म.प्र. में शिक्षा का नियंत्रण क्लर्कों के हाथों में है . पाठ्यक्रम तैयार करवाने के लिए विभिन्न विश्विद्यालयों के प्राध्यापकों को भोपाल बुलाकर एक कमरे में बैठा कर उसी दिन काम पूरा करने के आदेश दिए जाते हैं जैसे वे टाईपिस्ट हों .न विचार न विमर्श . कम से कम इतना तो सोचना चाहिए की निर्धारित पाठ्यक्रम व्यावहारिक है या नहीं .अभी भी यदि प्रश्न पत्र कम करने के लिए वर्तमान में लागू दो प्रश्न पत्रों को एक किया जायगा तो पेपर बनाने में असुविधा आएगी . जहाँ तक कापी जांचने की बात है तो विश्विद्यालय उर्दू के शिक्षक से फिजिक्स , मैथ्स की कापी भी जंचवा लेगा .क्योंकि पढ़ कर कापी जांचने का समय अब नहीं रहा . जो शिक्षक बिना कापी खोले ऊपर नंबर भर देते हैं , विश्विद्यालय में उन्हें पसंद किया जाता है . परन्तु प्रश्नपत्र बनाने के लिए विषय का कुछ तो ज्ञान होना चाहिए . विज्ञान विषयों के साथ यह समस्या अधिक होती है . अतः पाठ्यक्रम इस प्रकार निर्धारित किये जाएं की परीक्षक पेपर आसानी से बना सकें . उदहारण के लिए आधार पाठ्यक्रम में तीन भाग होते हैं - १. सामान्य अध्ययन , २. हिंदी भाषा ३. अंग्रेजी भाषा . एक प्राध्यापक इस पेपर को कैसे बनाएगा ? पूर्व में इसके लिए तीन अलग-अलग पेपर दिए जाते थे . तीन पेपर देना और छात्रों से तीन अलग- अलग कापियां लेना असुविधाजनक होता है .इसमें यह सम्भावना बनी रहती है की हिंदी के बण्डल में कुछ कापियां अंग्रेजी या सामान्य ज्ञान की हो और इनके बण्डल में हिंदी की हों तो मूल्यांकन के समय प्राध्यापक यह कभी नहीं बताते और समझ आये या न आये कापी जाँच कर उसी विषय जैसे हिंदी में ही वे नंबर चढ़ा देते हैं .अतः इस बात का ध्यान रखना होगा की सेमेस्टर में एक विषय का पाठ्यक्रम एक ही पेपर में समाहित हो तथा एक विषय का एक सेमेस्टर में एक पेपर ही रखा जाय .वार्षिक परीक्षाएं प्रथक से न रखी जाएँ . जिन छात्रों को ए टी के टी देनी हो , उन्हें भी नए पाठ्यक्रम के पेपर ही दें ताकि किसी भी कक्षा में प्रश्न पत्रों की संख्या कम से कम रहे और समय पर परीक्षा परिणाम आ सकें . पूर्व में परीक्षा शुल्क के नाम पर छात्रों से भारी शुल्क वसूल किये गए हैं . अब पेपर कम होने से उनकी परीक्षा शुल्क भी कम की जानी चाहिए. छात्रों को लूटने और बर्बाद करने की नीति समाप्त की जाय और उनसे अपने बच्चों जैसा व्यव्हार किया जाय. पढने-पढ़ाने कि सुविधाएं दी जाएँ.
दिल्ली विश्वविद्यालय में पिछले वर्ष से सेमेस्टर सिस्टम की कवायद चल रही है . वहां व्यवस्था क्लर्कों के हाथ में न होकर प्राध्यापकों के हाथों में है . उन्होंने पर्याप्त सुविधाएँ तथा स्टाफ दिए बिना इसे लागू करने में असमर्थता व्यक्त की है . वहां आनर्स पाठ्य क्रम में प्रत्येक सेमेस्टर में ४ प्रश्न पत्र रखे गए हैं , म.प्र. जैसे ९ नहीं रखे गए . आतंरिक मूल्यांकन भी केवल एक होगा . वे इस बात का पूरा ध्यान रख रहें हैं की म. प्र. जैसे वहां पढाई चौपट न हो तथा परीक्षाफल विलम्ब से न आयें . वहां प्राध्यापक पाठ्य क्रम निर्धारित करने के लिए परस्पर चर्चा करते हैं क्योंकि वहां उन्हें आदेश देने के लिए कोई क्लर्क या कमिश्नर सोच भी नहीं सकता .
म.प्र.के उच्च शिक्षा विभाग में एक नए आयुक्त आये । कुछ कालेजों का दौरा कर आये । जो प्राचार्य , प्राध्यापक या कर्मचारी नहीं आये , उन्हें निलंबित करदिया या वेतन वृद्धि रोक दीं । चलो मान लिया यह तो अच्छा काम किया । परन्तु क्या उन्हें महाविद्यालयों कोई कमियां नजर नहीं आईं ? क्या वे स्टाफ की कमी को भी शीघ्र पूरा करेंगे ? क्या वे लैब, आफिस , भवन , फर्नीचर , पुस्तकालय की कमियों को भी पूरा करेंगे या अपने पूर्वगामी आयुक्तों की तरह आतंक का साम्राज्य फैला कर राज्य सड़क परिवहन निगम के समान उच्च शिक्षा व्यवस्था को भी और चौपट कर जायेंगे ? सत्र २००७-०८ तक झंडे से झंडे तक (१५ अगस्त से २६ जनवरी तक )कुछ पढ़ाई तो होती थी , अधिकांश परीक्षाएं समय पर होती थीं और परीक्षा फल भी लगभग समय पर आ जाते थे । अब अधिकांश जगह पढ़ाई तो है ही नहीं , परीक्षाएं जब मर्जी होती है करवा ली जाती हैं और परीक्षा परिणाम से तो किसी को कुछ लेना देना है ही नहीं ,इसलिए छात्रों का वर्ष ख़राब हो गया है । इसलिए उच्च शिक्षा के नए आयुक्त तथा प्रमुख सचिव यदि व्यवस्था सुधारने का संकल्प लेकर कार्य करेंगे , तोछात्रों का बहुत उपकार होगा ।
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