बुधवार, 18 मई 2011

बाबा रामदेव का अनशन

बाबा रामदेव आमरण अनशन न करें

बाबा रामदेव ४ जून से दिल्ली में आमरण अनशन करने की घोषणा कर चुके हैं . मेरा आग्रह है की ऐसा करना उनके लिए व्यक्तिगत रूपसे तो क्षतिकारक होगा ही , समाज और देश के लिए विपरीत प्रभाव उत्पन्न करने वाला होगा . कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने भी उन्हें ऐसी ही सलाह दी है .उनकी सलाह या विचार वही होते हैं जो सोनिया जी तय करती हैं . संभव है बाबा उनकी बात की उपेक्षा कर दें और अनशन शुरू कर दें , परन्तु यहाँ पर उनको भी एक अच्छे कार्य का श्रेय देने में भलाई ही है .
बाबा रामदेव अन्न्हाजारे जी के उपवास के धोखे में न रहें . संयोग और भाग्य से अन्ना हजारे जी ने ऐसे वक्त उपवास रखा था जब ५ राज्यों में चुनाव हो रहे थे . भ्रष्टाचार के आरोपों का कांग्रेस सामना कर ही रही थी कि उनके उपवास से कांग्रेस पर प्रहार और तेज हो गए . मीडिया को भी कांग्रेस को हराने का वज्र मिल गया और उसने जम कर प्रहार करने शुरू कर दिए. उस समय मीडिया के सामने भ्रष्टाचार नहीं ,कांग्रेस की हार मुख्य मुद्दा था . कांग्रेस के सामने अन्नाहजरे की मांगें पूरी करने के अतिररिक्त कोई रास्ता ही शेष नहीं था . सोनिया जी की राजनीतिक बुद्धि बहुत तीव्र है . वे इंदिरा गाँधी से भी अधिक विचार शक्ति रखती हैं . इसलिए विदेशी होने के हो-हल्ले के बावजूद देश की सवा अरब आबादी को उन्हें देश का नेता स्वीकार करना पड़ा . उनकी यह बुद्धि उनके स्वयं की विचार शक्ति से है अथवा देशी-विदेशी योग्य सलाहकारों के कारण , यह महत्त्व पूर्ण नहीं है . महत्वपूर्ण है उनका सही समय पर सही निर्णय लेना. भारत का इतिहास साक्षी है की पूर्व में भारतीय राजाओं के समयानुकूल निर्णय न लेने के कारण ही देश गुलाम होता गया. सोनिया जी ने जब देखा की उपवास के कारण प्रतिदिन कांग्रेस का वोट बैंक तीव्रता से गिरता जा रहा है तो उन्होंने सब बातों में हाँ-हाँ कह दी . यदि उपवास जारी रहता तो कांग्रेस को भारी हानि उठानी पड़ती. अन्ना हजारे को साथ लेने से कांग्रेस को कुछ सीटें भी मिल गईं क्योंकि उससे जनता में यह सन्देश गया कि कांग्रेस भ्रष्टाचार के विरुद्ध है . इससे कांग्रेस के परम्परागत वोट बच गए . दूसरी ओर कांग्रेस अन्ना हजारे को कुछ दे तो रही नहीं थी . सिर्फ लोकपाल के लिए कानून बनाने में गति लाने का वायदा करना था . यदि उनकी सलाह पर मंत्रिमंडल उन्हीं का मसौदा स्वीकार कर ले तो भी कानून तो लोक सभा और राज्य सभा द्वारा पास किया जाना है . यदि सांसद कानून के प्रावधानों पर को बदलने के लिए कहेंगे तो उसे कौन रोकेगा ? जो लोग लोकपाल को सुप्रीम कोर्ट से भी शक्तिशाली बनाने कि बात करते हैं ,उन्हें संविधान का कोई ज्ञान नहीं है . सुप्रीम कोर्ट यदि ऐसे एक भी कानून को स्वीकार कर लेता है तो आने वाले दिनों में सुप्रीम कोर्ट का नाम और काम दोनों समाप्त हो जायेंगे . जब सुप्रीम कोर्ट के जज स्वयं ही लोकपाल के सामने खड़े रहेंगे तो वे काहे के सुप्रीम कहलायेंगे ? वर्तमान परिस्तिथियों में यह संभव नहीं लगता है .इसलिए सोनियाजी ने हाँ कर दी.
इंदिराजी को हटाने के लिए जब जयप्रकाश नारायण ने सम्पूर्ण क्रांति का नारा देकर आन्दोलन प्रारंभ किया था , उनकी मांग मानना तो दूर, आपातकाल लगाकर जयप्रकाश नारायण के साथ समूचे विपक्ष को ही जेलों में ठूंस दिया गया था . जब जप्रकाश जी की हालत बहुत ख़राब हो रही थी तो चुपचाप उनके अंतिम संस्कार की तैयारी भी कर ली गयी थी .आपात कल के बाद उस समय तो कांग्रेस हार गयी थी , परन्तु शीघ्र ही पुनः उसे सत्ता में बैठा दिया गया . और तो और उस समय विपक्ष के जिन नेताओं को जेल में यातनाएं दी गयी थी , उनमें से अनेक नेता भी कांग्रेस के भारवाहक हो गए . लोग सब कुछ जल्दी ही भूल जाते हैं , सोनिया जी को सब याद है . इसलिए उन्होंने ऐन चुनाव के समय मुसीबत को सफलता पूर्वक टाल दिया. यह कार्य पक्ष-विपक्ष का कोई अन्य नेता सोच भी नहीं सकता था .
परन्तु बाबा रामदेव की मांग पूरी करना संभव नहीं है . जिस जानकारी को उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को भी देने से इनकार कर दिया , बाबा को वह जानकारी कैसे दे देंगे ? सबसे बड़ा बहाना तो प्रकरण का न्यायालय के विचाराधीन होना है . बाबा की मांग ही असंवैधानिक कही जायगी .जब नाम ही पता नहीं चलेंगे तो विदेशों में जमा धन को लाने का काम बाबा कैसे पूरा करवाएंगे . यदि बाबा जिद पर अड़े रहे और हड़ताल पर बैठ ही गए तो वह और उनके साथी भूख से अस्वस्थ तो होंगे ही , सरकार उन्हें जेल भेज देगी और जबरन अनशन तुडवा देगी . इससे बाबा की प्रतिष्ठा को भारी धक्का लगेगा और भ्रष्टाचार के विरुद्ध एकजुट हो रहे लोगों का मनोबल गिर जायगा . बाबा तम्बू तानें , भयंकर गर्मी के दिन हैं , खूब खा-पीकर ३ से ७ दिनों का विरोध प्रदर्शन करें , सरकार और न्यायालय पर सामाजिक दबाव बनाएं कि सरकार कम से कम कोर्ट में चोरों के नाम बताए . यदि बाबा इसमें असफल रहेंगे तो भी कांग्रेसी सरकार की प्रतिष्ठा दांव पर रहेगी और यह उनकी सफलता होगी . बाबा अपनी घोषणा को झूठी प्रतिष्ठा का प्रश्न न बनाएं .स्वर्णिम म. प्र. के चतुर सुजान मुख्य मंत्री श्री शिव राज सिंह चौहान को जब उन्हीं कि पार्टी के लोगों ने घेरकर किसानों के वास्ते आमरण अनशन के लिए पटा लिया था तो उन्होंने ने भी अपने कार्य कर्ताओं को खुश करने के लिए करोड़ों रूपये खर्च करके आलीशान तम्बू तनवा दिया और बड़ी श्रद्धा से पार्टी अध्यक्ष प्रभात झा का आशीर्वाद लिया , तिलक करवाया , तम्बू में प्रवेश किया और तत्काल बाहर निकल आये जैसे हनुमानजी सुरसा के पेट का भ्रमण करके निकल आये थे . यदि वे उपवास प्रारंभ कर देते तो उन्हें कोई अधिकारी या कार्यकर्त्ता जबरन जेल लेजाकर राशन- पानी देने का विचार ही न कर पाता और उनकी कुर्सी क्या जीवन का संकट उत्पन्न हो जाता . आज उनका मान-सम्मान पहले से भी अधिक है .अतः बाबा रामदेव आमरण अनशन जैसे अव्यवहारिक विचारों को त्याग कर लोक शक्ति का संगठन एवं संवर्धन करते रहें तो देश का अधिक भला होगा .
डा. ए. डी. खत्री

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