कश्मीर -
समस्या कश्मीर की वर्तमान स्थिति केलिए पाकिस्तान से अधिक दोष जवाहर लाल नेहरु जैसे नेताओं का है जिन्होंने राजनीति के सभी सिद्धांतों को ताक पर रख कर शांति दूत बनने के चक्कर में समाधान को समस्या में परिवर्तित कर दिया . कश्मीर में जाकर वे कश्मीरी हो जाते थे और भारत के हितों के विरुद्ध बोलते ही नहीं अपितु काम भी करते थे .जब पाकिस्तान की सेना कबायलियों के रूप में कश्मीर में घुसकर कब्ज़ा कर रही थी और मार-काट मचा रही थी तो भारत की सेना को उन्हें भगाने का कोई आदेश नहीं दिया गया उलटे उन्हें कार्यवाही करने से रोक दिया गया अन्यथा यह समस्या दो-तीन दिनों में ही हल हो जाती . जब कश्मीर के राजा भारत में विलय के लिए लिखित में अनुरोध कर रहे थे , नेहरु जनमत का राग अलाप रहे थे . देश के सभी राज्यों के भारत में विलय का आधार उनके राजाओं-नवाबों द्वारा दि गई स्वीकृति ही थी न कि उन राज्य के लोगों के जनमत संग्रह . सरदार वल्लभ भाई पटेल , जो उस समय भारत के गृह मंत्री थे , ने सभी राज्यों को भारत में मिला लिया . हैदराबाद जैसे निजामों ने विरोध किया तो उन्हें हमले कि धमकी देकर मिला लिया गया .परन्तु नेहरु के कारण सरदार पटेल कश्मीर में कुछ नहीं कर सकते थे . नेहरु ने कश्मीर को स्वतन्त्र देश बनाने का का पूरा प्रयास किया . उन्होंने कश्मीर में शेख अब्दुल्ला को प्रधान मंत्री बनवाया तथा राज्य -प्रमुख को सदर -ए-रियासत कहा जब कि अन्य सभी राज्यों में मुख्यमंत्री तथा राज्यपाल होते हैं . बाद में गोवा , दमन ,दीव जो पुर्तगाल के आधिपत्य में थे , १९६१ में भारत में मिला लिया गया ,कहीं कोई समस्या नहीं आई . इंदिरा गांधी ने सिक्किम को भारत में मिला लिया , वह भी शांतिसे भारत का एक राज्य बन गया . परन्तु कश्मीर के लिए अभी भी धारा ३७० लागू है जो उसे भारत के अन्य राज्यों से पृथक करता है . भारत सरकार के सभी कानूनों के नीचे नोट लगा होता है कि यह कानून कश्मीर को छोड़कर शेष भारत में लागू होगा . यदि वह भारत का अभिन्न अंग है तो यह अंतर क्यों? जब भी धारा ३७० हटाकर कश्मीर को भारत का नियमित राज्य बनाने कि बात आती है , कांग्रेस के नेता और तथा कथित सिकुलर ताकतें हंगामा खड़ा कर देती हैं . पंडित नेहरु और उनके प्रतिनिधियों के द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ , संसद तथा समाचारपत्रों को दिए गए वक्तव्यों तथा पाकिस्तान को लिखे गए पत्रों- तारों के कुछ उद्धरण यहाँ दिए जा रहे हैं जिनके आधार पर पाकिस्तान कश्मीर और हमारे मामलों में दखल देना अपना अधिकार समझता है तथा कश्मीर के लोग अपनी तरह से बात करते हैं .
समाचारपत्रों में प्रकाशित वक्तव्य १. हमने प्राम्भ से ही स्वीकार किया है कि कश्मीर के लोग अपना भाग्य जनमत द्वारा तय करेंगे ......अंत में, निबटारे का अंतिम निर्णय , जो होगा, वह पहले कश्मीर के लोगों द्वारा ही किया जायगा .
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जवाहर लाल नेहरु , द स्टेट्समैन ,नई दिल्ली , १८-१-१९५१ , १६-१-५१ को लन्दन में प्रेस वार्ता )
२. लोग भूल जाते हैं कि कश्मीर कोई विक्रय या विनिमय कि वस्तु नहीं है .इसका निजी अस्तित्व है और इसके लोग अपने भाग्य के विधाता होने चाहिए .
(
जवाहर लाल नेहरु , द स्टेट्समैन , ९-७-१९५१ , कांग्रेस कमिटी कि रिपोर्ट में )
३. कश्मीर में जनमत की अपनी प्रतिज्ञा पर हम दृढ़ता से कायम हैं .हम कश्मीर को व्यापार की वस्तु नहीं समझते हैं .
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कृष्णमेनन ,द स्टेट्समैन ,नई दिल्ली,२-८-१९५१)
४. हम समस्या को यू एन ओ ले गए हैं और हमने इसके शांतिपूर्ण समाधान के लिए वचन दिया है .एक महान राष्ट्र के रूप में हम इससे पीछे नहीं हट सकते .हमने प्रश्न का अंतिम समाधान कश्मीर के लोगों पर छोड़ दिया है और हम उनके निर्णय के प्रति कटिबद्ध हैं .
(
जवाहर लाल नेहरु,अमृत बाजार पत्रिका ,कोलकता,२-१-१९५२)
५. कश्मीर का सम्पूर्ण विवाद अभी भी यू एन ओ में है.हम अकेले कश्मीर पर निर्णय नहीं कर सकते हैं . हम कश्मीर पर कोई बिल नहीं पास कर सकते हैं या आदेश नहीं जारी कर सकते हैं या हम जो चाहें नहीं कर सकते हैं .(
जवाहर लाल नेहरु , द स्टेट्समैन ,नई दिल्ली १-५-१९५३)
६.कश्मीर समस्या पर भारत अपनी अंतर्राष्ट्रीय वचनबद्धता पर स्थिर रहेगा .और उन्हें उचित समय पर क्रियान्वित करेगा . अंतर्राष्ट्रीय वचनबद्धता से हटने पर भारत की प्रतिष्ठा बाहर गिर जायगी
(टाइम्स आफ इंडिया ,१६-५-१९५४)
संसद में दिए गए वक्तव्य१. हमने कश्मीर के लोगों से और यू एन ओ में प्रतिज्ञा की है .हम इसके साथ थे और आज भी हैं . कश्मीर के लोगों को निर्णय करने दें .
(
जवाहर लाल नेहरु,१२-२-१९५१ )
२.भारत एक महान देश है और कश्मीर लगभग एशिया के हृदयस्थल पर विराजमान है.भौगोलिक रूप से ही नहीं ,सभी प्रकार के तथ्यों में वहां बहुत अंतर है .आप क्या सोचते हैं की आप उ. प्र., बिहार या गुजरात के सम्बन्ध में बात कर रहे हैं?
''यदि समुचित जनमत के बाद कश्मीर के लोग कहें की हम भारत के साथ नहीं हैं '', हम इसे स्वीकार करने के लिए वचनबद्ध हैं . हम इसे स्वीकार करेंगे यद्यपि यह हमें कष्ट देगा .हम उनके विरुद्ध कोई सेना नहीं भेजेंगे .हमें उससे कितनी भी क्षति अनुभव करें , हम उसे स्वीकार करेंगे , आवश्यकता होने पर हम हम संविधान भी बदल देंगे .(
जवाहर लाल नेहरु,२६-६-१९५२)
३. मैं जोर देकर कहना चाहूंगा कि कश्मीर के लोग ही कश्मीर का निर्णय करेंगे .यह केवल इसलिए नहीं है कि हमने यु.एन. ओ. और कश्मीर के लोगों से ऐसा कहा है ;यह हमारी परम्परा है और जिस नीति का हमने कश्मीर ही नहीं सर्वत्र अनुसरण किया है ,से उत्पन्न हुई है . यद्यपि ये पञ्च वर्ष अत्यंत कष्ट और व्यय के रहे हैं और हमने जो कुछ किया है ,उसके बावजूद हम स्वेच्छा से लौट जायेंगे यदि कश्मीर के लोग हमें जाने के लिए कहेंगे चाहे छोड़ने में हमें कितना भी दुःख हो . हम लोगों कि इच्छा के विरुद्ध नही रहेंगे .हम स्वयं को उन पर संगीन कि नोक पर नहीं थोपेंगे .
हमारी यह मान्यता थी कि कश्मीर के लोग स्वयं अपना भविष्य तय करें .हम उन्हें बाध्य नहीं करेंगे , कश्मीर के लोग संप्रभु हैं. (
जवाहर लाल नेहरु, ७-८-१९५२)
४. जहां तक भारत सरकार का सम्बन्ध है , कश्मीर के सम्बन्ध में हम अपने आश्वासन तथा अंतर्राष्ट्रीय वचन बद्धता पर दृढ़ हैं .(
जवाहर लाल नेहरु, राज्य सभा , १८-५-१९५४)
५. कश्मीर भारत -पाक के मध्य कोई पत्ते कि वास्तु नहीं हैं परन्तु इसकी अपनी आत्मा और निजता है . कश्मीर के लोगों कि सद्भावना और सहमती के बिना कुछ नहीं किया जा सकता है.(३१-३-१९५५)
६. अधिग्रहण का प्रश्न अंतिम रूप से स्वतन्त्र जनमत द्वारा निश्चित किया जायगा ,इस पर कोई विवाद नहीं है .(भारत सरकार का कश्मीर पर श्वेतपत्र ,१९४८)
जन सभा१. यदि कश्मीर के लोग पाकिस्तान के लिए चुनते हैं , उन्हें ऐसा करने से पृथ्वी पर कोई शक्ति नहीं रोक सकती . उन्हें अपना निर्णय करने के लिए स्वतन्त्र छोड़ दिया जाय.('महात्मा गाँधी का सम्पूर्ण कृतित्व ' , प्रार्थना सभा में भाषण ,२२६-१०-१९४७)
२.सबसे पहले मैं आपको १९४७ के सौभाग्य के दिन याद दिलाना चाहूंगा जब मैं श्रीनगर आया था और पूर्ण आश्वासन दिया था कि कश्मीर के संघर्ष में भारत के लोग कश्मीर के साथ हैं .मैंने यहाँ एकत्रित विशाल सभा के समक्ष शेख अब्दुल्ला से हाथ मिलाया था . मैं उसे दोहराना चाहता हूँ कि कुछ भी हो जाय , भारत सरकार अपनी प्रतिज्ञा पर अटल है .प्रतिज्ञा यह थी . कि कश्मीर के लोग बिना किसी बाह्य हस्तक्षेप के अपना भाग्य का निर्णय करें . वह आश्वासन है और रहेगा .(
जवाहर लाल नेहरु,श्रीनगर में जनसभा ,४-६-१९५१).
यू.एन .ओ. में वक्तव्य
१.कश्मीर के लोग प्रजातंत्र के स्वीकृत तरीकों , जनमत अथवा प्रतिनिधियों के द्वारा अपना भविष्य निर्धारित करने के लिए स्वतन्त्र हैं जो पूर्ण निष्पक्षता सुनिश्चित करते हुए अंतर्राष्ट्रीय संरक्षण में संपन्न किया जाय .( भारत सरकार का यू.एन.ओ.को पत्र ,३१-१२१९४७)
२.राज्य के संकट के समय, संविलयन के प्रस्ताव को भारत सरकार ने अस्वीकृत कर दिया तथा शासक को सूचित किया कि शांति स्थापित होने पर संविलय का निर्णय जनमत द्वारा किया जाना चाहिए .बाद में उन्होंने यह स्पष्ट किया कि आवश्यकता पड़ने पर अंतर्राष्ट्रीय संरक्षण में जनमत संपन्न किया जायेगा . संविलयके प्रश्न पर भारत सरकार ने यह नीति निर्धारित की है कि विवाद की स्थिति में सम्बंधित प्रदेश के लोगों को निर्णय लेना है . हमें और अधिक रूचि नहीं है और हम इस बात पर राजी हैं कि शांति-व्यवस्था स्थापित हो जाने के बाद कश्मीर में अंतर्राष्ट्रीय संरक्षण में जनमत संपन्न हो. हम केवल यह देखना चाहते हैं कि कश्मीर में शांति स्थापित हो गई है और यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि कश्मीरी लोग व्यवस्थित एवं शांतिपूर्ण ढंग से अपने राज्य का निर्णय करने में स्वतन्त्र हैं .(गोपालास्वामी अयंगर, सुरक्षा परिषद् , १५-१-१९४८).
३.मेरी सरकार का सदैव यह दृष्टिकोण रहा है कि जो प्रस्ताव पारित किये गए हैं , उन्हें क्रियान्वित किया जाय .(कृष्ण मेनन ,यूएन ओ , ५-४-१९५१).
४.हम संयुक्त राष्ट्र के अंतर्राष्ट्रीय शांति आयोग के प्रस्ताव से पीछे नहीं हटेंगे या उनमें निहित प्रमुख सैद्धांतिक तत्वों कि उपेक्षा नहीं करेंगे .....हम सदैव इसके प्रस्तावों के साथ जुड़े रहेंगे ....हम कभी संयुक्त राष्ट्र आयोग के सम्बद्ध पार्टियों की सहमति से पूर्व में लिए गए निर्णयों से पीछे नहीं हटेंगे .(विजय लक्ष्मी पंडित ,सुरक्षा परिषद् ,८-१२-१९५२).
५यदि जनमत के परिणाम स्वरूप लोग तय करते है की उन्हें भारत के साथ नहीं रहना है तो उस समय हमारा कर्तव्य होगा कि हम उन संवैधानिक तरीकों को अपनाएं कि हम उस भूभाग को पृथक कर सकें . (कृष्ण मेनन ,सुरक्षा परिषद् ,८-२-१९५७).
भारत सरकार द्वारा पाकिस्तान को लिखे गए पत्र१. संविलय के सम्बन्ध में भी यह स्पष्ट कर दिया गया है कि यह राज्य के लोगों और उनके निर्णय के संबंध में है .(
जवाहर लाल नेहरु, पाकिस्तान के प्रधान मंत्री को तार, २८-१०-१९४७).
२.राज्य के लोगों द्वारा अपने राज्य के भविष्य के निर्णय से सम्बंधित निर्णय को छोड़ दें , यह वाअंतर्राष्ट्रीय संरक्षण में यह वायदा केवल आपकी सरकार से ही नहीं, कश्मीर के लोगों एवं विश्व से भी किया गया है . (
जवाहर लाल नेहरु, पाकिस्तान के प्रधान मंत्री को तार,३१-१०-१९४७).
३.कश्मीर को यू एन ओ जैसे अंतर्राष्ट्रीय संरक्षण में जनमत या प्रतिनिधित्व के द्वारा संविलय के प्रश्न का निर्णय करना चाहिए .(
जवाहर लाल नेहरु, पाकिस्तान के प्रधान मंत्री को पत्र , २१ -११ -१९४७).
४.हमारा उद्देश्य कश्मीर के लोगों को शांतिपूर्ण ढंग से अपने भविष्य का निर्णय करने कि स्वतंत्रता देना है जिससे कोई विपरीत स्थिति उत्पन्न न हो , जैसा हमने अपने संयुक्त वक्तव्य में कहा था .
(जवाहर लाल नेहरु, पाकिस्तान के प्रधान मंत्री को पत्र , १०-११ -१९५३ ).
'बोया पेड़ बबूल का आम कहाँ ते खाय ', कितनी सच्ची और सीधी - सादी बात है, यह कश्मीर के लिए अक्षरशः लागू होती है . १९७२ में शिमला समझौते के समय इंदिरा गाँधी ने पाकिस्तान के ९३००० सैन्य अधिकारी एवं सैनिक छोड़ दिए , उनकी भारत के क़ब्जे वाली भूमि भी वापस कर दी परन्तु कश्मीर समस्या को बनाये रखा . कोई नहीं जानता कि क्यों.
डा. ए. डी.खत्री