शुक्रवार, 8 जुलाई 2011

PRAVESH TITHI

राज्यपाल प्रवेश तिथि न बढाएं
म. प्र. के महाविद्यालयों में प्रवेश की अंतिम तिथि ३० जून थी . अनेक सीटें खाली रह गईं हैं . छात्रों के हो- हल्ले के बाद प्रवेश तिथि बढ़ाने के लिए उच्च शिक्षा विभाग कुलाधिपति ( महामहिम राज्यपाल )को फ़ाइल भेज कर तिथि बढवाने का नाटक कर रहा है . स्नातक पांचवें सेमेस्टर के पूरे परिणाम भी अभी तक नहीं आये हैं . अभी उनकी पूरक परीक्षा भी होनी होगी उसके परिणाम कब आयेंगे कौन जाने . छठे सेमेस्टर कि परीक्षा तिथि घोषित हो गई है . १६ मई से कालेजों में ग्रीष्मावकाश था . छठे सेमेस्टर कि पढ़ाई कब हो गई ? जब बिना कालेज गए, छात्र छात्रवृत्ति ले सकते हैं , परीक्षा में बैठ सकते हैं और अच्छे अंकों से पास हो सकते हैं तो प्रवेश तिथि का नाटक क्यों ? यदि १५ दिन तिथि बढ़ा भी दी गई तो स्नातकोत्तर और विधि कक्षाओं के लिए छात्र कहाँ से आयेंगे ? प्रवेश तिथि के चलते प्राचार्यों को अनावश्यक परेशानी का सामना करना पड़ता है . अनावश्यक रूप से छात्रों को आन्दोलन करने पड़ते हैं . जब नियमित परीक्षाएं होती थी , कालेज में सीटें भर जाती थी , उच्च शिक्षा आयुक्त नवम्बर -दिसंबर तक छात्रों को विशेष अनुमति देकर प्रवेश देने का आदेश देते रहें हैं . आज तो कुछ इने -गिने कालेजों को छोड़ दें तो सामान्य स्थिति में अधिकांश कालेजों में स्नातकोत्तर कि अनेक सीटें खाली रह जाती हैं . इस बार तो प्रवेश ही शून्य हैं . १५ दिन तिथि बढ़ाने से क्या फर्क पड़ेगा ? राज्यपाल के पास फ़ाइल भेजने का सीधा अर्थ छात्रों ,उनके अभिभावकों और जन सामान्य को यह सन्देश देना है कि शिक्षा व्यवस्था की सारी गड़बड़ी कुलाधिपति अर्थात राज्यपाल ही कर रहें हैं . यह दुःख की बात है कि राज्यपाल क्लर्कों -आयुक्तों द्वारा नोट लगाकर भेजी गई फ़ाइल पर अपने हस्ताक्षर करके शिक्षा व्यवस्था को चौपट करने का दायित्व स्वयं ले रहें हैं . यदि दायित्व ही लेना है तो परीक्षा कि लेट लतीफी से छात्रों का वर्ष बर्बाद होने का दायित्व लें और उन्हें क्षतिपूर्ति दिलवाएं क्योंकि विश्विद्यालय का कोई भी फार्म , वह परीक्षा के लिए हो , नामांकन के लिए हो या कोई अन्य फार्म हो , छात्रों से जम कर विलम्ब शुल्क वसूला जाता है . प्राकृतिक न्याय के अनुसार परीक्षा परिणाम विलम्ब से ही नहीं घोषित किये गए , उनका साल बर्बाद कर दिया गया है . उन्हें निश्चित रूप से हर्जाना मिलना चाहिए और यह न्यूनतम एक चतुर्थ श्रेणी कर्म चारी के वेतन के बराबर और विलंबित समय तक के लिए दिया जाना चाहिए . एक बार ऐसा करने पर दुबारा कोई विश्विद्यालय परीक्षा कि लेट लतीफी नहीं करेगा .जहाँ तक प्रवेश तिथि बढ़ाने का सवाल है , इसका अधिकार प्राचार्यों को दे दिया जाय कि वे अपने विवेकाधिकार से छात्र हित में उसका उपयोग करें . क्योंकि विश्विद्यालय से दूर के स्थानों के छात्र-छात्राओं को विश्विद्यालय या भोपाल आयुक्त कार्यालय आने में समय एवं धन कि अधिक हानि होती है , साथ ही इन स्थानों पर दलालों -घून्सखोरों के चंगुल में फंसने का भी भय रहता है .और यदि छात्र के मन में यह विचार बैठ गया किअब आगे प्रवेश नहीं मिल सकता तो वह उच्च शिक्षा से विमुख भी हो सकता है . आज कि तारीख में जो छात्र प्रवेश आयु की उच्च सीमा पर होंगे , अगले वर्ष वे प्रवेश , छात्र वृत्ति , उच्च डिग्री आदि से भी वंचित हो जायेंगे . यह प्रदेश के युवाओं के प्रति बड़ा अन्याय होगा . महामहिम राज्यपाल , कुलाधिपति जी से अनुरोध है कि अपने कुल की रक्षा के लिए कुछ तो करें .
महाविद्यालयीन शिक्षा में युवाओं की अरुचि उत्पन्न करने का एक कारण तो कम छात्र आने पर अनेक महाविद्यालय बंद करके पैसे बचाने का अवसर इस सरकार के हाथ लगेगा. दूसरा प्रमुख कारण छात्र-संघ के चुनाव के सम्बन्ध में म.प्र. उच्च न्यायलय का वह आदेश है , जिसके अनुसार इस बार छात्र संघ के चुनाव सीधे होने हैं . वे अब सीधे -टेढ़े कैसे भी नहीं हो पाएंगे . जब प्रवेश ही नहीं होंगे ,चुनाव कौन लड़ेगा ? जब सितम्बर तक परीक्षा चलेंगी तो कौन से छात्र और प्राध्यापक चुनाव के लिए उपलब्ध होंगे ? न्यायलय का आदेश कागजों पर रहेगा , चुनाव नहीं करवाए जांएगे और कोई अवमानना भी नहीं होगी .इसके विपरीत यदि कोई चुनाव करवाना भी चाहेगा तो किसी ऐसे छात्र को पकड़ कर , जिसका परीक्षा फल घोषित न होने के कारण अगली कक्षा में प्रवेश न हो सका हो , स्टे ले लिया जायगा और वह मिल भी जायेगा जिससे पुनः वर्षों तक छात्रों को चुनाव से दूर रखा जा सकेगा .
डा.ए. डी.खत्री

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें