी उन्हें ऐसी ही सलाह दी है .उनकी सलाह या विचार वही होते हैं जो सोनिया जी तय करती हैं . संभव है बाबा उनकी बात की उपेक्षा कर दें और अनशन शुरू कर दें , परन्तु यहाँ पर उनको भी एक अच्छे कार्य का श्रेय देने में भलाई ही है .
बाबा रामदेव अन्न्हाजारे जी के उपवास के धोखे में न रहें . संयोग और भाग्य से अन्ना हजारे जी ने ऐसे वक्त उपवास रखा था जब ५ राज्यों में चुनाव हो रहे थे . भ्रष्टाचार के आरोपों का कांग्रेस सामना कर ही रही थी कि उनके उपवास से कांग्रेस पर प्रहार और तेज हो गए . मीडिया को भी कांग्रेस को हराने का वज्र मिल गया और उसने जम कर प्रहार करने शुरू कर दिए. उस समय मीडिया के सामने भ्रष्टाचार नहीं ,कांग्रेस की हार मुख्य मुद्दा था . कांग्रेस के सामने अन्नाहजरे की मांगें पूरी करने के अतिररिक्त कोई रास्ता ही शेष नहीं था . सोनिया जी की राजनीतिक बुद्धि बहुत तीव्र है . वे इंदिरा गाँधी से भी अधिक विचार शक्ति रखती हैं . इसलिए विदेशी होने के हो-हल्ले के बावजूद देश की सवा अरब आबादी को उन्हें देश का नेता स्वीकार करना पड़ा . उनकी यह बुद्धि उनके स्वयं की विचार शक्ति से है अथवा देशी-विदेशी योग्य सलाहकारों के कारण , यह महत्त्व पूर्ण नहीं है . महत्वपूर्ण है उनका सही समय पर सही निर्णय लेना. भारत का इतिहास साक्षी है की पूर्व में भारतीय राजाओं के समयानुकूल निर्णय न लेने के कारण ही देश गुलाम होता गया. सोनिया जी ने जब देखा की उपवास के कारण प्रतिदिन कांग्रेस का वोट बैंक तीव्रता से गिरता जा रहा है तो उन्होंने सब बातों में हाँ-हाँ कह दी . यदि उपवास जारी रहता तो कांग्रेस को भारी हानि उठानी पड़ती. अन्ना हजारे को साथ लेने से कांग्रेस को कुछ सीटें भी मिल गईं क्योंकि उससे जनता में यह सन्देश गया कि कांग्रेस भ्रष्टाचार के विरुद्ध है . इससे कांग्रेस के परम्परागत वोट बच गए . दूसरी ओर कांग्रेस अन्ना हजारे को कुछ दे तो रही नहीं थी . सिर्फ लोकपाल के लिए कानून बनाने में गति लाने का वायदा करना था . यदि उनकी सलाह पर मंत्रिमंडल उन्हीं का मसौदा स्वीकार कर ले तो भी कानून तो लोक सभा और राज्य सभा द्वारा पास किया जाना है . यदि सांसद कानून के प्रावधानों पर को बदलने के लिए कहेंगे तो उसे कौन रोकेगा ? जो लोग लोकपाल को सुप्रीम कोर्ट से भी शक्तिशाली बनाने कि बात करते हैं ,उन्हें संविधान का कोई ज्ञान नहीं है . सुप्रीम कोर्ट यदि ऐसे एक भी कानून को स्वीकार कर लेता है तो आने वाले दिनों में सुप्रीम कोर्ट का नाम और काम दोनों समाप्त हो जायेंगे . जब सुप्रीम कोर्ट के जज स्वयं ही लोकपाल के सामने खड़े रहेंगे तो वे काहे के सुप्रीम कहलायेंगे ? वर्तमान परिस्तिथियों में यह संभव नहीं लगता है .इसलिए सोनियाजी ने हाँ कर दी.
इंदिराजी को हटाने के लिए जब जयप्रकाश नारायण ने सम्पूर्ण क्रांति का नारा देकर आन्दोलन प्रारंभ किया था , उनकी मांग मानना तो दूर, आपातकाल लगाकर जयप्रकाश नारायण के साथ समूचे विपक्ष को ही जेलों में ठूंस दिया गया था . जब जप्रकाश जी की हालत बहुत ख़राब हो रही थी तो चुपचाप उनके अंतिम संस्कार की तैयारी भी कर ली गयी थी .आपात कल के बाद उस समय तो कांग्रेस हार गयी थी , परन्तु शीघ्र ही पुनः उसे सत्ता में बैठा दिया गया . और तो और उस समय विपक्ष के जिन नेताओं को जेल में यातनाएं दी गयी थी , उनमें से अनेक नेता भी कांग्रेस के भारवाहक हो गए . लोग सब कुछ जल्दी ही भूल जाते हैं , सोनिया जी को सब याद है . इसलिए उन्होंने ऐन चुनाव के समय मुसीबत को सफलता पूर्वक टाल दिया. यह कार्य पक्ष-विपक्ष का कोई अन्य नेता सोच भी नहीं सकता था .
परन्तु बाबा रामदेव की मांग पूरी करना संभव नहीं है . जिस जानकारी को उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को भी देने से इनकार कर दिया , बाबा को वह जानकारी कैसे दे देंगे ? सबसे बड़ा बहाना तो प्रकरण का न्यायालय के विचाराधीन होना है . बाबा की मांग ही असंवैधानिक कही जायगी .जब नाम ही पता नहीं चलेंगे तो विदेशों में जमा धन को लाने का काम बाबा कैसे पूरा करवाएंगे . यदि बाबा जिद पर अड़े रहे और हड़ताल पर बैठ ही गए तो वह और उनके साथी भूख से अस्वस्थ तो होंगे ही , सरकार उन्हें जेल भेज देगी और जबरन अनशन तुडवा देगी . इससे बाबा की प्रतिष्ठा को भारी धक्का लगेगा और भ्रष्टाचार के विरुद्ध एकजुट हो रहे लोगों का मनोबल गिर जायगा . बाबा तम्बू तानें , भयंकर गर्मी के दिन हैं , खूब खा-पीकर ३ से ७ दिनों का विरोध प्रदर्शन करें , सरकार और न्यायालय पर सामाजिक दबाव बनाएं कि सरकार कम से कम कोर्ट में चोरों के नाम बताए . यदि बाबा इसमें असफल रहेंगे तो भी कांग्रेसी सरकार की प्रतिष्ठा दांव पर रहेगी और यह उनकी सफलता होगी . बाबा अपनी घोषणा को झूठी प्रतिष्ठा का प्रश्न न बनाएं .स्वर्णिम म. प्र. के चतुर सुजान मुख्य मंत्री श्री शिव राज सिंह चौहान को जब उन्हीं कि पार्टी के लोगों ने घेरकर किसानों के वास्ते आमरण अनशन के लिए पटा लिया था तो उन्होंने ने भी अपने कार्य कर्ताओं को खुश करने के लिए करोड़ों रूपये खर्च करके आलीशान तम्बू तनवा दिया और बड़ी श्रद्धा से पार्टी अध्यक्ष प्रभात झा का आशीर्वाद लिया , तिलक करवाया , तम्बू में प्रवेश किया और तत्काल बाहर निकल आये जैसे हनुमानजी सुरसा के पेट का भ्रमण करके निकल आये थे . यदि वे उपवास प्रारंभ कर देते तो उन्हें कोई अधिकारी या कार्यकर्त्ता जबरन जेल लेजाकर राशन- पानी देने का विचार ही न कर पाता और उनकी कुर्सी क्या जीवन का संकट उत्पन्न हो जाता . आज उनका मान-सम्मान पहले से भी अधिक है .अतः बाबा रामदेव आमरण अनशन जैसे अव्यवहारिक विचारों को त्याग कर लोक शक्ति का संगठन एवं संवर्धन करते रहें तो देश का अधिक भला होगा .
डा. ए. डी. खत्री

मंगलवार, 17 मई 2011

अनिवार्य एवं निःशुल्क बाल शिक्षा

अनिवार्य एवं नि :शुल्क बाल शिक्षा
स्कूल व्यवस्था नष्ट न करें

अनिवार्य एवं नि :शुल्क बाल शिक्षा का अधिनियम इतनी विसंगतियों से युक्त है. अधिनियम में प्रवेश , व्यवस्था , प्रबंधन , शिक्षक , पाठ्यक्रम आदि सभी अवधारणाएँ अस्पष्ट हैं .प्रदेशों के शिक्षा अधिकारी और नेता उनकी मनमाने ढंग से व्याख्या कर रहे हैं.म.प्र. में २५% की दर से १०००० स्थान नि:शुल्क शिक्षा के लिए निर्धारित हुए . इन पर लाटरी के द्वारा प्रवेश दिया गया . ५००० सीटें रिक्त रह गईं . इन्हें भरने के लिए प्रवेश तिथि १६ जून तक बढ़ा दी गई है . प्रदेश में हजारों शिक्षकों , प्राध्यापकों ,चिकित्सकों , इंजीनियरों , पुस्त्काल्याधाक्षों , क्रीडा अधिकारिओं ,लिपिकों आदि के पद वर्षों से रिक्त पड़े हैं . सरकार को उनकी कोई चिंता नहीं है क्योंकि किसी भी कार्य को अच्छी प्रकार करने की उसकी कभी मंशा ही नहीं रही है . निजी विद्यालयों पर दबाव डाला जा रहा है .यह दबाव उन शिक्षा अधिकारियो के माध्यम से डाला जा रहा है जो प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था बर्बाद कर चुके हैं . कुछ विद्यालय अपवाद हो सकते हैं परन्तु अधिकांश विद्यालयों की हालत और प्रतिष्ठा इतनी है कि मजदूरी एवं घरों में झाड़ू -पोंछा लगाकर गुजारा करने वाले लोग भी उधर झांकना तक पसंद नहीं करते हैं . यदि सरकारी स्कूल अच्छे होते तो निजी स्कूलों का अभिभावकों पर दबाव न होता .शिक्षा के नए अधिनियम के मानदंडों पर १०% सरकारी स्कूल भी खरे नहीं उतरेंगे , परन्तु इन नियमों के माध्यम से निजी स्कूलों का जम कर शोषण और भ्रष्टाचार करने से इनकार नहीं किया जा सकता है.
आज सरकारी एवं निजी स्कूलों अथवा महाविद्यालयों में परिवार , समाज, देश जैसी कोई अवधारणा शेष नहीं रह गई है . एक ही विचार बचा है कि क्या करें, कैसे पढ़ें कि अधिकतम धन कमाया जा सके . कुछ निजी विद्यालय इस उद्देश्य कि पूर्ति भी कर रहे हैं . इसलिए अभिभावक अपने बच्चों को अच्छे स्कूलों में पढ़ाना चाहते हैं चाहे जो भी कीमत चुकानी पड़े . अब सरकारें उन्हें भी नष्ट करने पर तुल गई हैं . निजी विद्यालय प्रवेश दे रहे हैं ,इस आशा से कि सरकार उन गरीब बच्चों की फ़ीस देगी . सरकार फीस देगी या नहीं देगी , देगी तो कितनी देगी और कितनी घूंस लेकर देगी यह तो बाद में पता चलेगा . वर्तमान समस्या तो उन गरीब बच्चों की है जिन्हें जैसे भी हो अच्छे विद्यालयों में प्रवेश मिल गया है . प्रथम समस्या उनकी पुस्तकों - कापिओं ,स्टेशनरी ,ड्रेस तथा आवागमन कि सुविधा देने की है . यदि अभिभावक ये व्यवस्थाएं करने में सक्षम होंगे तो वे गरीब कैसे माने जाएँगे ?.उस स्थिति में उनका गरीबी का राशन कार्ड भी छीन लिया जायगा .गरीब के नाम पर दिया गया प्रवेश भी रद्द किया जा सकता है . अतः अभिभावक ऐसी गलती कभी नहीं करेंगे. जब ये प्रदेश सरकारें पहली से बारहवी तक के छात्रों को मुफ्त में ड्रेस , किताबें , सायकिले , भोजन , चप्पलें आदि दे सकती है , तो इन गरीब, थोड़े से बच्चों के लिए कंजूसी क्यों करना चाहती हैं ? यह उनका दायित्व है और उन्हें ही पूरा करना होगा . जिन बच्चों के प्रवेश विलम्ब से होंगे , उनका पिछड़ा हुआ कोर्स पूरा करवाने का दायित्व भी इन कल्याणकारी सरकारों का है , उनके अफसरों का है जो बड़ी लगन से उनकी अच्छी शिक्षा के लिए जुटे हुए हैं . यदि ऐसा नहीं किया गया तो गरीब बच्चों और उनके अभिभावकों में तनाव उत्पन्न हो जायगा जो बहुत घातक होगा . यदि सरकारों का सारा श्रम इन बच्चों का बोझ निजी विद्यालयों पर डालने का है , तो अपनी आर्थिक क्षति पूर्ति तो वे अन्य बच्चों के अभिभावकों से जबरन कर लेंगे . पर पढ़ाई का क्या होगा ? कक्षा में शिक्षक क्या एक चौथाई बच्चों की उपेक्षा करते हुए शेष बच्चों को पढाएंगे या अच्छे बच्चों की उपेक्षा करके , जो ढेर सारी फीस दे रहे हैं , कमजोर बच्चों के पीछे पड़े रहेंगे और अपना सिर धुनेंगे. यदि सरकार इन बच्चों के साथ भी सरकारी बच्चों जैसा व्यव्हार करेगी , वे बिना ड्रेस के आयेंगे ,तो प्रबंधन उनका क्या कर लेगा ? जो नहीं पढ़ पाएंगे ,होम वर्क नहीं कर पाएंगे , शिक्षक बेचारे उनका क्या कर लेंगे ? जो टेस्ट में फेल हो जाएंगे या टेस्ट देंगे ही नहीं अथवा परीक्षा ही नहीं देंगे , उन्हें किस नियम के तहत अगली कक्षा में जाने से रोका जा सकेगा . सरकारी नौकर तो झूठे रिकार्ड बनाने में माहिर हैं , क्या इन निजी विद्यालयों के शिक्षकों एवं प्रबंधन को भी उसी रास्ते पर धकेला जायेगा जिस पर सरकारी स्कूल चल रहे हैं ? क्या इसे देख कर ऐसा नहीं लगता कि देश में शिक्षा के जो थोड़े से केंद्र बचे हैं ,ये सरकारें उन्हें भी नेस्त -नाबूत करके छोड़ेंगी .
डा. ए. डी.खत्री

गुरुवार, 21 अप्रैल 2011

स्पेक्ट्रम घोटाला

स्पेक्ट्रम घोटाला
१.रिलायंस अधिकारी जेल में

बाहर तुम क्या कर रहे , राजा जेल तिहाड़ ,
बाँट रहा स्पेक्ट्रम , कर जाकर पड़ताल ।
कर जाकर पड़ताल, शीघ्र सम्बन्ध बनाओ ,
जैसे भी हो सके ,और स्पेक्ट्रम लाओ ।
भारत की यह रीति ,जेल से ठेके चलते ,
और करोगे देर ,रहोगे हाथ को मलते .१.
२ . कनिमोई जेल में
करुणा बेटी से कहें , रहा नहीं कुछ काम.
राजा जी तो धन्य हैं, दुनिया में छाया नाम .
दुनिया में छाया नाम ,स्वयं है जेल में बैठा ,
रहा नहीं अब पूछ , है रहता ऐंठा - ऐंठा .
चलता होगा उद्योग,कनिमोई जेल में जाओ ,
जितना भी हो सके , कमीशन ले कर आओ .२.

अंधेर नगरी चौपट राजा ,टके सेर भाजी टके सेर खाजा.
वत्स यहाँ तू कभी न रहना , मुफ्त माल का लालच कर न .
वरना कभी भी फंस जायेगा ,सूली पर लटका जायेगा
गुरूजी, बात कुछ अच्छी बोलो,अशुभ-अशुभ शब्द मत घोलो,
कितना अच्छा देश है देखो , टके सेर में काजू ले लो ।
मैं तो रहूँगा इस धरती पर , फल - मेवे खाऊँ मैं जी भर ।
गुरु की बात चेला न माने , रहने लगे शहर अनजाने ,
एक दिवस चोर पकड़ाया, उसके लिए फंदा बनवाया ।
फंदा बड़ा बना कुछ ऐसा , गर्दन हो भैसे के जैसा ।
चोर की गर्दन सुकड़ी-पतली ,निकल गई झट बिना ही अकड़ी ।
राजा ने देखा जब फंदा , बोले लाओ मोटा बंदा ।
मोटी-ताजी गर्दन हो जिसकी , फंदे में फंस जाये उसकी ।
उसको ही फांसी लटकाओ , शीघ्र मेरा आदेश बजाओ ।
मोटा ताजा चेला जब पाया , पकड़ उसे ऊपर लटकाया ।
बच्चों कभी न लालच करना ,नेकी के रास्ते पर चलना ।
यह कथा अगर पढ़ते अम्बानी ,इतनी न करते नादानी ।
पाँच बड़े अधिकारी लटके ,प्राण हैं उनके ऊपर अटके ।
क्यों है ऐसा देश बनाया , लूट का है व्यापार चलाया ।
खुद करता जा खूब घोटाला, रक्षा करे अब ऊपर वाला । 3 ।

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011

अन्ना जी के साथ

अन्ना जी के साथ

भ्रष्टाचारी अर्थ शास्त्रियो ने , देश किया बर्बाद ,
देश बेच कर हो रहे , मंत्री-अफसर आबाद .
मंत्री-अफसर आबाद , नाम जनता का लेते ,
लूटें नोट पे नोट , विदेशों को है देते .
बाबा अन्ना हैं अभी , देश के पहरेदार ,
जनता मिल-जुल एक हो, गद्दारों से होशियार .१.

रंग बदलती जा रही , सोनिया की सरकार
सोनिया जी खामोश थीं ,होते गए भ्रष्टाचार.
होते गए भ्रष्टाचार , राहुल जी कुछ नहीं बोले,
मनमोहन हैं व्यस्त , कभी न आँखें खोलें .
अन्ना जी को आज, जो नेता नहीं स्वीकारें ,
वे भ्रष्टों के एजेंट, उन्हें पहचानो प्यारे .२.

भ्रष्टाचारी हैं कर रहे , लोगों पर आघात,
देश की जनता आ गयी , अन्ना जी के साथ .
अन्ना जी के साथ ,सड़क पर हम सब आयें ,
दिखा दें अपनी शक्ति , लोक धुन उन्हें सुनाएँ,
फूल गया है बहुत , भ्रष्टाचारी गुब्बारा ,
उसमें कर दो इक छेद, यही है अंतिम चारा .३.

डा.ए. डी. खत्री ,भोपाल